
मैं दशरथ हूँ | मेरा एक भरा पूरा परिवार है | मेरे चार बेटे है | राम, लक्ष्मण भारत और शत्रुघ्न |
मैं एक कंपनी में नौकरी करता था और अब रिटायर हो कर घर परिवार के साथ जीवन व्यतीत कर रहा हूँ | चूँकि भरा पूरा परिवार था मेरा और आमदनी सिमित थी, अतः शुरू से ही पैसों की तंगी झेलनी पड़ी |
लेकिन तमाम विपरीत परिस्थितियों के वाबजूद भी मैं ने कोई गलत रास्ते नहीं चुने और इमानदारी के साथ कमाए गए पैसो से परिवार का भरण पोषण करता रहा |
मैंने बच्चो को अच्छी सिक्षा और ऊँचे संस्कार दिए | फिजूल खर्ची तो शुरू से ही पसंद नहीं थी | अतः जीवन की गाड़ी कभी पटरी से उतरी ही नहीं | आज धन सम्पति और बैंक बैलेंस भले ना हो, पर संतुष्ट ज़िन्दगी बिता रहा हूँ और रात को चैन से सोता हूँ |
मेरे सारे बच्चें भी अपने अपने कामो में व्यस्त है और हमलोगों के बीच का सम्बन्ध और संवाद भी बना हुआ है |
लेकिन , मैं यह सब क्यों लिख रहा हूँ, ? ….यह एक अहम् प्रश्न है और आप भी शायद ऐसा ही सोच रहे होंगे |
दरअसल, आज मैंने YouTube पर एक विडियो देखा तो मन ज़रा विचलित हो गया |
एक 87 वर्ष का बाप अपने बेटे के बारे में क्या कह रहा है जरा अप भी सुनिए ………..
मेरा नाम अजय कुमार श्रीवास्तव है | मैं बिहार सरकार के कृषि विभाग में जॉइंट डायरेक्टर के पद से रिटायर किया हूँ | मेरी उम्र ८७ साल है | अब मैं काफी वृद्ध हो चूका हूँ |
मेरा बेटा संजय श्रीवास्तव मणिपुर जागुआ कैडर का फारेस्ट ऑफिसर है | मैंने अपने बच्चो के साथ दिल्ली में रहने के लिए अपना कंकर बाग (बिहार) स्थित मकान एक करोड़ १० लाख रूपये में बेचा था और मेरे पुत्र ने मुझसे कहा कि आप दिल्ली में बच्चो के आस पास रहना पसंद करेंगे |
इसलिए मैं दिल्ली में आप के लिए मकान का बंदोबस्त कर दूंगा | और इस प्रकार मेरा बैंक ड्राफ्ट एक करोड़ दस लाख रुपए का, मेरे पुत्र ने ले लिया |
और उसने दिल्ली में मकान खरीदने के बजाये पूरा पैसे अपनी पत्नी गीता श्रीवास्तव के नाम ट्रान्सफर कर दिया |
ऐसी हालत में मुझे आम लोगों से निवेदन है कि मेरे उम्र को ध्यान देते हुए मेरा पैसा वापस दिलाया जाए |
उसके इस ह्रदय विदारक निवेदन से मैं आज सोचने पर मजबूर हो गया हूँ कि जिस बच्चे के जन्म लेने पर गाँव – घर में मिठाइयाँ बंटवाते है ..उसके परवरिश में कोई कमी नहीं छोड़ते है | खुद अभाव में ज़िन्दगी काट लेते है और उसे अपने सामर्थ से ज्यादा देने की कोशिश करते है |
वही सपूत एक दिन कपूत बन जाता है और पैदा करने वाले को ऐसी ज़िन्दगी जीने पर मजबूर कर देता है कि उसे यह समझ नहीं आता है कि उससे संस्कार देने में चुक हो गई या परवरिश में कोई कमी रह गई |
कभी कभी गैर लोग अपनों सा व्यवहार करते है और अपने लोग भी गैरों जैसा …|.

