
एक गठरी शीश पर है,
देह दुर्बल पाँव भारी,
काँख मुन्ना को दबाए,
एक उँगली थाम मुन्नी,
साथ चलती जा रही है
दो दिनों का रास्ता कैसे कट गया पता ही नहीं चला | एक तो मिस्त्री भाई रिक्शा खीचने में मदद कर रहे थे और दूसरी तरफ मेरी बहना खाना पीना का इंतज़ाम कर रखी थी और मजे में सफ़र कट रहा था |
अब तो उनलोगों को उसके गाँव छोड़ आया और तब से बिलकुल अकेला हो गया हूँ | इन्ही सब बातों को सोचता गाँव की पगडण्डी को पार कर वापस हाईवे पर आ चूका था | रात बहुत हो चुकी थी और भूख भी लग रही थी |
तभी ध्यान आया कि सत्तू और गुड तो बहना ने दिया ही है, उसी को खा कर भूख मिटाई जा सकती है और रात सड़क के किनारे कोई सुरक्षित जगह देख कर विश्राम कर लेते है |
ऐसा सोच ही रहा था कि सामने एक ढाबा दिखा गया | मैं चल कर वहाँ पहुँचा और अपनी रिक्शा को एक तरफ लगा दिया |
वहाँ रखे जग के पानी से हाँथ मुँह धोया और अपनी बोतल में पानी भर लिया | वहाँ और भी कुछ मजदूर भाई रुक कर रात गुजार रहे थे |
मैंने यह जगह रुकने के लिए महफूज़ समझा और अपने रिक्शे पर आ कर बैठ गया और बहना का दिया हुआ सत्तू निकाल कर अपने गमछे में रखा और बोतल की पानी से सान लिया और गुड के साथ खाने लगा | भूख तो लगी थी इसलिए सत्तू और भी स्वादिस्ट लग रही थी |
सत्तू खा कर पानी पिया और भूख मिट गई | लेकिन मुझे तुरंत ही बहुत जोरो की नींद आने लगी | मैंने सोचा रिक्शा छोड़ कर ढाबा में बिछे खाट पर आराम से सो जाता हूँ जहां और भी मजदूर भाई सो रहे थे |
लेकिन तभी मेरे मन में विचार आया कि रिक्शा को छोड़ कर यहाँ सोता हूँ और कही रिक्शा चोरी हो गयी तो मैं अपने गाँव कैसे पहुँच पाऊंगा |
यही सोच कर मैं वापस अपने रिक्शे पर आ गया | थोड़ी तो तकलीफ हो रही थी सोने में, लेकिन नींद बहुत जोर की आ रही थी इसलिए इस थोड़ी सी तकलीफ का पता ही नहीं चला |
जब सुबह उठा तो धुप निकल चुकी थी और बहुत लोग अपने आगे की यात्रा हेतु प्रस्थान कर चुके थे
मैंने भी हाथ मुँह धोया और चलने को तैयार हुआ, तभी मुझे चाय पीने की तलब हुई | भला हो उस आदमी का जो मुझे कुछ पैसे दिए थे जिसे मैं सुरक्षित रखा था |
मैंने ढाबे पर एक चाय ली और वही खाट पर बैठ कर पीने लगा | चाय बहुत अच्छी थी, चाय पी कर शरीर में स्फूर्ति आ गयी |
मैं पॉकेट से १० रूपये का नोट निकाल कर चाय के पैसे दिए तो उसने पाँच रुपए मुझे वापस कर दिए |
मैंने आश्चर्य से बोला …लेकिन चाय के तो दस रूपये हुए है |

ढाबा वाला हँसते हुए बोला …आप सब लोग के लिए आधी कीमत पर सभी कुछ उपलब्ध है | मैं भी मजदूर भाइयों की ऐसी विपदा की घडी में इस तरह कुछ मदद कर पा रहा हूँ |
उन्होंने दुकान में टंगी एक छोटी सी बोर्ड की ओर इशारा किया, जिस पर हाथ से लिखा था …मजदूर भाइयों के लिए आधी कीमत पर सभी सामान उपलब्ध | अगर पैसे ना हो तो भी मांगने में संकोच ना करें , फ्री में दिया जायेगा /
मैंने ढाबा वाले को इस सामाजिक सहायता के लिए बहुत सराहना की और कहा …आप जैसे मददगार रास्ते में मिलते गए तो मंजिल पर पहुँचना आसान हो जायेगा | आप को भगवान् बहुत बरकत दे |
ढाबे वाले से दुआ सलाम कर सुबह सुबह रिक्शे में बैठ कर अकेला ही सफ़र की शुरुवात की | रिक्शा चलाते हुए बहना की बहुत याद आ रही थी, उसके साथ रहने से रास्ते में खाने पीने की कोई चिंता नहीं रहती थी वो सारा इंतज़ाम कर के रखी थी | अब तो उनलोगों का साथ छुट ही चूका है |
शायद रास्ते में कोई दूसरा साथी मिल जाये और रास्ता आसान हो जाये | इसी आशा में इस सफ़र में आगे बढ़ता जा रहा था, तभी रास्ते में देखा कि एक नन्हा बच्चा जो चल नहीं पा रहा था और उसकी माँ उसे लगभग घसीटते हुए सड़क पर आगे बढ़ रही थी |
