
मोरवी और कृष्ण युद्ध
दोस्तों,
मैंने अपने पिछले कुछ ब्लॉग में महाभारत से जुड़े विभिन्न योद्धाओं के बारे में चर्चा की है | अगर महाभारत युद्ध पर गौर करें तो हम पाते है कि महाभारत में घटने वाली प्रत्येक घटना को श्री कृष्ण ने ही संचालित किया है |
चाहे वह .. .दुर्योधन को अपने माता के समक्ष नग्न जाने से रोकना हो, ताकि उनका पूर्ण शरीर वज्र का ना हो जाये, और उनका मारा जाना संभव हो सके |
या कर्ण के कवच कुंडलों को इंद्र के द्वारा दान में माँगना हो …. ताकि उनसे अर्जुन की रक्षा की जा सके |
इसी तरह … बर्बरिक से दान में उसका शीश मांग लेना, अगर ऐसा नहीं होता तो वे अपने एक ही वाण से पूरा महाभारत युद्ध समाप्त कर सकते थे |
और इसी तरह युक्ति पूर्वक भीष्म, द्रोण और कर्ण को युद्ध में मारवा देना, यह सभी श्रीकृष्ण की नीति से ही संभव हो पाया ।
श्रीकृष्ण के कारण ही यह युद्ध हुआ और उन्होंने ही इस युद्ध को पांडवों के पक्ष में वीजित किया ।

वैसे तो उन्होंने महाभारत के युद्ध में शस्त्र ना उठाने का संकल्प लिया था | लेकिन जब भीष्म पितामह ने अपने वानों के प्रहार से पांडव सेना में खलबली मचा दी, तो गुस्से में श्री कृष्ण ने भीष्म पितामह को मारने के लिए सुदर्शन चक्र उठा लिया |
तब भीष्म ने हाथ जोड़ कर अपने शस्त्र उनके सामने रखते हुए प्रार्थना की … हे मुरारी, आप अपना वचन ना तोड़ें क्योकि अगर आप का वचन टूटता है तो इस बात का भागिदार मैं बनूँगा |
भीष्म की बातें सुन कर उनका गुस्सा शांत हुआ और उन्होंने अपना सुदर्शन चक्र वापस ले लिया |
अब आते है मोरवी की कथा पर …
उन दिनों दैत्यराज मुर की प्रसिद्धि चारो तरफ फैली हुई थीं | वह अपनी शक्ति से आतंक मचा रखा था |
श्री कृष्ण ने उसके पाप के कारण युद्ध में परास्त कर के उसका वध कर दिया |

दैत्य राज मूर के वध के पशचात जब श्री कृष उसका अंतिम संस्कार करने जा रहे थे , तभी मूर की पुत्री मोरवी वहाँ प्रकट हुई |
अपने पिता की मृत्यु के दोषी कृष्ण को मानते हुए उन्हें युद्ध के लिए ललकारा |
दरअसल, मोरवी राजा दैत्यराज मूर की पुत्री थी, एवं यह देवी कामख्या की परम भक्त थी । दैत्यराज मूर की पुत्री होने के कारण उन्हें “मोरवी” नाम से भी जाना जाता है।..
मोरवी युद्ध कला में और मायावी विद्या में काफी पारंगत थी |
मोरवी काफी गुस्से में थी और अपने पिता के वध का बदला लेना चाहती थी |
उसने गुस्से में कृष्ण से कहा…..पहले मैं तुम्हे शव में बदल कर तुम्हारा अग्नि संस्कार करुँगी और उसके पश्चात् ही अपने पिता का संस्कार करुँगी |
ऐसा कह कर मोरवी उनसे युद्ध करने लगी,| एवं श्रीकृष्ण के प्रत्येक अस्त्र को विफल करने लगी । .. अन्तत: श्रीकृष्ण ने मोरवी का वध करने हेतु सुदर्शन चक्र धारण कर लिया |
वे अपना सुदर्शन चक्र से मोर्वी का वध करने ही वाले थे कि उसी समय, देवी कामख्या प्रकट होकर श्रीकृष्ण से मोरवी का वध ना करने के लिये आग्रह किया |
देवी कामख्या ने मोरवी से कहा – हे मोरवी, तुम इस युद्ध को यही रोक दो |
ये माधव श्री कृष्ण युद्ध में दुर्जय है | कोई किसी भी प्रकार से संग्राम में इन्हें मार नहीं सकता |
औरों की तो बात ही क्या है, इन्हें साक्षात् भगवान् शंकर भी परास्त नहीं कर सकते |
और यह भी सत्य है कि तुम्हे पिता की मृत्यु पर शोक नहीं करना चाहिए , क्योंकि इनके हाथों से मर कर और सभी पापों .से मुक्त हो कर वे विष्णु धाम चले गए है |
तुम इसी नगर नगर में निवास करो ,, समय आने पर यहीं तुमे तुम्हे वीर और बुद्धिमान पति प्राप्त होगा |
और हाँ, यह तुम्हारे भावी श्वसुर भी है, अतः इनसे क्षमा याचना करके, इनका आशीर्वाद प्राप्त करो |

माँ कामख्या की बातें सुन कर मोरवी को अपनी गलती का एहसास हुआ …” तत्पश्चात मोरवी ने ऐसा ही किया।..
कालांतर में श्री कृष्ण के आदेशानुसार महाबली भीमसेन-हिडिम्बा के पुत्र घटोत्कच से मोरवी का विवाह हुआ | कुछ समय पश्चात घटोत्कच और मोरवी को एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, जिसका नाम बर्बरीक रखा गया।..
मोरवी ने अपने पुत्र बर्बरीक को सभी सद्गुण सिखाते हुए यही शिक्षा दी कि मनुष्य जीवन का प्रथम कर्त्तव्य हारे हुए जीव का सहारा बनना है।..
और महाभारत के दौरान श्रीकृष्ण बर्बरिक से दान में उसका शीश मांग लिया था | अगर ऐसा नहीं होता तो वे अपने एक ही वाण से पूरा महाभारत युद्ध समाप्त कर सकते थे |
श्रीकृष्ण के वरदान से ही बरबरिक को सभी खाटू नरेश, तीन बाणधारी “हारे के सहारा, बाबा श्याम हमारा” के नाम से भी जानते हैं।.. और आज जिन्हें हमें मोरवीनंदन खाटूश्याम जी के नाम से भी जानते हैं।..
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Categories: story
I came to know New kirdaar,Morvi and Babrik.Nice.
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Yes sir,
some of the incidences are not so popular..
Let us know the incidence and the characters..
Thanks for sharing your views..
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Nice that you have narrated a lesser known story in Mahabharat.
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Yes sir,
I am also interested in lessor known but interested incidence
in Mahabharata.., I will continue in the commix Blogs..
Thank you sir for your support and encouragement..
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जय श्री कृष्ण जी
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राधे राधे…
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