
पडोसी लोग यह सोचने लगे कि अगर कोरोना के डर से ठाकुर साहब अपने इस घर को छोड़ कर भाग गए तो इस मृतक की मिटटी का क्या होगा ?
क्या इस पुण्यवती का शरीर ठेले पर लदकर शमशान घाट जाएगा ?
इसमें भला हमलोग खुद क्यों खतरा मोल ले ? हमलोग को भी यह जगह ज़ल्द छोड़ कर अपने अपने घरों में सुरक्षित पहुँच जाना चाहिए |
ठाकुर साहब तो बार-बार यही कह रहे थे कि स्त्री का प्राण तो चला ही गया है, इसके साथ मेरा भी प्राण जावे तो कुछ हानि नहीं, पर मैं चाहता हूं कि मेरा पुत्र बचा रहे । मेरा कुल तो न लुप्त हो जाए |
पर वह बेचारा बालक भोलू इन बातों को क्या समझता था ! वह तो मातृ-प्रेम के बंधन में ऐसा बंधा था कि रात भर अपनी माता के पास बैठा रोता रहा ।
यह सब बातें सोचते हुए ठाकुर साहब ने दुसरे मकान में जाने के लिए अपनी गाडी स्टार्ट की ही थी कि तभी सबसे पुराना और वफादार बुढा नौकर हाथ जोड़ कर कहा … ठाकुर साब, आप बेफिक्र हो कर जाएँ, मैं इस घर की रखवाली करता हूँ |
और गाँव के लोगों की मदद से ठकुराईन की चिता को आग दे दूंगा | बाकी का क्रिया कर्म आप बाद में कर लीजियेगा |

तभी ठाकुर साहब वहाँ खड़े पुरोहित जी की ओर प्रश्न भरी नजरो से देखा |
पुरोहित जी ने ठाकुर साहब की जिज्ञासा शांत करते हुए कहा… धर्मशास्त्रानुसार ऐसा किया जा सकता है |
और वैसे भी अभी की ऐसी विकट स्थिति में कोरोना की महामारी का खतरा और भी बढ़ जाने की सम्भावना है |
इतना सुनते ही ठाकुर साहब ने पुरोहित जी से कहा — ‘यह 5000 रुपये लीजिए और मेरे चार नौकर साथ ले जाकर कृपा करके आप चिता को आग दिलवा दें और मुझे दुसरे मकान पर जाने की आज्ञा दीजिए ।’
इतना कहकर अपने बेटे को साथ लेकर और उनलोगों से विदा होकर ठाकुर साहब कसबे वाले मकान की ओर चल दिए |
ठाकुर साहब के जाने के बाद पुरोहित जी ने चार मजदूरों को लेकर उनके घर पर गए । सीढ़ी बनवाते और कफन इत्यादि मंगवाते सायंकाल हो गया।
जब नाइन ठकुराईन को कफनाने लगी, तो उसने कहा — ‘इनका शरीर तो अभी बिल्कुल ठंडा नहीं हुआ है और आंखें अधखुली-सी हैं | मुझे भय लग रहा है |
पुरोहित जी और नौकरों ने कहा — यह तेरा भ्रम है, मुर्दे में जान कहां से आएगी ? डॉक्टर साहब जब बोले है कि ठकुराईन शांत हो चुकी है तो उनके भला फिर से जिंदा होने का प्रश्न कहाँ है ?
चलो जल्दी लाश को कफनाओ ताकि गंगा तट पर ले चलकर इसका सतगत करें।
रात होती जा रही है | क्या मुर्दे के साथ हमें भी मरना है ?
ठाकुर साहब तो छोड़ कर भाग ही गए, अब हम लोगों को इन पचड़ों से क्या मतलब है कि लाश ठंढा हुआ या नहीं |
किसी तरह फूंक -फांककर घर वापस आना है । क्या इसके साथ हमें भी जलना है ?’
मजदूरों की बात सुन कर पुरोहित जी ने कहा — ‘भाई, जब नाइन ऐसा कह रही है, तो देख लेना चाहिए, शायद ठकुराईन की जान न निकली हो।
ठाकुर साहब तो जल्दीबाजी में छोड़ भागे, और डॉक्टर दूर ही से देखकर बिना ठीक से जाँचे ही कह दिया था | ऐसी दशा में एक बार अच्छी तरह जांच कर लेनी चाहिए ।