ऐसा क्यों होता है ? एक मूलभूत प्रश्न है मेरा…
हालाँकि इसके बहुत सारे उत्तर हो सकते है पर मेरी समझ में जो बात आ रही है उसे उद्धरित करना चाहता हूँ | आज ज़माना तेज़ी से बदल रहा है या यूँ कहें कि हम तेज़ी से तरक्की कर रहे है |
नए नए आविष्कार हो रहे है और आदमी, आदमी न रह कर मशीन बनता जा रहा है | आज बड़े मकान, बाग – बगीचे, सारे ऐशों – आराम की चीज़ें उपलब्ध है | इन्हें पैसों से ख़रीदा जा सक्र्ता है | बस इन्हें खरीदने के लिए आप के पास पैसा होना चाहिए |
तो आज तरक्की का नाम पैसा ही है | जिसके पास पैसा है वह आधुनिक है, विचारवान है …समाज का सम्मानित प्राणी है | लेकिन जिसके पास पैसा नहीं है, वह इस समाज का दोयम दर्जे का प्राणी है |
वह लाख सज्जन हो, पढ़ा – लिखा हो, पर ज़िन्दगी और रोटी के लिए संघर्षरत आदमी आपकी और हमारी नज़रों में इज्जत का हकदार नहीं होता बल्कि वह समाज पर बोझ एवं मुर्ख प्राणी मात्र होता है |
आज पैसो की माया ने सारे रिश्ते – नाते, सामाजिक ताने – बाने और इसकी पहचान को छिन्न भिन्न कर दिया है | यह तो स्वाभाविक है कि लोग पैसों के पीछे दौड़ेंगे और अपने रिश्ते नातों, अपने माँ – बाप को अपने पैरों से रौदेंगे ही |

आज हममें न तो संतोष रह गया है और ना ही मानवता | हम और कितना गिर सकते है इसका अनुमान लगाना मुश्किल है |
हम बस और पाना चाहते है …दुनिया को ही खरीद लेना चाहते है |
इसके लिए क्या हम दोषी नहीं हैं ? हमारी सामाजिक व्यवस्था ..शिक्षा – दीक्षा …आधुनिकता का माहौल और पैसों की भूख के लिए हम सब भी जिम्मेवार है |
हम भी तो अपनी पत्नी और बच्चो के लिए …अपने माँ बाप की अवहेलना करते है और जब हमारे बच्चे हमारे साथ वही करते है तो हमें दर्द होता है | हम उन्हें कोसते है |
हम समाज में गरीब और ईमानदार, सीधे – साधे आदमी की क़द्र नहीं करते है लेकिन धूर्त और बेईमान पैसे वालों की बहुत इज्जत करते है |
तो समाज में जब तक रिश्तो से ज्यादा पैसो की अहमियत होगी तो यही सब होगा | जो इस विडियो में दिख रहा है |
हाँ, अगर बदलाव लाना है तो हमें पहले अपने आप को बदलना होगा, अपनी मानसिकता को बदलना होगा ….आप का ख्याल है ?……
मुझे अपने विचार कमेंट के माध्यम से बताएं….|

BE HAPPY… BE ACTIVE … BE FOCUSED ….. BE ALIVE….
If you enjoyed this post, don’t forget to like, follow, share and comments.
Please follow the blog on social media.….links are on the contact us page
Categories: मेरे संस्मरण
I agree with Sanjiv Lalji. Very interesting and a story with human values. Eagerly waiting for the next episode.
LikeLike
Yes, this is heart touching incidence and a matter of concern..
LikeLike
Very sad case. It is a lesson to all Parents that they should be practical and not emotional in dealing with property matters especially with their children. As long as Parents are alive they should never sell/give their property to their children. The Property will automatically pass on to the children after their death or parents should make a will.
LikeLike
Good morning sir, you are truly said, we should be practical while dealing with the matter related to property or our livelihood Looking to the live example, senior citizen must be careful and live their life on their own way…
LikeLike
Nice
LikeLiked by 1 person
thank you dear
LikeLike
Reblogged this on Retiredकलम and commented:
अब ये ना पूछना कि ये अल्फाज़ कहाँ से लाता हूँ ,
कुछ चुराता हूँ दर्द दूसरों का , कुछ अपना हाल सुनाता हूँ ..
बातों का सिलसिला यूँ ही बढाता हूँ ,
कुछ मेरी और कुछ तेरी बात बताता हूँ …
LikeLiked by 1 person
Sad reality.
LikeLiked by 1 person
Yes,
This incidence is very sad and eye opener.
Thanks for sharing your view..
LikeLike