मोह इतना न करें कि बुराइयाँ छुप जाएँ , और
घृणा भी इतनी न करें कि अच्छाईयाँ देख ही न पायें …आक खुश रहें….स्वस्थ रहें….मस्त रहें…

मेरी नई नई बैंक की नौकरी थी | मेरी पहली पोस्टिंग “रेवदर” शाखा में और अभी छह माह भी नहीं हुए थे कि मेरा पुनः ट्रान्सफर “शिवगंज” शाखा में कर दिया गया |
कुछ दिनों पूर्व ही जब शाखा निरिक्षण के लिए श्री ए के भाटी साहेब यहाँ आए थे ..तो कहा था कि कम से कम २ साल तक यहाँ से ट्रान्सफर होना मुश्किल है | क्योंकि यह रूरल असाइनमेंट (rural assignment) है |
हालाँकि सुना था कि यह नई जगह “शिवगंज” रेवदर से ज्यादा सुविधा जनक और रहने लायक है, क्योंकि यह रेवदर जैसा गाँव नहीं , शहर है | सभी शुभचिंतक और शाखा के स्टाफ जो मुझसे हमदर्दी रखते थे ..सबों ने मुझे दिल से बधाई दिया… सिर्फ एक को छोड़ कर….. वो शाखा प्रबंधक महोदय थे |
क्योंकि उन्होंने ही मेरे खिलाफ “मार-पिट” का आरोप लगा कर उदयपुर हेड क्वार्टर में मेरी शिकायत दर्ज कराई थी…
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Categories: मेरे संस्मरण
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