# महाभारत की बातें #..9

चक्रव्यूह और अभिमन्यु वध

जब भी महाभारत की चर्चा होगी तो उसमे अभिमन्यु का उल्लेख ज़रूर किया जायेगा |

अभिमन्यु महाभारत के नायक अर्जुन और सुभद्रा के पुत्र थे ।

उन्हें चंद्र देवता का पुत्र भी माना जाता है। ऐसी धारणा है कि महाभारत युद्ध के लिए समस्त देवताओ ने अपने पुत्रों को  अवतार  रूप में धरती पर भेजा था |

परन्तु चंद्र देव  ने कहा कि वे अपने पुत्र का वियोग सहन नही कर सकते,  अतः उनके पुत्र को मानव योनि में मात्र सोलह वर्ष की आयु दी जाए । चन्द्र देव के वही पुत्र अभिमन्यु के रूप में अवतरित हुए |

अभिमन्यु की माता सुभद्रा  जो बलराम  व कृष्ण की बहन थीं |  पांडवों को 12 साल के लिए वनवास और 1 साल का अज्ञातवास में जाने के कारण , अभिमन्यु का बाल्यकाल अपनी ननिहाल  द्वारका  में ही बीता ।

उनकी  शिक्षा दीक्षा स्वयं  श्री कृष्ण  और बलराम के देख रेख में हुआ था  | कहा जाता है कि अभिमन्यु  चंद्रदेव का अंश थे | इसलिए इतने पराक्रमी योद्धा होते हुए भी  धीर – गंभीर थे और अपने से बड़ों को सदा इज्जत करते थे |

अभिमन्यु का विवाह महाराज   विराट की पुत्री उत्तरा से हुआ था ।

इसके  पीछे भी एक मजेदार वाकया महाभारत में दर्ज है |

कौरवों से जुए में हारने के बाद पांडवों  को 12 वर्ष का वनवास और 1 साल का अज्ञातवास  बिताना  था । 12 साल वनवास में रहने के बाद जब  एक साल अज्ञातवास  का समय आया तो  पांडव  घुमते हुए विराट नगर तक पहुँच गए।

 पांडवों  ने तय किया कि इसी स्थान पर रूप  बदलकर  अज्ञात वास पूरा  किया जा सकता है ।

अज्ञात वास के समय पांडव लोग  भेष बदल कर राजा विराट के यहाँ रहने लगे |

भीम रसोइया बन गए, युधिश्त्थिर राजा विराट के सहायक बन गए,  अर्जुन विराट राजा की पुत्री उत्तरा को नृत्य और संगीत सिखाने लगे,  सहदेव  गौशाला और नकुल घोड़ो की देख भाल करने लगे | जबकि द्रौपदी विराट की पत्नी सुदेशना की सेवा में लग गई |

एक दिन सुदेशना का भाई किचक इनके राज्य में आया और उसने द्रौपदी पर बुरी नज़र डाली थी |  गुस्से में भीम ने कीचक का वद्ध कर दिया |

इसकी खबर जब कौरवों को लगी तो उसने विराट नगर पर आक्रमण कर दिया | अर्जुन ने विराट राजा  के पुत्र उत्तर के साथ युद्ध में सबको परास्त कर दिया | युद्ध से वापस आने पर विराट राजा  अपने  पुत्र की खूब तारीफ की |

लेकिन अज्ञातवास  पूरा होते ही सभी पांडवों द्रौपदी सहित अपने वास्तविक रूप में आ गए | तब राजा  विराट को ज्ञात हुआ कि ये लोग कोई साधारण व्यक्ति नहीं है बल्कि  पांडव और द्रौपती  है | उन्हें बहुत अफ़सोस हुआ कि वे इस सबों से इतना काम करवाया और ठीक से आदर भी नहीं दिया |

इस अफ़सोस से उबरने के लिए उन्होंने अपनी  बेटी उत्तरा को  अर्जुन को देने का निश्चय किया |

लेकिन अर्जुन ने राजा विराट  से कहा … मैं उत्तरा  से विवाह कैसे कर सकता हूँ ?  क्योंकि उत्तरा मेरी शिष्या है और मैं उसका गुरु हूँ | गुरु पिता समान होता है |

