
आज जब मैं ब्लॉग लिखने बैठा हूँ तो अनायास ही अपनी बचपन की दुनिया में खो गया और बहुत सारी भूली बिसरी यादें आँखों के सामने तैरने लगी है |
उसी की कड़ी में एक और घटना का जिक्र यहाँ करना चाहता हूँ ..’
बात उन दिनों की है जब मैं “हाफ –पेंट” पहना करता था | मुझे महसूस होता था कि जब तक हाफ – पैंट पहन रखा है तब तक समझो बचपन है और फुलपैंट आया नहीं कि समझो अपना बचपन समाप्त हो गया |
फुल पैंट वाली उम्र में तो घर और समाज के बड़े लोगों के प्रभाव के कारण हम अपने आप को बदलने की कोशिश करने लगते है | वह स्वछन्द मुस्कान , वो चंचल मन को भूल कर दिखावे में विश्वास करने लगते है |
खैर, मेरी यादें मुझे ५० साल पीछे लेकर आ गया है | मैं था तो केवल दस साल का लेकिन सिनेमा देखने के ख़ास शौक़ीन था |
देवानंद की फिल्म जब परदे पर लगती तो उसे देखने की बेचैनी होने लगती | मैं देवानंद का जबरदस्त फैन था | उनके फिल्म देखने के लिए तरह तरह के युगत लगाता, देखने की कोशिश करता और अंत में सफल भी होता था |
लेकिन फिल्म देखने से पहले मुझे दो समस्याओ का सामना करना पड़ता था | …एक तो फिल्म देखने की इज़ाज़त घर से नहीं मिलती थी , अतः चोरी छुपे ही फिल्म देखना पड़ता था और दूसरी समस्या टिकट के पैसों की जुगाड की थी कि पैसे कहाँ से लाया जाए |
मेरे पास एक छोटी सी डायरी हुआ करती थी जिसमे देवानंद की सारी फिल्मो की लिस्ट होती थी और जब भी उनकी कोई फिल्म देखता , तो उसके आगे चिन्ह लगा देता था |

पटना के पर्ल सिनेमा हॉल में फिल्म “जॉनी मेरा नाम” लगा था | फिर क्या था, फिल्म देखने की दिल में बेचैनी होने लगी क्योंकि उसके गीत “बिनाका गीत माला” में सुनते थे जो बेहद प्यारे लगते थे |
दो सप्ताह बीत गए लेकिन अभी तक उस फिल्म को देखने का जुगाड नहीं हो सका था , या यूँ कहें कि टिकट के पैसों का इंतज़ाम नहीं हो सका था |
मैं रोज़ सुबह उठते ही पूजा घर में जाकर भगवान् की मूर्ति को सबसे पहले प्रणाम करता ,फिर दुसरे काम करता था , यह मेरी आदत थी |
एक दिन सुबह उठा और भगवान् के मूर्ति को प्रणाम कर ही रहा था कि मुझे भगवान् की मूर्ति के पास एक रूपये का नोट दिखाई पड़ा, और उसे देख कर अचानक मेरे मन में उस फिल्म को देखने की इच्छा जाग उठी |
फिर क्या था, उन दिनों भगवान् से कम ही डरता था अतः हिम्मत करके मैंने पैसे को उठाया और अपने पॉकेट में डाल दिया |
जब पॉकेट में पैसे आ गए तो मोर्निंग शो (12 से 3 ) देखने का मन ही मन प्लान भी बना लिया |
सोचा सब्जी लाने के बहाने घर से निकल जाऊंगा और लौटते वक़्त शाम तक सब्जी लेता आऊंगा | किसी को शक भी नहीं होगा कि मैंने फिल्म देखा है |
प्लान एकदम फुल-प्रूफ बनाया था और इसकी जानकारी दोस्तों को भी नहीं थी |
सुबह सुबह सब्जी लाने का काम मुझे सौप दिया गया और मैं सब्जी का थैला कांख में दबाए घर से निकल कर सीधा दानापुर रेलवे स्टेशन चला गया | संयोग से ट्रेन भी तुरंत आ गई और मैं 11 बजे वाला पैसेंजर ट्रेन पकड़ किया |
ट्रेन का टिकट कटाने का सवाल ही नहीं था क्योकि पैसे सिर्फ फिल्म के टिकट के थे | वैसे भी रेलवे की सम्पति को खुद की ही सम्पति समझता था |
हाफ पैंट और साधारण सा टी शर्ट पहना हुआ था ताकि किसी को शक ना हो कि मैं पटना फिल्म देखने जा रहा हूँ |
ट्रेन में भीड़ नहीं थी , क्योकि ऑफिस जाने वाले नौ बजे वाली सटल से ही चले जाते थे | ट्रेन चलते ही मैं अपनी टाँगे फैला कर आराम से बैठ गया | एक स्टेशन के बाद ही हमें उतरना था | सिर्फ फुलवारी शरीफ में ही दो मिनट के लिए ट्रेन रूकती थी |

