
चलो आज मुश्किलों को हराते है .
.चलो आज दिन भर मुस्कुराते है…
पिछला कहानी की अगली कड़ी ….
रोज़ की तरह आज भी सुबह उठने में देरी हो गई और घड़ी में देखा तो दिन के आठ बज रहे थे | लेकिन आज तो रविवार था, इत्मीनान का दिन / इसीलिए चिंता वाली कोई बात नहीं थी / परन्तु छुट्टी के दिन जो ख़ुशी का आभास होता था वैसी ख़ुशी का अनुभव आज नहीं हो रहा था /
मैं अनमने ढंग से बिस्तर छोड़ा और कपडे बदल कर “नन्हकू चाय” वाले के पास जाने की तैयारी करने लगा ..वहाँ तो चाय पर चौकड़ी हमारा इंतज़ार कर रहा होगा, आज छुट्टी का दिन जो है | हम सभी बैंक स्टाफ आस पास ही रहते हैं और छुट्टी के दिन सुबह सुबह यही मिलने का ठिकाना होता है | …कल की ही तो बात थी … शर्मा जी बोल रहे थे कि अब मैं निम्बू के चाय में शिफ्ट हो जाऊंगा , क्योंकी खाली पेट में सुबह दूध वाली चाय से गैस की शिकायत हो रही है |
मैं घर से बाहर जाने के लिए पैर में चप्पल डाला ही था कि किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी ..मैं समझ गया कि मनका छोरी आ गई है, नलका से पानी भरने का समय जो हो गया था …
.मैं दरवाजा खोल कर उसे कुछ बोलने ही वाला था कि ….यह क्या ? ..मनका नहीं थी बल्कि मांगी लाल जी सामने खड़े थे | वो नमस्कार करते हुए घर में घुसे और पास में पड़ी कुर्सी पर बैठ गए |
मैंने घड़े का एक गिलास पानी उनको दिया और उनके सामने ही कुर्सी खीच कर बैठ गया | उन्होंने पहले उठ कर बाहर का दरवाज़ा अंदर से बंद कर लिया और वापस आकर कुर्सी पर बैठ गए | थोड़ी देर बाद , मैंने ही ख़ामोशी को तोड़ते हुए उनसे आने का कारण पूछा |

उन्होंने बस इतना कहा कि कल जो भी हुआ उसके लिए मैं शर्मिंदा हूँ | उनके आँखों में आँसू थे |
मैंने कहा …लेकिन आप किस बात के लिए शर्मिंदा है |
मुझे पता है आप हमारे बच्चो का बहुत ख्याल रखते थे, लेकिन मेरा छोटा भाई को आप का मिलना जुलना पसंद नहीं था और हमारे जैन समाज में भी कुछ लोग गलत बातें फैला दी थी |
पिंकी सचमुच बहुत अभागी है , बचपन में माँ का प्यार खोया और बचपन से ही जिम्मेवारियों का बोझ भी उठा लिया | यहाँ तक कि घरेलु ज़रुरत के लिए अपनी इंजीनियरिंग की पढाई भी बीच में ही छोड़ दी | मेघावी छात्रा होते हुए भी उसकी पढने की इच्छा भी पूर्ण नहीं हो पाई |
लेकिन कल से उसने जो अपना हाल बना रखा है, उससे मुझे बहुत चिंता हो रही है / बिलकुल खामोश हो गई है, जैसे जिन्दा लाश हो | वो मेरी सबसे लाडली बेटी है ..बोलते बोलते उनके आँख से आँसू बह रहे थे |
मैं उनकी हालत को देखते हुए सिर्फ इतना कहा …मैं उसे समझाने की कोशिश करूँगा ..मेरी बात पूरा होने से पहले ही वो बोल पड़े ..आप उससे मिलने की कोशिश भी नहीं करेंगे | हमारे समाज के लोग के साथ परसों एक बैठक है जिसमे इस पर चर्चा करेंगे / …हमलोग समाज के नियम कानून के विरूद्ध तो नहीं जा सकते है ना | लेकिन आप से एक निवेदन है …उन्होंने हाथ जोड़ते हुए कहा, कृपया यह मकान दो दिनों में खाली कर दें, ताकि हमें अपने समाज के सामने और कोई समस्या का सामना नहीं करना पड़े |
