
पुलिया के ऊपर पानी का बहाव बहुत तेज़ था, लेकिन मैंने सोचा नहीं था कि पानी की धारा इतनी तेज़ होगी कि मेरा रिक्शा को ही बहा ले जाएगी |
वो तो खैरियत थी कि मुझे तैरना आता था इसलिए किसी तरह तैर कर उस पानी के बहाव से बच गया वर्ना मेरा भी हाल उस रिक्शे की तरह हो जाता और मैं बह कर पता नहीं कहाँ पहुँच गया होता |
रिक्शा तो बह गया, लेकिन मैं किनारे पर खड़ा होकर पानी को निहार रहा था जिसने मेरी रिक्शा के साथ उसमे रखे कुछ सामान और उसके साथ जुडी यादें सब कुछ बहा ले गया |
मेरे आँखों से आँसू बह रहे थे और वहाँ उपस्थित लोग मुझे सांत्वना दे रहे थे, कि भगवान् की कृपा से चलो तुम्हारी जान तो बच गई |
लेकिन उन्हें क्या पता था कि उस रिक्शे से मेरी कितनी यादें जुडी हुई है | यह वही रिक्शा है जो बनारस पहुँचते ही मेरे रोज़ी रोटी का साधन बना, यह वही रिक्शा है जिसने रघु काका जैसे भले इंसान से मिलवाया और इसी के कारण अंजिला से भी दोस्ती हुआ |
इतना ही नहीं मुझे बनारस से यहाँ तक आने में बिना थके मेरा साथ निभाया |
मैं रिक्शे के बारे में सोच कर फुट फुट कर रोता रहा | कुछ देर बाद अपने आंसूं पोछे और अपने दिल को मजबूत किया |
मैं मन में सोचा …अभी तो शायद और भी कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है | मुझे तो अभी माँ और पत्नी को ढूँढना होगा | अतः मुझे हिम्मत से काम लेना होगा | यह सोच कर मुझमे जोश का संचार हुआ और मैं उठ कर यहाँ से पैदल ही अपनी गाँव की ओर चल दिया |
करीब पांच किलो मीटर पैदल चलने के बाद मैं गाँव के नजदीक पहुँचा | सड़क पर खड़ा कुछ दूर ही मेरा गाँव दिखाई से रहा था, जो बिलकुल जलमग्न हो चूका था | जहाँ चारो तरफ पानी ही पानी नज़र आ रहा था |
मिटटी के सभी घर लगभग पानी में डूबे हुए थे ..और सिर्फ उसका खपरैल छप्पर दिखाई पड़ रहे थे |

