
कारकोटा से आशीर्वाद प्राप्त कर और उनकी सलाह पर नल अयोध्या पहुँच गए |
अयोध्या में नीलपर्ण नाम के राजा थे | उन्होंने राजा के पास जाकर कहा — मैं आपकी सेवा में रहना चाहता हूँ |
राजा ने पूछा — तुम यहाँ क्या काम कर सकते हो ?
नल ने कहा — .मैं एक अच्छा घुड़सवार हूँ और आपके अस्तबल की अच्छी तरह देख भाल कर सकता हूँ | मुझे स्वादिस्ट भोजन भी बनाना आता है |
राजा को यह सुन कर बड़ा आश्चर्य हुआ , क्योकि एक कुरूप सा दिखने वाला बौना घुड़सवारी कैसे कर सकता है ?
राजा ने कहा — पहले तुम घुड़सवारी की कला का प्रदर्शन करो |
नल ने जब घुड़सवारी की तो राजा बस देखते ही रह गए | अब राजा को यकीन हो गया कि यह जो कह रहा वह सही है |
उन्होंने अपने सारथि से कहा — यह तो तुमसे भी अच्छा सारथि दिख रहा है |
सारथी जिसका नाम वार्ष्णेय था , उसने कहा .– जी, महाराज ! मैंने ऐसी अच्छा घुड़सवारी सिर्फ नल को करते देखा था | दरअसल वो सारथी नल का ही था जिसे दमयंती ने राज पाट समाप्त होने पर उसे राजा नीलपर्ण के पास भेज दिया था |
राजा नीलपर्ण नल से बहुत प्रभावित हुए और उसे अपना सारथि रख लिया | नल ने अपना नाम वाहुक बताया |
इस तरह नल को अयोध्या के राजा का शरण मिल गया | संयोग से, राजा नीलपर्ण एक कुशल पासा(जुआ) खिलाड़ी थे ।

इधर दमयंती के पिता अपनी बेटी की खोज खबर लेने के लिए चारो तरफ अपने गुप्तचर छोड़ रखे थे लेकिन दमयंती का कोई पता नहीं चल पा रहा था |
एक दिन उनका एक ब्राहमण संयोग से छेदी नगर पहुँचा |
उस ब्राह्मण की नज़र जब दमयंती पर पड़ी तो उन्होंने उसे पहचान लिया | हालाँकि उस समय उसका हुलिया गरीब नौकरानी जैसी लग रही थी |
लेकिन उसके मुखड़े पर बने कमल के निशान और उसके चेहरे की तेज़ को देख कर उस ब्राह्मण को विश्वास हो गया कि यह दमयंती ही है |
ब्राह्मण तुरंत वहाँ के राजा को कहा .. जिसे आप नौकरानी बना के रखे हुए है , वह तो विदर्भ राजा की राजकुमारी है |
दमयंती के चेहरे पर बने कमल के निशान को देख कर छेदी के राजा को भी यकीन हो गया |
राजा को बहुत अफ़सोस हुआ और दमयंती से क्षमा मांगते हुए कहा — मुझे माफ़ करे, मैं आपको पहचान नहीं पाया था और मैं आप को दासी बना कर यहाँ रखा |
दमयंती ने कहा — आप ने मुझे मुसीबत में सहारा दिया है, मैं आपका एहसानमंद हूँ |
और इस तरह इज्जत के साथ दमयंती को विदर्भ उनके पिता के पास भेज दिया |
अपनी बेटी की ऐसी दुर्दशा देख कर राजा को बहुत दुःख हुआ | वे सब मिल कर उसकी ठीक तरह से देख भाल करने लगे और कुछ दिनों के बाद दमयंती फिर से एक सुन्दर राज कुमारी बन गयी |
दमयंती, न केवल दिखने में ही अच्छी थी बल्कि उसका दिमाग भी बहुत तेज था |
उसने राजा नल को खोजने के लिए अपने बहुत सारे गुप्तचर सभी जगह भेज दिया | उसे साथ में एक गाना गाने को भी कहा | उसने गुप्तचर से कहा कि अगर यह गाना नल सुन लेगा तो उसका दूसरा लाइन गाये बिना नहीं रह पायेगा | इस तरह नल का पता चल जायेगा |
