
जब हम बच्चे थे तो जल्दी थी हमें बड़े हो जाने की और आज जब हम बड़े हो गए है तो ऐसा क्यूँ लगता है कि हम फिर से “बचपन” में चले जाएँ..
आइए इस पर विचार करते है …… हमें लगता है कि शायद बचपन की स्थिति में हमें पूर्ण शांति, पूर्ण मानसिक आनंद थी, दिमाग में तनाव का कही भी नामो निशान नहीं था और हमेशा ख़ुशी का एहसास होता था | किसी के प्रति कोई शिकवा – शिकायत नहीं होती थी |
बचपन का एहसास कराती एक बहुत सुंदर ग़ज़ल.. …
ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो
भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी ..
मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन
वो कागज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी
मोहल्ले की सबसे निशानी पुराणी
वो बुढ़िया जिसे बच्चे कहते थे नानी
वो नानी की बातों में परियों का डेरा
वो चेहरे की झुर्रियों में सर्दियों का फेरा
भुलाये नहीं भूल सकता है कोई
वो छोटी सी रातें वो लम्बी कहानी
कड़ी धुप में अपने घर से निकलना
वो चिडिया वो बुलबुल वो तितली पकड़ना
वो गुडिया की शादी में लड़ना झगड़ना
वो झूलों से गिरना वो गिर के संभालना …
वो पीतल के छल्लों के प्यारे से तोहफे
वो टूटी हुई चूड़ियों की निशानी
कभी रेट के ऊँचे टीलों पे जाना
घरौंदे बनाना बना के मिटाना
वो मासूम चाहत की तस्वीर अपनी
वो ख्वाबों खिलौनों की जागीर अपनी
न दुनिया का गम था न रिश्तों के बंधन
बड़ी ख़ूबसूरत थी वो जिंदगानी ……

मुझे यह महसूस होता है कि बचपन एक उम्र का नाम नहीं है बल्कि , एक एहसास है ,वो एक मानसिक स्थिति को कहते है ..जहाँ नफरत और चिंता से मुक्त हमे शांति और ख़ुशी का एहसास कराता है |
मैं समझता हूँ यह मानसिक स्थिति को किसी भी उम्र में हासिल किया जा सकता है | अगर कुछ बातो को समझ लिया जाये तो | ..
चलिए आज फिर से बच्चा बनने की कोशिश करते है …, इसके लिए बच्चो वाली कुछ हरकतों को अपनाते है .. फिर देखे ज़िन्दगी कैसी महसूस कराती है..
शायद इसके लिए उनकी कुछ विशेषता को अपने अंदर जिंदा करना होगा , जिससे अपने में भारी बदलाव नज़र आ सकता है | कुछ ध्यान देने योग्य बातें है …और ये है …….
१, मन में संदेह का ना होना .. बच्चे की एक विशेषता होती है कि उसके मन में किसी बात का संदेह नहीं होता है | अगर मुझसे कोई कहे कि इस दीवार को हो धक्का दे कर खिसका दो तो हम कहने वाले पर हँसेंगे | क्योंकि हमारे मन में संदेह हो जाता है कि यह काम संभव नहीं है |
वही, दूसरी तरफ किसी बच्चे को यही बात कही जाये तो वो सोचेगा नहीं , बल्कि हाथ लगा के धक्का देना चालू कर देगा | मतलब कि बच्चे में संदेह की स्थिति नहीं होती है |
लेकिन बड़े होकर हमने अपने अंदर एक इंटेलिजेंस विकसित कर लिया है , जिसके कारण कोई भी काम करने के पहले दस बार सोचते है …
इसी तरह हम अपने दिमाग में बहुत सी दीवारें खड़ी कर रखे है जिसके कारण हम ख़ुशी तक नहीं पहुँच पाते है वो दीवार है .. खुद पर संदेह करना |
बाहर की दीवार को तो नहीं गिराया जा सकता है लेकिन दिमाग के अंदर की खड़ी दीवार को गिराया जा सकता है | और वो दीवारे है हमारे मन में बहुत सी गलत धारणा का बना लेना | जिसके तहत हम कोशिश भी करना छोड़ देते है उस दीवार की हटाने की | लेकिन इस अंदर की दीवार को गिरा कर तो देखे | खुशियों तक अवश्य पहुंचेंगे |
२. वर्तमान में जीना …….बच्चा हमेशा वर्तमान को एन्जॉय करता है | उसे भुत काल की बातों से परेशानी और भविष्य को लेकर चिंतित नहीं रहता है | अगर अपने को खुश रखना है तो बच्चे के इस गुण को अपनाना होगा | वर्तमान क्षण को एन्जॉय करना सीखना होगा, भुत और भविष्य की चिंता किये बिना | मुँह बना के बैठने से क्या होगा | ज़िन्दगी एक एक पल खिसकती जा रही है उसे मौज मस्ती में जीना सीखना होगा |
३. एक पर्यवेक्षक बनो : बच्चे को हमेशा सिखने की जिज्ञासा होती क्योंकि वह बहुत अच्छा observer होता है ,वो हर चीज़ को ध्यान से देखता है | हमें भी ऐसी आदत को अपनाना चाहिए और अपने आस पास की अच्छी बातों पर हमेशा ध्यान देना चाहिए और कुछ ना कुछ सीखते रहना चाहिए . और अच्छीं आदतों को .विकसित करना चाहिए|

