ज़िन्दगी तेरी अज़ब कहानी-…9

अंजना को कोर्ट परिसर से जाते हुए उसके चाचा-चाची देख रहे थे | उनलोगों को गुस्सा आ रहा था कि अंजना के  कारण उनलोगों को कोर्ट का चक्कर लगाना पड़  रहा है और साथ ही साथ आश्चर्य भी हो रहा था कि वह इतनी मशहूर और ठाठ – बाट की ज़िन्दगी कैसे जी रही है |

आज करीब  तीन सालों  के बाद उन्होंने अंजना को देखा था | चाची ने सोचा था कि वह कही जाकर आत्महत्या कर ली होगी, लेकिन आज तो अंजना उनके लिए सिरदर्द बन कर सामने प्रकट हो गई है  | लगता है मुसीबत के दिन आने वाले  है |

इधर कोर्ट केस वाली खबर को पत्रकारों ने एक कहानी बना कर समाचार पत्र में प्रकाशित कर दिया जिसके कारण सारी दुनिया को हकीकत का पता चल गया | समाचार पत्र के माध्यम से ही विजय को भी अंजना और उसके  साथ हुए धोखे का पता चला |

विजय तो शादी के बाद ही दुसरे शहर में शिफ्ट कर गया था क्योकि उसकी कम्पनी ने वहाँ एक नयी ऑफिस खोली थी जिसका इंचार्ज विजय को बनाया था |

विजय को तो  विश्वास ही नहीं हो रहा था कि अंजना की चाची अपनी बेटी निर्मला का  भविष्य बनाने के लिए उसकी  और अंजना की ज़िन्दगी बर्बाद कर देगी  |

वह मन ही मन  सोच रहा था कि  कोई अपनी भतीजी के साथ  ऐसी घिनौनी हरकत कैसे  कर सकता है ? लेकिन हकीकत तो यही था /

 विजय को   काफी गुस्सा आ रहा था | उसे अपनी सास से ही नहीं बल्कि निर्मला से भी नफरत हो गई | वह निर्मला से कटा – कटा सा रहने लगा | उसे महसूस हो रहा था कि निर्मला के लिए ही उसकी सास ने धोखे से विजय की शादी अपनी बेटी से करवा दी , जिसके कारण अंजना की ज़िन्दगी बर्बाद हो गई |

विजय के इस तरह के व्यवहार से निर्मला परेशान रहने लगी और  पूरी बात की जानकारी होने के बाद निर्मला को भी अपनी माँ पर बहुत गुस्सा आ रहा था | उसे महसूस होने लगा था कि इस तरह के माँ की इस षड़यंत्र से  ना  सिर्फ अंजना की ज़िन्दगी बर्बाद  हुई बल्कि मेरी और विजय की ज़िन्दगी भी तबाह हो रही है  |

शादी ब्याह तो प्यार और विश्वास पर ही टिका रहता है और अगर विश्वास की जगह झूठ और धोखा आ जाये तो वह सम्बन्ध ज्यादा दिन तक टिका नहीं रह सकता है |

निर्मला को महसूस होने लगा कि अब विजय उसकी ओर ध्यान नहीं दे रहा है तो वह बेचैन रहने लगी |

उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि इस समस्या का समाधान कैसे निकाला  जाये , तभी उसके मन में विचार आया कि अंजना से  मिलकर अपनी समस्या को बताएं,  शायद वह अपनी इस बहन को माफ़ कर दे  और कोई न कोई  समाधान निकालने  में मदद करे |

निर्मला ऐसा सोच कर विजय से कहा…मैं कुछ दिनों के लिए माँ के पास जाना चाहती हूँ  |

उसकी बात को सुनकर विजय समझ गया कि निर्मला को पूरी बात की जानकारी है इसीलिए वह अपनी मायके जाना चाहती है |

उसने निर्मला  से कहा …अगर तुम माँ के पास जाना  चाहती हो तो मुझे कोई आपति नहीं है |

विजय के ऐसे रूखे व्यवहार से उसे बहुत दुःख हुआ और वह अकेली ही अपनी माँ के पास चली आयी |

आज कोर्ट में गहमा गहमी थी | चाचा चाची कोर्ट में पहुँच चुके थे क्योकि आज  ही  कोर्ट की तारीख थी |

निर्मला भी उनलोगों के साथ कोर्ट रूम में बैठी थी | उसे अंजना के आने का इंतज़ार था, उसने सुन रखा था कि अंजना में बहुत परिवर्तन  आ चूका है | वह दुखी और सतायी हुई महिलाओं की मसीहा बन चुकी है | आज मैं भी उससे मिलकर अपने इस मुसीबत का निवारण करने का अनुरोध करुँगी |

निर्मला   वहाँ  कोर्ट रूम में बैठी मन ही मन यह सब सोच रही थी तभी  उसने देखा कि अंजना भी अपने सेक्रेटरी के साथ वहाँ पहुँच गयी  और एक तरफ बैठ कर अपने वकील को कुछ समझा रही है | वह काफी व्यस्त लग रही थी और दूसरी तरफ बैठी निर्मला को  नहीं देख पा रही थी |

