ज़िन्दगी तेरी अज़ब कहानी …6

अंजना कॉफ़ी – हाउस से वापस अपने घर आ गई और अपने चाची को दिए हुए वचन के अनुसार विजय को अपनी छोटी बहन निर्मला से शादी करने के लिए राज़ी भी कर लिया |

लेकिन ऐसा करने में जाने कितनी पीड़ा का अनुभव हो रहा था ..यह तो सिर्फ भगवान् ही जान रहा था | उसने क्यों मुझे अभागिन बना कर इस धरती पर भेजा है  | अंजना इस सब बातों को सोचते हुए अपने तकीए में मुँह छिपा कर रोने लगी |

अंजना ऐसी परिस्थिति से गुज़र रही थी कि वह अपने आँसू भी किसी को नहीं दिखा सकती थी क्योकि उसने हालात से मजबूर होकर स्वयं ही विजय के हाथ को निर्मला के  हाथों में सौप दिया था |

अंजना के कमरे में सन्नाटा था और सिर्फ उसकी सिसकियों की आवाज़ सुनाई दे रही थी |

तभी चाची चाय लेकर उसके कमरे में आयी और अंजना को प्यार से उठाते हुए कहा….लो बेटी,  चाय पी लो | चाय पीने  से मन हल्का हो जायेगा |

मुझे पता है …विजय को निर्मला से शादी के लिए राज़ी कर तुमने कितना बड़ा बलिदान किया है | मैं इसके लिए तुम्हारा  कृतज्ञ  रहूंगी |

अंजना ने कोई ज़बाब नहीं दिया और चाची के हाथ से चाय लेकर पीने  लगी |

थोड़ी देर दोनों खामोश रहे,  फिर चाची ने अंजना से कहा …सोचती हूँ कि अब निर्मला की शादी की तैयारी शुरू कर दूँ | वो भी कल अपने नानी के यहाँ से आ रही है | उसके गहने और कपडे तुम्हारी पसंद से ही लुंगी |

अंजना चाची की बात चुप चाप सुनती रही लेकिन कुछ भी ज़बाब नहीं दिया |  चाची के जाते ही वह बिस्तर से उठ कर अपने  स्टडी टेबल पर बैठ गई और मन ही मन सोचने लगी कि अब मैं इस घर में नहीं रह सकती | क्योकि जब भी मैं इस घर में विजय और अंजना को साथ साथ देखूँगी तो मुझे इर्ष्या होगी और मैं तिल तिल मरती रहूँगी |

मुझे अब बैंक की नौकरी या कोई और  नौकरी ज़ल्द से ज़ल्द ज्वाइन करनी होगी तभी मैं शांति से जी सकुंगी |

टेबल पर बिखरे अपने किताबों और नोट्स को एक जगह किया ताकि नौकरी को तैयारी seriously  की जा सके |

उधर  विजय के घर में ख़ुशी का माहौल था,  सभी लोग  खुश थे सिर्फ विजय को छोड़ कर | विजय ने  माँ से अपनी शादी निर्मला से करने की हामी तो भर ली थी लेकिन मन से वह खुश नहीं था |

विजय के मान जाने से माता – पिता दोनों बहुत खुश थे और इसका सारा श्रेय अंजना को दे रहे थे |

आज सुबह सुबह अचानक विजय की माँ इस खुश खबरी को  देने के लिए अंजना के घर आ गई |

यह सोच कर  चाची खुश हो गई कि अब हमलोग शीघ्र ही आपस में रिश्तेदार बन जायेंगे .|

दोनों एक दुसरे को देख कर ख़ुशी का इज़हार किया |

तभी विजय की माँ ने पूछा …अंजना कहाँ है ?

वो अपने कमरे में पढाई कर रही है …चाची ने जबाब दिया |

विजय की माँ धीरे से अंजना के कमरे में पहुँची और  तभी अंजना की नज़र उन पर पड़ी | वह उठ  कर उनका पैर छू लिए | विजय की माँ ने खुश रहने का आशीर्वाद भी दे दिया |

वो अंजना के पास ही बैठते हुए, प्यार से उसके सिर पर हाथ रखते हुए कहा …मैं तुम्हारी आभारी हूँ अंजना कि तुमने अपने दिल पर पत्थर रख लिया और इतना बड़ा बलिदान कर दिया | तुम्हारे कहने से ही विजय मेरी बात पर राज़ी हुआ है |

हालाँकि मैं तुम्हे ही अपनी बहु बनाना चाहती  थी  लेकिन पंडित जी की बात सुन कर तुम दोनों को मुसीबत  में नहीं डाल सकती थी |

अंजना सुनी नज़रों से उनको  देखती रही …और बस इतना कहा.. आप  सब लोगों को मैं दुखी नहीं देख सकती  |

तभी चाची भी मिठाई लेकर आ गई और कहा… इस  ख़ुशी के मौके पर मुँह मीठा कीजिये..

