
दोस्तों कभी कभी कुछ घटनाएँ ज़िन्दगी में ऐसी घटती है कि वह हमेशा के लिए दिलो दिमाग पर छा जाती है |
आज जीवन में घटी एक सच्ची घटना का वृत्तांत आप सबों के समक्ष प्रस्तुत करने जा रहा हूँ जिसे पढ़ कर आपको अवश्य मजा आएगा |
जब यह घटना मेरे साथ घटित हुई थी तो मुझे पहले तो बहुत बुरा लगा था लेकिन बाद में जब भी यह घटना मुझे याद आती है तो मेरे होठों पर मुस्कान बिखर जाता है |.
मुझे आज भी याद है वह दिन … 24 जुलाई 1977 का वह दिन था, जब हमलोगों ने रांची एग्रीकल्चर कॉलेज में एडमिशन लिया था |
एडमिशन के तुरंत बाद ही हमलोगों को हॉस्टल आवंटित किया गया था | मुझे होस्टल नम्बर 3 का रूम नम्बर १० अलॉट हुआ था |
हालाँकि मैं उन दिनों रांची में ही रहता था, और बस से कॉलेज आता था और क्लास ख़त्म होने पर फिर वापस रांची लौट जाया करता था |
आने जाने में परेशानी अवश्य होती थी लेकिन कॉलेज में चल रहे रैगिंग के डर से ऐसा करना पड़ रहा था |
कॉलेज के शुरुवाती दिन थे और उन दिनों में रैगिंग भी बड़े जोरो की हुआ करती थी |
सीनियर छात्रों के आदेशानुसार फर्स्ट trimester के छात्रो को डिनर के बाद नौ बजे रात में कॉमन रूम में उपस्थित होना पड़ता था जहाँ हमलोगों की तरह तरह से रैगिंग किया जाता था |
हॉस्टल में रह रहे हमारे मित्र जब क्लास में मिलते तो अपने अनुभव share करते हुए बताते थे कि इस रैगिंग से कभी कभी इतने परेशान हो जाते है कि पढाई छोड़ कर घर वापस लौट जाने का मन करता है |
इन सब बातों को सुन कर मैं डर जाया करता और फिर अपने मन को समझाता कि चलो अभी रांची से हीआना जाना किया जाए और कुछ दिनों के बाद जब स्थिति सामान्य होगी तो फिर हॉस्टल में शिफ्ट कर जाऊंगा |
नियमतः रोज रैगिंग लेने वाले सिनिअर्स पहले हॉस्टल के कॉमन रूम में सभी को खड़ा कर लोगों का attendence लेते थे ताकि कोई चालाकी दिखा कर रैगिंग से छुट ना जाए |
लेकिन संजोग से रोज़ मैं ही वहाँ अनुपस्थित रहता था क्योकि मैं तो रोज अपने घर से ही आना जाना करता था |

