# महाभारत की बातें #..4

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महाभारत युद्ध का खलनायक

दोस्तों,  

हमलोग महाभारत युद्ध की जब भी बात करते है तो उसमे एक से बढ़ कर एक योद्धाओं के पराक्रम की चर्चा होती है | लेकिन मेरा मानना है कि उनमे से एक खास पात्र है … मामाश्री शकुनी | जिनके कुटिल निति के कारण ही महाभारत का  युद्ध लड़ा गया था |

जब भी मामा शकुनी की बात करते है तो हमारे आँखों के सामने महाभारत का सबसे बड़ा खलनायक का चेहरा उभर कर आता है जो लंगड़ाते हुए चलता है और अपनी एक आँख तिरछी कर के दुर्योधन को भड़काते रहता है | 

 आज के ब्लॉग में हम श्री शकुनी मामा के बारे में चर्चा करेंगे .,,

मामा  शकुनि का जन्म गंधार के राजा  सुबल  तथा रानी सुदर्मा के यहाँ हुआ था । शकुनि अपने सौ भाइयों में सबसे  छोटे थे,  साथ ही वे बुद्धिमान और  शक्तिशाली भी थे | इसलिए वे राजा सुबल के अत्यंत प्रिय थे |

महाभारत के युद्ध के पीछे का असली कारण शकुनी द्वारा रचित एक षड़यंत्र है  | इस बात का पता तब चलता है जब हम शकुनी के जीवनी के बारे में विस्तार से पढ़ते है |

 सच, इस ओर गौर किया जाए तो बहुत ही रोचक घटना की जानकारी मिलती है |

दरअसल, उन्होंने महाभारत युद्ध की भूमिका रच कर और कौरवो का नाश करवा  कर  अपने पिता को दिए हुए वचन को निभाया था |

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राजा सुबल गंधार प्रदेश का एक राजा  था और उनका परिवार बहुत बड़ा था | उनकी बहुत सारी पत्नियाँ थी और एक सौ पुत्र थे | उनकी बेटी  गांधारी बहुत ही खुबसूरत और होशियार लड़की थी | वह शकुनी की बहुत प्रिय बहन थी | उसके सौंदर्य के चर्चे बहुत दूर दूर तक फैले हुए थे |  

 शकुनी अपने भाइयों में सबसे बुद्धिमान,  सुशील  और शांत स्वभाव का था  | वह अपनी बहन को बहुत मानता था |

उस  समय हस्तिनापुर के सम्राट विचित्र वीर्य जो भीष्म के सौतेले भाई थे,  उनकी मृत्यु के पश्चात् हस्तिनापुर की गद्दी  पर अंधे राजकुमार  धृतराष्ट्र को बिठा दिया गया था |लेकिन वास्तव में भीष्म ही इस राज्य को अपने ढंग से चला रहे थे |

भीष्म गंधार राज्य को जीत कर अपने राज्य में मिला देना चाहते थे | इसी उद्देश्य से वे अपनी एक बड़ी सेना लेकर गंधार पर चढाई कर दिया | लेकिन राजा  सुबल की उनके सामने लड़ने की  शक्ति नहीं थी | इसलिए उन्होंने शांति  समझौता का प्रस्ताव लेकर भीष्म के पास आये |

भीष्म को उनकी बेटी गांधारी  की सुन्दरता और बुद्धिमता की जानकारी थी , इसलिए वे इसके बदले उनकी बेटी को धृतराष्ट्र के लिए मांग लिया |

वैसे तो राजा  सुबल भीष्म से ही अपनी बेटी का विवाह करना चाहते थे, लेकिन भीष्म तो आजीवन शादी न करने की प्रतिज्ञा ली हुई थी |

इसलिए मज़बूरी में वे आँखोँ से अंधे राजा धृतराष्ट्र से अपनी बेटी की  विवाह हेतु राज़ी हो गए | क्योकि भीष्म जैसे ताकतवर व्यक्ति के आगे हार स्वीकार कर ली थी | हालाँकि शकुनी इस प्रस्ताव का विरोध कर रहे थे |