ट्रेन चलते ही थोड़ी देर के बाद अगले स्टेशन फुलवारी शरीफ में रुकी |
मैं आँखे बंद किये उस फिल्म की गानों को याद कर रहा था और उसके फिल्म के सीन की कल्पना में खोया हुआ था | मैं बिलकुल अपने मस्ती में अकेला बैठा था | तभी मुझे महसूस हुआ कि ट्रेन पाँच मिनट के बाद भी नहीं खुल रही है |
मुझे ट्रेन लेट होने से फिल्म छूटने का भी डर था इसलिए बेचैन होकर खिड़की के बाहर झांक कर देखने लगा कि किस कारण से ट्रेन इतनी देर से रुकी हुई है |
तभी ट्रेन के चारो तरफ मुझे पुलिस वाले दिखाई दिए | कुछ लोग अफरा – तफरी में ट्रेन से कूद कर भाग रहे थे ..कोई कह रहा था मजिस्ट्रेट चेकिंग है |
इसका मतलब है जिसके पास टिकट नहीं होगा उसे रस्सी से बांध कर पुलिस पकड़ कर ले जाएगी | मैं तो डर के मारे थर थर काँपने लगा | मुझे लगा कि ये लोग थाने में ले जाकर बंद कर देंगे फिर पता नहीं आगे क्या होगा |
मैं भगवान् को याद करने लगा और बोला …प्रभु मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई जो आप के रखे पूजा के पैसे चुरा लिया | अभी मैं कसम खाता हूँ कि आज के बाद कभी भी ज़िन्दगी में चोरी नहीं करूँगा |

शायद भगवान् को दया आ गई और उन्होंने मुझे एक युक्ति सुझा दी |
मैं हिम्मत कर के अपनी सीट से चुप चाप उठा और आजे बढ़ कर देखा तो एक दम्पति , पति-पत्नी सीट पर बैठे हुए मुंगफली खा रहे है |
मैं उनके बगल में जाकर धीरे से बैठ गया, जैसे कि मैं भी उनके साथ हूँ | थोड़ी ही देर में दो हट्टा – कट्टा पुलिस वाले आये और डंडे दिखा कर सभी के टिकट दिखाने को कह रहे थे ..उनके ठीक पीछे एक स्मार्ट सा काला चश्मा लगाए मजिस्ट्रेट भी था जो चश्मे के भीतर से सभी कुछ देख रहा था |
संयोग से वहाँ जितने लोग बैठे थे सबों के पास टिकट थे , मुझे छोड़ कर |
जब मजिस्ट्रेट ने मेरे पास वाले दम्पति से टिकट पूछा तो उसने कहा …मेरे पास रेलवे पास है | उसे रेलवे कर्मचारी समझ कर पुलिस वाला आगे बढ़ गया और मुझे भी उनके साथ जान कर कुछ नहीं पूछा | मैं तो दूसरी तरफ मुँह घुमाये खिड़की से बाहर देख रहा था ताकि उससे नज़रे नहीं मिले |
खैर , वह आगे गया और वहाँ उसे एक आदमी बिना टिकट के मिल गया |
उन दोनों पुलिस वालों ने मेरी आँखों के सामने उसके कमर में रस्सा बाँध कर उसको लेते हुए ट्रेन से नीचे उतर गए |
मुझे जाड़े में भी पसीने चल रहे थे, खतरा अभी भी टला नहीं था क्योंकि ट्रेन अभी भी रुकी हुई थी |
मैं मन ही मन हनुमान चालीसा पढ़ रहा था | भुत पिचास निकट नहीं आवे की जगह…मजिस्ट्रेट साहब निकट नहीं आवे बोल रहा था |
और जैसे ही ट्रेन स्टार्ट हुई मैंने राहत की सांस ली और आगे बिना किसी परेशानी के सिनेमा हॉल पहुँच गया |
जॉनी मेरा नाम का वो गाना …”वादा तो निभाया” …मैं वो गाना घर पर आकर भगवान् को सुनाया |
भगवान् ने मुसीबत से मुझे निकाल कर अपना वादा निभाया और उसके बाद आज तक मैं चोरी नही करने का अपना वादा निभा रहा हूँ |,,,,

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Bit gaya wow jamana. Mera bhi yaad aati hai.Kahani to nahi, hakikat hai. Aap usme rang Diya. Bahut sundar.
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Thank you dear. You are correctly said….old memory got refreshed ..
Stay connected and stay happy…
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Mr. Verma sir
एक tech blogger होने के नाते मेरा हक़ बनता हैं की मै आपको सलाह दु
अगर आप हिन्दी में ब्लॉग करते हैं, तो हिन्दी में ही करे
अगर english में कर रहे हैं, तो english में ही करे
अगर दोनो को मिक्स करेंगे तो, आपके traffic पर शोर्ट पड़ेगा
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Yes , you are right . but give me some suggestions to popularize my Blog..
Thank you dear..
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Well recounted interesting incident from your youth life.
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Sometimes these type of old memories recounted ,
that keeps me smiling and just shared..
Thank you sir..
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😂😂😂🤣🤣मज़ा आ गया बचपन ऐसा ही मज़ेदार होता है
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जी, बचपन के पल तो मजेदार होते ही है और उन पलों को याद कर आज भी
उन पलों को जीने की चाहत होती है |
बहुत बहुत धन्यवाद | आपके शब्द मेरे लिए बहुत कीमती है ..इससे मुझे कुछ अच्छा
लिखने की प्रेरणा मिलती है |
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