
धीरे धीरे सोफ़िया से उसकी घनिष्ठता बढती जा रही थी | आये दिन संदीप को कुछ ना कुछ वो गिफ्ट देती रहती थी ,जिसे पाकर संदीप खुश हो जाता | इसी तरह समय बीत रहे थे और संदीप को लगने लगा कि अब अच्छे दिन आ रहे है |
संदीप, जी -जान से प्रणव को पढ़ा रहा था और इसका परिणाम भी सामने आ गया | मात्र छह माह में ही सोफ़िया का बेटा स्कूल में सबसे अच्छा विद्यार्थी बन गया |
एक दिन तो स्कूल के प्रिंसिपल ने सोफ़िया को बुला कर पूछा था .. .आप के प्रणव में तो काफी परिवर्तन आ गया है,|
पढाई के अलावा खेल कूद में भी स्कूल का अव्वल छात्र बन गया है |
कैसे अचानक इस बच्चे में परिवर्तन आ गया ? ज़रूर कोई अच्छे ट्यूटर (tutor) की सेवा ले रही है आप |,
प्रिंसिपल की बातें सुनकर , सोफ़िया ने संदीप के बारे में बताया था |
फिर क्या था, उन्होंने उसे अपने स्कूल में पढ़ाने हेतु राज़ी करने के लिए निवेदन भी किया |
उस दिन से संदीप पर शोफिया को गर्व का अनुभव होने लगा था, क्योंकि अब तो संदीप उसकी हर बात मानने लगा था |
इधर संदीप का भी यही हाल था | वैसे सोफ़िया तो खूबसूरत थी ही, उसकी बातों का और उसकी अदा का असर उस पर होने लगा था |
शुरू के दिनों में जो एक झिझक सोफ़िया के साथ महसूस करता था, समय के साथ धीरे धीरे वो झिझक समाप्त हो गया |
अब वह खुल कर एक दोस्त की तरह बातें किया करता और जब भी किसी चीज़ की ज़रुरत होती तो बेझिझक मांग लिया करता था |
उसे इस घर से अपनापन महसूस होने लगा |
आज तो गजब ही हो गया | शाम को जब संदीप पढ़ाने आया तो बातों बातों में सोफ़िया ने पूछा ….कल तो रविवार है, तुम्हारा छुट्टी का दिन | वैसे कल तुम क्या कर रहे हो ?
कुछ नहीं, बस ऐसे ही घर की कुछ पेंडिंग काम को निपटाऊंगा ….संदीप ने सोफ़िया की ओर देख कर कहा |
अब संदीप उसकी नशीली नजरो को देख कर अपनी नज़रें नहीं चुराता था , बल्कि उससे हंस – हंस कर बात करने में उसे मज़ा आता था |
क्या तुम मेरे साथ कल सिनेमा देखने चलोगे ? घर में रात -दिन बैठे- बैठे बोर हो जाती हूँ ….सोफ़िया उससे निवेदन भरे लहजे में कहा |
अचानक ऐसी बातें सुन कर कुछ पल के लिए तो जैसे उसे अपने कानो पर विश्वास ही नहीं हुआ |
वैसे संदीप अब उसकी हर बात को मानने लगा था, इसलिए सोफ़िया का यह निवेदन ठुकरा नहीं सका और उसने हामी भर दी |
उसकी हामी भरते ही सोफ़िया का दिल ख़ुशी से झूम उठा और वो तुरंत अपने फ्रीज़ से दो आइसक्रीम निकाल कर ले आयी और एक संदीप को देते हुए बोली… कल के मूवी जाने की ख़ुशी में |

