
वैसे तो हमारे बिहार की धरती ने बहुत सारी विभूतियों को जन्म दिया है ..जिन्होंने अपनी कला और योग्यता से बिहार को गौरवान्वित किया है |
आज एक बार फिर हम बिहारवासी गौरवान्वित महसूस कर रहे है क्योंकि पीएम नरेंद्र मोदी ने कोरोना वैक्सीनेशन अभियान का आगाज करते हुए “राष्ट् कवि रामधारी सिंह दिनकर” को याद किया है ।
कोरोना के खिलाफ सबसे बड़े अभियान की शुरुआती भाषण में उन्होंने बेगूसराय के मूल निवासी राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर को याद करते हुए उनकी कविता से कुछ पंक्तियों को उद्धरित किया है ।
पीएम नरेंद्र मोदी ने दिनकर की पंक्ति को पढ़ते हुए कहा – –
मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है |…
उन्होंने कहा कि आज मानव ने जोर लगाकर कोरोना के खिलाफ बहुत कम समय में वैक्सीन बनाकर अदम्य साहस का परिचय दिया है ।
अपने बिहार दर्शन के तहत अपने इस ब्लॉग में आज राष्ट्र कवि दिनकर के बारे में चर्चा कर रहा हूँ |
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने हिंदी साहित्य में न सिर्फ वीर रस के काव्य को एक नयी ऊंचाई दी, बल्कि अपनी रचनाओं के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना का भी सृजन किया |
उन्होंने अपनी कविताओं में देशभक्ति और वीर रस को प्रमुखता से स्थान दिया । इसी वजह से उन्हें राष्ट्रकवि भी कहा जाता है
हिन्दी के सुविख्यात कवि रामाधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 ई. में सिमरिया, ज़िला मुंगेर (बिहार) में हुआ था |
रामधारी सिंह दिनकर एक ओजस्वी, और देश भक्ति से ओतप्रोत कवि के रूप में जाने जाते है | उनकी कविताओं में छायावादी युग का प्रभाव होने के कारण श्रृंगार के भी प्रमाण मिलते हैं ।
उनका बचपन गाँव – देहात में बीता, जहाँ दूर तक फैले खेतों की हरियाली, बांसों के झुरमुट, आमों के बगीचे और कांस के विस्तार थे ।
प्रकृति की इस मनोरम छटा का प्रभाव दिनकर जी के मन पर पड़ा | इसके अलावा वास्तविक जीवन की कठोरताओं का भी उन्हें गहरा अनुभव था |

दिनकर जी की शिक्षा
उन्होंने संस्कृत के एक पंडित के पास से अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्रारंभ करते हुए अपने गाँव के प्राथमिक विद्यालय से प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की | आगे निकटवर्ती बोरो नामक ग्राम में राष्ट्रीय मिडल स्कूल जो सरकारी शिक्षा व्यवस्था (अंग्रेजी हुकूमत) के विरोध में खोला गया था, में प्रवेश प्राप्त किया । यहीं से इनके मन मस्तिष्क में राष्ट्रीयता की भावना का विकास होने लगा था।
हाई स्कूल की शिक्षा इन्होंने मोकामाघाट हाई स्कूल से प्राप्त की । इसी बीच इनका विवाह भी हो चुका था तथा ये एक पुत्र के पिता भी बन चुके थे । 1928 में मैट्रिक पास करने के बाद दिनकर ने पटना विश्वविद्यालय से 1932 में इतिहास में बी. ए. ऑनर्स किया।
पेशेवर ज़िन्दगी ..
