कोरोना के साइड इफ़ेक्ट

  आज मैंने पढ़ा

आज के इस ब्लॉग को लिखने का कारण ही कुछ अलग है |…कभी कभी हम कुछ ऐसी घटनाओ के बारे में पढ़ते है जो हमारे दिलो दिमाग पर छा जाता है और हम मन ही मन सोचने लगते है कि क्या ऐसा भी होता है ?

ऐसी ही एक घटना से रु ब रु हुआ, जब मैं शनिवार का समाचार पत्र पढ़ रहा था |

घटना कुछ यूँ है कि एक 75 साल के बुजुर्ग को मरा घोषित कर दिया गया और उसके डेड बॉडी को अच्छी तरह पुरे सावधानी से पैक कर के उनके घर वालों को सौप दिया गया |

चूँकि कोरोना के कारण उनकी  मौत हुई थी इसलिए घरवाले उस मरने वाले का मुँह भी नहीं देख सकते थे | मज़बूरी में  दुखी मन से जाकर जला  आये |

यह कैसा समय आ गया है कि मरने वाले का अंतिम क्षण भी दर्शन  नहीं कर सकते है |

फिर भी यह संतोष था कि लाश को तो उन्हें सौप दिया गया था, वरना करोना  से मरे व्यक्ति की लाश भी नहीं देते है सिर्फ उन्हें बताया जाता है कि आप के सम्बन्धी की मृत्यु हो गई है और सरकारी नियमानुसार उनकी अंतिम क्रिया कर दिया गया है |

श्री मुख़र्जी  बहुत भले इंसान थे | ज़िन्दगी में बहुत संघर्ष किया था और अपनी मेहनत  और लगन से अपने परिवार की जिम्मेवारी निभाते हुए अपने दोनों बच्चो को उच्च शिक्षा दी थी और उनके  दोनों बेटे अमेरिका में जॉब करने चले गए और करीब करीब वही सेटल कर गए थे |

बस साल में एक बार अपने वतन आते थे अपने पिता जी को देखने | माँ तो पहले ही गुज़र गई थी |

सिर्फ पिता जी थे, अपना मकान था जिसे बड़े अरमान से उन्होंने बनवाया था और उसे छोड़ कर बेटों के साथ जाने को तैयार नहीं थे |

घर में सभी सगे सम्बन्धी जमा हो चुके थे और श्राद्ध का काम चल रहा था | इस बीच उनके बेटों ने घर का भी सौदा कर लिया | अब जब अमेरिका में ही रहना है तो यहाँ पिता जी  के मरने के बाद इस घर को रखने का कोई मतलब नहीं था |

पंडित जी भी आ चुके थे और दशकर्म का काम चल रहा था | दान दक्षिणा भी मन से दिया जा रहा था |

बेटों  ने सोचा कि पिता जी की अंतिम क्रिया- कर्म खूब अच्छे से करेंगे ताकि लोग यह नहीं कह सके कि जिस बेटे को पढ़ा लिखा कर उच्च  सिक्षा दिलाई,  आज अपने पिता की क्रिया क्रम में कंजूसी कर दिया और अच्छे ढंग  से नहीं किया गया |

सच तो यह है कि आज चाहे जितना भी दिखावा कर ले,  ..लेकिनं सच्चाई यही थी कि जब बुढ़ापे में उनको इन बेटों की ज़रुरत थी तो करोना  से संक्रमित होने पर पड़ोसियों ने उन्हें हॉस्पिटल पहुँचाया था और सही देख भाल नहीं होने कारण वे चल बसे |

अपने मन में द्वंद लिए बच्चे एक तरफ आग में हवन  कर रहे थे तो दूसरी तरफ घर बिकवाने के लिए  दलाल भी पहुंचे हुए  थे |

तभी सामने गेट के खुलने की आवाज़ आयी और सभी लोगों की नज़र १०० गज दूर स्थित गेट पर पड़ी | उनलोगों ने देखा मुख़र्जी साहब गेट खोल कर अंदर चले आ रहे है |

देखने वाले को समझ नहीं आ रहा था कि यह हकीकत है या सपना | कुछ लोग अपने हाथों में चिकोटी  काट कर देखा कि वे सपना तो नहीं देख रहे है |

उनके खुद के बेटे को भी शंका हो रही थी कि उनके पिता जी जैसा दिखने वाका कोई और इंसान है , लेकिन यह पिता जी नहीं हो सकते है |

सभी लोग अपने अपने मन में सोच ही रहे थे तभी  पिताजी बिलकुल पास आ गए  | सब लोग अवाक होकर उनकी ओर शंशय की नज़र से देखे जा रहे थे |

तभी पिताजी ने कड़क आवाज़ में कहा…यहाँ  क्या हो रहा है ? और तुमलोग इस तरह मुझे घुर घुर कर क्यों देख रहे हो | तुमने तो हमें मरने के लिए हॉस्पिटल में छोड़ दिया था और कोई खोज खबर ही नहीं लिया |

वैसे मुझे अकेले रहने की आदत तो पड़  ही चुकी है इसलिए तुम्हारे हॉस्पिटल में नहीं आने पर मुझे कोई दुःख नहीं हुआ |

अब बेटे और दुसरे सम्बन्धी एक दुसरे की ओर देखते हुए बोल रहे थे कि जिसको हमने जलाया  था वह किसकी लाश थी |

बड़ा विकट  प्रश्न था,  कोई कैसे सोच सकता है कि  जिसके पिता जी जिंदा हो उसके बेटे अपने बाल  मुडवा कर उनका श्राद्ध कर्म उनके सामने ही कर रहा हो |

 अब इसके आगे जो कुछ भी उस परिवार और समाज में  घटित हुआ होगा उसके बारे में बस अनुमान ही लगाया जा सकता है ….

है न यह विचित्र बात …अजीबो गरीब घटना, मगर सत्य है !!!..आप की  क्या राय है .?  

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8 replies

  1. Good morning Nice stor ✌✌

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  2. Beautiful story.

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  3. Such types of incidents of mishandling of dead body of persons who died by Corona are true stories. Well written.

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