लेकिन इस शादी में एक और समस्या थी | दरअसल गांधारी मांगलिक थी और ज्योतिष ने कहा था कि गांधारी के शादी के तुरंत बाद ही इसका पहला पति मर जायेगा |

तब उस वक़्त की प्रथा के अनुसार गांधारी का पहला विवाह एक बकरे के साथ किया गया ताकि बाद में उसे बलि दिया जा सके |

इस तरह बकरे की बलि चदा कर पहले  गांधारी को विधवा बनाया गया | उसके बाद गांधारी का पुनः दूसरा विवाह धृतराष्ट्र से हुआ |

वैसे तो गांधारी को किसी प्रकार के प्रकोप से मुक्त करवाने के लिए ही ज्योतिषियों ने यह सुझाव दिया था। इस कारणवश गांधारी प्रतीक रूप में विधवा मान ली गईं और बाद में उनका विवाह धृतराष्ट्र से कर दिया गया।

लेकिन गांधारी एक विधवा थीं, यह सच्चाई बहुत समय तक कौरव पक्ष को पता नहीं था ।  यह बात जब महाराज धृतराष्ट्र को पता चली तो वे बहुत क्रोधित हो उठे ।

उन्होंने समझा कि गांधारी का पहले किसी से विवाह हुआ था और वह न मालूम किस कारण मारा गया ।

धृतराष्ट्र के मन में इसको लेकर दुख उत्पन्न हुआ और उन्होंने इसका दोषी गांधारी के पिता राजा सुबल  को माना ।

धृतराष्ट्र ने गुस्से में गांधारी के पिता राजा सुबल  और उसके पूरे परिवार को  बंदी बना कर कारागार में डाल दिया ।

कारागार में उन्हें खाने के लिए केवल एक व्यक्ति का भोजन दिया जाता था। केवल एक व्यक्ति के भोजन से भला सभी का पेट कैसे भरता ? यह पूरे परिवार को भूख से मार देने की साजिश थी।

तब राजा सुबल  ने यह निर्णय लिया कि वह  और अन्य सभी लोग अपने हिस्से का  भोजन उनके सबसे छोटे पुत्र शकुनी  को ही दिया जाए ताकि उनके परिवार में से कोई एक  जीवित बच सके ।

इस तरह  भूख के कारण  एक-एक करके सुबल के सभी पुत्र तड़प तड़प कर मरने लगे। यह भी कहा जाता है कि शकुनी  अपने भाइयों का मांस खा कर किसी तरह अपने को जिंदा रखा |

सभी भाइयों ने अपने हिस्से का चावल शकुनि को देते थे ताकि वह जीवित रहकर कौरवों का नाश कर उससे बदला ले सके  । सुबल  ने अपने  बेटे शकुनि को प्रतिशोध के लिए तैयार किया । सुबल ने शकुनी की एक पैर  भी  तोड़ दी थी ताकि अपने टूटे हुए पैर को देख कर  उसे बदला लेने की बात सदा याद रह सके |

अपनी मृत्यु से पहले सुबल  ने धृतराष्ट्र से शकुनि को बंदी गृह से छोड़ने की विनती की |

उन्होंने धृतराष्ट्र  से कहा कि  उसके एक बेटे जिंदा आजाद कर दे ताकि गंधार को शासक मिल सके | उन्होंने धृतराष्ट्र  को यह भी यकीन दिलाया कि शकुनी तो एक पैर से लंगड़ा है , वह आप को कोई हानि नहीं पहुँचा सकता है |

उनकी बातों को सुन कर धृतराष्ट्र  ने  उनकी एह विनती मान ली थी।

शकुनि ने अपनी आंखों के सामने अपने परिवार का अंत होते हुए देखा था और वह किसी तरह अपने खानदान में सिर्फ अकेला जिंदा बच गया था |

जब कौरवों में वरिष्ठ युवराज   दुर्योधन  ने यह देखा कि केवल शकुनि ही जीवित बचे हैं तो उन्होंने पिता की आज्ञा से उसे क्षमा करते हुए अपने देश वापस लौट जाने या फिर हस्तिनापुर में ही रहकर अपना राज देखने को कहा । शकुनि ने हस्तिनापुर में रुकने का निर्णय लिया।

