
अनामिका , एक खुशमिज़ाज़ जिंदादिल और चुलबुली लड़की थी | अपनी सहेलियों में काफी लोकप्रिय और सबके चेहरे पर मुस्कुराहट लाने का हुनर था | उसमें गाँव के माहौल में रहते हुए भी खुले विचारों वाली थी इसीलिए उसके कुछ अलग तरह के शौक थे |
उसे दुसरी लड़कियों की तरह ,खाना बनाना या गुड्डे गुडियो का खेल और घरौंदा बनाने में रूचि नहीं थी बल्कि उसे डांस करना , गाना गाना जैसे hobby पसंद थे |
वह हमेशा खुश रहती थी और रहे भी क्यों नहीं, माँ बाप की अकेली संतान |
उसके पिता राजेश्वर सिंह गाँव के बड़े किसान, ऊँची जाति और धन की कोई कमी नहीं | जो कुछ भी फरमाईश करती पलक झपकते ही उसकी इच्छा को पूरा कर दिया जाता | अनामिका को ऐसा लगता कि उसकी जो भी इच्छा हो उसे वह पा सकती है |
समय जैसे पंख लगा कर उड़ रहा था, अनामिका देखते ही देखते बचपन की यादों को संजोये जवानी की दहलीज़ पर कदम रख चुकी थी |
उसके पिता राजेश्वर सिंह सुखी संपन्न थे | उन्हें किसी चीज़ की कमी नहीं थी | भगवान की दया से अच्छी खेती – बारी तो थी ही, घर में फूल कुमारी जैसी सुन्दर बेटी भी भगवान् ने दी थी |
अगर कुछ कमी थी तो इस बात की कि उनका गाँव भुसावल हर मायनों में पिछड़ा होने के साथ साथ बहुत ही खतरनाक इलाके में था | इस क्षेत्र में नक्सलवाद पनप रहा था |
गाँव कुछ इस तरह बदनाम था कि इस गाँव में कोई भी अपने बेटे या बेटी की शादी नहीं करना चाहता था |
कभी कभी इन्सान वक़्त के हाथों मजबूर हो जाता है | सोचता कुछ है और हो कुछ और जाता है |
अनामिका के स्कूल की गर्मियों की छुट्टी हो गई थी और इस साल अनामिका ने इन छुट्टियों में अपने मामा के यहाँ पटना जाने का फैसला किया और पिता जी मान भी गए |
सचमुच पटना का माहौल उसके गाँव के माहौल से बिलकुल भिन्न था | यहाँ बड़े बड़े मॉल, मार्किट , सिनेमाघर और बहुत से मनोरंजन के साधन भी थे |
गाँव के मुकाबले यहाँ इस शहर की चकाचौंध में अनामिका की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा | घर में भी सभी लोग उसे बहुत प्यार करते थे | खासकर मामी तो माँ से भी ज्यादा ख्याल रखती थी |

और उससे भी बड़ी बात कि मामा की लड़की रश्मि भी थी | वह उम्र में तो छोटी थी परन्तु वह उसकी ख़ास सहेली थी | दोनों का खेलना, खाना और मस्ती करना सब साथ साथ होता |
इसी तरह छुट्टी का एक महिना कैसे बीत गया , उसे पता ही नहीं चला |
इसी एक महिने में यहाँ रहने के दौरान अनामिका की मुलाकात राजीव से हुई | राजीव के पिता एक सरकारी दफ़्तर में क्लर्क थे और पड़ोस में ही किराये के मकान में रहते थे | राजीव उनकी इकलौती संतान था और उसके परिवार का इस घर में आना जाना था |
राजीव था तो बहुत ही शर्मीला परन्तु देखने में बहुत सुन्दर और पढने में भी तेज़ था |
अनामिका की उम्र जवानी में दस्तक दे चुकी थी और इस उम्र में किसी के प्रति आकर्षित हो जाना कोई अचरज की बात नहीं थी |
अनामिका छुट्टी बिता कर अपने मामा के पास से अपने गाँव आ गई , लेकिन वो कुछ गुमसुम रहने लगी थी | उसका किसी काम में मन नहीं लगता था |
उसे राजीव भा गया था और वह उससे मन ही मन प्यार करने लगी थी | लेकिन मुसीबत यह थी कि राजीव इन सब बातों से अनभिज्ञ था और उसका ध्यान ज़्यादातर पढ़ाई पर ही लगा रहता |
आपस में बातचीत तो बहुत होती लेकिन अनामिका को अपने मन की बात कहने की कभी हिम्मत ही नहीं हुई |
उस ज़माने में अगर किसी लड़की को कोई लड़का भा गया तो वह मन ही मन प्यार तो कर सकती थी परन्तु किसी को प्यार के बारे में बताने की हिम्मत नहीं कर पाती थी | क्योकि इसमें ना केवल उसका मजाक बनने का खतरा रहता था बल्कि उसके चरित्र पर भी उंगली उठने लगती थी |
और दूसरी बात कि पिता जी का भी डर मन में सदा बना रहता था |
तो बस प्यार को मन में रखो और बताओ भी मत | यह उम्र ही कुछ ऐसी थी कि ज्यादा प्यार के बारे में उसे पता नहीं था, बस ये था कि उसे राजीव पसंद है |
इधर राजीव इन सब बातों से अनभिज्ञ अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे रहा था | वो तो बस अपने कैरियर के प्रति काफी सजग था | उसे पढ़ लिख कर बड़ा इंजिनियर जो बनना था और अपने माँ बाप के बुढ़ापे का सहारा भी |

