
आज करीब दो महीने के बाद लॉक डाउन में थोड़ी ढील दी गई है जिसके तहत सुबह सैर करने के लिए पार्क को भी खोल दिया गया था |
और यह क्या … ? आज पहला दिन ही जैसे चीटियाँ बिल से बिलबिला कर निकलती है , वैसे ही लोग अपनी घरों से सुबह सैर को अच्छी संख्या में निकल गए थे | आज पार्क में अच्छी खासी भीड़ थी |
होता भी क्यों नहीं, पुरे दो महीने घर में बंद रहने के बाद, आज ही तो मौका मिला है कि लोग खुली हवा में सुबह सुबह की सैर का मजा ले सकें |
सब लोग खुश थे और अपने पुराने साथी से मिल कर पिछले दो महीने के अपने अपने अनुभव को साझा कर रहे थे |
अब लोगो को समझ में आ गया है कि करोना से लड़ना है तो खुद को स्वस्थ रखना ज़रूरी है और उसके लिए खान पान के अलावा सुबह का सैर भी ज़रूरी है |
यही तो आज का नया मंत्र है , जिसे महसूस किया जा रहा है और इम्युनिटी मजबूत रखने के लिए पार्क में पुराने दोस्तों के साथ मिलकर हँसना बोलना और खुद को खुश रखने की कोशिश की जा रही है |
शायद यही कारण है कि इतने लोग पार्क में दिखाई दे रहे है |
अचानक टहलते हुए मिस्टर बनर्जी मिल गए | दुआ सलाम के बाद मैंने पूछ लिया …क्या बात है ? आज आप अकेते ही टहलने आये है , अपनी पत्नी को घर पर ही छोड़ दिया ?
इतना सुनना था कि वो भावुक हो गए और बोल पड़े ….वो तो दुनिया ही छोड़ गई ..उनके आँखों से आँसू बहने लगे |
उनकी यह हालत देख कर मेरी तो कुछ समझ में ही नहीं आया और मैं घबराहट में पूछा …क्या बात हुई ?
थोडा अपने को सँभालते हुए बतलाने लगे …. एक महिना पूर्व मेरी पत्नी करोना के चपेट में आ गयी और ज्यादा तबियत बिगड़ने पर सरकारी हॉस्पिटल में मुश्किल से दाखिला मिला | लेकिन वहाँ के इंतज़ाम की कमी की वजह से बचाया नहीं जा सका | अब मैं काफी अकेला महसूस करने लगा हूँ और करोना का खौफ भी बना रहता है |
उनकी बातों को सुनकर मेरी भी आँखे गीली हो गई | और मैं सोचने लगा… हमारे यहाँ मेडिकल सुविधा इतनी कमज़ोर क्यों है | इस पर पहले से विशेष ध्यान क्यों नहीं दिया जाता |

यही सोचते सोचते मैं घर की ओर वापस आने लगा तो सामने मिश्र जी दिख गए |
मैं दोनों हाथ जोड़ कर कहा …प्रणाम |
बड़ी अजीब बात हुई | उन्होंने मेरे प्रणाम का जबाब देने के बजाए मुझसे ही प्रश्न कर दिया |…
उन्होंने मेरी ओर देखते हुए पूछा … जानते है “ प्रणाम” का मतलब क्या होता है ?
अचानक उनके इस तरह के प्रश्न पूछे जाने पर मैं गड़बड़ा गया और मुझे उसका उत्तर तुरंत नहीं सुझा | थोडा सोच कर ज़बाब देने वाला ही था कि वे बोल पड़े …
प्रणाम एक अनुशासन है,
प्रणाम शीतलता है
प्रणाम प्रेम को दर्शाता है
प्रणाम आदर करना सिखाता है
प्रणाम क्रोध मिटाता है
प्रणाम आँसू धो देता है
प्रणाम से सुविचार आते है
प्रणाम हमें झुकना सिखाता है
प्रणाम अहंकार मिटाता है
और प्रणाम हमारी संस्कृति भी है ..
