
इलायची की महक ओढ़े
अदरक का श्रृंगार करके सजी थी,
केतली की दहलीज़ से निकल कर
प्याली की डोली में वो बैठी थी
इस भागते हुए वक़्त पर….
कैसे लगाम लगाया जाए
ऐ वक़्त …तू बैठ इधर ,
तुझे एक कप चाय पिलायी जाये |
मैं सुबह – सुबह अकेला “नन्हकू चाय” की दूकान में बैठ कर चाय पीते हुए सोच रहा था कि …
कभी कभी मनुष्य जो सोचता है वैसा नहीं होता है और जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती है वो बात हो जाती है |
और हम परेशान हो उठते है | सच, कुछ ऐसा ही मेरे साथ भी हो रहा था |
कल की घटना ने इतना परेशान कर दिया है कि आज तो बैंक जाने का इच्छा ही नहीं हो रही थी |
लेकिन कहते है ना कि ज़िन्दगी है तो परेशानियाँ रहेगीं ही, और परेशानी से भागना नहीं बल्कि उसका सामना करना चाहिए |
बस, ऐसा मन में सोच कर अपने को मजबूत किया और यही सोचते हुए घर की ओर चल दिया |
रास्ते में ही राजेश दिख गया | शायद वो जल्दी में था इसलिए संक्षिप्त बात करना ही उचित समझा | उसने बस इतना कहा कि शाम में मिलता हूँ , ..दुसरे मकान के सिलसिले में बात करनी है |
हमने हाँ में सिर हिलाया और हमलोग अपने – अपने रास्ते चल दिए |
घर पर पहुँचा तो देखा कि मनका छोरी नास्ता बना कर मेरा इंतज़ार कर रही थी |
मैं जल्दी से नहा धो कर तैयार हुआ और नास्ता समाप्त कर बैंक के लिए घर से निकल गया | लेकिन रास्ते भर मन में तरह – तरह के नकारात्मक विचार उठ रहे थे |,
कल की घटना के बाद मेनेजर साहब का कैसा व्यवहार होगा ? अब पहले जैसा तो नहीं रहेगा, और यह स्वाभाविक भी है |
मेरे द्वारा किया गया इतनी बड़ी बेइज्जती …और वो भी सभी स्टाफ के सामने, बैंकिंग हॉल में | हमें लग रहा था कि इस घटना के लिए मुझे सख्त सजा दिलाने की कोशिश करेंगे |

दूसरी तरफ पिंकी थी, जो खुद ख़ामोशी का आवरण डाल रखा था और सभी लोग के अनगिनत बेहुदे सवालों को सुनकर भी विचलित नहीं हो रही थी |
सचमुच प्यार और दोस्ती में बहुत बड़ी ताकत होती है | उसके बारे में सोच कर मैं इतना विचलित था कि अभी मुझे ध्यान ही नहीं रहा कि मैं चलते चलते बैंक को पार करता हुआ और आगे चला जा रहा था |
मुझे अपनी इस बेवकूफी पर बरबस हँसी आ गई और फिर वापस बैंक की ओर मुड गया | मैं सोचने पर मजबूर था कि मेरी यह हालत ऐसी , कैसे हो गई ? , क्या यही ………. |
बैंक में दाखिल हुआ तो देखा सभी स्टाफ आ चुके थे सिर्फ मेनेजर साहब को छोड़ कर | सभी कुछ सामान्य लग रहा था जैसे कल कुछ हुआ ही नहीं था |
मैं अपने सीट को ग्रहण कर अपना कार्य शुरू करने की सोच ही रहा था कि रामू काका चाय और पानी सामने टेबल पर रखा और मुझसे पूछ लिया…रात में नींद आयी ?
मैं जबाब देने के बजाए उनको देख कर बस मुस्कुरा दिया | कुछ देर में सब कुछ सामान्य गति से चलने लगा और मैं भी अपने कार्य में लग गया |
काम की धुन में पता ही नहीं चला कि कब लंच का समय हो गया |
रामू काका मेरे पास आकर पूछे –. खाना खाने घर जाओगे या होटल से यही मंगवा दूँ ?
