
आज जब मोर्निंग वाक कर वापस घर लौटा तो पाया कि सुबह सुबह घर में ढोसा बन रहा है और उसकी खुशबू मुझ तक पहुँच रही है |
ढोसा का स्मरण होते ही अचानक मुझे वो घटना याद आ गई जो बचपन में मेरे साथ घटी थी ..इसे आप इस तरह समझिये कि बचपन में मेरा ढोसा से परिचय दुर्घटनावश ही हुआ था और उन दुर्घटना को आज भी जब याद करता हूँ तो मेरे चेहरे पर मुस्कराहट बिखर जाती है |
सच, आज जब घर में ढोसा को बनते देखा तो वह दुर्घटना हमें अचानक याद आ गई और मैं बस अपने टेबल पर बैठ कर इस वक़्त उसी के बारे में ब्लॉग लिख कर अपनी उस पुरानी यादों को ताज़ा कर रहा हूँ |
जी हाँ , मैं ढोसा की कहानी लिख रहा हूँ | वैसे तो ढोसा का जन्म साउथ इंडिया में हुआ था लेकिन अब तो यह दुनिया के हर कोने में साउथ इंडियन डिश के तहत उपलब्ध है | आज कौन होगा जो ढोसा का स्वाद नहीं चखा होगा , लोग बड़े चाव से इसे खाते है |
हाँ तो, मैं कह रहा था कि बात बहुत पुरानी है, जब मैं 8-१० साल का रहा होऊंगा |
मैं नया नया रांची में शिफ्ट हुआ था, इससे पहले एक छोटे से कसबे में रहता था , लेकिन बड़े शहर में रहने का मेरा पहला अनुभव था |
मैं घर में सबसे छोटा था इसलिए मुझ पर बहुत सी पाबंदियां थी और दोस्तों के साथ होटल वगैरह जाने की मनाही थी |
जब मैं रांची आया तो यहाँ वह पाबंदियां हटा दी गई थी / मुझे कही भी आने जाने की आज़ादी थी | लेकिन यहाँ अभी किसी से भी दोस्ती नहीं हुई थी / मैं बिलकुल अकेला महसूस करता था यहाँ |

एक दिन घर के बाहर मैदान में बैठा कुछ सोच रहा था तभी मुझे अचानक ढोसा की याद आ गई | मैं ने दोस्तों के मुख से सुन रखा था कि कि लोग जब बहुत खुश होते है तो ढोसा खाते है |
मैं भी रांची आकर ख़ुशी महसूस कर रहा था | मैं मन ही मन प्लान बना लिया कि डिनर के बाद “गुप्ता मिस्टान भण्डार” जो घर से आधा किलोमीटर दूर मार्किट में था, में जाकर ढोसा खाऊंगा |
मैं सोचता था कि ढोसा किसी मिठाई का नाम है, जैसे की गुलाब जामुन..| मैं रात का भोजन कर रहा था और मेरे मन में पूर्व नियोजित प्लान चल रहा था | खाना बहुत स्वादिस्ट और मेरे मन पसंद का था …पनीर की सब्जी और चावल |
मैं कुछ ज्यादा ही खा लिया | और फिर टहलते हुए “गुप्ता मिस्टान भंडार” की ओर चल दिया..|
रात के नौ बज रहे थे और गर्मी के दिन थे | मैं पसीना पोछता हुआ दूकान पहुँच ही गया | मैं पहली बार इस दूकान में आया था | दूकान में भीड़ नहीं थी इसलिए मुझे अकेला एक टेबल मिल गया और मैं आराम से बैठ गया |
थोड़ी देर में आर्डर लेने के लिए एक स्टाफ आया और मैंने कहा … ढोसा ले आओ | उसके जाने के बाद मैं आराम से गद्देदार सोफे पर बैठ कर पंखे की हवा खाने लगा | चूँकि डिनर कुछ हैवी हो गया था इसलिए पंखे की हवा लगते ही नींद सी आने लगी |
मुझे थोड़ी देर के लिए झपकी भी लग गई | अचानक मेरी आँखे खुली तो सोचा अभी तक मेरा मिठाई (ढोसा} नहीं आया है , जिसे टेस्ट कर घर जा सकूँ |
तभी देखा कि वेटर एक प्लेट में कोई आइटम बगल वाले टेबल पर सर्व कर रहा है ….प्लेट में कागज़ की तरह लम्बा और पतला …..कोई आइटम था जिसे मैं पहचान नहीं पाया |
मैं पहली बार इस तरह का कोई खाने का आइटम देख रहा था | वैसे तो सभी तरह की मिठाइयों की जानकारी थी , लेकिन इसे देख कर मेरे मन में शंका पैदा हुई कि कहीं यही तो ढोसा नहीं है, जो मेरे लिए आना बाकी है |
मुझे मन ही मन यह सोच कर घबराहट होने लगी, क्योकि खाना तो मैं खा चूका था, वो भी बिलकुल टाइट | अगर सचमुच में यही चीज़ आ गयी तो मैं क्या करूँगा | मुझे सोच कर ही चेहरे पर पसीने की बुँदे नज़र आने लगी |

