
मुझे मालूम था कि लौट के अकेले ही आना है
फिर भी तेरे साथ चार कदम चलना अच्छा लगा
अनामिका को राजीव कल करीब दो सालों के बाद अचानक जमशेदपुर के उस मॉल में मिला था | उसे देख कर एक सुखद अनुभूति हुई थी लेकिन तुरंत ही उसका मन दुःख के सागर में डूब गया था, जब राजीव के साथ एक औरत दिखी थी |
उन दोनों को देख कर उसे पूरा यकीन हो गया था कि वह औरत उसकी पत्नी ही थी |
लोग कहते है ना कि जो आँखों से दिखाई पड़ता है वह हमेशा सच नहीं होता, पता नहीं क्यों अनामिका को अब भी ऐसा लगता था कि राजीव के साथ वह औरत शायद उसकी कोई रिश्तेदार या उसके दोस्त की बीवी होगी |
वह भगवान् से दुआ करने लगी कि यही सच हो वर्ना उसके अरमान और सपने सब कुछ टूट कर बिखर जायेंगे |
सुबह के आठ बज चुके थे और अनामिका बिस्तर पर लेटे – लेटे इन्ही सब बातों में खोई थी तभी उसे ख्याल आया कि रश्मि को फ़ोन कर के इसकी सच्चाई का पता लगाया जाए और फिर उसने रश्मि को फ़ोन लगा दिया |
हेल्लो अनामिका .., इतने दिनों के बाद फ़ोन किया, तुम कैसी हो ?….रश्मि फ़ोन पर बोल रही थी |
मेरा कुछ ठीक नहीं चल रहा है …अनामिका दुखी स्वर में कहा |
मैं समझ रही हूँ कि तुम क्या कहना चाह रही हो | अभी मैं पटना अपने घर आयी हुई हूँ | यहाँ आने पर पता चला कि राजीव की शादी हो गई है …रश्मि अनामिका को हकीकत बता दी |
अब अनामिका के पास इस हकीकत पर विश्वास करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था |
वह आँखे बंद किये इस सदमे को बर्दास्त करने की कोशिश कर रही थी |
अब सिर्फ रोने से ज़िन्दगी नहीं चलेगी | अनामिका बिस्तर में लेटे हुए सोचने लगी और फिर एकदम से उठी और अपने आप को संभाला |

सबसे पहले अपने मन में किये हुए फैसले के अनुसार एक पत्र हॉस्पिटल के नाम लिखी ..जिसमे अपने निजी कारणों का हवाला देते हुए नौकरी छोड़ने की बात कही गई थी |
अनामिका का दिल मानने को तैयार नहीं था कि राजीव इस तरह मुझे धोखा भी दे सकता है | आखिर उसकी क्या मज़बूरी रही होगी कि इतना बड़ा अपने ज़िन्दगी का फैसला कर लिया | अगर कोई मज़बूरी थी तो मुझे एक बार इसकी जानकारी तो देनी ही चाहिए थी |
खैर जो हकीकत है उसे स्वीकार तो करना ही पड़ेगा | अब राजीव के बारे में सोचने से कुछ लाभ नहीं होने वाला है | अनामिका ने अपने मन को मज़बूत बनाने का फैसला कर लिया |
वैसे भी मनुष्य की छोटी सी ज़िन्दगी है… उसे दुखी रह कर और रो कर क्यों ख़राब किया जाये |
अब उसे अपने ज़िन्दगी का अहम फैसला करना ही पड़ेगा ताकि ज़िन्दगी को एक नयी दिशा दी जा सके | तभी उसके दिल में ख्याल आया ..