मैं अपने सीट से उठता हुआ बोला –..रामू काका, घर से खाना खा कर आता हूँ | लेकिन मुझे ध्यान आया कि अभी तक मेनेजर साहब अभी तक ब्रांच नहीं पधारे थे, | और ना ही उनका कोई सन्देश आया था | मुझे कुछ अनहोनी की आशंका होने लगी |
खैर, लंच के लिए घर जाते हुए अपने मन को समझाता रहा कि जो होगा, अच्छा ही होगा | अभी से ही कुछ अनहोनी के बारे में सोच कर परेशान क्यों होएँ |
शाम के करीब चार बज रहे होंगे और मैं वापस अपने सीट पर लौट आया था | उसी समय फ़ोन की घंटी बजी | मेनेजर साहब चैम्बर में नहीं थे इसीलिए मुझे ही फ़ोन को अटेंड करना पड़ा |
हेल्लो. – हेल्लो, मैं ए.एस. भाटी बोल रहा हूँ –.वर्मा जी है ?
जी, मैं बोल रहा हूँ, सर |
अरे, वर्मा जी, आप से मेनेजर साहेब का कोई लफड़ा हुआ था क्या ?
मैं खामोश रहा, कुछ नहीं बोल पाया |
तो आगे उन्होंने कहा ….आप के मेनेजर साहेब ने आप के विरूद्ध लिखित शिकायत की है कि आप ने उनके साथ मार – पीट की है |
हालाँकि मैंने अपने बड़े साहब को आप के बारे में कहा था कि आप एक अच्छे इंसान हो |
उनकी बात को सुन कर , मैंने उन्हें धन्यवाद कहा |
उन्होंने आगे कहा .. आप को पता है ? .. अभी सिरोही ब्रांच में बड़े साहब मीटिंग के लिए गए हुए है और आप के शाखा प्रबंधक महोदय भी वहाँ पहुंचे हुए है ..अभी अभी मुझे खबर मिली है |
हो सके तो आप भी वहाँ साहेब के पास पहुँच जाओ, ताकि आप भी अपना पक्ष रख सको |
मैं बड़ी उलझन में पड़ गया कि बिना बुलाए क्षेत्रीय प्रबंधक महोदय के सामने उपस्थित होना उचित ना होगा और फिर अपने ब्रांच को किसके भरोसे छोड़ कर जा सकता था |
मैं फ़ोन रखते हुए… भगवान् को याद किया |
प्रभु आप जो भी करेगें मेरे लिए अच्छा ही करेंगे, मुझे पूर्ण विश्वास है |
सभी स्टाफ मेरे सीट के सामने जमा हो गए और रामू काका भी दोपहर की चाय वही पर ला कर रख दी | हम लोग सभी चाय पीने लगे और अपने अपने ढंग से निष्कर्ष का अनुमान लगाने लगे |
शर्मा जी बोले पड़े … बड़े साहब तो बहुत समझदार है, | जब तक दोनों पक्ष की बात नहीं सुनेंगे वह अपना फैसला नहीं दे सकते |
जैसे – जैसे चर्चा होती रही … हमारे दिल की धड़कन बढती जा रही थी ..|
परिणाम जानने के लिए, अब हमलोग के पास सिर्फ मेनेजर साहब के वापस आने का इंतज़ार के सिवा और कोई विकल्प ना था |
सभी लोग अपने अपने कार्यों में लग गए | शाम के करीब पांच बज रहे थे और ब्रांच का कार्य समापन की ओर था |
हमलोग बचा हुआ कार्य पूरी कर घर जाने की तैयारी कर रहे थे | तभी फैक्स का रिंग टोन सुनाई पड़ा |
शायद कोई फैक्स आ रहा था | हम सभी आशंका से भर गए और सब लोग फैक्स मशीन के आस पास खड़े हो गए ताकि आये मेसेज को देख सके |
…जैसे जैसे फैक्स में पेज सरकता गया मेरी दिल की धड़कने भी बढती गई | जब दो पन्ने की पूरी फैक्स पढ़ा तो ब्रांच के अंदर ख़ामोशी छा गई |

हमारा ट्रान्सफर इस ब्रांच से कर दिया गया था |
शर्मा जी तुरंत बोल पड़े …इस लफड़ा में सिर्फ वर्मा जी की गलती नहीं थी ,,,मेनेजर साहब को भी किसी के लिए ऐसी अपशब्द नहीं बोलनी चाहिए थे /
इस पर हेड केशियर चारण साहेब बोलने लगे …एक बात इसमें अच्छी हुई है / सभी लोग चौक कर उनकी ओर देखा |
वो आगे बोले …. जिस ब्रांच में वर्मा जी का ट्रान्सफर हुआ है, वो इस ब्रांच से बेहतर है और वो गाँव नहीं शहर है | इसीलिए शिवगंज की पोस्टिंग को हम punishment क्यों माने ?
