
पांडवों का स्वर्ग यात्रा ..
महाभारत का युद्ध हरियाणा राज्य के कुरुक्षेत्र में लड़ा गया था | मानव इतिहास में इस युद्ध को अब तक लड़े गए सबसे भयावह युद्ध में से एक माना जाता है |
धर्म ग्रंथों के अनुसार यह युद्ध इतना विनाशकारी था कि केवल 18 दिनों तक चलने के बावजूद इसमें लगभग 80% भारतीय पुरुष आबादी की मृत्यु हो गई थी |
महाभारत युद्ध के समाप्ति पर पांडव संख्या में कम होने के बावजूद जीत गए और कौरव संख्या में पांडव से कहीं अधिक होने के बाद भी हार गए |
शास्त्रों के तहत इस परिणाम के लिए मुख्य कारण… उनके कर्मों को माना गया | साथ ही नीति और अनीति की राह पर चलने को भी एक महत्वपूर्ण कारण बना |
इस युद्ध के समाप्ति के बाद पांडवों में सबसे बड़े भाई युधिष्टिर का राजतिलक किया गया |
जब राजतिलक स्वयं भगवान कृष्ण के हाथों से हुआ, फिर भी पांडवों का अंत कैसे हुआ .. यह मुख्य प्रश्न है |
इसका उत्तर जानने के लिए हमें आगे की घटनाओं पर गौड़ करना होगा …
कहते है कि एक तरफ जीतने के बाद पांडवों को हस्तिनापुर की राजगद्दी मिली वहीँ दूसरी तरफ गांधारी एक दुखी माँ के रूप में विलाप कर रही थी और अपने सौ पुत्रों की मृत्यु का शोक मना रही थी |
पांडवों को राजपाट मिल जाने के बाद श्रीकृष्ण का हस्तिनापुर से विदाई का समय आ गया |
श्रीकृष्ण तब गंधारी के पास आशीर्वाद लेने के लिए आये | गांधारी तो मन से बहुत दुखी थी अतः न चाहते हुए भी उन्हें उनके वंश का अंत हो जाने का श्राप दे दिया |
जानकारी के अनुसार महाभारत के बाद हस्तिनापुर पर पांडवों ने 36 वर्षों तक शासन किया | इस बीच गंधारी के श्राप का असर दिखने लगा और कृष्ण की नगरी में उथल पुथल और आपसी कलह शुरू हो गया |
वहां एक उत्सव के दौरान सभी यदुवंशी सोम रस का पान करते हुए आपस में लड़ने लगे और एक दूसरे की हत्या करने लगे | इस तरह से यदुवंशियों का इस पृथ्वी से समूल नाश हो गया |
यदुवंशियों के एक दूसरे को मार डालने के बाद , सबसे पहले बलराम जी अपने लोक वापस चले गए | चूँकि श्री कृष्ण को अपने अंत समय का आभास था और वह जिस उद्देश्य से इस धरती पर अवतार लिया था, वह पूर्ण हो चूका था |
….अतः वो भी इस दुनिया को छोड़ने हेतु जंगल में एकांत वास करने लगे |
एक दिन जंगल में वे ध्यान अवस्था में एक वृक्ष के नीचे बैठे थे, उसी समय जरा नाम का एक शिकारी ने गलती से उनके पैर में तीर मार दिया |
इसके पश्चात् श्रीकृष्ण ने यह मानव देह त्याग दिया और वे बैकुंठ धाम लौट गए |
उनके अपने लोक में लौट जाने के बाद, ऋषि वेदव्यास ने पांडवों की इसकी जानकारी दी |
….कहते है कि श्री कृष्ण जी ने जिस दिन इस पृथ्वी को त्याग कर .. अपने लोक को लौट गए ,,,उसी दिन से कलयुग का प्रारंभ हो गया |

वेदव्यास जी के द्वारा यह जानकारी मिलने पर कि यदुवंशियों का विनाश हो गया है और श्री कृष्ण अपने लोक को प्रस्थान कर गए है, सभी पाँचो पांडव दुखी हो गए और उन्होंने भी राज – पाट त्याग कर परलोक जाने का निश्चय कर लिया |
उनलोगों ने मिल कर अपने प्रपौत्र परीक्षित का राजतिलक कर दिया और अपने सभी भाइयों और द्रोपती के साथ मोक्ष प्राप्त करने हेतु हिमालय की गोद में चले गए |
महाभारत के अनुसार इस यात्रा में एक कुत्ता भी इनके पीछे – पीछे चलने लगा और बहुत प्रयास के बाद भी इन लोगों का पीछा नहीं छोड़ा |
वे सब अनेक तीर्थ स्थलों और अनेक नदियों को पार करते हुए हिमालय पर ऊपर की तरफ चदने लगे | वे लोग चलते चलते लाल सागर तक आ गए |
साथ में चल रहे अर्जुन ने अपने गांडीव और तरकश का त्याग नहीं किया था | तभी वहाँ अग्नि देव उपस्थित हुए और उन्होंने अर्जुन से गांडीव त्यागने के लिए कहा |
अर्जुन ने उनकी आज्ञा का पालन करते हुए अपने गांडीव और तरकश का त्याग कर दिया |
पांडवों ने पृथ्वी की परिक्रमा पूरी करने की इच्छा से उत्तर की दिशा से यात्रा की शुरूआत की और यात्रा के अंत में हिमालय तक पहुँचे | इसके बाद उन्होंने मेरु पर्वत के दर्शन किये |

