पा लेने की बेचैनी और खो देने का डर …
बस यही तो है ज़िन्दगी का सफ़र ..

एक प्रवासी का दर्द
मैं धारावी से मुंबई स्टेशन पर पहुँचा तो गाँव के कुछ और साथी पहले से ही इंतज़ार कर रहे थे | हम सभी मुँह पर मास्क लगाए थे और हिदायत दी गई नियमो का पालन कर रहे थे |
क्योकि हमें पता था कि अगर “चाइना वाली बीमारी” की चपेट में आये तो अपने लाश का भी पता नहीं चलेगा |
सभी साथी लोग सरकार की ओर से घर जाने की व्यवस्था होने पर आज बहुत खुश दिखाई पड़ रहे थे | और हो भी क्यों नहीं..बाल बच्चे और खास कर घरवाली से इतने दिनों बाद जो मिलना होगा |
ट्रेन में बैठ कर खूब धमाल मचा रहे थे | आपस में बिरहा के गीत गा रहे थे और थाली को पिट कर संगीत का मजा ले रहे थे | यह तो स्पेशल ट्रेन खास कर मजदूरों को बिहार ले जाने के लिए मुंबई…
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