सब मजदूरों ने एक स्वर में कहा – पुरोहित जी, तुम तो सठिया गए हो, ऐसा होना असंभव है। बस, देर न करो, ले चलो ।
यह कहकर, मजदूर लोग बांस की सीढ़ी में बंधे मुर्दे को कंधे पर उठा लिए |
राम नाम सत्य कहते हुए सभी लोग महेश घाट की ओर ले चल पड़े।
रास्ते में चलते हुए एक नौकर कहने लगा – अभी रात के सात बज गए हैं, चिता को जलते – जलते रात बारह बज जाएंगे ।’
दूसरे ने कहा– ‘फूंकने में निस्संदेह रात बीत जाएगी।’
तीसरे ने कहा — यदि ठाकुर साहब कच्चा ही फेंकने को कह गए होते तो अच्छा होता।
चौथे ने कहा — ‘मैं समझता हूं कि कोरोना से मरे हुए मृतक को ऐसे ही गंगा नदी में प्रवाहित कर देना चाहिए ।
तभी पुरोहित जी ने कहा — मुझे तो इतनी रात्रि के समय श्मशान घाट जाते हुए डर मालूम होता है | अगर आप सबों की ऐसी राय है तो मेरी भी यही सम्मति है |
वैसे भी बाद में जब क्रिया कर्म के समय एक बार फिर ठाकुर साहब को नरेनी अर्थात पुतला बनाकर जलाने का कर्म तो करना ही पड़ेगा |
इसलिए इस समय जलाना अत्यावश्यक नहीं है ।’ फिर सबो ने एक साथ कहा – बस, चलकर मुर्दे को ऐसे ही गंगा में प्रवाहित कर देते है … और ठाकुर साहब से कह दिया जाएगा कि ठकुराईन को जला दिया गया।
ठाकुर साहब से जो पैसा मिला है उसे हमलोग बराबर – बराबर बाँट लेते है |
लेकिन समस्या है कि घाट पर पानी में लाश को बहा नहीं सकते है |
तो हमलोग ऐसा करते है कि गेंदा घाट चलते है | वहाँ रात के समय कोई नहीं जाता | काफी सुनसान इलाका है | वहाँ दिन में ही लोग स्नान करने आते है – पुरोहित जी ने इस समस्या का हल बताया |

ये सुनकर वे सब लोग राज़ी हो गए और लाश को लेकर चलते हुए रास्ते बदल लिए ताकि अब गेंदा घाट जाया जा सके |
वे वहां पहुंचे ही थे कि सियार की जोर जोर से बोलने की आवाज़ आने लगी | चारो तरह घोर अँधेरा था | सभी लोग डरे और सहमे हुए थे |
उन्होंने डर के मारे जल्दीबाजी में सीढ़ी समेत मुर्दे को जल में डाल दिया और राम-राम कहते हुए कगारे पर चढ़ आए |
वहाँ घोर अँधेरा होने के कारण कुछ भी ठीक से दिखाई नहीं पड़ रहा था | चारो तरफ सन्नाटा था और कुत्ते सियार की आवाजें लगातार आ रही थी |
रात भी काफी हो गई थी , तभी पुरोहित जी ने कहा … अब ज़ल्दी से इस इलाका से निकल चलो |
कहीं सरकारी चौकीदार देख लिया तो आकर हमलोगों को गिरफ्तार कर लेगा , क्योंकि सरकार की तरफ से कच्चा मुर्दा फेंकने की मनाही है ।
इस तरह वे बेईमान मजदूर और पुरोहित जी पैसो की बंदरबांट कर ली और ठाकुर साहब के आज्ञा को भंग कर अपने – अपने घरों को लौट गए |
अब आगे सुनिए उस मुर्दे की क्या गति हुई । वह सीढ़ी के बांस ऐसे मोटे और हल्के थे जैसे नौका के डांड हो और उस पर ठकुराईन के शरीर के बोझ से वह सीढ़ी पानी में नहीं डूबी बल्कि इस तरह उतराती चली गई जैसे बांसों का बेड़ा बहता हुआ चला जाता है ।
यदि दिन का समय होता तो किनारे पर से लोग इस दृश्य को आश्चर्य से देखते और कौए तो ज़रूर नोच – नाच करते ।
चूँकि रात का समय था, इससे वह शव-सहित सीढ़ी का बेड़ा धीरे-धीरे रात भर गंगा जी में बहता हुआ करीब पांच किलो मीटर आगे तक चला गया |
लेकिन आगे किसी झाड़ी में अटक कर रुक गई |
लेकिन तभी एक चमत्कारिक घटना हुई | संयोग से पानी की बहती धारा में गंगाजल छलक-छलक कर ठकुराईन के मुख में चला गया और थोड़ी देर में ठकुराईन होश में आ गयी |
जिस ठकुराईन को लोगों ने निर्जीव समझ लिया था, गंगा जल की कृपा से रोगमुक्त हो गयी और उन्हें होश आ गया |
(आगे की घटना भाग – 3 में पढ़े) Pic source: Google.com..

कोरोना वाली चुड़ैल -3 हेतु नीचे link पर click करे..
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Categories: story
Story is ended with miracle. Jai ho ganga mataki Jai.
Nice.
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Yes sir,
But story is still have two more parts..
Please go through the full story and enjoy the climax..
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Waiting for the climax 👍
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Thank you sir,
Part 3 published today..Sir..
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वाह!
कहानी जानदार है!
परन्तु ,
मानवता को करती शर्मसार है!
अब,
आगे की कड़ी का इन्तजार है!
:–मोहन “मधुर”
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वाह वाह मोहन डिअर,
आपने इस पर भी कविता बना दिए | बहुत सुन्दर ..
आपकी कविताये अपनी ब्लॉग में चाहता हूँ ..आप लिखते रहिये |
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Reblogged this on Retiredकलम and commented:
Good evening
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I could not resist commenting. Perfectly written!
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