वह अक्सर सोचा करता कि मैं ही अपने परिवार का एक मात्र सहारा हूँ और वैसे भी पिता जी बहुत जल्द रिटायर होने वाले है | पिता जी को पूरी ज़िन्दगी गरीबी से संघर्ष करते देखा था |
इसलिए राजीव चाहता था कि अपने पिता को वो सभी सुख सुविधा दे ताकि उनका बुढ़ापा आराम से बीत सके |
राजीव की मेहनत रंग लाई और संयोग से राजीव को पटना के ही इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला मिल गया | परन्तु साथ ही साथ उसे होस्टल में शिफ्ट होना पड़ा था | होस्टल में रहना आवश्यक था क्योकि आगे की पढ़ाई के लिए काफ़ी मेहनत करनी पड़ेगी |
इधर अनामिका में काफ़ी परिवर्तन आ गया था | अब वह गंभीर रहने लगी और पहले की तरह हंसना-बोलना, सहेलियों के साथ खेलना कूदना सब कम हो गया था |
वो तो बस अकेले में चुप – चाप बैठ कर अपनी किताबों में खोई रहती और उदास दिखती थी | उसका पढ़ाई में भी मन नहीं लगता था |
अनामिका के मन में बस एक ही बात चल रही थी, मुझे राजीव बहुत पसंद है पर क्या वो भी मुझे पसंद करता है ? अगर उसने मुझे नापसंद कर दिया तो मैं यह सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाऊँगी | शायद पहला प्यार इसी को कहते है |
राजीव की बातों से तो कभी भी ऐसा नहीं लगता था कि वो भी मुझे चाहता है | वह तो बहुत ही कम और रुखा रुखा सा बात किया करता है, जैसे उसे प्यार व्यार में कोई दिलचस्पी ही ना हो |
लेकिन मुझे कोशिश नहीं छोडनी चाहिए …, अनामिका स्टडी टेबल पर बैठी सोच रही थी |
तभी उसके मन में इच्छा हुई कि ठीक है अगली बार उससे मिलूंगी तो साफ़ साफ़ लफ़्ज़ों में उससे अपने मन की बात कह दूंगी |
इधर अनामिका की माँ अचानक उसे इस तरह गुम सुम रहते हुए देख कर चिंतित होने लगी |
बहुत कोशिश करने के बाद भी इसका कारण उसे समझ में नहीं आ रहा था |

आज वह सुबह सुबह चाय लेकर अनामिका के पिता के पास आयी | दोनों चाय पी रहे थे तभी बातों बातों में अनामिका की माँ ने अपनी मन की बात बताते हुए कहा …आज कल पता नहीं क्यों, अनामिका कुछ गुम सुम रहती है | ना ठीक से खाती है और ना उसमे पहले जैसी चंचलता है |
अरे भाग्यवान, अब वो बच्ची नहीं रही अब उसकी उम्र धीर – गंभीर रहने की है | यह तो अच्छी बात है …….राजेश्वर सिंह ने अपनी पत्नी को समझाते हुए कहा ,
नहीं जी, मैं तो माँ हूँ | फिर भी उसके मन की बात नहीं जान पा रही हूँ ….अनामिका की माँ ने दुखी स्वर में कहा |
इसमें कौन सी बड़ी बात है | तुम सीधा उसी से पूछ लो …उन्होंने पत्नी की शंका का समाधान बताया |
आप ठीक कहते है, मैं अनामिका से ही इस मामले में सीधे बात करती हूँ | जब से वह मेरे भाई के घर से आई है तब से उसमें यह परिवर्तन देखने को मिल रहा है … वो चाय पीते हुए बोल रही थी |
अनामिका आज सुबह जब सो कर उठी तो अपने पिता को कहते सुना कि पटना में मामा जी के यहाँ पूजा है और उन्होंने सब लोगों को बुलावा भेजा है |
यह सुनकर अनामिका मन ही मन खुश हो गई क्योंकि वहाँ राजीव से फिर मिलने का मौका मिलेगा |
उसके चेहरे पर ख़ुशी के भाव देख कर माँ के दिल को तसल्ली हुई |
खेती के कामों में उलझे होने के कारण राजेश्वर सिंह को पूजा में शरीक होने की फुर्सत नहीं थी, इसलिए अनामिका को ही उसके मामा के यहाँ भेजने को पिता जी तैयार हो गए |
अनामिका तो यही चाहती थी | उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा | अचानक बुझी -बुझी सी रहने वाली अनामिका के चेहरे पर रौनक आ गई ….क्रमशः |

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Good storyline. Hope the story continues to be interesting going forward. You are becoming an expert in writing romantic stories.
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thank you sir, Reading these stories reminds us of our old days .
Don’t you think so ?..hahahahaha….
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Beautiful presentation. It’s perfectly an art . Pictures are also beautiful. Superb.
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Thank you so much. This is the story of a girl who spent her life in the well being of the society.
The story of a struggling girl. Hope you will enjoy .
stay connected and stay happy..
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I’m so pleased to learn the story you described. Thank you again for this wonderful literature.
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you are welcome sir ..please see my coming blog to read the remaining part of l story .
stay safe and happy..
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Of course
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Reblogged this on Retiredकलम and commented:
ज़िन्दगी में ख़त्म होने जैसा कुछ नहीं होता,
हमेशा एक नई शुरुआत आपका इंतज़ार करती है
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