
जयद्रथ का वध ..
जयद्रथ सिंधु देश का राजा था और उसका विवाह दुर्योधन की बहन दुशाला से हुआ था । ऐसे में वह पांडवों सहित कौरवों का रिश्तेदार था। …
महाभारत एक काव्यग्रंथ है, इसे भारत का अनुपम धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक और दार्शनिक ग्रंथ माना जाता हैं ।
महाभारत युद्ध में बहुत सारे सुर – वीरों ने भाग लिया था ,और सबकी अपनी अपनी विशेषता
थी | इनके बारे में पढने और जानने का एक अलग ही आनंद है |
लेकिन सबसे बड़ी बिडम्बना यह है कि उन सभी योद्धाओं का विभिन्न कारणों से एक एक कर अंत हो जाता है |
आज महाभारत की इस कड़ी में एक और वीर योद्धा का जिक्र करना चाहते है, उनका नाम है .. जयद्रथ |
जयद्रथ सिंधु देश का राजा था और उसका विवाह दुर्योधन की बहन दुशाला से हुआ था । ऐसे में वह पांडवों और कौरवों का रिश्तेदार था।
द्रौपदी का अपहरण
महाभारत कथा के अनुसार पांडव और कौरवों के बीच चौसर के खेल में पांडव अपना सबकुछ हार जाते है , और परिणाम स्वरुप उन्हें 12 साल का वनवास और एक साल का अज्ञातवास काटना था |
पांडव लोग जब जंगल में रह कर बनवास काट रहे थे, उसी समय उनका सामना जयद्रथ से हुआ ।
दरअसल, जयद्रथ एक दिन उसी जंगल से गुजर रहा था जहां पांडव रह रहे थे।
दिन का समय था और पांडवों की पत्नी द्रौपदी नदी किनारे से पानी लेकर लौट रही थीं।
इसी दौरान जयद्रथ की नज़र द्रौपदी पर पड़ी | उसे जंगल में अकेला पाकर अपनी बातों में फुसलाने लगा और अपने साथ ले जाने की बात करने लगा । वह ऐयाश राजा था |
उसके इस हरकत पर द्रौपदी ने एक-दो बार चेतावनी दी और उसे अपने रास्ते से हट जाने को कहा | लेकिन द्रौपदी के मना करने पर जयद्रथ नहीं माना और द्रौपदी का हरण कर लिया।
उसी समय पांडवों को इस बात की सूचना मिली और वे जयद्रथ का पीछा करने लगे |
आखिरकार पांडवों ने उसे बीच रास्ते में रोक लिया | उसके इस नीच हरकत पर भीम को इतना गुस्सा आया कि वे जयद्रथ का वध करने को तैयार हो गए | लेकिन अर्जुन ने उसके दुशाला का पति होने के कारण भीम को ऐसा करने से रोक दिया ।
भीम ने तब उसका वध करने का इरादा त्याग दिया परन्तु उन्होंने जयद्रथ के बाल मूंड दिये और पांच चोटियां छोड़ दी, ताकि अपने किये पर उसे पछतावा हो सके |

जयद्रथ को मिला वरदान
पांडवों से इस तरह पराजित होने और उनके द्वारा बाल मुंडवाने के बाद जयद्रथ बहुत अपमानित महसूस कर रहा था । वह किसी तरह पांडवों से बदला लेना चाहता था |
तब जयद्रथ ने इसके बाद भगवान शिव की घोर तपस्या की और पांडवों पर जीत हासिल करने का वरदान मांगने लगा । भगवान शिव उसकी तपस्या से खुश थे।
भगवान शिव ने कहा कि पांडवों से जीतना या उन्हें मारना किसी के बस में नहीं है लेकिन जीवन में एक दिन वह किसी युद्ध में अर्जुन को छोड़ बाकी सभी भाईयों पर भारी पड़ेगा।
जयद्रथ को मिला यही वरदान अभिमन्यु के मृत्यु का कारण बना । हमने अपने पिछले ब्लॉग देखा था कि .. महाभारत के भीषण युद्ध के दौरान एक दिन अर्जुन युद्ध लड़ते- लड़ते युद्ध भूमि से दूर निकल गए थे । कौरवों ने इस सुनहरे अवसर का लाभ उठाते हुए चर्कव्युह रचने की साजिश की थी |
कौरवों के ललकारने पर, चक्रव्यूह से लड़ने के लिए वीर अभिमन्यु आगे बढ़े और उसने तो सफलतापूर्वक चक्रव्यूह के छः अलग-अलग चरणों को पार कर लिया था । लेकिन सातवें चरण में उसे कर्ण, दुर्योधन आदि सात योद्धाओं ने घेर लिया ।
ये सातों एक साथ मिलकर युद्ध के नियमों के विरुद्ध अभिमन्यु पर वार करने लगे ।
उधर जयद्रथ, इस दौरान, चक्रव्यूह के द्वार पर खड़ा पांडवों के अन्य योद्धाओं जैसे कि युधिष्ठिर, भीम आदि को चक्रव्यूह में प्रवेश से रोकता रहा । इस कारण अभिमन्यु अकेला पड़ गया और अकेला कौरवों के प्रहार सहते-सहते वीरगति को प्राप्त हुआ था ।
अभिमन्यु के वीर गति को प्राप्त होने बाद भी उनके मृत शरीर को अपने पैरो से ठोकर मारी और उनका गर्दन काट कर अपनी बेइज्जती का बदला ले लिया |
यह खबर जब अभिमन्यु के पिता अर्जुन को लगी तो वो पुत्र-विरह में वे अपने आपे से बाहर हो गए और उसी समय उन्होंने प्रतिज्ञा ली कि अगले दिन का सूर्यास्त के पहले वो जयद्रथ का वध कर देंगे | अगर ऐसा नहीं कर पाए तो खुद आत्मदाह कर लेंगे |

