ज़रूरी नहीं कि हर समय जुवान पे भगवान का नाम याद आए,
वो लम्हा भी भक्ति का ही होता है जब इंसान – इंसान के काम आए..
गरीब कौन
जाड़े की रात थी, मैं घर में बैठे अपने रूटीन के मुताबित रात्रि में अपना ब्लॉग लिख रहा था | मैं इसी समय दिन भर के बिताये समय को कलमबद्ध करता हूँ |
अचानक मेरे मोबाइल की घंटी बज उठी | मैं पहले दीवार पर टंगी घडी की ओर देखा तो रात के आठ बजे रहे थे और फिर मोबाइल की तरफ देखा |
फ़ोन करने वाला मेरा दोस्त शशांक था | इतनी रात को अचानक उसका फ़ोन आने से किसी आशंका से मन घबरा उठा | अगर कोई ऐसी काम होता तो सीधा घर चला आता था | उसका घर मेरे घर से तीन स्टेशन दूर नैहाटी में है और ट्रेन से सिर्फ 15 मिनट का ही रास्ता है |
मैंने ज्योही उसका फ़ोन उठाया ,उसने शिकायत भरे लहजे में बोला ..क्यों भाई आज भी मुझे भूल गए ?
मतलब …मैंने आश्चर्य से पूछा |
तुम भूल गए कि आज मेरा बर्थडे है | मैंने पार्टी में शरीक होने के लिए सुबह ही तुझे मेसेज भी किया था और तुम ने फेस बुक पर बर्थडे की मुझे बधाई भी दी थी |
मैं तुम्हारे इंतज़ार में अभी तक केक भी नहीं काट सका हूँ .. उसने शिकायत भरे लहजे में कहा |
अरे यार, वैरी सॉरी ..बस मैं अभी आता हूँ …कह कर ब्लॉग लिखना बंद कर दिया और मन ही मन सोचा कि इसे वापस आ कर पूरा करूँगा |
मैं जल्दी से तैयार होकर कल्याणी स्टेशन पहुँच गया जो मेरे घर से थोड़ी दूर पर ही था |
संयोग से तुरंत ही लोकल ट्रेन भी मिल गई और मैं २० मिनट की यात्रा कर उसके घर पहुँच गया और केक cutting ceremony में शरीक हो गया |
उसके बाद डिनर का कार्यक्रम भी रखा था | इस कोरोना के कारण बहुत दिनों से कही भी आना जाना बिलकुल ही बंद था | लेकिन आज बहुत दिनों के बाद इस तरह की पार्टी में शरीक होने का मौका मिला था |
लोगों से मिल कर बहुत अच्छा लग रहा था, हालाँकि सभी के चेहरे पर मास्क लगा था | हंसने पर सिर्फ उनकी आवाज़ सुनकर ही ख़ुशी का अंदाज़ा लगाया जा सकता था , चेहरे का expression तो दीखता ही नहीं था | अब तो शर्ट पेंट की तरह ही मास्क एक ज़रूरी पहनावा बन चूका है |
खाना खा कर मज़ा आ गया | वैसे भी बंगाल में लोग खाने और खिलाने के बहुत शौक़ीन होते है | तभी तो आज खाने में दो तरह की मछली और चिकेन सब कुछ था | भोजन स्वादिस्ट था इसलिए कुछ ज्यादा ही खा लिया |
खाना खा कर अपने दोस्त से विदा लिया और रेलवे स्टेशन नैहाटी आ गया ताकि यहाँ से लोकल ट्रेन पकड़ वापस घर जा सकूँ |
मेरी ट्रेन आने में अभी आधा घंटा की देरी थी | इसलिए मैंने सोचा कि स्टेशन पर ही थोडा टहल लेता हूँ ताकि खाना पचने में आसानी हो |
मैं टहलते हुए प्लेटफार्म नंबर एक पर स्थित टिकट घर की तरफ टिकट लेने हेतु गया | तभी एक भीख मांगती औरत को देखा | उसके चेहरे से लगा वह बहुत भूखी है और इतनी रात को सबो के पास जाकर खाना मांग रही थी |
उसे देख कर मुझे अपने आज की पार्टी की याद आ गई | कैसे सबो को जबरदस्ती ही ज़रुरत से ज्यादा खाना खिलाया गया था जिसे पचाने के लिए मुझे इतनी रात को टहलना पड़ रहा है और दूसरी तरफ यह भिखारन बेचारी जिसे सुबह से शायद खाना नसीब नहीं हुआ है | और खाने की तलाश में इतनी रात को दर दर भटक रही है
मैं मन ही मन सोचने लगा कि किसी होटल से लाकर उसे भर पेट खाना खिला दूँ |
तभी देखा कि एक व्यक्ति एक पैकेट में खाना ला कर उसे दे दिया है और वह वही ज़मीन पर बैठ कर खाने लगी|
मैंने देखा …तभी दो कुत्ते उसके सामने आये और उसकी खाने की ओर देखने लगे |
उसने अपने खाने में से उन दोनों कुत्तों को पहले खिलाया और फिर खुद खाने लगी | मैं यह सब देख कर भाव बिह्वल हो गया और उसी समय उन दृश्य को अपने मोबाइल के कैमरे में कैद कर लिया |
मुझे यह एहसास हुआ कि एक तरफ वो गरीब लोग है जिन्हें दो जून का खाना ठीक से नसीब नहीं होता है, फिर भी जो खाना मिलता है उसे मिल बाँट कर खाते है और यहाँ तक कि पशु पक्षियों को भी अपनी हिस्से से खाना निकाल कर पहले उसे खिलाते है और जितना भी मिलता है उसी में संतुस्ट रहते है |
दूसरी तरफ हमलोग है जो खाने से ज्यादा दिखावा करते है और खाने की बर्बादी करते है | जिनका पेट भरा होता है उसी को और भरते है पर खाली पेट वालो की तरफ ना तो अपनी नज़रे घुमाते है और ना ही उनके बारे में कभी सोचते है ..
इस भिखारिन ने सोचने पर मजबूर कर दिया कि सचमुच गरीब कौन है…. वो भिखारिन या हम ?
मैं वापस घर आ कर अपने कलम और डायरी निकाल कर इस ब्लॉग को पूरा किया |
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