हर किसी को यहाँ मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता ,
किसी को ज़मीं नहीं मिलती ..किसी को आसमां नहीं मिलता |
अब जो कमी है ज़िन्दगी में उसे तो स्वीकार करना हो होगा और फिर ज़िन्दगी की गाड़ी को सही रास्ते पर लाना ही होगा |
अनामिका अब इन सब प्यार मोहब्बत की बातों से तंग आ चुकी थी, इसलिए उसने मन ही मन फैसला ले लिया कि अब मैं सारी ज़िन्दगी शादी नहीं करुँगी और आगे कि अपनी बची हुई ज़िन्दगी बेबस और लाचार लोगों की सेवा में लगा दूंगी |
मेरे पास जो भी हुनर है उससे ज्यादा से ज्यादा लोगों की भलाई तो कर ही सकती हूँ. |
अनामिका हॉस्पिटल की नौकरी छोड़ कर अपने गाँव वापस आ गई और यहाँ आकर अपने मन में फैसला किया कि वह अपने इस गाँव में ही एक हॉस्पिटल बनाएगी जहाँ बेबस और लाचार लोगो को मुफ्त में इलाज़ किया जायेगा |
उसके रहने और खाने पिने की भी व्यवस्था मुफ्त में की जाएगी | उसके पास जो भी धन दौलत है उसे हॉस्पिटल को बनाने में और उसके रख – रखाव में लगा देगी |

अब यह सब धन दौलत उसके किसी काम के नहीं रहे |
जब पिता जी को यह बात पता चला कि अनामिका शादी नहीं करना चाहती और सारी उम्र लोगों की सेवा में लगा देगी तो वे बहुत दुखी हो गए |
उन्होंने अनामिका से पूछा … अनामिका , तुम्हारी माँ बता रही थी कि तुम ज़िन्दगी भर शादी नहीं करना चाहती हो ?
जी पिताजी, मेरा यही फैसला है …अनामिका अपने दृढ निश्चय को बता दिया |
आखिर क्यों ? तुम एक सुन्दर पढ़ी लिखी लड़की हो | तुम्हारे पास किसी चीज़ की कमी नहीं है | तुम जो चाहो वह अपनी ज़िन्दगी में हासिल कर सकती हो ….पिताजी ने उसे समझाते हुए कहा |
एक सपने के टूटने से ज़िन्दगी मर नहीं जाती परन्तु उसे आसान बनाने के लिए कुछ कठिन फैसले लेने ही पड़ते है…अनामिका बिना झिझक अपने मन की बात बता दी |
माँ और पिताजी दोनों हर तरह से समझाने की कोशिश कर रहे थे | उन्होंने इतना तक कहा कि भावना में आकर गलत फैसला कर रही हो |
जब तक शरीर साथ दे रहा है तब तक तो ठीक है लेकिन जिस दिन शरीर लाचार हो जायेगा उस दिन पछताने के अलावा और कोई चारा नहीं रह जायेगा |
लेकिन इतना कुछ सुनने के बाद भी उसके फैसले अडिग थे और उसने सिर्फ इतना कहा ….मैंने जिस – जिस पर भरोसा किया सब ने मुझे धोखा ही दिया है | इसलिए अपने लिए कोई ख्वाहिश बची ही नहीं, तो घर बसा कर क्या करुँगी |
अनामिका के ज़बाब को सुनकर पिता जी को एक दम से सदमा लगा और वह चिंतित रहने लगे | उनको एक ही बात अन्दर ही अन्दर खाए जा रही थी कि अनामिका के ऐसी स्थिति का गुनाहगार मैं हूँ |
मैं ने सोचा था कि इतना धन दौलत है और एक ही बेटी है | पढ़ लिख कर एक कामयाब डॉक्टर बन कर मेरे खानदान का नाम रोशन कर रही है | उसकी शादी किसी बड़े घराने में कर दूंगा तो मेरी इज्जत प्रतिष्ठा और बढ़ जाएगी |
लेकिन मेरे एक गलती के कारण सब कुछ तबाह हो गया, मैं अपनी गलती पर अनामिका से माफ़ी भी नहीं मांग सकता हूँ | वे कुर्सी पर बैठे सोच ही रहे थे , तभी उन्हें चक्कर आ गया और वे कुर्सी से नीचे गिर पड़े |
संयोग से अनामिका घर पर ही थी | उसने तुरंत अपने पिता जी को उठाया और बिस्तर पर आराम से लिटा दिया | उसके बाद उनका इलाज किया और थोड़ी देर के बाद उनकी तबियत में कुछ सुधार हुआ |
