
शिशुपाल का वध
दोस्तों ,
अब तक हमने महाभारत से जुडी बहुत सारे योद्धाओं के बारे में ब्लॉग के माध्यम से जानकारियां शेयर करता आया हूँ | महाभारत की कहानी को आगे बढ़ाते हुए आज जिस योद्धा की चर्चा करने जा रहे है…. उनका नाम है शिशुपाल, जो चेदि प्रदेश का राजा थे |
यह तो हम सभी जानते है कि शिशुपाल बहुत ही बलशाली राजा था, लेकिन वे कृष्ण को अपना परम शत्रु मानते थे , और एक दिन उन्ही के हाथों उनका वध हुआ |
दरअसल, शिशुपाल के वध की कथा जितनी रोचक हैं, उससे भी ज्यादा रोचक हैं शिशुपाल के जन्म के समय घटित हुई घटनाएं | आइये विस्तृत रूप से इस पर चर्चा करते है …
शिशुपाल का जन्म
जब शिशुपाल का जन्म हुआ था, तब वह तीन आँखों तथा चार हाथो वाले बालक के रूप में जन्म लिया था | बालक के इस रूप को देख कर उसके माता – पिता काफी चिंतित हो उठे |
उनके मन में तरह तरह के विचार उत्पन्न होने लगे |
वे सोचने लगे कि कही यह कोई असुरी शक्ति तो नहीं , क्योकि वह सामान्य बालक जैसे नहीं दीखते थे | यह भी चिंता थी कि लोगों के सामने कैसे उन्हें लायेंगे, उन्हें अपने साथ बाहर ले जाने में भी संलोच हो रहा था |
इस प्रकार के मन में विचार उठने के कारण उनके माता पिता ने इस बालक को त्याग देने का निर्णय लिया. |.
तभी एक आकाशवाणी हुई …. आप ऐसा न करे | जब उचित समय आएगा तो इस बालक के अतिरिक्त आँख एवं हाथ अपने आप ही गायब हो जाएँगे |
विधि के विधान द्वारा निश्चित व्यक्ति जब इस बच्चे को अपनी गोद में बैठाएगा, तो उसी समय उसके अतिरिक्त अंग गायब हो जाएँगे | लेकिन वही व्यक्ति इसकी मृत्यु का कारण भी बनेगा अर्थात् इसका वध भी उन्ही के हाथो होगा, यही विधि का विधान है |
तब शिशुपाल के माता – पिता इस आकाशवाणी को सुनकर आश्वस्त हो गए कि उनका पुत्र असुर नहीं हैं |, परन्तु दूसरी ओर उन्हें यह चिंता भी होने लगी कि उनके पुत्र का वध हो जाएगा और वह मृत्यु को प्राप्त होगा | वे अपने पुत्र को जीवित देखना चाहते थे |

शिशुपाल का श्राप मुक्ति –
एक बार की बात है , जब भगवान श्री कृष्ण अपने पिता वासुदेव जी की बहन अर्थात् अपनी बुआ के घर गये थे तो उन्होंने उनके पुत्र शिशुपाल को स्नेह–वश अपनी गोद में बैठा लिया | उसी समय अचानक शिशुपाल के अतिरिक्त अंग अर्थात एक आंख और दो हाथ गायब हो गये |. और वो बिलकुल सामान्य बालक की तरह दिखने लगे |
उस समय शिशुपाल के माता – पिता को उस आकाशवाणी की याद आ गई | जिसमें कहा गया था कि …..“ विधि के विधान द्वारा निश्चित व्यक्ति जब इस बालक को अपनी गोद में बैठाएगा, तो ये अतिरिक्त अंग गायब हो जाएँगे | लेकिन यह भी कहा गया था कि वही व्यक्ति इसकी मृत्यु का कारण भी बनेगा अर्थात् इसका वध भी करेगा. |
अपने बेटे का वध ना हो , ऐसा सोच कर भगवान श्री कृष्ण की बुआ ने उनसे वचन माँगा कि वे शिशुपाल का वध नहीं करेंगे |
चूँकि यह शिशुपाल–वध तो विधान द्वारा पूर्व निश्चित था , अतः ऐसा करने से प्रभु इंकार तो नहीं कर सकते थे, लेकिन दूसरी तरफ वे अपनी बुआ को दुखी भी नहीं करना चाहते थे |
अतः उन्होंने अपने बुआ को वचन दिया कि वे शिशुपाल की एक सौ गलतियाँ माफ़ कर देंगे, परन्तु 101 वीं भूल पर वे उसे अवश्य दण्डित करेंगे |