पटना विश्वविद्यालय से बी. ए. ऑनर्स करने के बाद अगले ही वर्ष एक स्कूल में वे प्रधानाध्यापक नियुक्त हुए | लेकिन 1934 में बिहार सरकार के अधीन इन्होंने सब-रजिस्ट्रार का पद स्वीकार कर लिया ।
लगभग नौ वर्षों तक वह इस पद पर रहे | इनका समूचा कार्यकाल बिहार के देहातों में बीता था | जीवन का जो पीड़ित रूप उन्होंने बचपन से देखा था, उसका और तीखा रूप उनके मन को मथ गया ।
उसी का परिणाम था कि उनके मन पर लिखने की भावना जगीं और उन्होंने रेणुका, हुंकार, रसवंती और द्वंद्वगीत जैसे साहित्य की रचना की | रेणुका और हुंकार की कुछ रचनाऐं यहाँ- वहाँ प्रकाश में आईं और अग्रेज़ प्रशासकों को समझते देर न लगी कि वे एक ग़लत आदमी को अपने तंत्र का अंग बना बैठे हैं |
अंग्रेजी हुकूमत द्वारा दिनकर की फ़ाइल तैयार होने लगी | उन्हें बात-बात पर क़ैफ़ियत तलब होती और चेतावनियाँ मिला करतीं। चार वर्ष में बाईस बार उनका तबादला किया गया।
1947 में जब देश स्वाधीन हुआ तब वह बिहार विश्वविद्यालय में हिन्दी के प्रध्यापक व विभागाध्यक्ष नियुक्त होकर मुज़फ़्फ़रपुर पहुँचे ।
1952 में जब भारत की प्रथम संसद का निर्माण हुआ, तो उन्हें राज्यसभा का सदस्य चुना गया और वह दिल्ली आ गए ।
दिनकर 12 वर्ष तक संसद-सदस्य रहे | बाद में उन्हें सन 1964 से 1965 ई. तक भागलपुर विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त किया गया ।
लेकिन अगले ही वर्ष भारत सरकार ने उन्हें 1965 से 1971 ई. तक अपना हिन्दी सलाहकार नियुक्त किया और वह फिर दिल्ली लौट आए ।
रामधारी सिंह दिनकर स्वभाव से सौम्य और मृदुभाषी थे, लेकिन जब बात देश के हित-अहित की आती थी तो वह बेबाक टिप्पणी करने से कतराते नहीं थे।
रामधारी सिंह दिनकर ने ये तीन पंक्तियां पंडित जवाहरलाल नेहरू के खिलाफ संसद में सुनाई थी, जिससे देश में भूचाल मच गया था ।
दिलचस्प बात यह है कि राज्यसभा सदस्य के तौर पर दिनकर का चुनाव पंडित नेहरु ने ही किया था, इसके बावजूद नेहरू की नीतियों की मुखालफत करने से वे नहीं चूके ।
देखने में देवता सदृश्य लगता है
बंद कमरे में बैठकर गलत हुक्म लिखता है।
जिस पापी को गुण नहीं गोत्र प्यारा हो
समझो उसी ने हमें मारा है ॥
काव्य संग्रह और रचनाएँ
दिनकर की कविता के दो मुख्य स्वर हैं … पहला क्रांति, विद्रोह और राष्ट्रीयता और दूसरा प्रेम और श्रृंगार ।
उन्होंने सामाजिक और आर्थिक समानता और शोषण के खिलाफ कविताओं की रचना की । एक प्रगतिवादी और मानववादी कवि के रूप में उन्होंने ऐतिहासिक पात्रों और घटनाओं को ओजस्वी और प्रखर शब्दों का तानाबाना दिया । उनकी महान रचनाओं में रश्मिरथी और परशुराम की प्रतीक्षा शामिल है।

उर्वशी को छोड़कर दिनकर की अधिकतर रचनाएँ वीर रस से ओतप्रोत है।
दिनकर के प्रथम तीन काव्य-संग्रह प्रमुख हैं– ‘रेणुका’ (1935 ई.), ‘हुंकार’ (1938 ई.) और ‘रसवन्ती’ (1939 ई.) है |
इन मुक्तक काव्य संग्रहों के अतिरिक्त दिनकर ने अनेक प्रबन्ध काव्यों की रचना भी की है, जिनमें ‘कुरुक्षेत्र’ (1946 ई.), ‘रश्मिरथी’ (1952 ई.) तथा ‘उर्वशी’ (1961 ई.) प्रमुख हैं।
दिनकर के काव्य में विचार तत्त्व इस तरह उभरकर सामने पहले कभी नहीं आया था। ‘कुरुक्षेत्र’ के बाद उनके नवीनतम काव्य ‘उर्वशी’ में फिर हमें विचार तत्त्व की प्रधानता मिलती है। साहस पूर्वक गांधीवादी अहिंसा की आलोचना करने वाले ‘कुरुक्षेत्र’ का हिन्दी जगत में यथेष्ट आदर हुआ ।
‘उर्वशी’ जिसे कवि ने स्वयं ‘कामाध्याय’ की उपाधि प्रदान की है – ’दिनकर’ की कविता को एक नये शिखर पर पहुँचा दिया है।
1955 में नीलकुसुम दिनकर के काव्य में एक मोड़ बनकर आया।
नवीनतम काव्यधारा से सम्बन्ध स्थापित करने की कवि की इच्छा तो स्पष्ट हो जाती है, पर उसका कृतित्व साथ देता नहीं जान पड़ता है। अभी तक उनका काव्य आवेश का काव्य था, नीलकुसुम ने नियंत्रण और गहराइयों में पैठने की प्रवृत्ति की सूचना दी ।
