
मैं एक किताब हूँ , .कोई मुझे “दिल की किताब” कहता है तो कोई दिल से लगा कर रखता है | मैं हर तरह के लोगों के लिए बनी हूँ |
जो जैसा पसंद करे वैसा बनकर उसके दिल के सेल्फ में सजा दी जाती हूँ | मेरे चाहने वाले तो अनगिनत थे, लेकिन समय इतनी तेज़ी से बदल रहा है कि उतनी तेज़ी से मैं अपने को नहीं बदल सकी और मेरी चाहत अब धीरे धीरे कम होने लगी है |
ऐसा लगता है आने वाले समय में मेरा अस्तित्व ही खतरे में ना पड़ जाये , इसलिए अब “इ –बूक” के रूप में अपने को ढालने लगी हूँ |
इस कंप्यूटर के युग में मुझे भी एक मौका दिया गया है | हालाँकि पहले जैसी बात नहीं रह गई है | पहले, मुझे लिखने वाले खुद डूब कर लिखते थे और पढने वाले भी उतनी ही तन्मयता से हमें पढ़ते थे |
पहले तो लोगों के हाथो में मचलती रहती थी और अब लोगों के अलमीरा से झांकती रहती हूँ |
अब तो मेरे ऊपर धुल की मोटी परत भी चढ़ जाती है फिर भी लोग मेरी ओर ध्यान नहीं देते है | अब मैं क्या करूँ कि लोग मुझे पहले की तरह प्यार करने लगे ?

मुझे तो यह भी पता नहीं है कि मेरा जन्म कब और कहाँ हुआ ? इसीलिए अपना जन्मदिन भी नहीं मना पाती हूँ | आज कल तो मुझे लिखने में उतनी ख़ुशी भी महसूस नहीं करते | हमेशा हमारे अस्तित्व को व्यवसायीक दृष्टीकोण से देखा जाता है |
सच तो यह है कि … मैं लोगों के दिलों का सकून हूँ, …उनके दिल का चैन हूँ | उनके लिए खुशियों का माहौल देती हूँ, लेकिन बदलते समय के साथ लोगों के पसंद भी बदल रहे है |
मेरे कितने अरमान थे कि मैं विश्वविद्यालयों में यूँ ही इठलाती टहलती पहुँच जाऊं | वहाँ से किसी के बैग में बैठ कर इटली की रंगीनियाँ में खो जाऊं और वहाँ से फिर लन्दन की बाहों में समां जाऊं | वहाँ के सभी बुध्धिजीवी लोग मेरा सम्मान करेंगे | लेकिन मेरे अरमान यूँ ही मचलते रह गए |

अब मैं थक गई हूँ , पक गयी हूँ | ताज्जुब होता है कि इतने तकलीफों के बाबजूद जिन्दा कैसे हूँ ?
एक समय था … लोग मुझ पर आवरण चढ़ा कर रखते थे ताकि हमेशा मैं जवान दिख सकूँ | कभी कभी मुझे कूट और कपड़ो की मदद से मढ़ दी जाती थी ताकि मैं ज्यादा दिनों तक जिंदा रह सकूँ |
लेकिन आज कल का माहौल तो ऐसा है कि लोग एक दो दिन में ही उब जाते है और रद्दी वालों के हाथों रद्दी पेपर से भी कम भाव पर ही बेच दी जाती हूँ |
यहाँ तक कि लोग फुटपाथ पर नंगा कर यूँ ही बेचने लगे है, जैसा मैं कोई वेश्या हूँ | और कितना दर्द बयां करूँ मैं ….
मुझे तो बस इंतज़ार है फिर से प्रेमचंद , दिनकर और महादेवी वर्मा के पैदा होने की | या फिर अमृता प्रीतम , जय शंकर प्रसाद और नीरज सरीके लोगों का फिर से इस धरती पर आने की ….
किताब का दर्द
किताबें करती है बातें
बीते ज़माने की ,
दुनिया की, इंसानों की
आज की, कल की
एक – एक पल की
खुशियों की, ग़मों की
फूलों की, बमों की
जीत की, हार की
प्यार की, मार की
क्या तुम नहीं सुनोगे
इस किताबों की बातें ?

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# सपनो में आना #
BE HAPPY… BE ACTIVE … BE FOCUSED ….. BE ALIVE,,
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Categories: मेरे संस्मरण
Gd morning have a nice day sir ji
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very Good morning dear , stay safe and stay happy..
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Good morning Sir
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Good afternoon.. stay connected and read my other story also.
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Surely.
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thank you .your words mean a lot..
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👌👌🌈🌈👌👌
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thank you sir..stay connected and stay happy
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🙏
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please visit my blog and encourage me through your comments … Good night..
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Reblogged this on Retiredकलम and commented:
कलियुग की दुनिया है जनाब ,
कदर उसकी नहीं होती, जो सच में रिश्ता निभाता है,
कदर उसकी होती है, जो झूठा दिखावा करता है …
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