साथ ही साथ बुआ ने यह भी वचन माँगा कि किसी कारणवश यदि शिशुपाल का वध करना भी पड़ा तो वध के पश्चात् शिशुपाल को इस जीवन – मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाएगी और वो वैकुण्ठ धाम को प्राप्त करेगा.|
तब भगवान श्री कृष्ण अपनी बुआ के अपने बेटे के प्रति ममत्व को देख कर भाव–व्हिहल हो उठे और उन्होंने ये वचन भी अपनी बुआ को दे दिया |
दरअसल, शिशुपाल के संबंध में ‘विष्णु पुराण’ में एक कथा बताई गयी हैं, जिसके अनुसार भगवान श्री हरि विष्णु के दो द्वारपाल थे -: जय और विजय. |
एक बार की बात है कि जय और विजय ने भगवान् विष्णु से मिलने जा रहे ब्रह्माजी के मानस पुत्रों को द्वार पर ही रोक दिया था क्योकि उस समय भगवन विष्णु अन्दर विश्राम कर रहे थे |
इस बात पर ब्रह्माजी के मानस पुत्रों को क्रोध आ गया और क्रोधित होकर वे जय और विजय को श्राप दे दिया | उन्हें श्राप के कारण पृथ्वी पर तीन बार जन्म लेना होगा और भगवान विष्णु के द्वारा ही तीनो बार इन्हें मृत्यु प्राप्त होगी और फिर अंत में ये पुनः वैकुण्ठ धाम को प्राप्त कर पाएँगे |
उसी श्राप के अनुसार एक द्वारपाल जय ने हिरान्यकश्यप के रूप में जन्म लिया, जिसका वध श्री हरि विष्णु द्वारा अपने नरसिंह अवतार में किया गया | फिर दूसरी बार उन्होंने रावण के रूप में जन्म लिया, जिसका वध भगवान विष्णु द्वारा अपने राम अवतार में हुआ और अंत में शिशुपाल के रूप में जन्म लिया और इनका वध श्री हरि विष्णु ने कृष्ण अवतार लेकर किया |
काल – चक्र चलता रहा और महाभारत काल में कुरु- कुल में कौरवों और पांडवों के बीच महाराज पांडू के ज्येष्ठ पुत्र युधिष्ठिर को युवराज घोषित किया गया |
इस मौके पर राजसूय यज्ञ आयोजित करने का निर्णय लिया गया. | और ऐसे मौके पर सभी सगे- सम्बन्धी, रिश्तेदारों सहित अनेक राजाओ एवम् अन्य प्रतिष्ठित महापुरुषों को आमंत्रित किया गया |
उस मौके पर वासुदेव श्री कृष्ण को भी आमंत्रित किया गया था , क्योकिं महारानी कुंती उनकी बुआ थी |
और शिशुपाल भी इस यज्ञ में शामिल हुए थे क्योकिं रिश्ते में वह भी कौरवो एवं पांड्वो के भाई लगते थे | इस मौके पर एक बार फिर भगवान श्री कृष्ण और शिशुपाल का आमना – सामना हुआ. |

शिशुपाल का १०१ वाँ गलती
शिशुपाल तो पहले से ही भगवान श्री कृष्ण से क्रोधित थे और श्री कृष्ण को अपना दुश्मन मानते थे | इसके पीछे की कहानी भी रोचक है ,,….,
रुक्मणी को भगवान श्री कृष्ण से प्रेम था और वो उन्ही से विवाह करना चाहती थी |
परन्तु राजकुमारी रुक्मणी का विवाह उनके भाई राजकुमार रुक्मी ने अपने परम मित्र शिशुपाल के साथ निश्चित कर दिया था |
विवाह के सारे आयोजन हो चुके थे,, परन्तु राजकुमारी रुक्मणी यह विवाह नहीं करना चाहती थी क्योंकि वह भगवान श्री कृष्ण से प्रेम करती थी |
लेकिन राजकुमार रुक्मी ऐसा नहीं होने देना चाहते थे, और वे अपने वचन पर अड़ गए |
तब भगवान श्री कृष्ण राजकुमारी रुक्मणी को महल से भगाकर ले गये और उनसे विवाह कर लिया | तब शिशुपाल ने इसे भगवान श्री कृष्ण द्वारा किया गया अपना अपमान समझा और भगवान श्री कृष्ण को अपना भाई न समझ कर शत्रु मान बैठा |.