छह वर्ष बाद उर्वशी प्रकाशित हुई, हिन्दी साहित्य संसार में एक ओर उसकी कटु आलोचना और दूसरी ओर मुक्तकंठ से प्रशंसा हुई । धीरे-धीरे स्थिति सामान्य हुई | इस काव्य-नाटक को दिनकर की ‘कवि-प्रतिभा का चमत्कार’ माना गया। कवि ने इस वैदिक मिथक के माध्यम से देवता व मनुष्य, स्वर्ग व पृथ्वी, अप्सरा व लक्ष्मी अय्र काम अध्यात्म के संबंधों का अद्भुत विश्लेषण किया है।

राष्ट्रिय सम्मान …पदम् विभूषण
- दिनकरजी को उनकी रचना कुरुक्षेत्र के लिये काशी नागरी प्रचारिणी सभा, उत्तरप्रदेश सरकार और भारत सरकार से सम्मान मिला।
- संस्कृति के चार अध्याय के लिये उन्हें 1959 में साहित्य अकादमी से सम्मानित किया गया।
- भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें 1959 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया।
- भागलपुर विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलाधिपति और बिहार के राज्यपाल जाकिर हुसैन, जो बाद में भारत के राष्ट्रपति बने, ने उन्हें डॉक्ट्रेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया।
- 1968 में राजस्थान विद्यापीठ ने उन्हें साहित्य-चूड़ामणि से सम्मानित किया ।
- वर्ष 1972 में काव्य रचना उर्वशी के लिये उन्हें ज्ञानपीठ से सम्मानित किया गया।
काव्य : इनकी कुछ रचनाओं जानकारी नीचे दिया गया है ..
S no | काव्य | गद्य | |
1 | बारदोली-(1928) | मिट्टी की ओर 1946 | |
2 | रेणुका – (1935) | चित्तौड़ का साका 1948 | |
3 | . हुंकार (1938) | अर्धनारीश्वर 1952 | |
4 | रसवन्ती (1939) | रेती के फूल 1954 | |
5 | कुरूक्षेत्र (1946) | संस्कृति के चार अध्याय 1956 | |
6 | . सामधेनी (1947) | . साहित्य-मुखी 1968 | |
7 | . इतिहास के आँसू (1951) | . मेरी यात्राएँ 1971 | |
8 | उर्वशी (1961) | भारतीय एकता 1971 | |
9 | रश्मिरथी (1952) | . मेरी यात्राएँ 1971 | |
10 | सूरज का ब्याह | दिनकर की डायरी 1973 | |
11 | परशुराम की प्रतीक्षा (1963 | आधुनिक बोध 1973 |
24 अप्रैल 1974 को उनकी मृत्यु हुई |
महान राष्ट्र कवि को हम शत शत नमन करते है ….
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I read the life of Ramdharisinh Dinakar.His contribution to Hindi Sahitya is felt by us.He has been awarded many awards by Govt of India. He is a person of various talents.Nice information about him.
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Yes dear,
He was a Great writer and person of various talents..
Thank you for your comments..
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Dinkar was one of the greatest poet and a rebellious poet also due to his nationalist poetry in pre independence days. A poet par excellence, his epic Rashmirathi was in our school textbook which I like reading even now as it is very inspiring and his description of lord Krishna very fascinating.
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Well said sir,
Dinkar was the Greatest poet and Rashmirathi was in our textbook .I have also read in school days..
Thank you for your beautiful comments.. Stay connected and stay safe..
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रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितम्बर १९०८ को बिहार के बेगुसराय जिले के
सिमरिया गाँव में हुआ था |अतः आज उनके जन्मदिन के अवसर पर प्रस्तुत …
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बहुत बहुत धन्यवाद…
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