इसके बाद चलते – चलते रास्ते में अचानक द्रौपदी गिर पड़ी | उसने गिरते – गिरते धर्मराज युधिष्ठिर से पूछा…. हे आर्य पुत्र !.. .मैं क्यों आप लोगों से बिछुड़ कर मृत्यु को प्राप्त करने जा रही हूँ |
युधिष्टिर ने ज़बाब दिया …हे द्रौपदी, आप हम सब पांडवों की पत्नी होते हुए भी आप के मन में अर्जुन के लिए ज्यादा अनुराग था | चूँकि आप अर्जुन को ही अपना असली पति मानती थी | …अतः इस भेद – भाव के कारण आप पाप का भागी बने और आप का अंत हो रहा है |
थोड़ी दूर चलने के बाद सहदेव भी गिर पड़े और उन्होंने भी इसका कारण जानना चाहा |
तब युधिष्ठिर ने इसका कारण बताया कि आप अपने जैसा विद्वान किसी और को नहीं समझते थे, इसी दोष के कारण आपको मरना पड़ रहा है |
कुछ दूर आगे चलने के बाद नकुल भी गिर पड़े |
तब भीम के पूछने पर युधिष्ठिर ने इसका कारण बताया कि नकुल को अपने रूप पर बहुत अभिमान था , इसी अभिमान के कारण वे भी प्राण त्याग रहे है |

थोड़ी दूर आगे चलने के बाद अब अर्जुन भी रास्ते में गिर पड़े |
इसका कारण युधिष्ठिर ने बताया कि .. अर्जुन को अपने पराक्रम पर अभिमान था | अर्जुन ने तो यह भी कहा था कि वह एक दिन में ही शत्रुओं का नाश कर देंगे |
लेकिन वे अपने वचन को पूरा नहीं कर पाए थे | अपने अभिमान के कारण ही अर्जुन का यह हाल हुआ |
और इसी तरह थोड़ी दूर आगे चलने पर भीम भी रास्ते में गिर पड़े .. तब युधिष्टिर ने भीम को उसका कारण बताया कि वे बहुत खाते थे और दूसरों का हिस्सा भी खा जाते थे | आपको अपने बल का झूठा घमंड था | इसलिए आप को भी यहाँ भूमि पर गिरना पड़ा |
इतना कह कर धर्मराज युधिष्टिर आगे बढ़ गए |
अब केवल कुत्ता ही उनके साथ चलता रहा | वे कुछ ही दूर चले थे कि उन्हें स्वर्ग ले जाने के लिए स्वयं देव राज इन्द्र अपने रथ ले कर आये |
युधिष्टिर प्रणाम कर उनसे कहा … हे इन्द्र , मेरे सभी भाई और द्रौपदी रास्ते में गिरे पड़े है | वे भी हमारे साथ ही चले, ऐसी कोई व्यवस्था कीजिये |
तभी इन्द्र देव ने कहा .. हे युधिष्ठिर, वे सभी अपने शरीर को त्याग कर स्वर्ग जा चुके है |, लेकिन एक आप ही स-शरीर हमारे साथ स्वर्ग जायेंगे |
इन्द्र देव की बात सुन कर वे बोले कि यह कुत्ता मेरा परम भक्त है इसलिए इसे भी मेरे साथ स्वर्ग जाने की आज्ञा दीजिये |
लेकिन इन्द्र ने ऐसा करने से मना कर दिया |

लेकिन काफी समझाने पर भी युधिस्ठिर बिना कुत्ते के स्वर्ग जाने को राज़ी नहीं हुए | इनकी बातें सुनकर वो कुत्ता अपने वास्तविक रूप में आ गए | वो कुत्ता और कोई नहीं बल्कि यमराज थे | वे युधिष्टिर की भक्ति से बहुत प्रसन्न हुए |
इसके बाद देव राज इन्द्र उन्हें रथ में बिठा कर स्वर्ग में ले गए |
स्वर्ग पहुँच कर युधिस्ठिर ने देखा कि दुर्योधन वहाँ स्वर्ग में एक दिव्य सिंघासन पर बैठा है | लेकिन अपने भाइयों को वहाँ न देख कर उन्होंने इन्द्र से कहा ..हमारे भाई जिस भी लोक में गए है वहीँ मैं भी जाना चाहता हूँ |..
मुझे उससे उत्तम लोक की कामना नहीं है |
इस पर देव राज इन्द्र ने कहा .. अगर आप की ऐसी इच्छा है तो आप इस देव दूत के साथ चले जाइये | ..
देव दूत युधिष्ठिर को नरक के रास्ते लेकर आगे बढ़ा | .. नरक लोक से गुजरते हुए उन्होंने देखा कि पापी आत्माओं को तरह तरह से कष्ट और पीड़ा यमदूत पहुँचा रहे थे | ..
उनके कष्ट और पीडाओं को देख कर युधिष्ठिर विचलित हो गए | ..लेकिन उनके तेज़ बल से दुखी आत्माएं जो कष्ट से कराह रही थी उनके पीड़ा कम हो गए ..| उनलोगों में उनके भ्रातागन और द्रौपदी भी थी .. |

