
प्रेरक प्रसंग
यह प्रसंग रामायण के उस भाग से ली हुई है, जब श्री राम का तीर रावण के नाभि में लगा और रावण धारासाई होकर ज़मीन पर गिर पड़ा |
एक ओर रावण अपनी आंखरी साँसे गिन रहा था तो दूसरी ओर राम की सेना मे जश्न का माहौल था |
उसी समय श्री राम ने लक्ष्मण को बुलाया और कहा… रावण महाज्ञानी है और वह मृत्यु शैया पर लेते हुए आखरी साँसे गिन रहे है | उनके पास जाओ और उनसे कुछ ज्ञान की बातें सिख कर आओ |
अगर वे मर गए तो उनका सारा ज्ञान का भण्डार उन्ही के साथ चला जायेगा |
लक्ष्मण ने आश्चर्य प्रकट करते हुए पूछा … भैया, रावण तो अहंकारी और घमंडी है, जिसने हमारी भाभी सीता का हरण किया था, उस दुश्मन के पास जाकर ज्ञान लेने के लिए मुझे कह रहे है ? वह अपना ज्ञान हमें कभी नहीं देंगे |
नहीं, ऐसा नहीं है लक्ष्मण | उन जैसा ज्ञानी पंडित संसार में कोई नहीं है और ज्ञान तो बांटने की चीज़ होती है, वह ज़रूर तुम्हे देंगे |
भाई का आदेश था तो पालन करना ही था | लक्ष्मण न चाहते हुए भी रावण के पास गए |
लक्ष्मण उनके सिर के पास जाकर खड़े हो गए और बोले… .हे रावण, मुझे तुम्हारे पास मेरे भाई राम ने भेजा है | अपनी मृत्यु से पहले मुझे कुछ ज्ञान देते जाओ |
लक्ष्मण की बातों में जो अहंकार दिख रहा था उसे रावण को पसंद नहीं आया .. उसने ज्ञान देने के बजाये अपना मुँह दूसरी ओर फेर लिया |
लक्ष्मण को रावण के इस व्यवहार से और भी गुस्सा आ गया और वह गुस्से में ही वापस अपने भाई राम के पास आये और कहा … भैया , मैंने तो पहले ही आप से कहा था कि रावण अहंकारी है, ज्ञान नहीं देने वाला है |
राम ने शांतिपूर्वक लक्ष्मण की बातें सुनी और फिर पूछा .. तुम कहाँ खड़े थे ?
लक्ष्मण ने बताया .. मैं उनके सिर के पास खड़ा था ताकि वह कुछ बोले तो साफ़ साफ़ सुन सकूँ |
श्री राम ने लक्ष्मण से कुछ नहीं कहा बल्कि वे खुद रावण के पास चले गए और उनके पैरों के पास बैठ गए |
जब रावण ने राम को देखा तो श्री राम ने हाथ जोड़ कर रावण को नमस्कार किया और उनसे कहा … हे लंकापति रावण, आप महाज्ञानी है, लेकिन आपसे एक भूल हो गयी थी | आपने मेरी पत्नी का हरण कर लिया था | जिसकी सजा आपको मिली है |
अब आप इस दुनिया से विदा होने से पहले मुझे ज्ञान देते जाइये | आपके पास ज्ञान का भण्डार है |
रावण ने राम की तरफ देख कर कहा … हे राम, पहली बात तो यह देख कर अच्छा लगा कि आपने अपने भाई को सिखाया कि अनुशासन क्या होता है, संस्कार क्या होता है | आप ने सही कहा कि ज्ञान लेने के लिए गुरु के पैरों में बैठा जाता है |
और दूसरी बात यह है कि आप में और मुझमे सिर्फ एक अंतर है, जिसके कारण आपकी जीत हुई है और हमारी हार |
श्री राम ने इस पर निवेदन पूर्वक पूछा … अंतर क्या है ?
तब रावण ने कहा .. मैं हर मामले में आपसे श्रेष्ठ हूँ | मैं बुद्धि में और बल में आपसे श्रेष्ठ हूँ |
यहाँ तक कि आपके पास सिर्फ सोने का महल है लेकिन मेरी लंका ही पूरी सोने की है |
श्री राम ने रावण की सारी बातें ध्यान से सुनी और फिर पूछा … लेकिन वह अंतर क्या है ? मुझे बताएं |
तब रावण ने कहा…. इस युद्ध में तुम्हारा भाई तुम्हारे साथ था और मेरा भाई मेरे विरूद्ध |
तुम्हारा भाई आखरी वक़्त तक युद्ध में तुम्हारे साथ डटा रहा, जबकि मेरा भाई ही मेरा भेदिया बना और मेरा दुश्मन बन बैठा |
उसने वह राज़ आपको बता दिया जिससे आप मुझे मारने में सफल हो गए |
मैं दुनिया को बताना चाहता हूँ कि अपने जब साथ हों तो बड़े से बड़ा युद्ध को जीता जा सकता है और जब अपने दगा दे जाएँ तो पराजय निश्चित होती है |
यह छोटी सी कहानी बहुत बड़ी बात सिखाती है | अपने लोग हमारे ज़िन्दगी में बहुत मायने रखते है वर्ना रावण का हश्र देखा ही है | …तभी तो यह कहावत प्रसिद्ध है …...घर का भेदी लंका ढाए . …

माना रावण अभिमानी था वैदेही को हर लाया था
भगवान के हाथों मरने को उसने ये कदम बढाया था।
मालूम था उसको जिसको वो हर लाया स्वयं दुर्गा मां हैं
सीता के प्राण प्रिय राम खुद मर्यादा की सीमा हैं ।
था ज्ञानवान लेकिन उसने अपना सब ज्ञान छिपाया था
भगवान के हाथों मरने को उसने ये कदम बढाया था।
जिसने स्वयं महादेव को भी दस बार शीश दे साध लिया।
अपनी भुजाओं के बलपर कितनी बार काल को बांध लिया।
बस अहंकार ने रावण का श्री राम से द्रोह कराया था
भगवान के हाथों मरने को उसने ये कदम बढाया था।
द्रोह किया विद्रोह किया संकल्प से लेकिन हटा नहीं
हर बार जलाना पडता है इसका मतलब वो मिटा नहीं।
हैं धन्य दशानन जिसको स्वयं श्री राम ने श्रेष्ठ बताया था
भगवान के हाथों मरने को उसने ये कदम बढाया था।
मानवता की हर पीढ़ी को यह प्रसंग समझना है
अहंकार को हर युग में सच्चाई के आगे झुकना है।
राम ने सच को ही अपना आधार बनाया था
भगवान के हाथों मरने को उसने ये कदम बढाया था।
(लेखक अमित कुमार यश).
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