लेकिन श्री कृष्ण की सलाह पर अर्जुन ने राजा विराट  का मान रखने के लिए उत्तरा का हाथ अपने बेटे अभिमन्यु के लिए मांग लिया | इस तरह उत्तरा का विवाह अभिमन्यु से हुआ |

अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित,  जिसका जन्म अभिमन्यु के मृत्योपरांत हुआ था,   कुरुवंश के एकमात्र जीवित सदस्य पुरुष थे जिन्होंने युद्ध की समाप्ति के पश्चात पांडव वंश को आगे बढ़ाया।

हालाँकि महाभारत  युद्ध के दौरान गुरु द्रोण को छल से मारने के कारण उनका पुत्र अस्वस्थामा गुस्से में आकर ब्रहमास्त्र चला दिया जिसकी दिशा उत्तरा के पेट में पल रहे अभिमन्यु के बेटे की तरफ मोड़ दिया था | तब श्री कृष्ण उसके गर्भ में कवच देकर उसकी रक्षा की थी |

अभिमन्यु महाभारत में ऐसा योद्धा था  जिसकी आयु सबसे कम थी,  लेकिन फिर भी उसकी वीरता को देखकर खुद कौरव भी हैरान थे |

अर्जुन के अलावा अभिमन्यु ही पांडव सेना में एक मात्र ऐसा योद्धा था जिसे चक्रव्यूह भेदने की कला आती थी |

लेकिन कहा जाता है कि  जब अभिमन्यु अपनी माता सुभद्रा के गर्भ  में था,  तब अर्जुन ने प्रसव पीड़ा को कम करने के लिए  चक्रव्यूह भेदने की युक्ति सुभद्रा को बताई थी,|

 लेकिन सुभद्रा सुनते-सुनते बीच में ही सो गई थी,  इसलिए वो चक्रव्यूह में प्रवेश वाले अंश को ही सुन सकी जबकि चक्रव्यूह से बाहर आने वाले  प्रसंग को सुन न सकी |

 इसी  कारणवश अभिमन्यु को चक्रव्यूह में घुसने की युद्ध कला मालूम था लेकिन चक्रव्यूह से बाहर  निकलने के बारे में पता नहीं था |

सचमुच अभिमन्यु एक असाधारण योद्धा थे।  इसलिए कर्ण और दुर्योधन ने गुरु द्रोण के निर्देशानुसार  अभिमन्यु  का  वध  करने का निर्णय लिया । उन्हें मारने के लिए कौरव  पक्ष ने चक्रव्यूह की रचना की थी |

इस दौरान योजना के अनुसार कौरव सेना के योद्धा गण  अर्जुन को उलझाते हुए दूसरी दिशा में ले गए | और दूसरी तरफ कौरवों  ने चक्रव्यूह  भेदने के लिए बाकी पांडवों को  चुनौती दी |

चूँकि कौरवों को मालूम था कि अर्जुन के सिवा कोई भी चक्रव्यूह को भेद नहीं सकता  है |

इस विकट परिस्थिति में अन्य पांडव गण  ये मंत्रणा कर ही रहे थे कि कौरवों की चुनौती को कैसे स्वीकार किया जाए, , तब अभिमन्यु ने बताया कि मैं चक्रव्यूह  को भेद तो सकता हूँ पर उससे निकलने की कला मुझे नहीं आती है |

इस पर भीम और युधिष्ठिर के आश्वासन दिया कि वे  पीछे से  उसकी सहायता हेतु आयेंगे और अंत में हमलोग बाहर  निकल जायेंगे |

उसके बाद युद्ध शुरू हुआ और अभिमन्यु वीरता पूर्वक लड़ते हुए चक्रव्यूह के विभिन्न द्वार को तोड़ते हुए आगे बढ़ने लगे |

चूँकि  कौरवों के तरफ से कर्ण के अलावा बहुत सारे वीर  योद्धा भी चक्रव्यूह की रक्षा के लिए तैनात थे | अतः भयंकर युद्ध होने लगा |

अभिमन्यु अकेले ही  लडते  हुए विभिन्न द्वारों  को तोड़ते हुए आगे बढ़ते गए | .लेकिन इसी क्रम में कौरव के  सहायक योद्धा ने भीम और युधिष्ठिर को चक्रव्यूह के बाहर ही रोक लिया |

