
आज के इस ब्लॉग की बात ही कुछ अलग है, क्योकि इसमें मैं अपने एक सहपाठी के जीवन में घटी सच्ची घटना का वृत्तांत आप सबों के समक्ष प्रस्तुत करने जा रहा हूँ …
आज की परिवेश में अगर इस घटना के बारे में सोचा जाए तो यह थोडा विचित्र और डरावना सा लगता है |
पर जब यह घटना घटी उस समय बिहार के कुछ इलाकों में इस तरह की घटना का घटित होना एक वास्तविकता थी |
इस संस्मरण के पात्र ने उपरोक्त घटना का जिस बहादुरी से मुकाबला किया उसके लिए वे सचमुच में बधाई के पात्र है |
विमलेश नाम था उसका, देखने में बहुत ही शर्मीला लेकिन पढने में उतना ही तेज़ |
मुझे आज भी वह दिन याद है ..24 जुलाई 1977 जब हमलोगों ने रांची एग्रीकल्चर कॉलेज में एडमिशन लिया था और उसके बाद हमलोगों को जो हॉस्टल आवंटित किया गया था उसमे हम दोनों के रूम पास – पास थे |
वह बहुत ही शांत स्वभाव का था और हमेशा अपनी पढाई में व्यस्त रहता था |
सिर्फ खाना खाने के लिए ही रूम से निकलता था | उसे देख कर आस पास के रूम के लड़के ना चाहते हुए भी पढाई करने बैठ जाते थे, क्यों कि trimester sysyem में हमेशा कोई ना कोई परीक्षा लगा ही रहता था और हमलोगों को रोज़ पढाई करना आवश्यक होता था |
अगर अगले दिन कठिन पेपर की परीक्षा हुई तो सभी विद्यार्थी सारी रात पढाई करने में व्यस्त रह जाते थे … अजीब सा माहौल होता था हॉस्टल का भी |
हम सब जितनी मिहनत से पढाई करते थे उतना ही मस्ती भी किया करते थे |
वह कॉलेज के शुरुवाती दिन थे और उन दिनों में रैगिंग भी बड़े जोरो की हुआ करती थी |
सीनियर छात्रों के आदेशानुसार फर्स्ट trimester के छात्रो को डिनर के बाद नौ बजे रात में कॉमन रूम में उपस्थित होना पड़ता था जहाँ हमलोगों की तरह तरह से रैगिंग किया जाता था |
कभी कभी तो रैगिंग से परेशान होकर महसूस होता था कि पढाई लिखाई सब छोड़ कर घर वापस चला जाऊँ | पर फिर अपने मन को समझाता …कुछ ही दिनों की तो बात है फिर हम भी आने वाले जूनियर्स का रैगिंग कर मज़ा लेंगे |
एक दिन हम सभी लोग रैगिंग के लिए पहले से तय अपने उस कॉमन रूम में पहुँच गए | कॉमन रूम क्या था, यह तो बहुत बड़ा हॉल था और हम सभी छात्रों के एकत्र होने के बाद नियमतः रूप से रैगिंग लेने वाले सीनियर्स लोग हमलोगों का attendence लेते थे ताकि कोई चालाकी दिखा कर अपने रूम में छुप ना जाये |
रात के दस बज रहे थे , हालाँकि हमलोग डिनर ले चुके थे और नींद भी आ रही थी | तभी बॉस लोगों का हुक्म सुनाई पड़ा …. तुम लोग सभी बारी बारी से अपने जीवन से घटी कोई ऐसी महत्वपूर्ण घटना को सुनाओ जिसने तुम्हारे जीवन में गहरा प्रभाव डाला हो |
सब लोग अपने जीवन से जुडी कोई ना कोई घंटना को सभी के समक्ष सुना रहे थे | और उनकी सच्ची कहानियों को सुनकर बहुत मज़ा भी आ रहा था |
मैं भी मन ही मन सोच रहा था कि अपने जीवन से जुड़ी कौन सी घटना सुनाया जाये क्योकि अगला नंबर मेरा ही आने वाला था | तभी किसी ने विमलेश का नाम ले लिया |
इसका मतलब अब विमलेश को अपनी जीवन से जुडी ऐसी कोई कहानी सुनानी थी |
वैसे वह बहुत शर्मीला किस्म का था लेकिन वहाँ तो सब लोगों के सामने कहानी सुनाना मज़बूरी थी |
वह बेचारा शुरू शुरू में थोडा नर्भस हो रहा था, फिर भी हिम्मत जुटा कर अपने ज़िन्दगी में घटी एक महत्वपूर्ण घटना को सुनाना शुरू किया |
अब इस घटना की जानकारी विमलेश की ज़ुंबानी सुनिए ….
