
आज शिवगंज शाखा में मेरा पहला दिन | मैं अपनी सीट पर बैठने वाला था कि चपरासी “कालू राम” दौड़ता हुआ मेरे पास आया और बोला आप इस सीट पर बैठने के पहले हमलोगों का मुँह मीठा तो करा दीजिये |
मैं उसकी बातों पर सहमती जताते हुए पॉकेट से एक सौ का नोट निकाल कर दिया और कहा …मेरी भी यही इच्छा है |
और फिर मैं ब्रांच के फाइलों में खो गया | थोड़ी देर के बाद ” मीणा जी” नज़र आये | वो मेरे पास आते ही कहा कि मेरा तो आज इस शाखा में अंतिम दिन है और तुम्हारा पहला |
तुम तो मेरे अपने हो, इसलिए तुम्हे बता दूँ कि यहाँ किसानों को ऋण देना कठिन है ,क्योंकि तीन सालों से इस इलाके में बारिस नहीं हुई है |
और पुरे इलाके में अकाल की स्थिति हो गई है | किसानों के सभी फसल नष्ट हो गए है और यहाँ के किसानो की हालत बहुत ही ख़राब है |
यहाँ तो मैं मजे में था, क्योंकि मैं किसी तरह का ऋण के झमेले में नहीं पड़ता था | मेरा मानना है कि दिए गए ऋण की वापसी बहुत मुश्किल है | इसलिए मेनेजर के कहने के बाबजूद मैं कोई ऋण स्वीकृत नहीं करता था | तुम भी आराम से यहाँ बैठे रहो और मस्ती करते रहो |
मुझे महसूस हुआ कि इसकी इसी सोच के कारण शायद मेनेजर साहब ने इसकी शिकायत बड़े साहब से की होगी ,और इसे यहाँ से हटा कर मुझे एडजस्ट किया गया है |
हालाँकि मीणा जी का मानना था कि रेवदर ब्रांच मैनेजर और मेरे बीच झगडा के कारण उसे “बलि का बकरा” बना दिया गया है | वो अपने ट्रान्सफर को लेकर काफी नाराज़ था और रेवदर मेनेजर को ही अपने ट्रान्सफर का दोषी मानता है |
वह आगे बोला –… मैं सबसे पहले जाकर मेनेजर से ही निपटता हूँ और वहाँ से ट्रान्सफर की युक्ति लगाता हूँ |
मैं उसकी बातों को ध्यान से सुनता रहा, लेकिन बोला कुछ नहीं, क्योंकि रेवदर की चर्चा चलते ही, मुझे उसकी याद आ जाती है और मन दुखी हो जाता है |
मैं जबाब में कुछ नहीं बोला… बस, उन मोटे मोटे लेज़रों से कुछ किसानों के नाम को नोट करने लगा जिससे संपर्क करना ज़रूरी था | क्योंकि उन्होंने ऋण की क़िस्त नहीं जमा कराई थी | उन दिनों बैंक में computerization नहीं हुआ था और बैंक के सभी कार्य मैन्युअल ही थे |
मीणा जी की “फेयरवेल पार्टी” समाप्त होते ही मैं मेनेजर साहेब के चैम्बर में गया और उनसे निवेदन किया कि मैं कुछ किसानो से मिलना चाहता हूँ ताकि किस्तों की वसूली की जा सके |
उन्होंने हँसते हुए कहा — मैं तो पहले ही आप को यह छुट दे रखी है | आप को जब इच्छा हो आप “फील्ड विजिट” कर सकते है | उन्होंने ड्राईवर बाबु लाल जी को बुलाया और बोला ..– आप के साहब सोहन सिंह जी से मिलने “जवाई बांध” जाना चाहते है |

