संदेह ..मुसीबत के पहाड़ों का निर्माण करता है…
और, विश्वास ..पहाड़ों में से भी रास्ते का निर्माण करता है …
मन में विश्वास रख कर कोई हार नहीं सकता..और,
मन में शंका रख कर कोई जीत नहीं सकता,,,

निर्मला, आज तीन सालों के बाद अंजना को देख रही थी | वह कोर्ट परिसर में भी अपने लोगों से घिरी थी और सभी को कुछ ना कुछ काम समझा रही थी |
यहाँ तक कि अपने वकील को भी समझा रही थी कि उसे जज के सामने अपने बातों को कैसे रखना है | उसे इतनी भी फुर्सत नहीं थी कि थोड़ी दूर में बैठी निर्मला को भी देख सके निर्मला सोच रही थी कि सचमुच अब अंजना काफी बदल गई है |
कोर्ट की कार्यवाही समाप्त होते ही अंजना कोर्ट रूम से निकल कर अपनी गाड़ी की ओर जा रही थी तभी निर्मला दौड़ कर अंजना के पास पहुँची और कहा…तुम अपनी छोटी बहन को भी भूल गई अंजना | क्या तुम हमसे बात करना नहीं चाहती हो ?
नहीं निर्मला ,ऐसी कोई बात नहीं है | लेकिन यह जगह उन सब बातों के लिए उचित नहीं है…
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