कोई न मिले तो किस्मत से गिला नहीं नहीं करते,
अक्सर लोग मिल कर भी मिला नहीं करते है …

दोस्तों,
आज कल हम बिहार दिवस पखवारा मना रहे है | हमारे मन में विचार आया कि आज एक लोक कथा की चर्चा की जाए |
मुझे अपनी बचपन की याद आ रही है जब ऐसी लोक कथाएं मेरी माँ मुझे बचपन में सुनाती थी.. जिसे सुनकर ही हमें नींद आती थी | ऐसी ही एक कहानी है… जिसका शीर्षक है …. मुर्ख कौन ?
एक गांव में एक सेठ रहता था | उसका एक ही बेटा था, जो व्यापार के काम से परदेस गया हुआ था |
एक दिन की बात है कि उस सेठ की बहू कुएँ पर पानी भरने गई | पानी भरने के क्रम में उसके घड़ा से पानी छलक कर उसके बदन को भिगों दिया |
बहु ने किसी तरह दुबारा अपने घड़े को भरा | घड़े को उसने उठाकर कुएँ के मुंडेर पर रख दिया और अपना हाथ-मुँह धोने लगी |
तभी उधर से…
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