मैं आँख बंद कर भगवान् से प्रार्थना करने लगा … हे भगवान्, जो बगल वाला खा रहा है वह ढोसा नाम का व्यंजन ना हो | तभी मेरे टेबल पर प्लेट रखने की आवाज़ हुई, और मेरी आँखे खुल गई | मैंने देखा तो वही चीज़ मेरे सामने रखा हुआ है |
लोग ढोसा खा कर खुश हो रहे थे और मैं उसे देख कर दुखी हो रहा था , क्योकि उसे खाने के लिए पेट में जगह ही नहीं थी और बिना खाए उठ नहीं सकता था | क्योकि लोग समझेंगे कि बिलकुल देहाती है |
मरता क्या न करता … मैं धीरे धीरे पूरा ढोसा खा गया, हालाँकि उसको खाने में मुझे पुरे आधा घंटा लगे |
इज्जत बचाने के चक्कर में पूरा ढोसा खा तो गया लेकिन अब समस्या थी कि पेट फुल कर फटा जा रहा था और मुझे अभी आधा किलोमीटर चल कर घर भी जाना था .|.
खैर किसी तरह मैं तो घर पहुँच गया और जब मेरी भाभी ने सारी कहानी को सुना तो वहाँ उपस्थित सबलोग ठहाका मार कर हँस पड़े और इतना हँसे कि हँसते हँसते सबों के पेट में बल पड़ गए |
मैं बस खिसियानी बिल्ली की तरह अपने चेहरे पर जबरदस्ती की हँसी ओढ़ कर हँसने वालों का साथ देता रहा |
मेरी जो दुर्दुसा हुई थी उसकी शब्दों में वर्णन करना मुश्किल है …आज भी जब मुझे ढोसा से सामना होता है तो वह घटना मेरे आँखों के सामने तैर जाती है ..
मेरा लिखना अभी समाप्त ही हुआ था , तभी घर का बना ढोसा सामने मेरे टेबल पर आ कर रखा गया है ….अब इसकी स्वाद के बारे में अगले ब्लॉग में बता पाउँगा ..तब तक के लिए……

इससे पहले की घटना हेतु नीचे link पर click करे..
BE HAPPY….BE ACTIVE….BE FOCUSED….BE ALIVE…
If you enjoyed this post, please like, follow, share and comments
Please follow the blog on social media …link are on contact us page.
Very good story.
LikeLiked by 1 person
धन्यवाद डिअर , कभी कभी छोटी छोटी घटनाओं को याद करके
मन को अच्छा लगता है और अपने आप तरोताजा महसूस करते है |
ऐसी बहुत सारी घटनाओं को कलमबद्ध करना चाहता हूँ |
LikeLike
Good morning Nice storySir jii
LikeLiked by 1 person
thank you dear …This is a real story of my childhood..
stay connected and stay happy..
LikeLike
Your memory is good and you can make good stories of even small incidents of your life.
LikeLiked by 1 person
Yes sir, sometimes small incidence of childhood gives us pleasurer
if that memories recalled. Thank you sir, for your nice comments..
LikeLike
Gd morning have a nice day sir ji
LikeLiked by 1 person
Thank you dear ..Good morning ..
Stay blessed..
LikeLike
संस्मरण को बहुत सुंदर अभिव्यक्त किया है👌🏼
LikeLiked by 1 person
बहुत बहुत धन्यवाद | आपके शब्द मेरा हौसला बढ़ाते है/
मैं आशा करता हूँ कि मेरे अन्य संस्मरण भी पसंद करेंगे /
LikeLike
🙏🏼
LikeLiked by 1 person
thank you.. stay connected and stay happy…
LikeLike
🙂
LikeLiked by 1 person
Thank you dear..
Stay connected and stay happy..
LikeLiked by 1 person