एक दिन की बात है कि शाम के करीब चार बजे हमलोगों का क्लास समाप्त हुआ | मैं दोस्तों के साथ क्लास से बाहर निकला और मेरे सारे दोस्त हॉस्टल की ओर मुड गए और मैं बस पकड़ने के लिए कॉलेज के गेट की ओर जा रहा था तभी कुछ सीनियर्स हमें अकेला देख कर घेर लिए और पूछने लगे….तुम रात में रैगिंग से अनुपस्थित क्यों रहते हो ?
मैं उनलोगों के बीच अपने को अकेला पाकर घबरा गया और धीरे से बोला … बॉस, मैं जल्द ही हॉस्टल में शिफ्ट कर जाऊंगा और फिर रैगिंग क्लास में उपस्थित रहूँगा |
तभी सभी सीनियर लोग आपस में बोलने लगे | इसके क्लास के सभी मुर्गों का रैगिंग हो रहा है और यह महाशय ठाठ से लोगों को कहते फिरता है कि मेरा कौन रैगिंग ले सकता है, मैं तो यहाँ का लोकल हूँ | इसके घमंड को समाप्त करना होगा |
उनमे से एक बॉस के कहा… इसे अभी हॉस्टल में ले चलो, बहुत मुश्किल से आज पकड़ में आया है |
और इस तरह वे सीनियर्स मिलकर मुझे हॉस्टल में ले गए और ना चाहते हुए भी उनके साथ जाना पड़ा |
मैं उनलोगों के रैगिंग का विरोध कर रहा था | इससे वे लोग क्रोधित हो गए | तभी उनलोगों में से एक बॉस ने अपने रूम से दाढ़ी बनाने वाला रेजर ले आये और अचानक मेरी मूँछ पर रख कर मुझे डराना चाहा |
और इसी नोक – झोक में मेरी आधी मूँछ कट गई |
मेरी नई नई मूँछ निकली थी जिसे मैं बहुत पसंद करता था | अपने मूंछ से अपना रूतबा महसूस करता था | इस मूंछ को संभाल कर रखता था क्योंकि यह मेरे जवान होने की निशानी थी |
गाहे बगाहे जब कभी मेरे हाथ मूँछ पर जाती तो मुझे अपने चेहरा रोबदार होने का एहसास होता |
अब तो मेरी मूंछ आधी कट चुकी थी | उस समय देख भी नहीं सकता था कि अब मेरा मुखड़ा कैसा लग रहा है |
क्योकि उस ज़माने में मोबाइल नहीं हुआ करते थे कि उसके कैमरे को ऑन करके अपना आधी कटी मूछों वाला चेहरा देख कर अनुमान लगा सकूँ |
मुझे बहुत जोर का गुस्सा आ रहा था , लेकिन क्या करता …
वहाँ खड़े सभी सीनियर्स मेरे आधी कटी मूंछ वाले चेहरे को देख कर हँस रहे थे |
मैं अपने गुस्से को किसी तरह काबू में किया, क्योकि मुझे इन्ही बॉस लोगों के बीच रह कर पढाई करनी थी |
मैं पॉकेट से रुमाल निकाला और अपने मुखड़े के आधी मूंछ को ढकते हुए चुप चाप वहाँ से खिसक लिया |
मैं कॉलेज गेट पर पहुँचा तो वहाँ खड़ी बस मिल गयी और मैं चुप चाप उस बस में बैठ गया |
मैं पुरे रास्ते सोच रहा था कि घर में कैसे बताऊंगा कि मेरी आधी मूंछ काट दी गई है |

मैं मुखड़े पर रुमाल रखे हुए ही घर में पहुँचा |
मेरी भाभी जी ने जैसे ही दरवाज़ा खोला | मेरे चेहरे को रुमाल से ढका देख वो चिंतित होते हुए पूछा …अरे विजय, मुँह में चोट लगी है क्या. यह कैसे हुआ ?
मैं कुछ बोलने ही वाला था कि उन्होंने मेरे मुँह से रुमाल हटा दिया |
मेरे आधी कट चुकी मूंछ को देख कर अचानक वो जोर जोर से हंसने लगी | वह लगातार हँसे जा रही थी और मैं खिसियानी बिल्ली की तरह हंसने में उनका साथ दे रहा था |
फिर ज़ल्दी से आईने के सामने जाकर खड़ा हो गया ताकि मैं भी अपने मुखड़े को देख सकूँ |
मुझे भी अपने चेहरे को देख कर अचानक हँसी आ गई और हम दोनों देर तक हँसते रहे |
अगर उस समय मोबाइल का ज़माना होता तो सेल्फी ज़रूर लेता और आज उसका इस्तेमाल करता |
और कोई ऐसी सूरत न देख ले इसलिए तुरंत ही घर में पड़े रेजर से बाकि बचे आधी मूँछ भी काट डाली |
उसी समय मेरा भांजा जो मेरी हम उम्र था , बाज़ार से सब्जी लेकर घर में घुसा और उसकी नज़र मेरी ओर अचानक पड़ी |
उसने तो पहचाना ही नहीं और मेरे पास से होते हुए आगे रसोई घर की ओर बढ़ गया |
तभी मैंने उसे आवाज़ लगाईं तो उसने चौक कर मुझे गौर से देखा और फिर उसका मूंह खुला का खुला रहा गया |
..उसके मुँह से बस यही निकला …यह क्या किया मामा जी ?.

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Gd morning have a nice day sir ji
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Very Good morning dear..
Stay blessed..
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Very nicely story composed.
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Thank you dear ..
This is a real incidence ..hahahaha…
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Interesting narrative style of small incidents of life.
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Thank you sir,
That was true incidence of my college life..
Stay connected sir, Stay blessed..
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कॉलेज का एक्सपिरियन्स बहुत अच्छा था|ये छोटी -छोटी मैमोरी कितनी सुखद होती हैं|🙏🙏🙏🙏
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जी, बिलकुल सही |
कॉलेज के दिनों की पुरानी यादें अक्सर चेहरे पर मुस्कान बिखेर जाती है |
बहुत बहुत धन्यवाद |
नए साल की ढेरों शुभकामनाएं…
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Very beautifully written uncle.. loved reading it.
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Thank you Richa..
I am happy to know that you are enjoying my Blog reading.
Stay connected and stay happy….
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Very beautifully written uncle.. loved reading it.
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