उनका इलाज़ चलता रहा लेकिन दिन ब दिन वे कमज़ोर होते जा रहे थे | कोई भी दवा का उन पर असर नहीं हो रहा था / अंत में उन्होंने बिस्तर ही पकड़ लिया | अनामिका को समझ नहीं आ रहा था कि हर तरह के इलाज़ करने के बाद भी पिता जी के हालत में कोई सुधार क्यों नहीं हो रहा है |

वो पिता जी के पास ही चिंतित होकर बैठी थी और तभी उसके मन में विचार आया कि किसी दुसरे डॉक्टर से भी पिता जी को दिखा कर उसकी सलाह ली जाये |
ऐसा सोच कर वह पटना के एक बड़े डॉक्टर को फ़ोन लगा ही रही थी कि पिता जी ने उसके हाथ पकड़ कर फ़ोन करने से रोक दिया और कहा …कोई फायदा नहीं होगा अनामिका |
मेरा रोग अब लाईलाज बन चूका है | मुझ पर अब किसी दवा का असर नहीं होने वाला है |
ऐसा क्यों बोल रहे है पिता जी | मुझे इतना पढने का क्या फायदा होगा जब मैं अपने पिता की बिमारी को ना ठीक कर सकूँ ..अनामिका ने पिता की ओर देखते हुए कहा |
मैंने कुछ ऐसा किया है जो आज मेरे मन पर एक बोझ बन गया है ….और जो अन्दर ही अन्दर मुझे घुन की तरह खाए जा रही है |
ऐसी क्या बात हो गई पिताजी …अनामिका ने उत्सुकता से पूछा |
मैंने अपने बेटी के साथ ही धोखा किया है |
मुझे जब पता चला कि तुम राजीव से शादी करना चाहती हो तो मैंने सोचा था कि अपने से नीची जाती में तुम्हारी शादी करूँगा तो जात – विरादरी में हमारे परिवार की इज्जत प्रतिष्ठा समाप्त हो जाएगी |
इसलिए मैंने अपनी इज्जत और प्रतिष्ठा के लिए राजीव को तुमसे अलग करने का प्लान बनाया |
मैंने ही राजीव और उसके परिवार वालों पर दबाब डाल कर राजीव की शादी दूसरी जगह करवा दी थी |
मैंने सोचा था कि तुम्हारा राजीव के प्रति क्षणिक प्यार कुछ समय के लिए तो तकलीफ देगा | फिर कुछ दिनों तक रो धो कर फिर तुम सामान्य हो जाओगी |
इसीलिए तुम्हे आगे की पढाई के लिए अमेरिका भेजने पर राज़ी हो गया था ताकि तुम्हारे पीछे यहाँ मैं अपने मकसद में कामयाब हो सकूँ |
लेकिन मेरा सोचा हुआ प्लान सब उलट – पुलट हो गया | मैं अपने आप को इस बात के लिए दोषी मानता हूँ | मैं ही तुम्हारी ऐसी स्थिति का असली गुनाहगार हूँ |
मुझे यह बात अन्दर से बेचैन किये रहती है | दिल पर पड़े इसी बोझ और ग्लानी के कारण मेरी तबियत दिन ब दिन खराब होते जा रही है |
मुझे ऐसा महसूस हो रहा है कि मैं अब कुछ ही दिनों का मेहमान हूँ | मैं तुमसे अपने किए की माफ़ी मांगता हूँ बेटी…., हो सके तो मुझे माफ़ कर देना, ….कहते हुए उनके आँखों से आँसू बहने लगे |
इस राज की बात की खुलासे से अनामिका अवाक रह गई | अभी तक तो वह राजीव को ही दोषी मान रही थी और उस पर गुस्सा हो रही थी | लेकिन अब उसे महसूस हो रहा था कि राजीव तो बिलकुल निर्दोष है और सचमुच वह दया का पात्र है |
पहले तो पिता जी की बात सुन कर उन पर गुस्सा आया लेकिन उनकी ऐसी हालत को देख कर अनामिका ने अपने मन को समझाया कि इसमें पिता जी की नहीं बल्कि यह तो मेरी किस्मत का ही दोष है |
उसने अपने आँसुओं को काबू में किया और अपने पिता जी के आंसू पोछे और उनको यह एहसास दिलाया कि उसने उनकी गलती माफ़ कर दी है |
उसके होंठ अनायास ही बोल पड़े …वाह री किस्मत,.. तू भी क्या क्या खेल दिखाती है…(क्रमशः) ….

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तुम्हारा इंतज़ार है …9
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सीखना है तो गुलाब के फूल से सीखो ,
खुद टूट का दो इंसान को एक रिश्ते में जोड़ देता है |
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