मैं उनके हाथ हो पकड़ कर तुरंत बोल पड़ा .. आप बिलकुल मेरी तरफ से फिक्र ना करें, आप जैसा चाहेंगे, वैसा ही होगा.. लेकिन एक बार हमे पिंकी से मिलने दें |
इस पर उन्होंने ने कहा …मैं समझता हूँ ..आप उसे दुखी देखना नहीं चाहते है, लेकिन कल की घटना से मेरा भाई राम लाल ने पुरे घर को अपने सर पर उठा रखा है और समाज के लोग उसे उकसा भी रहे है , इसीलिए अच्छा होगा आप उसकी नज़रों से दूर रहे… वो धीरे धीरे सामान्य हो जाएगी |
मैं उनकी बातों से निरुत्तर हो गया | वो कुर्सी से उठते हुए फिर मेरी ओर दयनीय दृष्टि से देखा |

हाथ जोड़ कर सिर्फ अभिवादन किया और मैं भी घर में ताला लगा चल पड़ा मन को हल्का करने “नन्हकू चाय” की दूकान | मैं जब वहाँ पहुँचा तो मेरे चौकड़ी के लोग चाय पी कर जा चुके थे और मैं अकेला ही चाय की प्याली लिए मन का बोझ हल्का करने की कोशिश करता रहा |
वापस कमरे पर आया तो देखा घर का ताला खुला है,| शायद मनका छोरी आ गई थी | घर की एक चाभी उसे भी दे रखा था | मैं नहा धोकर बैठा ही था कि मनका सुबह का नास्ता टेबल पर रखते हुए .धीरे से कहा….खा लो | वो भी आज बिलकुल शांत थी, शायद हमारे दुःख का उसको अंदाज़ा था | फिर मैं दिन भर सोता रहा /
शाम जब नींद खुली तो तकिया कुछ गिला महसूस हुआ , शायद आँसू ने इसे भी भिगों दिया था |
घडी की सुई पांच बजा रही थी | मेरी नज़र अचानक दिवार पर टंगी पतंग पर गई और फिर छत की ओर देखा, ..आज कोई चहल पहल नहीं थी | कोई बच्चे नहीं खेल रहे थे,… यह सब कुछ मुझे असहनीय पीड़ा का अनुभव करा रहे थे | मैं तुरंत कपडे बदल कर घर से बाहर निकल गया और सीधा राजेश के दरवाजे को खटखटाया |….
राजेश मुझे देखते ही खुश होकर बोला..मैं आप का ही इंतज़ार कर रहा था / थोड़ी देर तक बातो का सिलसिला चलता रहा और फिर पिने पिलाने का दौर शुरू हो गया /
अचानक राजेश ने मुझसे पूछा …..जो मैं सुन रहा हूँ , क्या वो सही है /
दारू पीते पीते काफी रात हो गई थी और नशे की हालत में राजेश को वो सारी बात बता दी जिसे मैं राज की बात समझता था.. सच, दारू चीज़ ही ऐसी होती है |….
मैं राजेश को धन्यवाद् कहा और लड़खड़ाते कदमो से घर की ओर कुच कर गया | रात के १० बज चुके थे और गली में सिर्फ कुत्ते ही हमें घर पहुँचने में मदद कर रहे थे | किसी तरह घर का दरवाज़ा खोला और कपड़ा खोला भी ना था कि मुझे उलटी का आभास होने लगा | मैं दौड़ कर बाथरूम में घुस गया और बस उल्टियाँ चालू हो गई थी..| नशे के कारण बेहोशी सी महसूस कर रहा था |
मुझे पिंकी और पिछली घटना की याद आ गई /
किसी ने कंधे पर हाथ रखा … मैं पलट कर देखा, कोई धुंधला चेहरा नहीं था,
मैं लडखडाता हुआ किसी तरह बिस्तर तक पहुँचा, पर आज किसी ने सहारा नहीं दिया,
मैं अपने को बिस्तर पर गिरा दिया लेकिन आज जूता खोलने वाला कोई नहीं था |
मैं उसी तरह सो गया था / आधी रात में नींद भी खुली तो सामने पड़ी कुर्सी पर नज़र गई …लेकिन आज वहाँ कोई कुर्सी पर बैठा मेरी सेवा में अपनी नींद खराब नहीं कर रहा था ….. (क्रमशः)
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Bhut khub sir ji
Gd even sir ji
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