
मुझे लग रहा था कि वो पिंकी ही है | उसका चेहरा, उसकी आँखे, बात करने की अदा, उसी तरह बोलना, कुछ भी तो नहीं बदला है | हाँ एक चीज मैंने नोटिस किया कि उसके चेहरे पर पहले जैसी चंचलता ना होकर गहरी ख़ामोशी और उदास सा चेहरा दिख रहा था |
वो सामने बैठी अपना प्रवचन दिए जा रही थी और मैं सिर्फ उसके चेहरे को निहारे जा रहा था | वो क्या बोल रही थी उस पर ध्यान ही ना था | मैं तो बस पिंकी को साक्षात् सामने देख रहा था लेकिन दिल को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि वह पिंकी ही है |
यह कैसे संभव है ? मैं ने तो सोचा था कि वह अब तक शादी कर के अपना घर बसा ली होगी | उससे बिछुड़े हुए वो दस साल का समय कम थोड़े ही होता है |
अब तो मुझे उससे मिलने की तीब्र इच्छा हुई और मैं अपने आप को कण्ट्रोल नहीं कर पा रहा था | मुझे अभी भी उस पर वही अधिकार वाला भाव महसूस हो रहा था | अचानक मैं अपने सीट से उठकर सीधा स्टेज पर चला गया
इस तरह अचानक मुझे स्टेज पर आता देख कर पिंकी ने इशारे से समझाया कि वो बाद में मिलेगी | लेकिन उसके चेहरे पर इतने दिनों बाद मुझे देख कर कोई आश्चर्य और जिज्ञासा के कोई भाव नहीं दिख रहे थे | वह तो शांत भाव से अपने प्रवचन किये जा रही थीं |
मैं वापस अपनी सीट पर बैठ कर उसे एक टक अब भी निहार रहा था और कभी कभी उसकी बातें कानो में समां रही थी | वो अपने सुरीली आवाज़ में बोल रही थी…
एक दिन जब श्री कृष्ण स्वर्ग में विचरण कर रहे थे तो अचानक राधा सामने मिल गई | उसे देख कर विचलित सी कृष्णा और प्रसन्नचित सी राधा .., कृष्णा सकपकाए पर राधा मुस्कुराई |

इससे पहले कि कृष्णा कुछ कह पाते, राधा बोल उठी… कैसे हो द्वारिकाधीश ? जो पहले राधा उन्हें कान्हा कान्हा कह कर बुलाती थी, उसके मुख से द्वारिकाधीश का संबोधन, कृष्णा को भीतर तक घायल कर गया |
फिर भी किसी तरह अपने आप को संभाल लिया उन्होंने और बोले… राधा, मैं तुम्हारे लिए आज भी वही कान्हा हूँ, तुम तो मुझे द्वारिकाधीश मत कहो | आओ बैठते है …कुछ मैं अपनी कहता हूँ कुछ तुम अपनी सुनाओ |
सच कहूँ राधा जब जब भी तुम्हारी याद आती थी… इस आँखों से आँसुओं की बुँदे निकल आती थी |
राधा बोली …मेरे साथ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ | ना तुम्हारी याद आई और ना आँखों से आँसू बहा | क्योंकि हम तुम्हे कभी भूले ही कहाँ थे जो तुम याद आते | इस आँखों में तो सदा तुम्ही थे, कहीं आँसुओं के साथ निकल ना जाओ, इसलिए रोते भी नहीं थे |
कान्हा, प्रेम से अलग होने पर तुमने क्या खोया इसका एक आईना दिखाऊँ तुम्हे ? कुछ कडवे सच, प्रश्न सह पाओ तो सुनाऊं |
कभी सोचा है इस तरक्की में तुम कितने पिछड़ गए, यमुना के मीठे पानी से ज़िन्दगी की शुरुआत की और समुद्र के खारे पानी तक पहुँच गए | एक ऊँगली पर चलने वाले सुदर्शन चक्र पर भरोसा कर लिया और दसों उँगलियों से चलने वाली बांसुरी को भूल गए |
कान्हा…जब तुम प्रेम से जुड़े थे तो जो ऊँगली गोवर्धन पर्वत उठाकर लोगों को विनाश से बचाती थी |.
प्रेम से अलग होने पर वही ऊँगली क्या क्या रंग दिखने लगी | सुदर्शन चक्र उठाकर विनाश के काम आने लगी | कान्हा और द्वारिकाधीश में क्या अन्तर होता है बताऊँ ? कान्हा होते तो तुम सुदामा के घर जाते, सुदामा तुम्हारे घर नहीं आता |
युद्ध में और प्रेम में यही तो फर्क होता है | युध्ह में आप मिटा कर जीतते है, और प्रेम में आप मिट कर जीतते है |