जयद्रथ वध और श्री कृष्ण की अद्भूत लीला
अर्जुन की इस प्रतिज्ञा को सुन कर जयद्रथ चिंतित हो गया, क्योंकि उसे अर्जुन के कौशल पर पूर्ण विश्वास था और वो जानता था कि अर्जुन हर हाल में अपनी प्रतिज्ञा पूरी करेगा और उसका वध कर देगा |
अगले दिन रणभूमि में अर्जुन सिर्फ जयद्रथ को ढूंढ रहे थे, लेकिन कौरवों ने उसे अपने बीच छुपा रखा था। जैसे जैसे दिन ढल रहा था वैसे वैसे अर्जुन का मन व्यथित हो रहा था और इधर कौरव यह सोच कर खुश हो रहे थे कि सूर्यास्त तक प्रतिज्ञा पूरी न होने की स्थिति में अर्जुन को आत्मदाह करना पड़ेगा।
अर्जुन की व्याकुलता देख कर श्री कृष्ण ने उनसे कहा …’अर्जुन, जयद्रथ को कौरवों ने रक्षा कवच से सुरक्षित कर दिया है, इसलिए तुम आगे बढ़कर उन सबों का संहार करते हुए जयद्रथ का वध कर दो ।’
इतना सुनते ही अर्जुन का उत्साह दोगुना हो गया । लेकिन लड़ते-लड़ते भी उन्हें जयद्रथ तक पहुँचना मुमकिन नहीं लग रहा था और सूर्यास्त का वक़्त भी करीब हो गया था।
अर्जुन को इस तरह परेशान देख, श्री कृष्ण ने अपनी लीला से सूर्य को बादलों के पीछे छिपा दिया जिससे जयद्रथ और सभी कौरवों को लगा कि सूर्यास्त हो चूका है और अब अर्जुन को आत्मदाह करना पड़ेगा।

अर्जुन आत्मदाह करने के लिए चिता पर बैठ गए | इसी क्षण को देखने के लिए जयद्रथ अपने सुरक्षा कवच से बाहर आ गया ।
यह देख श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा,… अर्जुन, वह देखो तुम्हारा शत्रु बाहर आ गया है,| तुम अपना गांडीव उठाओ और उसका वध करो क्योंकि अभी सूर्यास्त नहीं हुआ है,|
श्रीकृष्ण का इशारा पाते ही अर्जुन गांडीव उठा लिया और उसी समय श्री कृष्ण ने बादलों में छुपे हुए सूर्य को बाहर कर दिया ।
यह देख जयद्रथ अचंभित हो गया। इधर अर्जुन अपने शत्रु को मारने के लिए व्याकुल थे लेकिन श्री कृष्ण ने उन्हें सचेत करते हुए कहा …., ‘हे अर्जुन, जयद्रथ को वरदान है कि जो इसका सर जमीन पर गिरा देगा उसके भी सर के 1000 टुकड़े हो जायेंगे।
यहाँ से 100 योजन दूर इसके पिता तप कर रहे हैं | तुम इसका सर ऐसे काट दो कि इसका मस्तक इसके पिता के गोद में ही गिरे।’
इससे पहले कि जयद्रथ कुछ समझ पाता अर्जुन अपना वार कर चुके थे । जैसे ही तीर जयद्रथ को लगा उसका सिर कट कर सीधा उसकी पिता की गोद में जाकर गिरा |

वरदान के अनुसार जयद्रथ की मृत्य के साथ साथ उसके पिता के सिर के भी एक हज़ार टुकड़े हो गए। पिता द्वारा दिया गया वरदान के कारण उन्ही का सिर टुकड़े टुकड़े हो गया |
इस तरह जयद्रथ का वध महाभारत की एक महत्वपूर्ण घटनाओं बन गई , जिसे कौरवों के लाख कोशिश के बाबजूद उसका वध हुआ |
पिछला ब्लॉग के लिए नीचे दिए link को click करें..
BE HAPPY….BE ACTIVE….BE FOCUSED….BE ALIVE…
If you enjoyed this post, please like, follow, share and comments
Please follow the blog on social media …link are on contact us page..
Categories: story
Interesting. Enjoyed.Thanks.
LikeLiked by 2 people
Thank you very much..
I am trying to continue with more episode of Mahabharata..
Stay connected and safe..
LikeLike
बहुत अच्छा है……।
LikeLiked by 1 person
बहुत बहुत धन्यवाद डिअर ,
आप स्वस्थ रहें…मस्त रहें..
LikeLike
Jaidrath’s story very well narrated. Jaidrath’s story and character is important in Mahabharat because it shows why Arjun chose Lord Krishna to support him and be on his side even as a marathi.
LikeLiked by 1 person
Yes sir,
Jaidrath is also important character in Mahabharata..
Thanks for sharing information.. Stay connected and stay happy sir..
LikeLike