मैं फिर एक बार भगवान् को याद किया कि उन्होंने मेरी नौकरी बचा ली और इस जगह से भी अच्छी जगह पोस्टिंग मिली |
और सबसे बड़ी बात कि वहाँ शौचालय वाला मकान नहीं ढूँढना पड़ेगा | सुना है वह तो शहर है और वहाँ सभी मकान में इन-बिल्ट शौचालय है |
मैं तेज़ कदमो से चलता हुआ घर की ओर आ रहा था, क्योकि फैक्स मेसेज में लिखे निर्देश के अनुसार कल ही शिवगंज के लिए रवाना होना है और फिर उसके लिए पैकिंग भी करना होगा |
और इसके अलावा एक और ज़रूरी काम था कि किसी तरह एक बार पिंकी से मिल सकूँ ताकि हमलोग अपनी जज़्बात को एक दुसरे के समक्ष रख सकूँ
इन्ही बातों को सोचता घर की ओर आ रहा था कि रास्ते में राजेश मिल गया | राजेश को लेकर पास में एक चाय की दुकान पर ले गया ताकि चाय पीते हुए आगे की बात की जाये |
राजेश खुश होता हुआ बोला …आप के लिए एक अच्छा मकान का इंतज़ाम हो गया है और आप कल ही उसमे शिफ्ट हो सकते है और अपने वादे के मुताबिक मांगी लाल जी के मकान को खाली कर सकेंगे |
मैं उसकी बात को बीच में ही काट कर बोला…अब इसकी ज़रुरत नहीं है |
क्या मतलब ? …राजेश चौक कर पूछा |
मैंने उसे अपनी ट्रान्सफर की बात बता दी | और यह भी कहा कि किसी तरह एक बार पिंकी से मिलने का उपाय करो |
पिंकी से मिलना अब संभव नहीं है | उनका परिवार समाज बहुत सख्त है, …राजेश ने कहा |
लेकिन एक उपाय है | कल आप घर की चाभी देने उनके गाँव चले जाइये और उसी समय किसी तरह मिलने की कोशिश कीजिये | चाय समाप्त कर हमलोग अपने अपने घर को चल दिए |
घर पहुँचा तो मनका छोड़ी खाना बनाने की तैयारी कर रही थी | मैंने मुँह हाथ धोकर उसे खाना लाने को को कहा और कुर्सी पर बैठ गया | मुझे कुछ परेशान देख कर, वह धीरे से पूछ ली ….कोई और नयी मुसीबत आ गई है क्या ?
मैंने जबाब में ट्रान्सफर वाली बात बता दी … यह सुन कर, उसका चेहरा उतर गया | शायद उसकी नौकरी जाने का दुःख था |
रात किसी तरह बीती और सुबह जब बैंक पहुँचा तो मेरा ट्रान्सफर लेटर तैयार था | सभी स्टाफ लोग खड़े होकर बिदाई दी, | उन सभी के आँखों में आंसूं थे और मेनेजर साहब के भी |…
शायद उन्हें अपनी गलती का एहसास हो रहा था | …
और मैं सोच रहा था …मेरा ट्रान्सफर …” ईनाम है या सजा” ?…

BE HAPPY… BE ACTIVE … BE FOCUSED ….. BE ALIVE,,
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मेरे अधूरे सवाल…22
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Categories: मेरे संस्मरण, story
I am getting used to your stories Nana ji.
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Hahahah..Thank you dear..
I am happy to hear that you are enjoying my story…Stay connected and stay happy..
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कहानी तो अच्छी है ही मगर उपर वाले वो कुछ चाय से सम्बन्धित पंक्तियां……👌👌👌👌👌
उम्दा लेखन 🙏🙏
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धन्यवाद।अभी इस क्षेत्र में नया हूँ, लेकिन आप लोग का ब्लॉग से बहुत कुछ सिख रहा हूँ , हो सके तो मार्गदर्शन करें..
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अच्छा है
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बहुत बहुत धन्यवाद ,
आपके हौसलाअफजाई के लिए आभार,
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Reblogged this on Retiredकलम and commented:
Never accept the definition of Life from others,
It is your Life, define it yourself..
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