छप्परों और पानी में आधा डूबे पेड़ों पर बिषैले सांप लटक रहे थे | दृश्य बड़ा ही भयावह था, देख कर डर से शारीर में सिहरन सी होने लगी |
अपने गाँव की ऐसी हालत देख कर मैं बिलकुल घबरा गया और माँ और राघो के लिए चिंतित हो उठा |
मैं आस पास खड़े लोगों से पूछा ….इस गाँव के लोग कहाँ शरण लिए हुए होंगे |
उनमे एक भला सा आदमी मुझे संतावना देते हुए कहा …तुम चिंता मत करो | यहाँ के सभी लोगों को सुरक्षित बचा लिया गया है और उन्हें अलग अलग शिविरों में रखा गया है | हाँ, कुछ पशु धन पानी की तेज़ धारा के
कारण बह गए है | मैं अपने गाँव की ऐसी स्थिति को देख कर और माँ ,पत्नी के बारे में सोच सोच कर घबरा रहा था |
मैं उस आदमी से पूछा …क्या बता सकते है कहाँ और कौन से शिविर में जाकर उनके बारे में पता करूँ ?
यहाँ से दो किलोमीटर दूर शिविर लगा कर कुछ लोगों को रखा गया है | शायद वहाँ उनका पता लग सके.. उन्होंने कहा |
मैं पागलों की तरह इधर उधर शिविर में तलाश कर रहा था, लेकिन उन लोगों का कुछ पता नहीं चल पा रहा था | मन में तरह तरह की आशंका उठ रही थी | लेकिन अपने मन को किसी तरह समझाता कि भगवान् को जितनी परीक्षा लेनी थी ले चुके है अब तो हमें उसके फल का इंतज़ार है |
इसी तरह घूमते हुए एक शिविर में पहुँचा तो देखा कि खाना खिलाने के लिए लोगों को लाइन में लगाया जा रहा था | मेरा हुलिया पागल की तरह देख कर वहाँ शिविर के एक कार्यकर्ता मुझे भी बाढ़ पीड़ित समझ कर खाने के लिए ले जाने लगे |
मुझे तो भूख लगी ही थी, क्योंकि सुबह से कुछ भी नहीं खाया था और अब शाम होने को आई थी |
मैं अपनी भूख मिटाने के लिए उनके साथ चल दिया | शिविर में भोजन वितरण हो रहा था और उसके लिए लम्बी लाइन लगी थी | मैं भी लाइन में खड़ा हो गया |
करीब आधा घंटा लाइन में खड़ा रहने के बाद मुझे भोजन नसीब हुआ | मैं पत्तल में खाना लेकर एक कोने में बैठ गया और जैसे ही पहला नेवाला मुँह में डाला, कि माँ और पत्नी की छवि मेरी आँखों के सामने घूम गई और मेरे आँखों से आंसूं छलक गए |
मैं कितनी तकलीफ उठा कर बनारस से यहाँ तक तो पहुँच गया फिर भी अंतिम क्षण भगवान् फिर परीक्षा लेने लगे और अब तक मुझे उनलोगों से नहीं मिलाया |
मैं आकाश की तरफ देख कर भगवान् को याद किया और किसी तरह खाना खा कर उठ खड़ा हुआ | मैं हाँथ धोने के लिए चार कदम दूर बढ़ा ही था कि अचानक माँ को वहाँ बैठ कर खाते देखा |
माँ को देख कर जैसे मेरे आँखों पर विश्वास ही नहीं हुआ कि ये लोग इसी शिविर में थे और मैं सुबह से ढूंढ नहीं पाया था |
मैं दौड़ कर माँ के पास गया तो चौक कर माँ ने मुझे देखा और पहचानने की कोशिश करने लगी | अँधेरा हो चला था और वहाँ रौशनी नहीं थी |

मैं माँ को झकझोरते हुए कहा …माँ, मैं तुम्हारा राजू हूँ … तुम्हारा राजू | रात का अँधेरा होने की वजह से और आँखों की कम रौशनी के कारण वह तुरंत पहचान नहीं सकी |
लेकिन मेरी आवाज़ सुनते ही वह मुझसे लिपट कर रोने लगी | मैं भी बहुत देर तक माँ से लिपट कर रोता रहा | तभी पत्नी को वहाँ ना देख कर आशंकित हो कर माँ से पूछा….माँ , राघो कहाँ है ?
वह मेरे लिए पानी लाने गई है , अभी तुरंत आ जाएगी |
मेरी आँखे उसे इधर उधर ढूंढता रहा, उसके आने का इंतज़ार करता रहा… बहुत देर इंतज़ार करने के बाद भी वो वापस नहीं आयी | तो मैं व्याकुल होकर उसे ढूंढने निकल पड़ा | अचानक राघो को देखा कि हाथ में पानी लिए वो मेरी तरफ ही आ रही है और फिर मेरी तरफ बिना देखे ही आगे बढ़ गई | मुझे उसके व्यवहार पर बहुत आश्चर्य हुआ | मैं पीछे मुड कर पुकारा …..राघो |
अपना नाम सुनकर वह मेरी तरफ पलटी और मुझे गौड़ से देखने लगी | वो मुझे पहचानने की कोशिश करने लगी | अचानक उसके चेहरे के भाव बदल गए ..आश्चर्य से उसकी आँखे फ़ैल गई | वह कुछ बोलने की कोशिश कर रही थी लेकिन बोल नहीं पा रही थी, केवल उसने होंठ हिल रहे थे |
उसके आँखों से झर झर आंसू बह रहे थे | तभी उसके हाथ से पानी का गिलास छुट गया और वो तेज़ी से दौड़ कर मुझसे लिपट गई और दहाड़ मार कर रोने लगीं
तुम्हारी बढ़ी हुई दाढ़ी और दुबले हो गए शारीर को देख कर पहचान ही नहीं पाई | वह मुझसे लिपट कर बहुत सारे शिकवा शिकायत करती रही और मैं बस उसकी उठती गिरती साँसों को महसूस करता रहा ………..(समाप्त)

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Finally the hero of the story could meet his family.
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Yes dear ..God is there for their happy ending ..I hope you enjoyed my story ..
stay connected for the next …thank you..
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Nice ending
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Thank you very much..stay connected for my next Blog..
all the best..
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