पास में बैठा उसका बेटा बोल पड़ा …मुझे भी आइसक्रीम चाहिए |
सॉरी, तुम्हे तो देना ही भूल गई ….सोफ़िया बेटे को देखते हुए बोली और तुरंत ही उसे भी आइसक्रीम मिल गया |
आइसक्रीम तो बड़ा स्वादिष्ट है, लगता है आप जो भी चीज़ अपने हाथो से बनाती है , उसका स्वाद कुछ ज्यादा ही बढ़ जाता है …संदीप उसे प्रशंसा भरी नजरो से देखते हुए कहा |
बहुत बहुत धन्यवाद ….सोफ़िया ने खुश होते हुए ज़बाब दिया |
और हाँ, तुम थोडा ज़ल्दी आ जाना, कुछ शौपिंग भी करनी है | तुम भी अपनी पसंद की चीज़ वहाँ से खरीद लेना |
ठीक है, मैं कल ठीक पाँच बजे आप के पास आ जाऊंगा,| आपलोग तैयार रहना ..संदीप बोल कर वापस जाने की इज़ाज़त मांगी |
इधर संदीप के अच्छे दिन तो आ गए थे …एक खुबसूरत औरत के साथ घुनमा फिरना, मूवी देखना और अच्छी रेस्तरां में खाना खाना और शरीर पर कीमती कपडे ….अब तो उसके ठाठ हो गए थे और दूसरी तरफ वो राधिका |
उसके तो मन में तरह तरह के प्रश्न उठ रहे थे, जिसका उत्तर नहीं मिल पा रहा था ,,,.कैसे मिलता ?, गर्मियों की लम्बी छुट्टी के कारण उसका कॉलेज बहुत दिनों के लिए बंद था और उसे बिना किसी काम के घर से बाहर निकलने की इज़ाज़त नहीं थी |
उसका फ़ोन भी निगरानी में रहने लगा.. इस कारण ना संदीप से मुलाकात और ना मेसेज दे पाती थी , लेकिन संदीप को तो किसी जुगाड़ से मेसेज भेजना चाहिए था |
उसकी बहन रेनू तो इस काम में मदद कर ही सकती थी |
राधिका के मन में शंका होना वाजिब ही था, क्योंकि उसे सोफ़िया से दोस्ती तो थी लेकिन उसके हाव – भाव उसे अच्छे नहीं लगते थे |
उसे तो अब इस बात पर भी पछतावा होने लगा कि क्यूँ उसने अपने ही पैर पर कुल्हारी मार ली | सोफ़िया से संदीप को नहीं मिलाना चाहिए था |
वैसे राधिका थी तो सुन्दर सुशील और समझदार, लेकिन सोफ़िया जैसे लटके झटके उसे नहीं आते थे |
राधिका पिछले 15 दिनों से काफी परेशान थी, जब से पता चला है कि उसके बड़े भाई उसके लिए कोई लड़का देखने गए थे,| शायद शादी की बात वहीँ फाइनल करना चाहते थे |
माँ भी बातों बातों में कह रही थी कि लड़का बहुत ही टैलेंटेड है, उसका फ्यूचर बहुत ब्राइट है, इतनी कम उम्र में आर्मी का कैप्टेन होना कोई कम बात नहीं है |
लेकिन वो माँ की बात अनसुनी करते हुए बोल दी थी …..अभी मुझे पढाई पूरी करनी है, शादी नहीं |
लेकिन सच तो यह है कि वो अपने पिताजी से बचपन से ही डरती थी, क्योंकि पिता जी फौज में थे और उनका कड़क स्वभाव आज भी है |
इसलिए घर के सभी लोग डरते है | अगर उन्होंने एक बार मेरे शादी का फैसला ले लिया तो फिर मना करने की किसी में भी हिम्मत नहीं है |

वह यह सोच सोच कर परेशान हो रही थी और उसकी परेशानी उसके चेहरे से साफ़ झलक रही थी | यह बात उसकी माँ भी भली- भांति समझ रही थी |
इसीलिए तो माँ ने डिनर के समय.. राधिका से पूछा ….आज कल देख रही हूँ, तुम काफी परेशान रहती हो | क्या बात है,, मुझे बताओ ?
माँ, मैं अभी शादी नहीं करना चाहती हूँ, मैं पढाई पूरी कर अपना केर्रिअर (carrear) बनाना चाहती हूँ |
वो तो ठीक है. .अभी हमलोग इंगेजमेंट कर लेंगे, और शादी बाद में करेंगे | इतना अच्छा लड़का हाथ से क्यों जाने दे ?
माँ, मुझे सोचने के लिए थोडा समय चाहिए | तुम पापा को बोल देना अभी मेरी शादी की चर्चा ना करे, मुझे पढाई में डिस्टर्ब होगी |
राधिका बहाना बना कर किसी तरह अपनी शादी को टालना चाहती थी |
लेकिन घर वालों से कितना दिन झूठ बोल सकती है .?. वह मन ही मन सोच रही थी |
अब तो बेचैनी और भी बढ़ गई, और ऐसे समय में संदीप से एक बार मिलना बहुत ही ज़रूरी हो गया है |
वह किसी तरह मोबाइल से मेसेज कर दी … कुछ ज़रूरी काम है , मैं तुमसे मिलना चाह्ती हूँ |
लेकिन यह क्या , दो दिन इंतज़ार करने के बाद भी मेसेज का ज़बाब नहीं आया तो राधिका का गुस्सा होना लाज़मी ही था |
आज शाम रधिका मंदिर जाने को बोल कर अपनी माँ से किसी तरह इज़ाज़त ली और सीधा सोफ़िया के घर की ओर चल दी | उसे पूरा यकीन था कि संदीप से उसकी मुलाकात हो जाएगी |
और उसका अनुमान सही निकला | वह जैसे ही सोफ़िया के कंपाउंड के पास पहुँची तो सामने दरवाजे पर ही संदीप और सोफ़िया दिख गए |
सोफिया अपने घर के दरवाजे पर ताला लगा रही थी , शायद वो लोग कही बाहर निकल रहे थे |
राधिका अभी उनलोगों को टोकना उचित नहीं समझी, बल्कि उसका पीछा करके यह पता लगाना चाह रही थी कि इतना बन ठन कर संदीप को साथ लेकर सोफ़िया कहाँ जा रही है …? ( क्रमशः )

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तलाश अपने सपनों की …5
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Categories: story
Very nice
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thanks
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Story progressing nicely even though it seems so predictable. Hope the plots and sub plots in the story would keep the story interesting. Keep writing.
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yes sir, let us hope the story as predictable…hahahaha…
stay connected sir,, Good night ..
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Reblogged this on Retiredकलम and commented:
वक़्त से बड़ा न्यायधीश कोई नहीं है,
ये जो भी निर्णय करता है सबको मानना ही पड़ता है …
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