दोस्तों,
पौराणिक मान्यता है कि पवन-पुत्र हनुमान अजर-अमर हैं। वे लंका युद्ध के समय अपने प्रभु श्रीराम की सेवा के लिए त्रेतायुग में उपस्थित थे । श्रीराम ने जब जल समाधि ली, तो हनुमान जी को यहीं पृथ्वी पर रुकने का आदेश दिया ।
तब से माना जाता है कि हनुमान जी पृथ्वी पर ही वास करते हैं। द्वापर युग में जब उनको पता चला था कि उनके ही प्रभु श्री कृष्ण अवतार में पृथ्वी पर दोबारा अवतरित हुए हैं, तो वे अत्यंत प्रसन्न हुए ।
कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण की इच्छा के अनुरुप बजरंगबली अर्जुन के रथ की ध्वजा पर विराजमान रहे। इससे जुड़ा एक प्रसंग आनंद रामायण में मिलता है, जिसमें हनुमान जी अर्जुन के घमंड को तोड़ते हैं।
महाभारत में बहुत सारे ऐसे प्रसंग है जो हमें शिक्षा देते है और जिसे अपना कर हम बेहतर ज़िन्दगी जी सकते है | उसी क्रम में महाभारत कि एक और प्रसंग प्रस्तुत कर करने का प्रयास है |
कृपया पूरी प्रसंग को अंत तक पढ़ें | , यह आपके मनोरंजन के साथ साथ शिक्षा भी देती है |
एक बार की घटना है कि भगवान् श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा — मुझे पूजा के लिए थोड़ी फूल चाहिए | अर्जुन उनकी आज्ञा का पालन करने हेतु निकल पड़े और वे कदली वन पहुँचे |
संयोग से हनुमान जी वहाँ बैठे आराम कर रहे थे |
अर्जुन ने जैसे ही कुछ फूल तोडा , तो खरखराहट की आवाज़ से हनुमान जी की तन्द्रा टूटी और उन्होंने देखा की कोई फूल तोड़ रहा है |
उन्होंने उससे पूछा– तुम कौन हो और यहाँ क्या कर रहे हो ?
मैं अर्जुन हूँ और यहाँ से कुछ फूल तोड़ रहा हूँ |
हनुमान ने कहा — फूल तोड़ने से पहले इजाजत तो लेनी चाहिए, मैं यहाँ बैठा हूँ |
अर्जुन ने कहा .. इतनी छोटी सी बात के लिए क्या पूछना |
हनुमान जी ने कहा — बात छोटी बड़ी चीज़ की नहीं है, दरअसल यह तो चोरी है |
अच्छा, यह बताओ — तुम किसके लिए फूल ले जा रहे हो ?
अर्जुन ने कहा … मैं अपने भगवान् श्री कृष्ण के लिए फूल ले जा रहा हूँ |
हनुमान जी सुनकर पहले तो मुस्कुराये और फिर बोले — तब तो तुम्हारे संस्कार वैसे ही होंगे | वो तो खुद ही चोर है |
अर्जुन को यह बात बुरी लग गयी | उसने सोचा, मैं इतना महान धनुर्धर और इस थोड़ी सी फूल के लिए इस वानर ने हमारे प्रभु श्री कृष्ण को चोर कह दिया |
अर्जुन ने पलट कर जबाब दिया — मैं तो आप के प्रभु के बारे में भी जानता हूँ | आपके प्रभु तो लंका में एक छोटी सी पूल बनाने के लिए ना जाने कितने सारे वानरों को काम पर लगा दिया था | जबकी वो अपनी वाणों से ही पुल का निर्माण कर सकते थे |
हनुमान जी अर्जुन की बात सुन कर मुस्कुराये और फिर उससे पूछा – क्या तुम अपने वाणों से पुल का निर्माण कर सकते हो ?
अर्जुन ने ज़बाब दिया…. बिलकुल, मैं अपनी वाणों से पुल का निर्माण कर सकता हूँ |
हनुमान जी ने पूछा … एक बार फिर सोच लो | प्रभु राम ने जो पुल बनाया था उस पर हजारो वानर भालू आराम से पार कर के लंका पहुँच गए थे |
तुम्हारे बनाये पुल से मुझ जैसे एक ही वानर को पार कर के दिखला दो |
क्या तुम इतना मज़बूत पुल बना सकते हो ?