क्योकि शकुनि ने तो पहले ही ये प्रण लिया था कि वह समूचे कुरुवंश के सर्वनाश का कारण बनेगा।

इसलिए वह दुर्योधन के साथ ही उसका विश्वास पात्र  और सलाहकार बन कर हस्तिनापुर में रहने लगा |  कौरवों को छल व कपट की राह सिखाने वाले शकुनि उन्हें पांडवों का विनाश करने के लिए  पग-पग पर मदद करते थे |

लेकिन शकुनि  के मन में कौरवों के लिए केवल बदले की भावना थी  क्योंकि धृतराष्ट्र ने शकुनि के संपूर्ण परिवार को जेल में डाल दिया था और उनको बस मुठ्ठी भर अनाज ही खाने को दिया जाता था ।

शकुनी ने अपने पूरे परिवार को जेल में भूख से अपनी आंखों के सामने खत्म होते हुए देखा था।आप सोच सकते हैं कि उसके मन में कितना पीड़ा हुई होगी |

कहते हैं कि शकुनी ने  इसीलिए अपना  प्रतिशोध लिया था |  लेकिन यह कितना सही है यह तो शकुनी ही बता सकते हैं क्योंकि कोई भी व्यक्ति नहीं चाहेगा कि वह अपनी बहन के परिवार को नष्ट करने का षड़यंत्र रचे |

 शकुनि ने हस्तिनापुर मैं सबका विश्वास जीत लिया और सभी 100 कौरवों का अभिवावक बन बैठा । अपने विश्‍वासपूर्ण कार्यों के चलते दुर्योधन ने शकुनि को अपना मंत्री नियुक्त कर लिया ।

सर्वप्रथम उसने गांधारी व धृतराष्ट्र को अपने वश में करके धृतराष्ट्र के भाई पांडु के विरुद्ध षड्‍यंत्र रचने और राज सिंहासन पर धृतराष्ट्र का आधिपत्य जमाने को कहा। फिर धीरे-धीरे शकुनि ने दुर्योधन को अपनी बुद्धि से  मोहपाश में बांध लिया ।

शकुनि ने न केवल दुर्योधन को  युधिष्ठिर के खिलाफ भड़काया बल्कि महाभारत के युद्ध की नींव भी रखी।

शकुनि की जब यह चाल किसी भी कारण से सफल हो रहा था तो उसका सम्मान कौरवों के बीच और बढ़ गया |

लेकिन  गांधारी अपने भाई की चाल को समझती थी और वह अपने पुत्र को बुराइयों से दूर रहने को कहती थी |  लेकिन उसकी एक नहीं नहीं चलती थी। पति, भाई और पुत्र के बीच गांधारी विवश थी।

 शायद यह बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि शकुनि के पास जुआ खेलने के लिए जो पासे होते थे वह उसके मृत पिता के रीढ़ की हड्डी के थे। अपने पिता की मृत्यु के पश्चात शकुनि ने उनकी कुछ हड्डियां अपने पास रख ली थीं। शकुनि जुआ खेलने में पारंगत था और उसने कौरवों में भी जुए के प्रति मोह जगा दिया था।

 कुरुक्षेत्र के युद्ध में शकुनि ने दुर्योधन का साथ दिया था । शकुनि जितनी नफरत कौरवों से करता था उतनी ही पांडवों से भी |

क्योंकि उसे दोनों की ओर से दुख मिला था। इसलिए पांडवों को शकुनि ने अनेक कष्ट दिए । भीम को  इसे अनेक अवसरों पर परेशान किया। महाभारत युद्ध के दौरान सहदेव ने शकुनि का इसके पुत्र सहित वध कर दिया ।

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यह देखा गया है  कि पांडवों को ख़त्म करने के लिए शकुनि ने अनेक बार षड़यंत्र किया था,  जिसमे कुछ  प्रमुख षड़यंत्र निम्नलिखित  है ..