बात उन दिनों कि है जब मैं गया कॉलेज में पढता था | वैसे आप सभी लोग को पता ही है कि मैं जहानाबाद के सूरजपुर गाँव का रहने वाला हूँ |
मेरे पिता जी गाँव के बड़े किसान है | हमलोगों की गाँव में अच्छी इज्जत प्रतिष्ठा है और उस पर कि अगर इस पिछड़ा गाँव से कोई लड़का शहर में पढने चला जाये तो उस घर की इज्जत और भी बढ़ जाती है |
उन दिनों जे पी आन्दोलन बड़े जोरो पर थी और हम सब विद्यार्थी अपने हॉस्टल में काफी सतर्क और चौकन्ने रहते थे |
दोपहर तीन बजे का समय रहा होगा और मैं खाना खाकर हॉस्टल के अपने कमरे में आराम कर रहा था | तभी एक देहाती सा आदमी जो धोती कुरता पहने हुए था, मुझे खोजते हुए मेरे रूम तक पहुँच गया और दरवाज़ा खटखटा दिया | मैं चौक कर उठा और फिर सोचा शायद कोई दोस्त आया होगा |
मैं उठ कर दरवाज़ा खोला तो देखा वह ग्रामीण सामने खड़ा था |

मैंने उससे पूछा …आप कौन है और क्या चाहते है ?
तो उसने ज़बाब दिया .. .हम आपके पिता के दोस्त है और उन्होंने यहाँ आपको बुलाने के लिए भेजा है |
मैंने फिर पूछा …लेकिन मेरे पिता जी कहाँ है और होस्टल में खुद क्यों नहीं आये ?
इसपर उस आगंतुक ने कहा …वो किसी काम में उलझे हुए है इसलिए आप के लिए कार भेजा है, आप चल कर वही मिल लें |
मुझे पता था कि पिता जी जब भी गाँव से गया शहर आते हैं तो बहुत सारी पेंडिंग काम भी निपटाते थे |
शायद मेरे पिता जी काम में उलझे होने के कारण यहाँ तक नहीं आ सकें होंगे | ऐसा सोच कर मैं उनके साथ कार में बैठ कर चल दिया |
मैंने सोचा कुछ ही समय में पिता जी के पास पहुँच जाऊंगा, और उनसे मिल कर उनका हाल समाचार जान लूँगा |
रास्ते में एक जगह मेरी कार रुकी और देखा कि कार का दरवाजा खोल कर मेरे दोनों तरफ दो हट्ठा कट्ठा आदमी बैठ गए हैं और फिर कार आगे चल दी |
मुझे उनलोगों को देख कर अजीब महसूस हुआ | मुझे लगा कि पिता जी पहलवान टाइप आदमी को मेरे पास क्यों भेजेंगे ?
मैंने पूछा …पिता जी कहाँ है ?
मेरे पास बैठा आदमी ने कहा …वहीँ तो जा रहे है |
लेकिन थोड़ी देर के बाद मैंने देखा, मेरी कार तो शहर छोड़ चुकी है और अब हाईवे का रास्ता पकड़ लिया है |
मुझे समझते देर ना लगी कि मैं किसी मुसीबत में फँस गया हूँ |
मैं काफी घबरा गया था | मुझे पता था कि उन दिनों आपसी रंजिश में बदला लेने के लिए परिवार के किसी सदस्य या उसके बच्चे को सुपारी देकर क़त्ल करा दिया जाता था |
जी हाँ , उन दिनों गया और आसपास के इलाकों में “छह इंच छोटा कर देना” एक मुहावरा प्रचलित था …छोटा करना यानि गर्दन काट लेना |
हो सकता है मेरे पिता के कोई दुश्मन ने मुझे जान से मारने की सुपारी दी हो |
मेरे मन में ख्याल आया कि, कही सुनसान जगह पाकर मुझे भी मार कर झाड़ियों में फेक देगा |
मैं अपनी मौत को बहुत करीब से देख रहा था | फिर भी हिम्मत कर मैं उनलोगों का विरोध करने लगा और कहा …मुझे यही उतार दो, नहीं जाना मुझे अपने पिता जी से मिलने |
इतना सुनना था कि मेरे पास बैठे एक पहलवान ने पिस्तौल निकाल ली और मुझे दिखाते हुए कहा …चुप चाप बैठे रहो और मेरे साथ चलो , वर्ना अभी यहीं छह इंच छोटा कर दूंगा |
मैं बहुत डर गया, जान किसको नहीं प्यारी लगती है | अनायास ही मेरा हाथ मेरी गर्दन पर चला गया और मैं मन ही मन भगवान् को याद करने लगा और पभु से कहा …मेरी जान बचाओ प्रभु |

तभी अपनी कार हाईवे को छोड़ किसी गाँव की तरफ मुड़ गई | मुझे तो यह पता था कि मैं किडनैप कर लिया गया हूँ लेकिन किस कारण से मेरा अपहरण हुआ है अभी तक पता नहीं चला था | शायद फिरौती की डिमांड करे |
