# रिक्शावाला की अजीब कहानी #…16

शाम का वक़्त हो रहा था और हम सभी बहुत जल्द ही बड़े भाई के गाँव पहुँचने वाले थे | तभी मैंने  देखा की ट्रक की लम्बी लाइन से सड़क जाम पड़ा है | मेरे रिक्शा को आगे जाने का रास्ता ही नहीं मिल रहा था |

मैं रिक्शा से उतर कर पास खड़े एक ट्रक ड्राईवर से पूछा…..भाई, जाम क्यों लगा हुआ है ?

उसका जबाब सुनकर तो मेरा दिमाग ही घूम गया |

यह लोग पिछले तीन दिनों से यहाँ ट्रक खड़ी कर रखी है क्योंकि बिहार सीमा होने के कारण,  पुलिस किसी भी गाड़ी को , यहाँ तक कि पैदल चलने वालों को भी आगे जाने नहीं दे रही थी |

वहाँ तैनात पुलिस का कहना है कि यह सरकार का आदेश है कि  आगे जाने से पहले 15 दिनों तक यहाँ quarantine कैंप में बिताना होगा | उसके बाद ही उन्हें कोरोना का जाँच करने के बाद ही जाने दिया जायेगा |

उनको डर है कि बाहर के लोगो को ऐसे ही जाने दिया तो करोना महामारी के बढ़ने का खतरा है |

मुझे यह देख कर बहुत दुःख हो रहा था कि बहुत से मजदूर भाई लोग ट्रक और कुछ लोग तो टैंकरों में घुस कर आ रहे है | सचमुच इतना कष्ट करके आने के बाद अगर यहाँ रोक दिया गया तो ये लोग घर कैसे पहुँच पाएंगे ?

मैं बड़े भाई को सारी बातें बताई तो वो भी चिंतित हो उठे |

और बोले…भाई, अगर हमलोग ऐसे ही यहाँ पड़े रहे तो भूख से ही मर जायेंगे |

तभी कुछ दूर पर एक ढाबा दिखा तो चाय पीने की इच्छा हुई | मेरे पास तो कुछ पैसे सुरक्षित पड़े ही थे | इसलिए बड़े भाई और भौजी को लेकर ढाबा के पास अपनी रिक्शा खड़ी कर दी |

हमलोग चाय पी रहे थे तभी मैंने देखा कि  कुछ मजदूर लोग बहुत घबराये हुए है और उनकी बातों से पता चला कि वे लोग काफी भाडा दे कर ट्रक और टैंकरों में भर कर आ रहे है |

अगर गाड़ी को कल तक आगे नहीं जाने दिया तो वे ट्रक वाले सभी यही से लौट जायेंगे और ऐसी स्थिति में उन मजदूर भाइयों को तब पैदल ही आगे का सफ़र करना पड़ेगा |

अब देखे भगवान् की क्या मर्ज़ी होती है | वे लोग आपस में बात कर रहे थे |

उनकी बातों को सुनकर मैं भी आकाश की ओर देख कर भगवान् से प्रार्थना करने लगा कि इस  समस्या का समाधान निकालो  प्रभु |

और शायद भगवान् ने हमारी सुन ली |

थोड़ी देर बाद देखा कि हल्ला हंगामा हो रहा है | नजदीक जाने पर पता चला की पैदल वालों को जाने की इज़ाज़त सरकार ने दे दी है, लेकिन ट्रक और कोई भी वाहन को जाने पर अभी भी रोक है |

उनका कहना है कि ये मजदूर को अपने गाँव में पहुँच कर वहाँ के quarantine सेंटर में रुकना होगा, उसके बाद ही अपने घर जा सकते है |

अब कुछ मजदूर तो इस निर्णय से खुश थे और ट्रक और टैंकर को छोड़ कर पैदल ही चल दिए | सड़क पर लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा,  ऐसा लग रहा था जैसे लोग मेला घुमने जा रहे हो |

मैंने बड़े भाई से पूछा  …आप का गाँव यहाँ से कितनी दूर है ?