 जज साहब  भी अपने समय पर स्थान ग्रहण कर लिए और  कोर्ट की कार्यवाही शुरू हो गयी |  चाची पक्ष के वकील ने एफिडेविट फाइल कर पैसो का बिस्तृत व्योरा प्रस्तुत किया |

दोनों पक्षों ने अपने अपने दलील रखे और अंत में जज साहब ने आदेश दिया कि प्रस्तुत खर्चे का ब्यौरा के अनुसार जो चालीस लाख रूपये निकल रहे है उसे सात दिनों  के अन्दर कोर्ट में जमा कराया जाए  ताकि उसे अंजना को  वापस किया जा सके | भुगतान न  करने की स्थिति  में सजा का प्रावधान है |

कोर्ट का आदेश सुनकर चाचा –चाची काफी घबरा गए, क्योकि हकीकत तो यही थी कि बहुत सारे पैसे निर्मला की शादी में खर्च हो चुके थे और इतने पैसे कोर्ट में जमा करने में असमर्थ थे |

उनके वकील ने दलील दी कि इतने कम समय में पैसों का इंतज़ाम करना संभव नहीं है,  मुझे कम से कम एक साल का मोहलत दिया जाए |

इस पर जज साहब ने कहा …इतने दिनों की मोहलत कोर्ट से देना संभव नहीं है | हाँ, अगर आप दोनो पक्ष आपस में मिलकर  बात करें और शिकायतकर्ता अगर समय देने के लिए राजी हो जाए तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है  |

हम सात दिनों के लिए इस केस को स्थगित करते है …ताकि आप दोनों आपस में समझौता कर दोनों पक्षों के हस्ताक्षर से समझौता- पत्र  जमा करे | उसके बाद हम अपना आदेश दे देंगे |

 जज साहब इतना  कहकर अपने  आदेश को सुरक्षित रखा /उन्होंने  एक सप्ताह के बाद की तारीख नियत की  और कहा कि उस दिन मैं अपना फैसला सुनाऊंगा / इस तरह आज की कार्यवाही समाप्त हो गई  |

अदालत की कार्यवाही समाप्त होते ही अंजना हमेशा की तरह कोर्ट परिसर से बाहर  निकल कर अपनी कार की ओर जा रही थी तभी निर्मला दौड़ कर उससे पास आयी और कहा…अंजना, क्या तुम मुझे भी भूल गई ?…क्या मुझसे भी बात नहीं करना चाहती हो  |

मैं कितनी देर से तुम्हारा इंतज़ार कर रही थी लेकिन तुम तो मुझसे बिना मिले ही  भागी जा रही हो |  मैं अब जान  चुकी  हूँ कि मेरे माँ – बाप ने तुम्हारे साथ बहुत ज्यादती की है और तुम्हारा गुस्सा होना स्वाभाविक ही है, बोलते बोलते निर्मला  रोने लगी |

पर, तुम ही  बताओ अंजना  ….इसमें मेरा क्या कसूर है ?

आज न  सिर्फ समाज में चारो तरफ मेरी बदनामी हो रही है बल्कि विजय ने भी मुझसे बात करना छोड़ दिया है और मुझे पत्नी के दर्जे से नीचे धकेल दिया है |

आज मेरी ज़िन्दगी फिर उसी चौराहे पर खड़ी  है जहाँ तीन साल पहले तुम्हारी थी | अब तो मेरे पास आत्महत्या करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है | अब तुम्ही बताओ मैं क्या करूँ. |

तुम तो समाज में सताई हुई और दुखियारी औरतों की मदद करती हो और उसे ज़िन्दगी ज़ीने की हिम्मत देती हो .. बताओ, तुम मेरी  भी मदद करोगी क्या ?

अचानक  निर्मला की ऐसी बातों को सुन कर अंजना ठिठक गई और कुछ सोचते हुए  कहा ….निर्मला , अभी इतने लोगों के सामने इस विषय पर बात करना उचित नहीं है |  तुम आज शाम  मेरे ऑफिस आ जाओ , वही हमलोग इत्मीनान से बातें करेंगे |

इतना बोल कर वह अपने कार में बैठ कर चली गयी |  अंजना की ऐसी लोकप्रियता और ठाठ -बाट देख कर निर्मला आश्चर्यचकित बस  उसे जाते हुए देखती रही ….(क्रमशः ).

ज़िन्दगी ख्वाब है या ख्वाब है ज़िन्दगी

अपनों से होती है या सपनो से होती है

एक सवाल था ज़िन्दगी, ..एक सवाल है ज़िन्दगी …

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Categories: story

11 replies

  1. Nice story with nice arts.

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  2. Bhut hi Achi story hi Dil ko Chu c gai☺️

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  3. Reblogged this on Retiredकलम and commented:

    आँखों में ख़ुशी , लबों पर हँसी , गम का कहीं नाम न हो ,
    हर सुबह लाये , आपके जीवन में इतनी खुशियाँ , जिसकी कभी शाम न हो,

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