सच कहूँ तो ,आज कल सिर्फ हाथ जोड़ कर प्रणाम करने की फॉर्मेलिटी निभाया जा रहा है | इसमें छिपी अच्छाइयों को समझ नहीं पा रहे है |
आज के इस वैज्ञानिक युग में हम स्वयं को मशीन बना लिए है | हम अपनी भावनाओं को खोते जा रहे है | हर इंसान सिर्फ पैसे के पीछे भाग रहा है ,एक दुसरे को नीचा दिखा कर स्वयं को महान साबित करने में लगा है | कुछ लोग तो अपने को भगवान् ही समझ बैठे है |

सच है, प्रणाम का मतलब हम सब भूल गए है |
लेकिन करोना के कहर ने सभी को अपनी औकात बता दी | अब धीरे – धीरे लोगों की सोच बदल रही है |
आज पैसो की उतनी अहमियत नहीं रह गई है | सब लोग पैसे के पीछे ना भाग कर पहले अपने स्वास्थ पर पूरा ध्यान लगा रहे है | अपने इम्युनिटी को कैसे बढ़ाये और स्वस्थ रहने के उपाय नेट और यू –टयूब में ढूंढ रहे है |
अब आने वाला समय एक भारी बदलाव ले कर आने वाला है और हमलोग की जीवन शैली बिल्कुल बदल जानी है |
मैं उनकी बातों को ध्यान से सुनता रहा और मन ही मन उनकी बातो की सत्यता को महसूस कर रहा था |
चूँकि “मोर्निंग- वाक” का समय था इसलिए फिर वो अपने रास्ते चल दिए | लेकिन मैं वही पार्क में सीमेंट के बने एक बेंच पर बैठ गया और उनकी कही गयी बातों का विश्लेषण करता रहा और सोचने लगा … क्या आने वाला समय इतना भयावह होगा |
जहाँ भी न्यूज़ चैनल देखता हूँ या अखबार पढता हूँ जो लोग सिर्फ डराने का ही काम कर रहे है | कही ऐसा तो नहीं कि अब डर का व्यापार बहुत फल फुल रहा है |
हालाँकि, देखा जाये तो जितनी मौतें करोना से बतायी जा रही है ,वो आकड़ा तो पहले भी था, पर कारण करोना नहीं था बल्कि और अलग तरह होते थे | फिर हमलोग इतना डरे हुए क्यों है ?
आज का एक मेसेज पढ़ कर थोडा विचलित हो गया था | कोई ऋतू नाम की महिला थी ..वो बता रही थी कि दिल्ली में उनकी बहन करोना पॉजिटिव हो गईं | अचानक से इस खबर को सुन कर पूरा परिवार घबरा गया | क्योकि पहले से इस तरह की समस्या का उपाय सोच कर कोई नहीं रखता है कि अगर ऐसा होगा तो तुरंत क्या उपाय करना है |
अब उनके साथ पति है और दो बच्चे भी है उनको भी इससे बचाना है | उनको हाई फिवर हो रही थी और सांस लेने में कठिनाई महसूस हो रही थी |
उनके पति उनको अपनी गाड़ी में बैठा कर एक प्राइवेट हॉस्पिटल में ले गए | काफी देर इंतज़ार और कोशिश के बाद भी हॉस्पिटल में बेड ना होने के कारण जगह नहीं मिली | फिर वहाँ से दुसरे हॉस्पिटल और फिर तीसरे में गए | इसी तरह हॉस्पिटल के चक्कर लगाते रहे, लेकिन सभी ने मना कर दिया |

इस बीच उनका तबियत काफी बिगड़ने लगी | फिर बहुत मुश्किल से एक जगह हॉस्पिटल में किसी तरह एडमिट करने को तैयार तो हो गए पर उनका बिल अमाउंट सुनकर आँखे फटी की फटी रह गई |
जी हाँ , एक लाख रुपया प्रति दिन का खर्चा आएगा, ICU में रखने के लिए | अगर एडमिट लेना है तो ठीक वर्ना आप जा सकते है |
अब इतना पैसा खर्च करना तो सब के वश में नहीं है | वो फिर वहाँ से भाग कर सफ़दरजंग हॉस्पिटल आ गए , वहाँ चार घंटे की मसक्कत के बाद उनका नम्बर आया | यह हालत है हमारे मेडिकल सुविधा की |
अगर एक आम इंसान की बात करे तो उनका इलाज संभव ही नहीं लगता है | अब ऐसी स्थिति में क्या किया जाये. ?.