फिर भी मैं लगातार विरोध करता रहा, लेकिन अकेला होने के कारण मैं उनलोगों के चंगुल से निकल नहीं पा रहा था |
मैंने उन लोगों को डराने के लिए कहा … मेरे पिता जी को जैसे ही पता चलेगा , तो तुमलोगों की खैर नहीं |
लेकिन मेरे बातों का उनलोगों पर कोई असर नहीं हो रहा था | वो लोग चुप चाप बैठे थे और कार अपनी रफ़्तार से भाग रही थी |
शाम बीत चुकी थी और अब अंधियारा घिर आया था | कार अँधेरी रास्तों से गुजरता हुआ एक गाँव में पहुँचा और एक घर के सामने मेरी कार को रोक कर मुझे उतरने को कहा गया |
मैं कार के खिड़की से बाहर देखा …तो सामने एक घर दिखा | घर को रंगीन बल्ब और रौशनी से सजाया गया था और दरवाजे पर शहनाई वाला शहनाई बजा रहा था | जैसे लग रहा था यहाँ कोई शादी होने वाली है |
अब मेरा दिमाग ठनका | मुझे समझते देर ना लगी कि मुझे किडनैप कर लिया गया है, लेकिन फिरौती के लिए नहीं बल्कि ये लोग मेरी जबरदस्ती शादी कराने के लिए यहाँ लाये है |
अब मुझमे भी थोड़ी सी हिम्मत आ गई क्योकि मुझे महसूस हो रहा था कि ये लोग जान से तो नहीं मारने वाले है |
इसलिए मैंने अपना विरोध और तेज़ कर दिया | लेकिन वो लोग ज़बरदस्ती मुझे पकड़ कर घर के अन्दर ले गए, जहाँ पहले से ही शादी की पूरी तैयारी कर रखी थी |
पंडित जी भी अपना स्थान ग्रहण किये हुए थे और एक दुल्हन भी मंडप में बैठी थी |
मुझे ज़बरदस्ती नए कपडे पहनाये गए | माथे पर मौरी सजाया गया और जबरदस्ती मंडप में दुल्हन के बगल में बैठा दिया गया |
मेरे बैठते ही पंडित जी ने मंत्र उच्चारण शुरू कर किया | मैंने दुल्हन की तरफ एक बार देखने की कोशिश की पर मुँह पूरी तरह ढका हुआ था |
मेरा मन बहुत घबरा रहा था और मैं मंडप में बैठा सोच रहा था कि यह जबरदस्ती की शादी मेरे ज़िन्दगी और भविष्य को बर्बाद कर देगी और इस घूँघट के पीछे पता नहीं यह “अनजाना लड़की” कौन है और कैसी है ?

इसे मेरे पिता जी और परिवार वाले स्वीकार कर पाएंगे या नहीं | मैं जैसे ही वापस पिता के सामने जाऊंगा तो वो हमें गुस्से में गोली ही मार देंगे | मेरे पिता जी इस तरह की शादी को अपनी सहमती नहीं दे सकते है क्योंकि यह उनके इज्जत प्रतिष्ठा से जुडी बात है |
मैं मन ही मन सोच रहा था कि किसी तरह मौका पाकर यहाँ से भाग जाऊं लेकिन उन लोगों का इंतज़ाम एक दम फुल- प्रूफ था |
मैं इन्ही बातों में उलझा हुआ था, तभी पंडित जी ने कहा …, अब विधि पूर्वक दूल्हा –दुल्हन की शादी संपन्न हुई |
मुझे वहाँ से उठा कर एक रूम में पलंग पर बैठा दिया गया और दुल्हन भी मेरे बगल में बैठी थी |
मैं अब तक उस दुल्हन के चेहरे को नहीं देख पाया था लेकिन मैंने अनुमान लगाया कि लड़की ज़रूर बदसूरत होगी , इसीलिए तो मुझे किडनैप करके शादी किया जा रहा है |
मैं गुस्से में एक तरफ बैठा था और अपने पिता के गुस्से को याद कर रहा था |
तभी मेरी सास अर्थात दुल्हन की माँ प्रकट हुई और मुझसे कहा …मेहमान जी, आप अभी तक गुस्सा है ? आपने पानी तक नहीं पिया |
मेरे पिता जी मेरा खून पी जायेंगे …मैंने गुस्से में कहा |
सासु माँ हँसते हुए बोली … हमलोग अनजान लोग नहीं है | आप तो इस लड़की को बचपन से ही जानते है |
क्या आप सुनीता को भूल गए ,? जब आप चाचा के यहाँ पटना जाते थे तो हमलोग उनके बगल में ही तो रहते थे | उसी समय आप को देखा तो मन ही मन फैसला कर लिया था कि इसकी शादी आप से ही करेगे | क्योकि इतना सुन्दर लड़का और भरा पूरा परिवार कहाँ मिलेगा ?