इधर जब अभिमन्यु अंतिम द्वार पर पहुंचे  तभी युद्ध के नियमो के खिलाफ कौरवो के सातों महारथी एक साथ अभिमन्यु पर टूट पड़े | फिर भी अभिमन्यु बहुत देर तक बहादुरी से उन वीर योद्धाओं से अकेला ही लड़ते रहे |

तभी कर्ण ने उनके रथ के पहिये और धनुष को अपने वानों से तोड़ डाला | उनके पुनः शस्त्र उठाने से पहले ही धोखे से जयद्रत ने उनका गला काट डाला |

, जिस कारण अभिमन्यु ने वीरगति प्राप्त की। अभिमन्यु की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए  अर्जुन ने जयद्रथ को  उसी दिन सूरज ढलने के पहले वद्ध करने  की शपथ ली थी । और अपने प्रतिज्ञा के अनुसार जयद्रत का वध कर के अपने पुत्र अभिमन्यु  के मृत्यु का बदला ले लिया ||

क्या था चक्रव्यूह

महाभारत में जिस चक्रव्यूह का प्रसंग आता है,  उसका अर्थ है सैनिकों का ऐसा जाल जिसमें से कोई भी योद्धा आसानी से नहीं निकल सकता |  कई हजार सैनिक मिलकर कई किलोमीटर की दूरी तक एक ऐसा चक्र बना लेते हैं,  जिसमें प्रवेश करके कोई भी आसानी से बाहर नहीं जा सकता |

हर तरफ से शत्रु सैनिकों से घिरे होने के कारण किसी भी योद्धा को आसानी से हराया जा सकता था | महाभारत में केवल कृष्ण, अर्जुन और अभिमन्यु को चक्रव्यूह भेदना आता था | 

 महाभारत में युद्ध के तेरहवें दिन अभिमन्यु के लिए चक्रव्यूह की रचना की गयी थी,  जिसके बाद उनकी मौत हो गई थी |

वैसे तो कोई भी योद्धा युद्ध में वीर गति को प्राप्त होता है,  लेकिन अभिमन्यु  अपनी वीरता से अकेला चक्रव्यूह में प्रवेश किया और उसको मारने  के लिए सात सात योद्धाओं को एक साथ मिलकर उनका सामना करना पड़ा |

कृष्ण जब तक उनके सहयोग के लिए आते तब तक उनका वध  हो चूका था |

यह भी कहा जाता है कि उनका  मरने का समय पहले से ही तय था | तभी तो चंद्रदेव ने सिर्फ 16 वर्ष तक ही औलाद को अपने से अलग  होने की बात कही थी |

और दूसरी बात यह कि  संयोग ही था कि चक्रव्यूह की कहानी सुनते हुए सुभद्रा का बीच  में ही सो जाना |

और फिर उस समय अर्जुन को लड़ते हुए  दूसरी दिशा में कही दूर चले जाना संयोग ही था | और फिर कौरव सेना के सातों योद्धाओं का धोखे से अभिमन्यु का  वद्ध करना |

अभिमन्यु की मृत्यु भले ही 16 साल की उम्र में हो गयी हो लेकिन उसके वीरता और साहस ने उसे इतिहास के पन्नो में अमर बना  दिया |

..आज भी महाभारत की चर्चा होती है तो वीर अभिमन्यु का नाम  गर्व और आदर के साथ लिया जाता है |

Pic source: Google.com

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7 replies

  1. अद्भुत लेखन…🙏

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    • बहुत बहुत धन्यवाद डिअर ..
      आपके शब्द मुझे अच्छी लिखने को उत्साहित करते है /
      आप स्वस्थ रहें…खुश रहें..

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  2. Abhimanyu ki Kahani .ajab hi gajab hi.Mahabharat me sab sambhav hai.

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  3. Abhimanyu is indeed a very brave and tragic character in Mahabharat. You have described the character and story of Abhimanyu in a very lucid style. It is said that the story of Abhimanyu learning inside his mother’s womb seems to be true as the latest scientific evidence suggests that a baby starts learning in mother’s womb.

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  4. Reblogged this on Retiredकलम and commented:

    मित्रता कोई स्वार्थ नहीं बल्कि एक विश्वास है, जहाँ
    सुख में हँसी – मजाक से लेकर संकट तक साथ
    देने की जिम्मेदारी होती है |

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