अर्जुन पुरे विश्वास के साथ बोले – बिलकुल, मेरे द्वारा बनाया गया पुल मजबूत होगा | उसके टूटने का सवाल ही नहीं है |
हनुमान ने फिर अपनी बात दोहराई, तो अर्जुन ने जोश में आकर कहा … अगर पुल टूट गया तो मैं अपने को आत्मदाह कर लूँगा |
इस पर हनुमान ने कहा – ठीक है ! और अगर मेरे पार करने से पुल नहीं टुटा तो तुम जो कहोगे मुझे मंज़ूर होगा | शर्त लग चुकी थी |
अर्जुन ने अपने वाणों की वर्षा कर के एक शानदार पुल का निर्माण कर दिया | उसके बाद उन्होंने हनुमान जी को पुल पार करने की चुनौती दी |
हनुमान जी ने जब अपना विकराल रूप धारण किया तो सूर्य ढक गए और अर्जुन की तो आँखे भी बंद हो गयी |
अर्जुन यह देख कर मन ही मन बोला – लगता है इतना मजबूत पुल भी शायद टूट जायेगा | वे उत्सुकता से परिणाम की प्रतीक्षा करने लगे |
हनुमान जी ने जैसे ही अपना पहला कदम रखा वो पुल तो पाताल में चला गया |
हनुमान जी मुस्कुराते हुए अर्जुन से पूछा … अरे, तुम्हारा पुल कहाँ है ? नज़र नहीं आता |
अर्जुन विनम्र आवाज़ में कहा … आप ने शर्त जीत लिया है और अब हमें आत्मदाह की तैयारी करनी चाहिए |
हनुमान ने अर्जुन को संतावना देते हुए कहा — इसकी ज़रुरत नहीं है | ज़िन्दगी बहुत कीमती है , तुम इसे समाप्त मत करो |
अर्जुन ने हनुमान जी की ओर देख कर कहा — नहीं, मैं एक क्षत्रिय हूँ और अपने वचन का पालन नहीं करूँगा तो दुनिया को कैसे मुँह दिखाऊंगा ?
हनुमान जी बोले – यह बात तो सिर्फ हमारे तुम्हारे बीच की है | दुनिया को इसका पता नहीं चलेगा |
नहीं, अब ऐसा नहीं हो सकता | मैं अपनी शर्त हार चूका हूँ और अपनी वचन का पालन करना एक क्षत्रिय का कर्त्तव्य है | यह बोल कर अर्जुन आत्मदाह के लिए लकड़ियाँ इकट्ठी करने लगे |
तभी भगवान् श्री कृष्ण को इस बात का स्मरण हुआ और उन्होंने अपने दिव्य – दृष्टि से सब कुछ देख लिया |
उन्हें पता था कि अर्जुन अपने वचन से पीछे नहीं हट सकता है | इसलिए भगवान् कृष्ण एक ब्राह्मण का रूप धारण कर घटनास्थल पर प्रकट हो गए |
उन्होंने अर्जुन पूछा — यह तुम क्या कर रहे हो ?
अर्जुन ने उस ब्राह्मण को पूरी बात बता दी और कहा — मुझे अपने दिए हुए वचन के अनुसार आत्मदाह करना ही होगा |
इस पर ब्राह्मण बोले .— अच्छा, तुम एक बात बताओ | जब तुम दोनों की शर्त लगी थी तो वहाँ कोई तीसरा भी था जो निर्णय दे सके ?
नहीं महाराज — हम दोनों के अलावा कोई तीसरा नहीं था |
इस पर ब्राह्मण बोले … शर्त लगाने वाला आपस में हार जीत का फैसला नहीं कर सकता है | कोई तीसरा निष्पक्ष आदमी चाहिए तो तुम दोनों की शर्त का अंतिम फैसला दे सके |
क्या तुम फिर से पुल का निर्माण कर सकते हो ? .. उस ब्राह्मण ने पूछा |
जी महाराज, मैं दुबारा पुल का निर्माण अपने वाणों के द्वारा कर सकता हूँ |
तो ठीक है, मैं निर्णय देने के लिए तैयार हूँ | इस पर हनुमान और अर्जुन दोनों तैयार हो गए |
अर्जुन ने अपने वाणों से एक फिर पुल का निर्माण कर दिया |
अब हनुमान जी की बारी थी | उन्होंने फिर से अपना विकराल रूप धारण कर लिया | भगवान कृष्ण समझ गए कि अर्जुन की हार निश्चित है | इसलिए भगवान कछप का रूप धारण कर पुल ने नीचे खड़े हो गए |
इस बार हनुमान जी पुल से पार हो गए पर पुल टुटा नहीं |
इस पर अर्जुन और हनुमान दोनों को आश्चर्य हुआ |
हनुमान जी जब पलट कर देखा तो उन्होंने हकीकत समझ लिया कि यह तो श्री कृष्ण की लीला है |
परन्तु वे शांत रहे और अपनी हार स्वीकार करते हुए अर्जुन से कहा — हाँ अर्जुन, आपने शर्त जीत लिया है | ., अपने वादे के अनुसार आप जो आज्ञा देंगे, मैं करने को तैयार हूँ | आप अपनी इच्छा बताएं |
अर्जुन कुछ बोलने ही वाला था कि श्री कृष्ण प्रकट हो गए और अर्जुन को सलाह दिया कि वक़्त आने पर आप हनुमान से अपना वरदान पूरा करने को कहे | आप सही समय का इंतज़ार करें | अर्जुन ने ऐसा ही किया |
हम सभी जानते है , जब महाभारत का युद्ध आरंभ हुआ तभी कृष्ण ने अर्जुन को हनुमान जी वरदान की याद दिलाई और फिर अर्जुन उन्हें अपने रथ पर विराजमान होने के लिए निवेदन किया |
तब श्री हनुमान जी अर्जुन के रथ पर ध्वजा के रूप में विराजमान हो गए |
और जब तक युद्ध होता रहा .– .हनुमान जी अर्जुन के रथ को अपनी भार से संभाले रहा और उसकी रक्षा करते रहे |इसी लिए अर्जुन के रथ को कपि ध्वज कहते है |