उस नन्हे से बच्चे के पैर फुल गए थे और पैर के तलवे में फफोले हो गए थे | ऊपर से धुप के कारण पक्की सड़क गर्म हो कर जैसे आग उगल रही थी और बच्चे को नंगे पैर चलने में काफी तकलीफ हो रही थी | मुझे उसकी तकलीफ देखी नहीं गई |
उस बच्चे को देख कर मेरे बचपन की याद आ गयी | जब गर्मी के दिनों में मेला घुमने जा रहा था और पक्की सड़को पर चलते हुए पैर जलने लगी थी तो मेरे बापू मुझे कन्धों पर बैठा कर कोसों पैदल रास्ता पार किया था |
लेकिन इसके माता पिता की भी मज़बूरी है …सिर पर दोनों के भारी बोझ तो पहले से ही है | लगता है हमारी तरह यह भी अपने गाँव वापस लौट रहे है |
आखिर कोई उपाय भी तो नहीं है | सचमुच आज कल ज़िन्दगी कितना अनिश्चित हो गई है |
इस सब बातो को मन ही मन सोचता हुआ उस बच्चे के पास पहुँच कर अपनी रिक्शा रोक दी और उसके पिता से बोला …बड़े भाई, आप के बच्चे को चलने में तकलीफ हो रही है | आप उसे मेरे रिक्शे पर बैठा सकते है ,थोड़ी दूर तो साथ चल ही सकते है |
बड़े भाई अचानक रुक कर मुझे घुर कर देखने लगे, जैसे उनको मेरी बात पर यकीन ही ना हो, इसलिए उन्होंने पूछा….क्या तुम सच कह रहे हो ?
हाँ हाँ , बड़े भाई ,बिलकुल सच सुना है …मैंने हँसते हुए कहा |
लेकिन भाई, मेरे पास तुम्हे भाड़ा देने के पैसे नहीं है …उन्होंने हाथ जोड़ कर कहा |
मैंने तो पैसे की बात ही नहीं की | इस बच्चे को देख कर मुझे बहुत दया आ रही है …मैं बड़े भाई की तरफ देखते हुए कहा |
मैं अपनी बात पूरी करता, उससे पहले ही उस बच्चे ने उचक कर मेरे रिक्शे पर बैठ गया और खुश हो रहा था |
बड़े भाई ने कहा …एक गरीब ही दुसरे गरीब की परेशानी महसूस कर सकता है | तुम बहुत अच्छे इंसान नज़र आते हो, तुम्हें कहाँ तक जाना है, भाई ?
मेरा तो दरभंगा तक का सफ़र है …मैंने हँसते हुए कहा .|

सुन कर उसकी मुँह खुली की खुली रह गई और अपनी साँस रोक कर कहा …इतनी दूर का सफ़र ? और तुम अकेले ही जा रहे हो ?
यह सब ऊपर वाले की कृपा है | रास्ते में खुद ब खुद साथी मिल जाते है और रास्तों को आसान बनाते जाते है …मैंने कहा |
तुम ठीक कहते हो भाई, लेकिन रास्ते में कभी – कभी बहुत बुरे हादसे भी हो जाते है |
कैसे हादसे बड़े भाई ? मैं समझा नहीं …..मैंने उत्सुकता से पूछा |
बात करते करते हमलोग एक बड़े पेड़ के छांव में खड़े हो गए | मुझे प्यास लगी थी सो बोतल से पानी निकाल कर पीने लगा |
तभी देखा कि वे भी वहीँ पेड़ की छांव में बैठ गए और उनके आँखों से आँसू बह रहे थे और रोते हुए सिसकियाँ निकलने लगी |
मैं घबरा कर उनकी ओर देखने लगा …समझ में नहीं आया कि हमने कोई ऐसी वैसी तो बात नहीं कह दी, जो उनको बुरा लगा हो |
मैं उनके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा ….क्या हुआ बड़े भाई ? मेरी कोई बात आपको बुरी लगी |
नहीं – नहीं भाई , उन्होंने मेरी हाथ पकड़ कर कहा….. ऐसी कोई बात तो आपने बोला ही नहीं |
तो क्या बात हुई, हमें भी बताइए ….मैं उत्सुकता से वो बात जानने की कोशिश की जिसके कारण वे इतनी पीड़ा का अनुभव कर रहे थे |
एक बहुत ही भयंकर दुर्घटना में बाल बाल बचा हूँ वर्ना हमलोग भी उन लोगों की तरह रेल से कट गए होते |
क्या मतलब ?, यहाँ सड़क के रास्ते में ट्रेन कहाँ से आ गई ?..मैंने ने आश्चर्य से पूछा |
हमलोग २० लोग जो ईटा भट्ठा में साथ काम करते थे | हम सभी लॉक डाउन के कारण वापस अपने अपने गाँव के लिए साथ ही चले थे | रास्ते में पुलिस वाले बहुत तंग करने लगी थी इसलिए हमलोग रेलवे लाइन पकड़ कर चलने का फैसला किये |
चलते चलते रात हो गई थी और हम सब काफी थके हुए थे | इस कारण कुछ लोग तो रेलवे – ट्रैक पर ही सो गए | हमलोग को पता था कि ट्रेन का चलना तो बंद है | इसलिए खतरे की आशंका नज़र नहीं आ रही थी |