चाची की बात रखने के लिए अंजना ने भी मिठाई का एक टुकड़ा अपने मुँह में रख लिया | लेकिन वह मिठाई का स्वाद भी इस समय नीम जैसा कड़वा लग रहा था |

अंजना  किसी तरह अपने मन  की व्यथा को मन में ही दबा रही थी , शायद वह नहीं चाहती थी कि उसके  मन  की तकलीफ उसके चेहरे पर दिखाई दे |

थोड़ी देर के बाद वे लोग चले गए और अंजना अपने कमरे में अकेली रह गई | वह अपना  ध्यान पढाई पर लगाने की कोशिश कर रही थी लेकिन बार बार उसका ध्यान भटक जाता था और बस एक ही प्रश्न उसके मन में उठ रहा था …भगवान् सिर्फ उसके साथ ही अन्याय क्यों करता है |

उसने  अपने टेबल पर रखे माँ दुर्गा की तस्वीर को देख कर बोली….माँ, मैंने तो अपनी प्यार की कुर्बानी दे दी | लेकिन आप बार बार मेरी ही परीक्षा क्यों लेती हो माँ |

माँ तो अपने बच्चो की रक्षक होती है | उसे आज अपनी माँ की बहुत याद आ रही थी और याद आ रही थी उसके वो  बचपन के दिन जब माँ उसके सिर पर प्यार से हाँथ रखती थी, तो वह अपने को दुनिया का सबसे खुशनसीब बेटी समझती थी |

खैर, भगवान् चाहे जितनी भी परीक्षा ले , मैं हर परीक्षा में सफल हो कर दिखाउंगी |

आज की नारी अब अबला नहीं रही , वह हर चुनौती को स्वीकार कर ज़िन्दगी में आगे बढ़ेगी |

उसने मन ही मन प्रण किया कि सबसे पहले नौकरी ज्वाइन करेगी | अपने  मिहनत और लगन से अपना एक अलग मुकाम हासिल करेगी |

समय अपने गति से चल रही थी , और  उसकी छोटी बहन अंजना की शादी की तैयारी जोर शोर से चल रही थी | अब सिर्फ एक सप्ताह ही रह गया था उसकी शादी में |

आज सुबह अंजना जब सो रही थी तो किसी ने झकझोर कर जगाया | वह हड्बडा कर आँखे खोली तो देखा … छोटी बहन निर्मला सामने खड़ी  थी | वह उठ कर उसे गले लगा लिया और पूछी … तुम कब आयी निर्मला ?

बस,  अभी आ रही हूँ अंजना | निर्मला उसी के पास बिस्तर पर बैठ गई और बातें करने लगी | निर्मला को चाय पीने की इच्छा हुई और उसने माँ को आवाज़ लगा दी….थोड़ी ही देर में चाय आ गई और दोनों बहने चाय पीने लगे |

चाय पीते हुए निर्मला ने अचानक से पूछ लिया …अंजना , तुम तो विजय से शादी करना चाहती थी ,फिर अचानक यह कैसे हो गया ?

अंजना ने कहा ….पंडित जी के अनुसार, .हमारी कुंडली नहीं मिली |  उनका कहना था कि बहुत भारी ग्रह है  और शादी का योग नहीं बन रहा था |

लेकिन ग्रह को शांत करने का कोई उपाय तो बताया होगा पंडित जी ने …..निर्मला उत्सुकता से पूछ बैठी | वह हकीकत जानना चाहती थी |

उसकी बात सुन कर अचानक अंजना के मन में भी यह सवाल पैदा हो गए कि उस पंडित से चाचा चाची ने ग्रह को शांत करने का कोई उपाय क्यों नहीं पूछा | कही ऐसा तो नहीं कि चाची ने कोई षड़यंत्र किया है |अंजना के मन में शंका घर कर गई |

लेकिन अब शादी में चार दिन ही शेष रह गए  थे है, और सभी तैयारियां पूरी हो चुकी थी  |

इसलिए अपने मन को शांत कर बोली… अब इस सब बातों का कोई फायदा नहीं है निर्मला | मैं तो चाहती हूँ तुम दोनों खुश रहो |   

स्नान करके अंजना जब अपने कमरे में आयी तो अचानक उसकी नज़र स्टडी टेबल पर रखे  शादी के कार्ड पर पड़ी  |  शादी का कार्ड  छप चूका था | उसने कांपते हाथों से उस कार्ड को खोला जिसमे विजय और निर्मला के नाम थे | वह कार्ड को ज़ल्दी से बंद कर दी और अपनी आँखे मूंद ली |

तभी दौड़ती हुई निर्मला उसके कमरे में आई और उससे कहा …तुमने शादी के कार्ड देखे ? तुम्हे कैसे लगे ?

अंजना उसकी ओर देखते हुए उदास मन से  कहा … बहुत अच्छा है |

उसकी इस तरह की उदासी देख कर निर्मला को कुछ अजीब लगा | उसने तुरंत पूछी…अंजना, क्या तुम मेरी  शादी से खुश नहीं हो ?

नहीं नहीं , ऐसी कोई बात नहीं है | मैं ने  भी तो तुम्हारी शादी की सहमती दी है | वह अपने दुःख को निर्मला से  छुपा ली |

मेरे साथ धोखा तो उनलोगों ने किया

जिन्होंने अपना होने का दावा सबसे ज्यादा किया था ..

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Categories: story

3 replies

  1. Story progressing nicely but in a predictable way. Hope there are some twists and turns in.the story going forward.

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  2. Reblogged this on Retiredकलम and commented:

    चाहने से हर चीज़ अपनी नहीं होती,
    हर मुस्कराहट ख़ुशी नहीं होरी..
    अरमान तो बहुत होते है मगर,
    कभी वक़्त तो कभी किस्मत अच्छी नहीं होती …

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