जैसे ही सुनीता का नाम मेरे कानो में पड़ा तो बचपन की वो याद ताज़ा हो गई | तब मैं कोई दस साल का था और यह शायद आठ साल की रही होगी |
अब तो बड़ी हो गई है और पता नहीं अब कैसी दिखती होगी |
मैं सोच तो रहा था लेकिन घूँघट उठा कर उसके चेहरे को देखने की हिम्मत नहीं हो रही थी |
मुझे तो बस अपने पिता जी के गुस्से को याद कर दिल घबरा रहा था |
तभी लड़की की माँ ने कहा …, अरे बेटी, तुम घूँघट तो उठाओ | मेहमान तुम्हे देखेंगे तो ज़रूर पहचान लेंगे |

माँ के कहने पर सुनीता ने अपना घूँघट उठाया | मैं देख कर दंग रहा गया | आज वह दस साल पहले वाली सुनीता नहीं थी | वह तो अब सुन्दर और जवान युवती बन चुकी थी |
उसे देख कर मन को तसल्ली हुई लेकिन फिर भी पिता जी का डर मन में घूम रहा था |
इसी तरह कुछ दिन वहाँ बीते और फिर उनलोगों ने विदाई का प्रोग्राम तय कर दिया |
इसके लिए गाडी की व्यवस्था की गई | लड़की को दिए जाने वाले सामान को भेजने हेतु एक अलग गाड़ी की व्यवस्था की गई |
और फिर मुझे अपने गाँव दुल्हन के साथ रवाना कर दिया गया | मैं जब अपनी पत्नी को लेकर घर पहुँचा तो जिस बात का डर था वही हुआ |
पिताजी गुस्से से आग बबूला थे और मुझे घर में घुसने ही नहीं दिया और कहा ….तुम वापस चले जाओ | अब तुमसे मेरा कोई नाता – रिश्ता नहीं रहा |
अजीब स्थिति थी | गाड़ी वाले सामान उतार कर जा चुके थे ….और मैं अपनी पत्नी के साथ घर से बाहर दलान में बैठा हुआ था | पत्नी रोये जा रही थी |
फिर गाँव कुछ बड़े बुजुर्ग और खलीफा लोग पिता जी के पास आये और उन्हें समझाया कि अब जो हो गया है उसे स्वीकार करने में ही भलाई है |
…और इस तरह से यूँ तो इस घटना का पटाक्षेप हो गया पर मैं इस घटना को आज तक भूल नहीं पाता हूँ ….
हम कभी मिले नहीं, फिर भी मेरी खबर रखता था
अनजान राहे थी, फिर भी हमें साथ साथ चलना था

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Categories: मेरे संस्मरण
Good morning. Very nice
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thank you dear..
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Kidnapping for marriage used to be prevalent in rural areas of Bihar in the the 1980s and 1990s due to huge demand for dowry. I dont know whether it is still continuing or not as we do not hear such incidents now. Anyhow good blog, well written with happy ending.
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Absolutely right sir . this is a true incidence ..This incident is from the same time .
And that was my friend in the jahanabaad area .
thank you sir ..stay connected and stay blessed ..
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I can only imagine that this was a distressing experience, even in the context of culturally accepted arranged marriage.
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Yes sir,
This is something different type of arranged marriage…
once upon a time that was happened…
Thaw was my close friend. Still happy with the life and life partner..
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Reblogged this on Retiredकलम and commented:
The Bond of family & friends is a promise spoken by the Heart.
It is a promise renewed every time we keep in touch.
Stay happy…Stay blessed..
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