क्या कहे भाई , यहाँ से सिर्फ दो या तीन किलोमीटर ही है | लेकिन सरकारी रवैये के कारण हम इतना पास आकर भी आगे नहीं जा पा रहे है |

आप लोग पैदल तो यहाँ से जा ही सकते है …मैंने कहा |

लेकिन तुमको बीच रास्ते में छोड़ कर कैसे चले जाएँ ?.. उन्होंने अपनी चिंता प्रकट की |

आप मेरी चिंता नहीं करे,  मैं तो तभी जा पाउँगा जब मेरी रिक्शा जाने देगा |  पता  नहीं और कितना समय तक यहाँ रुकना पड़े …..मैंने कहा |

इस पर भौजी बोल पड़ी …राजू भैया ठीक ही बोल रहे है | वैसे भी हमलोग को जल्दी जाना ज़रूरी है क्योकि माँ के मरनी के काम में शामिल होना है | इसलिए ज़ल्दी से ज़ल्दी पहुँचना ज़रूरी है | अतः हमलोगों को पैदल ही चल देना उचित रहेगा   |

जब गाड़ी के लिए रास्ता खोल देगा तो राजू  भी पीछे से हमारे गाँव आ जायेगा और कुछ दिन आराम कर के फिर अपने गाँव जायेगा |

आप मेरा गाँव का पता नोट कर लो …इस हाईवे से दो किलोमीटर अन्दर गाँव की कच्ची  सड़क से आना होगा | गाँव में घुसते ही मंदिर के पास खपरैल मकान मेरा ही है  –..बड़े भाई ने समझा कर कहा |

|

तब मैंने कहा ….आप के घर जाने से मैं फंस जाऊँगा | वहाँ पहुँचने पर गाँव वाले मुझे 15 दिनों के लिए quarantine कर देंगे |  इससे अच्छा है कि मैं सीधा अपने  रास्ते  ही चला जाऊं |

उनलोगों के जाने के बाद मैं फिर अकेला हो गया | मुझे चिता और घबराहट भी हो रही थी कि आगे का रास्ता कैसे तय कर पाउँगा |

सड़क के किनारे  एक बड़ा सा पोखर था जो झील की तरह लग रहा था | मैं वही बैठ कर आगे के बारे में सोचने लगा |

डूबते सूरज की लालिमा की  परछाईं झील में उभर कर मनोरम दृश्य प्रस्तुत कर रही थी  और मौसम भी सुहाना लग रहा था | | लेकिन इन प्राकृतिक सुन्दरता को देख कर   भी अच्छा नहीं लग रहा था क्योंकि  मुझे चिंता सताए जा रही थी कि ना जाने और कितना इंतज़ार करना पड़ेगा यहाँ से निकलने के लिए |

तभी फिर एक बार जोरदार हल्ला हंगामा सुनाई पड़ा तो भाग कर भीड़ के पास पहुँचा तो पता चला कि हल्की गाड़ियों को जाने की अनुमति मिल गयी है |  शायद भारी वाहन को बाद में छोड़ेगे ताकि रास्ता जाम नहीं हो सके | मैंने  राहत की सांस ली कि चलो अब शायद किसी तरह मैं अपने गाँव तक पहुँच जाऊं |

मैं जल्दी से रिक्शे तक आया और बैठ कर भगवान् को याद कर अपनी आगे की यात्रा शुरू की | मैं तेज़ी से चल कर सीमा को पार कर जाना चाहता था ताकि और किसी सरकारी नियम का शिकार ना हो जाऊं |

लेकिन लोगो की काफी भीड़ सड़क पर थी और धीरे धीरे किसी तरह मेरी रिक्शा बढ़ पा रही थी | करीब दो किलोमीटर का रास्ता तय करने में एक घंटा का समय लग गया |अब रात भी हो चुकी थी और भूख भी लग रही थी |

मेरा मन हुआ की बड़े भाई के गाँव रुक जाते है, तभी quarantine का भय ने मुझे आगे अपने मंजिल की ओर बढ़ने के लिए मजबूर कर दिया |

मैं किसी तरह रास्ते में तेज़ी से आगे बढ़ रहा था क्योंकि  अब सड़क पर भीड़ कम हो चुकी थी |

मैं कुछ दूर ही आगे चला था कि  एक बुजुर्ग  सा दिखने वाला बाबा ने हाथ देकर मुझे रुकने का इशारा किया |

मैं उनके पास जाकर रिक्शा रोक दी और पूछा …आप को क्या तकलीफ है बाबा ?

