मीठी मुस्कान , तीखा गुस्सा , खरे आँसू , खट्टी मीठी यादें,
और थोड़ी कड़वाहट …ये सब स्वाद मिलके जो पकवान बनता
है उसे ही ज़िन्दगी कहते है |

चलो आज एक कहानी सुनाते है, मोहन काका की , जो कई सालों से माधवपुर और उसके आस पास के गाँव में घूम घूम कर ख़त बांटा करते थे | इस प्रकार वो लगभग गाँव के सभी घरों को जानते थे |
एक दिन मोहन काका को जब बाँटने को डाक मिली तो उसमे एक ऐसी चिठ्ठी थी, जो थी तो माधोपुर के पास के गाँव की, पर उस पते पर कभी उन्होंने पहले ख़त नहीं दिया था | और उस घर के बारे में उन्हें पता भी नहीं था |
खैर दिन भर सारी चिट्ठियाँ बाँट कर अंत में उस ख़त के पते को ढूंढते ढूंढते उस घर के पास पहुँच ही गए और दरवाजे पर पहुँच कर घंटी की बटन दबा दी |
जब घंटी बजाई तो अंदर से एक लड़की की आवाज़ आई ….कौन ?
तो इन्होने जबाब में कहा …… मैं डाकिया हूँ , आप की…
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