वक़्त से लड़ कर जो अपना नसीब बदल ले ..
इंसान वही है जो अपनी तकदीर बदल ले |

जो दे ख़ुशी के दो पल, वो लम्हा ढूंढ रहा हूँ
जहां मिले साथ वो मंज़र ढूंढ रहा हूँ
लोग ढूंढते हैं अपनी किस्मत की लकीर ,
मैं लकीर लिख दे, वो कलम ढूंढ रहा हूँ ||
हालाँकि कोई भी इच्छित कार्य करने में बाधाएं भी आती है | इसी बीच एक नयी परिस्थिति ने जन्म ले लिया | जो प्रोफेसर उसे पढाई में मदद कर रहे थे उससे घनिष्टता धीरे – धीरे बढ़ने लगी |
प्रोफेसर साहब आये दिन कभी कॉफ़ी के बहाने तो कभी फिल्म देखने के बहाने बाहर चलने की जिद करते |
शुरू शुरू में तो कालिंदी ज्यादा प्रतिरोध नहीं करती थी, लेकिन अपने पढाई के समय को बर्बाद होता देख वह उनके साथ बाहर न जाने का बहाने बनाने लगी |
प्रोफेसर साहब दिखने में स्मार्ट थे और वह धीरे धीरे कालिंदी की ओर आकर्षित होने लगे |
परन्तु कालिंदी के तरफ से उसकी उदासीनता…
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