गुप्तचर ने ऐसा ही किया | वह जहाँ भी जाता उस गाने को गाते हुए चलता था |
एक दिन गुप्चार जब अयोध्या नगरी पहुँचा और वो गाना गया तो दूसरा लाइन गाता हुआ नल बाहर निकला |
उसे देख कर गुप्तचर को लगा कि यह तो राजा का सारथि बाहुक है जो बिलकुल कुरूप और बौना है | यह तो किसी भी तरह से नल नहीं हो सकता |
वो गुप्तचर भागा भागा दमयंती के पास आया और पूरी बातें बयाँ कर दिया और यह भी कहा .. गाना का उत्तर देने वाला एक कुरूप बौना था |

रानी को समझते देर ना लगी कि उस बौने और नल में कोई सम्बन्ध है |दमयंती को यह भी पता चला कि वह बाहुक के नाम से राजा का सारथि है |
अंत में दमयंती ने नल को एक अभिनव चाल से खोजने का फैसला किया ।
वह अपने पिता से बोल कर अपना स्वयंवर की खबर अयोध्या के राजा नीलपर्ण के पास भिजवाती है |
दमयंती की सुन्दरता और गुण की जानकारी तो सभी राजाओं को थी |
इसलिए स्वयंवर की खबर पाते ही राजा नीलपर्ण अपने सारथि बाहुक के साथ चल दिए |
बाहुक रथ चलाते हुए बार बार सोच रहा था कि दमयंती दुबारा शादी क्यों करना चाहती है ? वो तो मुझसे बहुत ज्यादा प्रेम करती है और वह तो पतिव्रताओं में शिरोमणि है |
ऐसा सोचते हुए उसका ध्यान भटक रहा था जिसके कारण वह रथ को ठीक से नहीं चला पा रहा था | इसपर राजा ने वाहुक को टोकते हुए कहा — मुझे दमयंती के स्वयंवर में जल्दी पहुँचना है और तुम्हारा ध्यान आज क्यों नहीं लग रहा है घोड़ो को सँभालने में ?
इतना सुनना था कि वाहुक को अपनी गलती का एहसास हुआ और वह रथ को रोक कर घोड़ो के कान में कोई मंत्र कहा और उसके बाद तो उनके घोड़े हवा से बातें करने लगे |
राजा को यह सब देख कर बहुत आश्चर्य हुआ |
दमयंती अपनी बालकनी पर खड़ी इंतजार कर रही थी | जैसे ही उसके महल के पास से गाड़ियां गुगुजरी । उसने तुरंत नल द्वारा चलाए जा रहे रथ की खुर की धड़कन के पैटर्न को पहचान लिया। और उसे लगा कि नल ही आया है |
दमयंती ने एक दासी को यह देखने के लिए भेजा कि रथ में कौन आया है ?
दासी ने आकर बताया कि राजा नीलपर्ण और उसका रथ चालक वाहुक था।
उसने यह भी बताया कि राजा ने विदर्भ के आतिथ्य से इनकार कर दिया है और अपने रथ चालक को अपना भोजन तैयार करने के लिए कह रहा था।
तब दमयंती ने नौकरानी से खाने की कुछ चीजें चुरा कर लाने को कहा ।
उसका खाना खा कर दमयंती ने मन ही मन कहा — इस खाना का स्वाद तो उसके पति के खाना पकाने जैसा ही है । उसे पक्का यकीन हो गया कि वह उसका पति नल ही है |
उसने सारी मर्यादाओं को हवा में फेंकते हुए वह रथ चालक से मिलने के लिए दौड़ पड़ी |
एक गोरा, लंबा और सुंदर नल के बजाय एक काले, बौने और विकृत आदमी को देख कर दंग रह गई ।
दमयंती ने उससे पूछा — “एक आदमी अपनी कर्तव्यपरायण पत्नी को उसके पिता के घर वापस क्यों भेजना चाहता है ?