जब अर्जुन का कर्ण से सामना हुआ तो कर्ण का वाण चलता तो अर्जुन का रथ पांच कदम पीछे खिसकता था और जब अर्जुन का वाण चलता तो कर्ण का रथ 105 कदम पीछे चला जाता |
तभी कृष्णा के मुँह से प्रशंसा के बोल निकल पड़े और कहा—वाह कर्ण वाह |
इस पर अर्जुन नाराज़ हुए कहा — क्यों प्रभु ? हमारे वाण तो उसके रथ को ज्यादा दूर पीछे धकेल पा रहे है |
इस पर कृष्ण ने याद दिलाया कि तुम्हारे रथ पर हनुमान जी तीनो लोक का भार लेकर विराजमान है , फिर भी वह कर्ण तुम्हारी रथ को पांच कदम पीछे करने में सफल है |
और जब युद्ध समाप्त हुआ तो कृष्ण ने अर्जुन से कहा – पहले तुम रथ से उतर जाओ |
इसपर अर्जुन ने पूछा –प्रभु , रथ से पहले आप क्यों नहीं उतरते |
कृष्ण इसका उत्तर ना देते हुए , पहले अर्जुन को रथ से उतारा और फिर खुद रथ से उतर गए |
और फिर हनुमान जी को हाथ जोड़ कर रथ से उतरने का निवेदन किया |
यह कहा जाता है कि हनुमान जी जैसे ही रथ से उतरे , रथ में अचानक आग लग गयी और उसके टुकड़े टुकड़े हो गए |
अर्जुन आश्चर्य से यह सब देखता रहा | तभी कृष्ण ने अर्जुन से कहा – यह हनुमान थे जो तुम्हारे रथ की न जाने कितने अग्नि वाणों के प्रहार को अपनी शक्ति से बचाए रखा , वर्ना तुम्हारी रथ तो बहुत पहले ही जल जाती |
तभी अर्जुन को अपनी गलती का एहसास हुआ कि व्यर्थ में ही हम अपनी शक्ति पर घमंड करते रहे | इसलिए हमें किसी भी बात के लिए अहंकार नहीं करना चाहिए | यह सब ऊपर वाले की कृपा से ही हमें सफलता मिलती है |
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Categories: infotainment
Interesting incidents from the epic! Thanks for sharing. 😊
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Thank you Lakshya,
Your words of appreciation boost my confidence
in writing.
I also like your writing skill.
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That is so grateful of you sir. Thank you!
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Welcome dear,
Stay connected …stay happy..
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Interesting
It reminded me my childhood days 😅😅
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Thank you dear ..
Yes, it is very interesting.
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कभी प्रेरणादायक कथा है…..मैंनें पहली बार पढ़ा💕
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जी हाँ, प्रेरणादायक कथा है /
पसंद करने के लिए धन्यवाद /
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बहुत ही रोचक प्रसंग। मुझे इस पूरी कथा का ज्ञान नहीं था। सिर्फ इतना पता था कि महाभारत युद्ध के दौड़ान हनुमान जी अदृश्य रूप से अर्जुन के रथ की ध्वजा पर विराजमान थे।
ज्ञान वर्धक व तथ्य पर्क — सही है कि कोई भी कार्य बिना ऊपर वाले के सहयोग के नहीं होता।
:– मोहन “मधुर”
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यह बात बिलकुल सत्य है कि ऊपर वाले की इच्छा से ही सभी कार्य होते है /
इसलिए हमें ऊपर वाले को हमेशा धन्यवाद देना चाहिए ?
तुम्हारे विचार प्रस्तुत करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद |
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बहुत ही रोचक प्रसंग। मुझे इस पूरी कथा का ज्ञान नहीं था। सिर्फ इतना पता था कि महाभारत युद्ध के दौड़ान हनुमान जी अदृश्य रूप से अर्जुन के रथ की ध्वजा पर विराजमान थे।
ज्ञान वर्धक व तथ्य परक — सही है कि कोई भी कार्य बिना ऊपर वाले के सहयोग के नहीं होता।
:– मोहन “मधुर”
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सही है |
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Mujhe Ramayan aur Mahabharata Kahani ajab lagata hai.Bahut Badhia.
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You are right, But all these stories are very interesting
and give us a lesson .Thanks for sharing your views..
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Live as if you were to die tomorrow ,
Learn as if you were to live forever..
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