बाबु लाल जी फ़ौरन जीप लेकर आ गए औए हम दोनों निरिक्षण के लिए निकल पड़े | रास्ते में जाते हुए बाबु लाल जी से कुछ किसानो के बारे में संक्षिप्त जानकारी लेता रहा | वो यहाँ का बहुत पुराना ड्राईवर था और करीब – करीब सभी ऋणी के बारे में जानता था |
दस किलोमीटर की दूरी तीस मिनट में तय करता हुआ सोहन सिंह के फार्म हाउस में हमलोग दाखिल हो गए |
वो फार्म हाउस पर ही काम करते हुए मिल गए \ मैंने देखा करीब दस बीघा में लगी सरसों की फसल पानी की कमी के कारण सुख रही थी \
सोहन सिंह जी, हमारे ड्राईवर बाबु लाल जी को देख कर समझ गए कि हमलोग बैंक से आये है |
उन्होंने एक घने पेड़ के नीचे खाट बिछा कर बैठने का आग्रह किया और जल्दी से पानी का लोटा लाकर पीने को दिया | जल पीने के बाद मैं बातों का सिलसिला शुरू किया और क़िस्त ना जमा होने का कारण जानना चाहा |
सोहन सिंह जी ने अपनी समस्या बतानी शुरू कर दी | उन्होंने कहा — अचानक कुआँ का पानी सुख गया है जिससे खड़ी फसल बर्बाद हो रही है और पिछली फसल भी अच्छी नहीं हुई थी |
उन्होंने बताया कि यहाँ का पूरा एरिया पथरीला है और कुएं को गहरा करने के लिए उसके अंदर के पत्थर को तोड़ने के लिए भुटका (blasting ) करना होता है |
फिर छोटे छोटे पत्थर के टुकड़े को बाहर निकाला जाता है | काफी रिस्की होता है यह प्रक्रिया | इसीलिए काफी पैसो की ज़रुरत होती है |
मैं इसके लिए पहले वाले साहब से निवेदन भी किया था कि कुछ ऋण स्वीकृत कर दे ताकि ठीक ढंग से खेती कर सकूँ और अगला पिछला सब बकाया बैंक को चूका सकूँ | लेकिन उन्होंने तो ऋण देने से साफ़ मना कर दिया, क्योंकि ट्रेक्टर की क़िस्त जमा नहीं करा सका हूँ |
मैंने महसूस किया कि इस सुनसान जगह में अकेले झोपडी बनाकर परिवार के साथ रहना बहुत हिम्मत की बात थी | एक तरफ पहाड़ था और नीचे ताल में खेती होती है |

इस बीच चाय भी आ गई | मैंने चाय पीते हुए सोहन लाल जी से पूछ ही लिया …. ऐसी सुनसान जगह में फॅमिली को लेकर रहने में डर नहीं लगता है ? आप गाँव में भी रह कर इस खेती को संभाल सकते थे | इसके लिए आपको खतरा उठाने की क्या ज़रुरत थी |
उन्होंने जो जबाब दिया, उसे सुनकर मेरे रोंगटे खड़े हो गए | उन्होंने बताया …साहब, इस पहाड़ी पर तरह तरह के जानवर है, जो रातों को आकर फसल बर्बाद कर देते है |
कल ही की तो बात है… रात में एक तेंदुआ मेरी एक बकरी को ले भागा | मैं जब तक बन्दुक ले कर झोपडी से बाहर आता , वो तेंदुआ शिकार लेकर जा चूका था |