पहला षड़यंत्र – एक योजना के तहत एक बार दुष्ट दुर्योधन ने शकुनि  मामा के कहने पर भीम को जहर देने की योजना बनाई । सभी पांडवों को गंगा के तट पर प्रणामकोटि स्थान में जलक्रीड़ा करने और उत्सव मनाने के लिए आमंत्रित किया |

दुर्योधन की योजना के  अनुसार चुपके  से भीमसेन के भोजन में विष मिला दिया गया। फिर बेहोश भीम को गंगा के ऊंचे तट से जल में ढकेल दिया गया है । अन्य पांडवों को इसका भान भी नहीं हुआ ।

भीम को जल में मरा पाकर  उनके नाना आर्यक  उसे वासुकि नाग के पास ले गए । वासुकि नाग  अपनी विद्या से भीम को जिंदा कर दिया  और उस में सहस्रों हाथियों का बल भर दिया ।

दूसरा षड़यंत्र :- शकुनि की योजना अनुसार पांचों पांडवों को वारणावत भेज दिया जाता है जहां लाक्षागृह में आग लगाकर पांडवों को जिंदा जला कर मारने की योजना बनाई गई थी ।  लेकिन ऐन वक्त पर महात्मा विदुर  ने पांडवों को गुप्त संदेश भिजवाया और शकुनि की चाल का खुलासा हुआ । तब पांचों पांडवों ने विदुर के एक विश्‍वासपात्र से सुरंग खुदवाई और उसी सुरंग के माध्यम से वे लाक्षागृह से बाहर निकलकर गंगापार जंगल में चले गए ।

इधर हस्तिनापुर में खबर फैला दी गई कि  पांडव लाक्षागृह की दुर्घटना में मारे गए हैं । लेकिन कुछ काल के बाद विदुरजी ही पांडवों को हस्तिनापुर लेकर वापस आए और फिर उनको इंद्रप्रस्थ का राज्य दिया गया।

तीसरा षड़यंत्र : – जब युधिष्ठिर को इंद्रप्रस्थ का राज्य मिला तो उन्होंने अपने राज्य के विस्तार के लिए राजसूय यज्ञ किया । इस यज्ञ के चलते उनके राज्य का विस्तार होता गया और उनकी शक्ति बढ़ती गई । इस बढ़ती शक्ति से चिंतित होकर ही शकुनि ने दुर्योधन के साथ मिलकर कपट की नई योजना बनाई ।


उसने चौसर अथवा द्यूतक्रीड़ा (जूए के खेल ) का आयोजन करवाया | लेकिन पांडव यह नहीं जानते थे कि शकुनि के पासे केवल उसी के इशारे पर चलते हैं । इस खेल में पांडवों व द्रौपदी का अपमान ही कुरुक्षेत्र के युद्ध का सबसे बड़ा कारण साबित हुआ ।

इस हार के बाद पांडवों को तेरह वर्ष वनवास में ही रहना पड़ा जिसके चलते उनका जीवन बदल गया।

जब वनवास और अज्ञात वास से पांडव वापस आये तो शकुनी मामा के षड्यंत्र के कारण ही उन्हें उनका राज्य वापस नहीं मिला और जिसके कारण महाभारत का युद्ध हुआ |

युद्ध का परिणाम भयंकर रहा | सारे कौरवो का नाश हो गया और साथ ही साथ शकुनी मामा को भी  अपनी जान गवानी पड़ी |

हमने यहाँ देखा कि आपस में लड़ कर कुछ हासिल नहीं होता, बल्कि जो कुछ भी है सब समाप्त हो जाता है |  अभी समय है  हम सभी को भी मिलजुल कर कोरोना के इस आपदा का सामना करना चाहिए .. .जीत हमारी होगी…||.

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5 replies

  1. Mahabharata ki Amar Kahani. Sakuni, the villain.
    Nicely presented.

    Liked by 1 person

  2. Very well narrated. Keep writing on various plots/sub plots/ personalities of Mahabharat.

    Liked by 1 person

  3. Reblogged this on Retiredकलम and commented:

    अच्छे लोगों में एक ख़ास बात होती है ,
    वो बुरे वक़्त में भी अच्छे होते है ..

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