राजकुमार युधिष्ठिर के युवराज्याभिशेक के समय, सभी आमंत्रित लोग उपस्थित थे .| .उनलोगों में भीष्म, द्रोणाचार्य , दुर्योधन शिशुपाल और राजा – महाराजा पधारे हुए थे |
तभी यज्ञ शुरू करने से पहले किसी विशिष्ठ व्यक्ति को प्रथम पूज्य के रूप में सम्मानित किया जाना था |
सभी लोगों के राय सलाह पर युवराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण को सर्वप्रथम भेंट आदि प्रदान की और उनकी पूजा कर आशीर्वाद लिया |
लेकिन शिशुपाल से भगवान श्री कृष्ण का सम्मान होता देखा न गया और क्रोध से भरा बैठा शिशुपाल बोल उठा …. एक मामूली ग्वाले को इतना सम्मान क्यों दिया जा रहा हैं जबकि यहाँ अन्य सम्मानित जन उपस्थित हैं |

इस तरह शिशुपाल ने भगवान श्री कृष्ण को भरी सभा में अपमानित करना प्रारंभ कर दिया |. शिशुपाल भगवान श्री कृष्ण को अपशब्द कहे जा रहा था, उनका अपमान किये जा रहा था, परन्तु भगवान श्री कृष्ण उनकी बुआ एवं शिशुपाल की माँ को दिए वचन के कारण बंधे थे |
अतः वे अपमान सहन करते रहे | लेकिन जैसे ही शिशुपाल ने सौ अपशब्द पूर्ण किये तो श्री कृष्ण ने उनकी ओर देखा |
लेकिन शिशुपाल किसी बात की परवाह ना करते हुए जैसे ही 101वां अपशब्द कहा …, तभी भगवान् श्री कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र का आव्हान किया और उसी समय शिशुपाल का वध कर दिया |
इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण ने अपने वचन का पालन करते हुए शिशुपाल का वध कर दिया |
इस कथा में भगवान श्री कृष्ण की सहनशीलता, क्षमा करने की शक्ति और बड़ो की बात को आदरपूर्वक पूर्ण करने की शिक्षा मिलती हैं |….
इस तरह से शिशुपाल का वध महाभारत की एक महत्वपूर्ण घटना सिद्ध हुई और चूँकि दुर्योधन शिशुपाल का मित्र था और दोनों ने एक दुसरे की रक्षा करने का प्रण लिया था ..अतः दुर्योधन ने शिशुपाल के मृत्यु का बदला लेने की कसम खाई और आगे चल कर महाभारत युद्ध का यह भी एक महत्वपूर्ण कारण बना. |
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Very nice
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Bahut बढ़िया लेख जय श्री कृष्ण जी
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बहुत बहुत धन्यवाद्..
ब्लॉग का थीम बदला है, इसलिए पोस्ट आप तक नहीं पहुँच रहा..
आप एक बार visit करें…
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Accha accha ji
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शायद follower डिलीट हो गया है,
कृपया फिर से फॉलो करें, तब आप के मेल में notification जाएगा /
धन्यवाद..
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Sisupal ki Kahani.Bahut Sundar.
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Thank you sir,
He was a very powerful warrior, but lost his life due to his Ego..
stay connected and stay happy..
.
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Good Morning
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Very Good morning..
Stay connected and stay happy..
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All the characters in the Mahabharat are very well narrated in your blogs and even though we know the story your writing style is interesting and it refreshes our memories.
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Thank you very much sir…
You always encourage me for writing..
I am also enjoying with this new hobby..
Stay connected sir,
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