यह सत्य है कि हम बड़े होकर यह मान लेते है कि हमें सब कुछ आता है और हम सिखने की कला से बाहर आ जाते है | अगर observing capacity बढ़ाएंगे तो learning capacity भी बढ़ेगी और आप खुशियों के करीब रहेंगे |
छोटे छोटे लम्हों पर हम ध्यान दें ,जैसे आप कही ट्रेन से जा रहे है तो खिड़की से बाहर देखिये और उस प्राकृतिक दृश्य का एहसास करें और इसका आनंद उठायें | आप पाएंगे कि आप सफ़र को एन्जॉय करते हुए तय कर लिए है |
४. दुःख के लिए दिल में स्थान नहीं ..अगर बच्चा कभी खेलते खेलते गिर जाता है, उसे चोट भी लगती है और वो रोता भी है .. फिर एक खिलौना पाकर वो खुश हो जाता और सारे दुःख तकलीफ तुरंत भूल जाता है | किसने उसे मारा और क्यों मारा वो सब भी भूल जाता है | उसके पास दुखी रहने की कोई वजह नहीं होती |
इसके बिलकुल उलट हमें कोई तकलीफ दे दे या किसी के बात पे गुस्सा आ जाये तो उसे दिल में बैठा कर रख लेते है | वो हमारे दिमाग से कभी निकलता ही नहीं , और उसे सोच कर खुद ही कुंठित होते रहते है | इसके कारण हम खुशियाँ से कोसों दूर हो जाते है |
किसी महात्मा से पूछा गया सवाल …गुस्सा क्या है ?
तो, उन्होंने बड़ा प्यारा सा ज़बाब दिया ..किसी दुसरो की गलती की सजा खुद को देना.. |
अगर कभी हमें असफलता मिलती है या किसी के व्यवहार से कुछ असंतोष हो जाये तो उसे पकड़ कर बैठे रहते है | हम उसके कारण होने वाली पीड़ा और तकलीफ से उबरने की कोशिश ही नहीं करते है | हमें याद रखना चाहिए कि ज़िन्दगी बड़ी छोटी है ,,हमें बच्चे बन जाना होगा और उन सब बातों को दो मिनट में भूलना सीखना होगा, ताकि खुशहाल ज़िन्दगी जी सकें |

५. लोग क्या कहेंगे .. बच्चा अपनी मस्ती में रहता है .वो कभी इस बात की परवाह नहीं करता कि लोग क्या कहेंगे | और हम है कि किसी भी काम को करने के पहले हमारे मन में ….यह विचार आता है कि लोग क्या कहेंगे… यह सच है कि सबसे बड़ा है रोग .. क्या कहेंगे लोग… इससे हमारी खुशियाँ हमसे बहुत दूर चली जाती है |
कुछ चीज़े जिसे करने से हमें ख़ुशी मिलती है और इससे किसी को कोई कष्ट नहीं होता है तो उन चीजों करने में लोगों की परवाह नहीं करनी चाहिए | अगर मेरा मन गाने का है , नाचने का है , या और कोई इच्छा है जिससे किसी को परेशानी नहीं हो रहा है … तो उसे विंदास करना चाहिए | वो मेरे बारे में क्या सोचते है….यह काम उनका है तो उसे हम क्यों करे.. हम तो उस काम से मिल रही ख़ुशी का आनंद लें .|
यह सत्य है कि एक इंसान की जब ९०% ज़िन्दगी गुज़र जाती है तो ९०% लोग को यह महसूस होता है कि लोगों के कहने का कोई फर्क नहीं पड़ता है | अगर आप दुनिया से चले जाओ और संयोग से फिर साल – छह महीने बाद वापस दुनिया में आना पड़े तो पाएंगे कि लोग तो आप को याद भी नहीं करते है |
६. बिना वजह की खुश होना…..छोटा बच्चा को देखेंगे कि वह बिना वजह के हँसता रहता है , उसके सामने टेढ़ी मुहँ बनाया तो हंसने लगता है | वो हँसने की वजह नहीं ढूंढता है | लेकिन वही बच्चा जब बड़ा हो जाता है तो उनकी दिमाग की कंडीशनिंग हो जाती है और कुछ ख़ास वजह पर ही हँसी आती है ,और आज कल तो हँसने की सीमा भी तय कर रखी है..कि कहाँ तक हँसना है और किस बात पर कितनी हँसना है वरना लोग कहते है …असभ्य है |
जब कोई मनचाहा चीज़ हमें मिल जाए या अगर सफल हो जाये तो थोड़ी देर के लिए ही खुश होते है | लेकिन बिना वजह के हँसना और खुश होना सिख लिया जाये तो आपकी पूरी ज़िन्दगी बदल जाएगी |
आप ज़िन्दगी का असली मर्म समझ लेंगे…यानी महसूस करेंगे कि “ज़िन्दगी को जीना सिख लिया है “ ……….

BE HAPPY… BE ACTIVE … BE FOCUSED ….. BE ALIVE,,
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VARE NICE.PIC..GOOD MORNING
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thank you dear,,,stay connected..
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Gd morning have a nice day sir ji
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Good afternoon dear , stay blessed…
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Great post 😁
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thank you sir , your words mean a lot .. stay connected and visit my site for other blog also…
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