मेरे बच्चे को बार बार शौच लग रही थी इसलिए रेलवे – ट्रैक से कुछ दूर जहाँ पानी उपलब्ध था वही पर एक चबूतरे पर हम लोग बैठ कर आराम करने लगे | बैठे हुए ही पता नहीं कब नींद लग गई, …तभी ट्रेन की आवाज़ और भयानक चीख पुकार से अचानक नींद खुल गई |
मैंने जो दृश्य देखा उससे मेरा मन काँप गया और रोंगटे खड़े हो गए |
वे लोग जो पटरी पर लेट कर आराम कर रहे थे, पलक झपकते ही ट्रेन ने उनके शरीर के टुकड़े -टुकड़े कर दिए थे | ट्रेन तेज़ गति से थी, इसलिए सोये हुए लोगों को उठ कर भागने का मौका भी नहीं मिला
बस ,चारो तरफ खून और मांस के लोथड़े बिखरे हुए पड़े थे |
हम पांच लोग जो ट्रैक के बाहर सो रहे थे, इस दृश्य को देख कर मूर्छित से हो गए |
कुछ देर तो हमलोगों के मुँह से आवाज़ ही नहीं निकल पा रही थी | लेकिन थोड़ी देर के बाद हमलोग ने चिल्लाना शुरू किया.. और हमलोगों की आवाज़ सुनकर आस पास के गाँव के लोग इकठ्ठा हो गए | और उस आधी रात को अँधेरे में जो मंज़र देखा उस घटना की याद आते ही शरीर कांपने लगता है |
भगवान् की कृपा से हमलोग जो बच गए थे, वहाँ पर पुलिस के चंगुल से मुश्किल से निकले सके और वापस सड़क के रास्ते को पकड़ कर इस हाईवे पर आ गए |
यह सच है कि अभी भी हमलोग उस भयंकर त्रादसी से उबर नहीं पाए है और रह रह कर आँखों के सामने वही दृश्य कौंध जाता है / रात में ढाबे में भी नींद नहीं आ सकी थी …बोलते बोलते वो फिर से रोने लगे |
मैंने ऊपर देख कर बस इतना कहा …भगवान् उनकी आत्मा को शांति देना ….(क्रमशः)

इससे आगे की घटना जानने के लिए नीचे दिए link को click करें…
रिक्शावाला की अजीब कहानी …15
BE HAPPY… BE ACTIVE … BE FOCUSED ….. BE ALIVE,,
If you enjoyed this post, don’t forget to like, follow, share and comments.
Please follow the blog on social media….links are on the contact us page
http:||www.retiredkalam.com
Categories: story
True portrayal of the hardship.
The story goes so smoothly that I have to wait for the day for next episode.
Very nicely written and woven.
LikeLiked by 2 people
Thank you dear ..yes, it is the true incidence of migrant labourer . Hardship is everywhere but poor labourer have severe impact ..thanks for your words that keep me going for the next …
stay connected and stay happy..take care..
LikeLike
Story of human tragedies and sufferings of migrant workers very well constructed from the real incidents. Keep going Vermaji.
LikeLiked by 2 people
Yes sir, i just want to write down the incidence and problems facing the migrant worker during Lock down …Really, poor laborers are suffering a lot..
thank you sir .. stay connected and stay safe..
LikeLike
Interesting!
LikeLiked by 1 person
thank you very much..
I think you will find worth reading..
Stay connected and stay happy..
LikeLiked by 1 person
Of course I will. 🙂
LikeLiked by 1 person
Thank you very much..
LikeLiked by 1 person
Story expressed the hardship of Rixa Walla. Many incidents came his way. Story is decorated with nice pictures.
LikeLiked by 1 person
very correct,
this story tells the incidence came in the way of a migrant laborer..
and their courage to face the situation..
Thank you dear for your beautiful comments..
LikeLike
Reblogged this on Retiredकलम and commented:
इच्छा पूरी नहीं होतो तो क्रोध बढ़ता है ,
और इच्छा पूरी होती है तो लोभ बढ़ता है /
इसलिए जीवन की हर स्थिति में धैर्य बनाए रखना ही श्रेष्ठता है …
LikeLiked by 1 person