मैं उत्सुकता पूर्वक पूछ लिया ..– यहाँ किस तरह के जानवर है ? ..
साहब, यहाँ तेंदुआ, काला हिरन, नील गाय और बहुत तरह के जानवर है जो इस पहाड़ी जंगलों में रहते है |
आप कभी रात में यहाँ रुको तो जंगली खरगोश के शिकार का मजा ले सकते है | कभी भी मेहमानबाज़ी होती है तो खरगोश का शिकार कर उसी का मांस परोसा जाता है | आप भी कभी हमें मौका दें |
मैं मन ही मन सोचने लगा .–.इतने खूंखार जानवरों के बीच मुझे तो रात में नींद ही नहीं आ सकती है | इन लोगों को शायद इसकी आदत पड़ गयी होगी | .
शाम का वक़्त था और यहाँ की सुंदर प्राकृतिक छटा को देख कर मैं मंत्रमुग्ध हो गया | राजस्थान तो वैसे ही रेगिस्तान के लिए जाना जाता है | लेकिन यहाँ एक ऐसी जगह जहाँ एक तरफ हरे भरे पेड़ पौधों से सुसज्जित पहाड़ बिलकुल हरियाली छटा बिखेर रही हो और उसी के तल में समतल भाग में लोग खेती कर रहे हो , सचमुच काबिले तारीफ था |
चारो तरफ सरसों की फसल ऐसे लग रही थी मानो पूरा खेत पिली चादर ओढ़ कर बैठी हो / और दूसरी तरफ से जवाई – बाँध पर जाने का रास्ता था |
शाम का यह दृश्य बड़ा मनोरम था | मुझे लगा बस ऐसी जगह में रहने का मज़ा ही कुछ और है | .
मुझे सोहन लाल जी के बारे में जान कर उत्सुकता बढ़ गई .|
मैंने कहा — आप की कहानी बड़ी दिलचस्प लगती है | इतना सुनना था कि वो भावुक हो गए और अपने संघर्ष भरी ज़िन्दगी के बारे में बात करने लगे |. …
मेरे बाप दादा सियालकोट में रहते थे, जो अब पाकिस्तान में है | विभाजन के बाद वहाँ के कुछ हिन्दू भाई असुरक्षित महसूस करने के कारण वहाँ अपना सब कुछ छोड़ कर यहाँ शिफ्ट हो गए | क्योकि हमारे कुछ सगे सम्बन्धी आस पास के गाँव में रहते थे |
उस समय सरकार के तरफ से यही बिलकुल बंजर और पथरीला ज़मीन हमलोगों को बसने के लिए दिया गया था |
इस पर खेती करना बहुत मुश्किल था, सो मैं नौकरी करने “पूना” चला गया था | वहाँ मैं जॉकी था, घोड़ो को ट्रेनिंग देता था |
वहाँ जो कमाता था उसी से हम सब का गुज़ारा चलता था | लेकिन अचानक एक दिन पिता जी को दिल का दौरा पड़ा और वो चल बसे और मेरी माँ भी बीमार रहने लगी थी |
इसलिए पूना वाली नौकरी छोड़ कर यहाँ आना पड़ा | उसी समय यहाँ डैम का निर्माण हुआ तो थोड़ी पानी की सुविधा हुई |

हमलोगों ने रात – दिन मेहनत कर इस बंज़र भूमि को खेती के लायक बनाया है | लेकिन बारिस नहीं होने के कारण कुआँ का पानी भाग गया है और पानी के लिए कुआँ की खुदाई की ज़रुरत है जिसमे करीब चालीस हज़ार खर्च आएगा |
इनके संघर्ष पूर्ण कहानी को सुनकर, मैंने हर संभव मदद करने का मन बना लिया था | मुझे पता चला कि उनके कुएं का पानी लगातार बारिश नहीं होने के कारण सुख चले थे जिसे और गहरा करने की ज़रुरत थी |
सचमुच ऐसे संघर्षपूर्ण ज़िन्दगी की व्यथा सुन कर मुझे बहुत ही दुःख का अनुभव हुआ और मैंने साफ लहजो में उनको आश्वासन दे दिया कि चाहे जितना पैसा खर्च हो, आप अपने फसल को पानी के बिना ना मरने दें — बैंक आप के साथ है | ..
मैं वहाँ से उठ कर बस चलने ही वाला था कि उनकी पत्नी सिकंजी लेकर आयी और पीने का आग्रह करने लगी | ..
मैं सिकंजी का गिलास उठाते हुए उनकी ओर देखा …… उनके आँखों में एक चमक देखी , शायद यह आशा हो चली कि आने वाली दिनों में खेतो को भरपूर पानी मिलेगा और उनके ज़िन्दगी का कष्ट दूर हो सकेगा …..(क्रमशः )..

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इस रिश्ते को क्या नाम दूँ ….26
चढ़ते को सहारा लगा देते हैं कुछ लोग
बढ़ते को रास्ता बता देते हैं कुछ लोग ।
गिराने वाले तो दुनियाँ में बहुत देखे मग़र ,
गिरते को थाम के उठा लेते हैं कुछ लोग
BE HAPPY… BE ACTIVE … BE FOCUSED ….. BE ALIVE..
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Categories: मेरे संस्मरण, story
Nice story.
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Very nice story.
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thank you Anuj ..read other motivational story also and post your views…
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Reblogged this on Retiredकलम and commented:
चूम लेता हूँ ,
हर मुश्किल को
मैं अपना मानकर ,
ज़िन्दगी कैसी भी है
आखिर है तो मेरी ही |
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Good morning.
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