कान्हा , प्रेम में डूबा हुआ इंसान दुखी तो रह सकता है पर किसी को दुखी नहीं कर सकता | आप तो कई कलाओं के स्वामी हो, दूर दृष्टा हो | गीता जैसे ग्रन्थ के दाता हो | पर आपने ये क्या निर्णय लिया… आपने अपनी पूरी नारायणी सेना कौरवो को सौप दी | और अपने आप को पांडवो के साथ कर लिया |
सेना तो आप की प्रजा थी | राजा तो पालक होता है, उसका रक्षक होता है | आप जैसे महाज्ञानी उस रथ को चला रहे थे | जिस पर बैठा अर्जुन आप की प्रजा को ही मार रहा था | अपनी प्रजा को मरते देख आपको करुणा नहीं जगी | क्योंकि आप प्रेम से शुन्य हो चुके थे |
आज भी धरती पर जा कर देखो | आपकी द्वारिकाधीश वाली छवि को ढूंढते रह जाओगे हर जगह | हर मंदिर में मेरे ही साथ खड़े नज़र आओगे | मैं जानती हूँ कान्हा ..लोग गीता के ज्ञान की बात करते है उसके महत्व की बात करते है पर धरती के लोग युद्ध वाले द्वारिकाधीश पर नहीं…. प्रेम वाले कान्हा पर भरोसा करते है |
गीता में मेरा दूर दूर तक नाम नहीं है पर आज भी लोग उसके समापन पर राधे -राधे कहते है |
वैसे तो श्री कृष्णा के पास किसी प्रश्न का उत्तर ना हो, ऐसा हो ही नहीं सकता ..परन्तु राधा द्वारा लगाए गए प्रश्नचिन्हो पर कान्हा मौन रहे | यही तो है प्रेम में समर्पण का भाव |
पराक्रम में हमें हर किसी को हराना होता है तब हम जीत कर भी हार जाते है | परन्तु प्रेम में एक ही कईयों का दिल जीत लेता है | यह सच है …छोटी सी ऊँगली पर पूरा गोवर्धन पर्वत उठाने वाले भगवान् श्री कृष्णा छोटी सी बांसुरी को दोनों हांथो से पकड़ते थे |
प्रवचन समाप्त होते ही मैं इस्कॉन (ISKCON ) से आये सतगुरु से आग्रह किया कि मैं पिंकी से मिलना चाहता हूँ | उन्होंने कहा कि यहाँ पिंकी नाम की कोई कन्या नहीं है |
अभी अभी तो उनका प्रवचन हो रहा था ….मैंने कहा |
अच्छा वो, उनका नाम राधा है |
ठीक है… आप यहाँ बैठे मैं उन्हें बुला देता हूँ |

राधा आयी और सामने बैठते ही मेरी ओर देख कर बोली..कैसे है आप ? काफी कमजोर दिख रहे है |
नहीं, मैं ठीक हूँ ..लेकिन पिंकी , तुमने ये क्या हाल बना लिया ? तुन्हें साध्वी किस ने बनाया |
मैं पिंकी नहीं अब राधा हूँ | जो प्रेम मैं तब करती थी वो सिर्फ आप से करती थी | लेकिन प्रेम आज भी करती हूँ , सारे विश्व जगत से करती हूँ…..मेरा प्रेम सागर की तरह गहरा और आकाश की तरह ऊँचा ,सारे ब्रह्माण्ड को अपने में समेटे हुए |
जब तुम्हे मुझसे प्रेम था तो उस दिन तुम्हारे घर गया था तो तुमने मिलने से क्यों इनकार कर दिया था…मैं जिज्ञासा से पूछा | मेरी बातें सुन कर उसके चेहरे पर एक पीड़ा के भाव उभर आयी /
फिर मन को शांत कर बोली …..नहीं, मैं ही दौड़ कर तुमसे मिलने घर से बाहर आयी थी | लेकिन तुम जा चुके थे और पूछने पर चाचा जी ने बताया था कि तुम ही मुझ से नहीं मिलना चाहते थे |
उस दिन मेरा दिल बहुत आहत हुआ था | मैं तो तुम्हारे सिवा किसी दुसरे के बारे में सोच ही नहीं सकती थी | तो शादी करने और घर बसाने का सवाल ही कहाँ उठता है | हालाँकि बाद में पता चला कि चाचा जी ने हम दोनों से झूठ बोला था , यह उनकी चाल थी |
यह सच है, कृष्णा की राधा, जिसकी नियति ही विरह वेदना है, बिछुडन है ..जब भी मैं आँखे बंद कर तुम्हे देखा तो तुम मुस्कुरा रहे थे | मेरे पास और कोई रास्ता नहीं था | मैं बहुत कोशिश की पर तुम्हे भूल ना सकी |
अभी क्या बिगड़ा है … तुम अब भी हमारे पास लौट आओ | मैं आज भी तुमसे उतना ही प्रेम करता हूँ |
प्रेम में डूबा व्यक्ति दुखी तो रह सकता है पर किसी को दुखी नहीं देख सकता | तुम्हारा भरा पूरा परिवार है, तुम वही लौट जाओ …..और राधा वहाँ से उठ कर चली गई और मैं खड़ा -खड़ा सोचता रहा ..इस ज़िन्दगी में मैंने क्या खो दिया …??

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I think you have repeated this post. Anyhow very well written and relevant in the present context and today being Janmashtami.
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yes sir , this is repeated with some modification and looking to this occasion..thanks for your valuable time for this old blog..
stay happy and stay safe…,
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Reblogged this on Retiredकलम and commented:
किसी के लिए समर्पण करना मुश्किल नहीं है ,
मुश्किल है उस व्यक्ति को ढूंढना , जो
आपके समर्पण की क़द्र करें …
आप खुश रहें …मस्त रहें…
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