बेटा मैं अकेला हूँ और मोहनिया तक जाऊंगा | मेरे पैर में चोट लगी है इसलिए चल नहीं पा रहा हूँ | तुम मेरी मदद करो,  भगवान्  तुम्हे  भला करेगा |

मुझे उन बूढ़े बाबा की हालत देख कर दया आ गई और मैं उन्हें सहारा देकर रिक्शे पर बिठाया और फिर तेज़ गति से चलने की कोशिश करने लगा | लेकिन जब पेट में भूख लगी हो तो हाथ पैर तेज़ी से काम नहीं करते है |

 मेरी हालत को देख कर शायद बूढ़े बाबा को एहसास हो गया और तभी रोड के किनारे एक ढाबा को देख कर वे  बोल पड़े …रुको भाई, थोडा मैं कुछ खा लूँ | मुझे बहुत भूख लगी  है |

मैं तुरंत रिक्शा रोक दिया, शायद मुझे भी कुछ खाने का जुगाड़ हो जाये… मैं मन ही मन सोचा |

तभी बाबा खाट पर बैठते हुए मुझे आवाज़ लगाई और पास के खाट पर बैठने का इशारा किया |

उन्होंने अपने लिए और मेरे लिए खाना मंगाया | मुझे खाना देख कर और  ज्यादा भूख बढ़ गई और मैं खाना खा कर तृप्त हो गया |

अब लगा जैसे बदन में जान आ गई हो |  बस क्या था , मैं बाबा को वापस अपने रिक्शे पर सहारा देकर बैठाया | वाकई उनका पैर काफी घायल था | मैं चाहता था कि उन्हें ज़ल्द उनके गंतव्य स्थान पर पहुँचा दूँ , ताकि घर पहुँच कर पैर का इलाज करा सकें |

मैं रिक्शा पर बैठा और मेरी गाड़ी तेज़ गति से भाग रही थी और करीब दस किलोमीटर का रास्ता कैसे पार कर गया पता ही नहीं चला | बाबा मेरी सहायता से बहुत खुश थे तभी  मोहनिया पहुँच कर बाबा  ने मुझे जेब से निकाल कर सौ रूपये दे दिए |

ऐसी परिस्थिति में सौ रुपया मेरे लिए बहुत मायने रखता है | मैं उनको हाथ जोड़ कर प्रणाम किया और कहा …आप के दिए पैसे रास्ते में बहुत काम आयेंगे |

उन्होंने मुझसे पूछा.. ..तुमको कहाँ तक जाना है ?

मुझे दरभंगा जाना है ….मैंने ने कहा |

वो तो अभी बहुत दूर है | आप यहाँ से आरा निकल जाओ और वहाँ से गंगा नदी पर एक पुल बनी है उससे आप सीधा छपरा निकल सकते हो | इससे आप की रास्ते दुरी कुछ कम हो जायेंगे …उन्होंने मुझे समझाया |

रात काफी हो चुकी थी और बड़े जोर की नींद भी आ रही थी | इसलिए मैंने कहा …अब आगे की यात्रा सुबह ही शुरू करूँगा | अभी किसी ढाबे में रुक जाता हूँ |

अरे, कैसी बात करते हो ?  तुम ढाबा में क्यों रात बिताओगे ?

 आओ मेरे साथ मेरे घर पर आराम से सो जाओ , कल खाना खा कर अपने यात्रा की शुरुआत करना …उन्होंने मेरे पीठ पर हाथ रखते हुए कहा |

मुझे लगा कि अभी भी गाँव में सच्ची मानवता बसती है …वर्ना इतने अच्छे लोगों के दर्शन कैसे हो पाते  (क्रमशः)

इससे पहले की घटना जानने के लिए नीचे दिए link को click करें…

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Categories: story

6 replies

  1. Verma ji you have narrated the long march of the migrant workers in a very vivid and true to life story. Good writing.

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  2. Reality during Pandemic. Just a trailor. Proceeded towards ending

    Liked by 1 person

  3. Yes dear,
    I hope you are enjoying this true story of migrant laborer.
    Stay connected and stay happy…..

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  4. Reblogged this on Retiredकलम and commented:

    ज़िन्दगी का सबसे खुबसूरत एहसास है,,,
    किसी की ख़ुशी का कारण बनना ..

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  1. रिक्शावाला की अजीब कहानी …15 – Retiredकलम

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