इसपर उन आत्माओं ने युधिष्ठिर से विनती किया कि आप यही निवास करें ताकि हमारा कष्ट दूर हो या फिर हम सबों को भी इस नरक से छुटकारा दिलाइये |
देव दूत ने उन्हें सूचित किया कि आपने महाभारत के युद्ध में एक बार अर्ध्य सत्य बोला था कि अस्वस्थामा मारा गया….नर नहीं हाथी | ..अतः उसी के दंड स्वरुप आप को इस नरक का भ्रमण कराया गया है ..और अब वो दंड पूरा हो चूका है .|
.अतः आप यहाँ से स्वर्ग लोक को जायेंगे और आप के प्रताप के कारण ही यहाँ नरक लोक के सारे वासी भी स्वर्ग धाम जायेंगे |
यह सुन कर युधिष्ठिर प्रसन्न हो गए और स्वर्ग लोक को प्रस्थान कर गए |
वो भी क्या दिन थे हेतु नीचे link पर click करे..
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Nice conclusion of Mahabharata episodes.
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Yes sir,
some of the information is less known ..
I am trying to publish the same…
Thank you sir for your comments..
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Bahut hi sundar gyan,wo bhi itne kam samay me
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Thank you very much..
there are so many lessons to learn from Mahabharata..
Stay connected and stay happy..
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सच में बहुत ही अच्छा लगा
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जी, बहुत बहुत धन्यवाद..
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💕😊🌹
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Thank you very much..
Stay connected and stay happy..
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सुंदर लेखन से प्रस्तुत किया गया है 👌🏼👌🏼
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बहुत बहुत धन्यवाद..|
आप स्वस्थ रहें…खुश रहें…
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धन्यवाद 🙏🏼
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Very well narrated. It is indeed puzzling that Duryodhan got swarglok and Pandavas had to go to narak. The answer is that lord Krishna made it clear to everyone participating in the Mahabharat war that it is so holy that it will liberate everyone who loses their life in the kurukshetra battlefield. And had Pandavas died in the battlefield they would have been also liberated like the kauravas.
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Great narrative sir,
Yes who loses his life will get swarglok as krishna says…
Thank you sir for clearing our doubts..
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Very nice
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thank you
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अरे वाह
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आपके हौसलाअफजाई के लिए बहुत बहुत धन्यवाद..
आप स्वस्थ रहें …खुश रहे…
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आज हस्तिनापुर मेरठ हो गया है और दोस्तो महाभारत की लड़ाई कुरुक्षेत्र करनाल सहारनपुर में एक कस्बा जिसका नाम नकुड है मतलब नकुल तक यहां तक लडे थे वैसे पूरे हरियाणा वेस्ट यूपी तक युद्ध हुआ था 1.5 अरब से ज्यादा लोग मारे गए थे कहा जाता है भीम की लंबाई 12 या 13 फुट थी और सबसे ज्यादा योध्या ओर लड़ाई उसमे अर्जुन ने कि थी शायद 53 के आसपास लेकिन गौर करता हूं तो हर तरफ कृष्ण ही लड़ रहे थे धर्म युद्ध था दुर्योधन का अहंकार ही उसे ले डूबा दिल्ली का नाम इंद्रप्रस्थ था 5 ग्राम भी दे देता युद्ध ना होता ।
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आपने बिलकुल सच कहा और आपने अच्छी जानकारी भी दी |
महाभारत युद्ध होना था और श्री कृष्णा इसके मुख्य कर्ता – धर्ता थे ..
तो भला इसे कैसे टाला जा सकता था , और यह इतिहास कैसे बनता ||
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Mere ghr k pass e Haridwar hai or haryana mama ka ghr hai to jata rhta hu mai vha
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वाह, यह तो बहुत अच्छी बात है ..हमलोग इस ऐतिहासिक जगह घुमने जाते है
और आप खुद वहाँ रहते है ..| मैं एक बार ज़रूर आऊंगा /
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Koi bat nhi corona khtm ho jaye to aaiyega apka स्वागत है
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बहुत बहुत धन्यवाद् ,,
भगवान् ने चाहा तो ज़रूर मुलाकात होगी..
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अभी सभी मन्दिर बन्द है हरिद्वार के केस तो कम है लेकिन घर बॉर्डर पर ही है मेरा तो चैकिंग जबरदस्त चल रही है इसलिए सभी बन्द किया हुआ है
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हाँ, मैंने भी समाचार में पढ़ा था |
लेकिन कुछ दिनों में फिर अच्छे दिन आ जायेंगे ..
ऐसी आशा करते है ..
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जब माहोल ठीक हो जाएगा मै आपको सूचित कर दूंगा
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मैं भी भगवान् से यही कामना करता हूँ कि
जल्द ही सब कुछ सामान्य हो जाए…
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