डर का कारण अब कुछ कुछ समझ में आ रहा था | पहली बात तो यह कि अब तक इसकी दवा या वैक्सीन बनी ही नहीं है |
दुसरे अगर इसकी चपेट में आ गए तो किसी हॉस्पिटल में एडमिट होना ही मुश्किल काम है |
और अगर एडमिट हो भी गए तो मंहगे इलाज आप की कमर तोड़ देगी और उस पर भी आप ठीक हो भी जायेंगे इसकी कोई गारंटी नहीं है |
आस पड़ोस और रिश्तेदार अछूतों जैसा व्यहार करने लगते है | आप बीमार क्या हुए “जिन्दा” भुत ही बन गए, लोग आप से डर कर भागने लगते है |
डर और परेशानियाँ, बीमारी से ज्यादा हमारे आस पडोस और समाज की सोच और मानसिक दिवालियापन का है , जिसे हमें ही बदलना पड़ेगा |
आज हमलोग को बैठ कर ठन्डे दिमाग से विचार करने की ज़रुरत है और इसका निदान ढूँढना ज़रूरी है | यह सच है कि हमने प्रकृति का दोहन किया है जिसका परिणाम हम आज भुगत रहे है | अगर अभी भी ना संभल पाए तो आगे आने वाले समय में इतना भी समय शायद हमें ना मिल पाए |
आइये हमलोग प्रकृति से जुड़े और उन सब नियमो का पालन करें ताकि हम स्वस्थ रह सकें और किसी भी परिस्थिति का सामना कर सकें….

सोचता हूँ कि …...
सोचता हूँ… कहाँ से कहाँ आ गए हम,
इस विज्ञानं के युग में भावनाओं को खा गए हम
अब एक भाई दुसरे भाई से सामाधान कहाँ पूंछता है ..
अब बेटा बाप से उलझनों का निदान कहाँ पूछता है ..
बेटी नहीं पूछती माँ से गृहस्थी के सलीके ,
अब कौन गुरु के चरणों में बैठ कर ज्ञान की परिभाषा सीखता है ..
परियों की बातें अब किसको भाती है ,
अपनों की याद अब किसको रुलाती है ,
अब कौन ग़रीब को सखा बताता है ..
अब कहाँ कृष्णा सुदामा को गले लगाता है
ज़िन्दगी में हम कितने बदल गए है …
अपनों के साथ रहते हुए भी अपनों से दूर हो गए है….
हाँ,…अपनों से दूर हो गए है….
BE HAPPY… BE ACTIVE … BE FOCUSED ….. BE ALIVE,,
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Categories: motivational
Bilkul aap ki baat saye sahemaat hu. Ab wo jamana nahi raha .
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धन्यवाद अनुज , समय परिवर्तनशील है /आने वाला समय अच्चा होगा , ऐसी आशा करता हूँ /
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समय बहुत बदल गया. हैं.. सर.जी बात सही है।
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बिलकुल सही है /आने वाला समय मुश्किल से भरा होगा/
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GOOD MORNING
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धन्यवाद डिअर /
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.excellent and very nice.pl.stay safe.
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thank you dear ..we received your comments after a long time ..
stay connected and stay happy..
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Radhe radhe sir ji
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thank you and Jai shree krishna..
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👏👏👏🙇
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thank you..
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Reblogged this on Retiredकलम and commented:
The most difficult task is to make everybody happy,
The simplest task is to be happy with everyone..
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