वाहुक ने उत्तर दिया,– “क्योंकि उसने अपना राज्य खो दिया है और अपनी पत्नी का उस तरह से समर्थन नहीं कर सकता जिस तरह से वह उनकी शादी से पहले आदी थी |
इस पर दमयंती ने कहा — तुम ही मेरे नल हो | दमयंती के आँखों में आंसूं देख कर वाहुक अपने को रोक न सका और कहा – हाँ दमयंती, मैं ही नल हूँ |
तुम्हारा ऐसा हुलिया किसने बना दिया ? … दमयंती ने दुखी होकर पूछा |
नल ने कहा – मुझे एक करकोटा सांप से ऐसा किया है | तभी नल को करकोटा द्वारा दिए गए वस्त्र का ध्यान आ गया |
नल अपने पास रखे उस जादुई वस्त्र को पहन लिया और उसको धारण करते ही वह अपने मूल रूप में वापस आ गया |
नीलपर्ण ने दमयंती को बधाई दी और कहा – तुम्हारा तो पति मिल गया है लेकिन मैं न केवल अपने सबसे अच्छे घुड़सवार और सबसे अच्छे रसोइए बल्कि अपने सबसे अच्छे दोस्त को भी खो देगा।
नल के पास नीलपर्ण के लिए एक प्रस्ताव था। “
नल ने कहा — यदि आप मुझे वह वो विद्या सिखाएं जो आप जुआ के बारे में जानते हैं, तो मैं कुछ समय के लिए आपके साथ रहूंगा और बदले में आपको वह सब मंत्र सिखाऊंगा जो मैं घुड़सवारी के समय प्रयोग करता हूँ |

नल ने फिर कहा – वैसे मुझे नियमित रूप से जुआ खेलने में कोई दिलचस्पी नहीं है | लेकिन अपने राज्य को वापस जीतने के लिए सिर्फ एक बार फिर जुआ खेलना चाहता हूँ |
इस तरह कुछ दिनों के लिए नल और दमयंती नीलपर्ण के राज्य में चले गए । जल्द ही ऋतुपर्णा एक कुशल घुड़सवार और नल एक कुशल जुआरी बन गए |
एक दिन नल ने अपने भाई पुष्कर को एक चुनौती भेजी । वह फिर उससे हुआ खेलना चाहता है |
अगर पुष्कर ने पूरे राज्य को दांव पर लगा दिया तो वह दमयंती को दांव पर लगाने को तैयार है ।
दमयंती का नाम सुनते ही पुष्कर को दमयंती जैसी सुन्दर नारी को पाने की इच्छा जागृत हो गई |
पुष्कर को लगा कि उसकी जीत उनके भाई की पत्नी के बिना अधूरी है और उन्होंने चुनौती को आसानी से स्वीकार कर लिया।
लेकिन इस बार शनि का प्रकोप नल के ऊपर से समाप्त हो चूका था | और नल एक विशेषज्ञ खिलाड़ी भी बन गया था।
उस जुए में पुष्कर ने नल के हाथों अपना सब कुछ खो दिया ।
नल चाहता तो पुष्कर को लंगोटी में राज्य से बाहर भेज सकता था, लेकिन नल बड़े दिल का आदमी था।
नल ने पुष्कर को राज्य का एक हिस्सा दिया और सुझाव दिया कि वह एक अच्छे इंसान बन कर रहे | (समाप्त)
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Story of love.Nice example in our Puran.
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Yes dear,
That is a true love story
With a message ..
Thanks for sharing your views..
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Very lovely💕
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Thank you dear …
Stay connected …stay happy..
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