
आज पतंग बाज़ी कर मज़ा आ गया, ऐसा लगा जैसे बचपन वापस आ गया हो |
आज दिल बहुत खुश था क्योंकि आज पिंकी से भी छत पर कुछ बातें हुई | सच, आज का दिन बहुत अच्छा रहा |
लेकिन कल सुबह सात बजे ही मेनेजर साहेब के साथ निरिक्षण में “आबू रोड” जाना था | वहाँ वाहन- ऋण बाँट रखे थे ,उन सभी वाहनों का निरिक्षण भी करना था | इसीलिए सुबह जल्दी ही निकलना था |
यहाँ से आबू रोड की दुरी ३५ किलोमीटर थी और काम निपटा कर लंच तक वापस भी आना था, जैसा कि मेनेजर साहेब द्वारा पहले से निर्देश दिया जा चूका था |
अब समस्या थी कि कल इतनी जल्दी सुबह कैसे उठ पाउँगा ताकि समय पर नहा धो कर और तैयार होकर निकल सकूँ |
इन्ही ख्यालों में खोया मैं बैठा था कि मनका छोरी गरमा गरम चपाती और ग्वार – फली की सब्जी प्लेट में लेकर आयी और टेबल पर रखते हुए बोली …क्या सोच रहे हो साहेब ? कोई चिंता की बात है के |
मैं उसकी ओर देखते हुए बोला ..हाँ री छोरी,| कल सुबह म्हारे सात बजे “माउंट आबू” जानो है |
तो की समस्या है साहेब, पानी का गिलास रखते हुए वह पूछ बैठी | …
म्हयारो सुबह सुबह नींद खुले कोई नि | मेरी टूटी फूटी राजस्थानी भाषा सुन कर मनका हंसने लगी और बोली.. म्हारे हिंदी आवे है | मैं घनी हिंदी बोल सकूँ हूँ |
तू तो यह बता कि इतनी सुबह क्या खा कर जाऊंगा, क्योकि ३० किलोमीटर जाना है और फिर दोपहर तक वापस आना भी है |
अरे बाबु जी, तुम चिंता बहुत करते हो | तुम मनका हो नहीं जानते हो..मैं सात बजे सुबह तुम्हारे ज़िम्मन वास्ते खाना तैयार कर दूंगी और टाइम पर नींद से जगा भी दूंगी | उसके इस बात से सारी चिंता मिट गई | मैं रात को आराम से सो गया |
ठीक सुबह छह बजे दरवाज़ा पर दस्तक से नींद खुली और जल्दी से उठ कर दरवाज़ा खोला तो मनका छोरी घर के अंदर घुसते ही बोली … मेरे लिए आबू रोड से से क्या लाओगे ?
जवाब में मैंने पूछ लिया …तुम्हे क्या चाहिए, मनका ?
वो कुछ सोच कर बोली …मेरे लिए एक ड्रेस लेते आना बाबु जी … आबू रोड में खूब बड़ा मार्किट है |
ठीक है, बोल कर मैं स्नान ध्यान करने चला गया |
मैं तैयार हो कर बैठा ही था कि रोटी सब्जी की थाली मेरे सामने हाज़िर थी | मनका छोरी के आने के बाद खाना की समस्या से निजात पा लिया था | अब सिर्फ कपड़ा धोने और घर की सफाई मुझे खुद ही करना पड़ता था |

मैं जल्दी जल्दी जल्दी नाश्ता खा रहा था और वो सामने बैठी ..बक बक किये जा रही थी | बातो बातों में वो बोली कि “लाली” को भी काम पे लगा दो |
वो रोज़ झाड़ू-पोछा और तुम्हारे कपडे धो देगी | मैंने लाली से बात की थी, मेरे झोपडी के बाजू में ही रहती है | वो बोल रही थी कि २० रूपये माह के लेगी |
वो बक – बक करती रही और तब तक मैं अपना खाना समाप्त कर चूका था | वो फिर अपनी बातों को दोहराने लगी | हमारा इंतज़ार मेनेजर साहेब कर रहे थे इसलिए मैं जल्दी में बाहर निकलते हुए बोला कि काम समाप्त कर घर में ताला बंद कर चाभी जल्दी से दो |
इतना सुनते ही उसकी नज़र ताले पर पड़ी लेकिन चाभी वहाँ नहीं थी | मुझे घर से निकलता देख जल्दी से बोली ..लेकिन ताला की चाभी कहाँ है ?
मैंने गुस्सा होते हुए बोला ..तू एक चाभी भी नहीं ढूंढ सकती है | वो परेशान सारी जगह खोजती रही लेकिन नहीं मिली | वो आग्रह भरे शब्दों में बोली ..तू भी अपने पास चेक करो |
मैं जैसे ही पॉकेट में हाथ डाला ..चाभी मिल गई ..मैं जल्दी से ताला बंद कर घर से निकल गया और भागता हुआ मेनेजर साहेब के घर पहुँचा | वो भी तैयार बैठे हमारा ही इंतज़ार कर रहे थे |
आस पास पहाड़ी इलाका था और आज बहुत जबरदस्त बारिश हुई थी | फिर भी हमलोग आबू रोड का काम निपटा कर करीब तीन बजे दिन में वापस अपने जीप से लौट रहे थे |
करीब ३० किलोमीटर की दुरी पार करता हुआ, बस रेवदर पहुचने ही वाले थे कि रास्ते में एक छोटी नदी “लुनोल” पड़ती थी, जो प्रायः सुखी ही रहती थी,| सिर्फ बारिश के मौसम में पानी रहता था |
लेकिन आज जैसे ही लुनोल नदी के पास पँहुचा, तो वहाँ के स्थानीय लोग मुझे उसे पार करने से मना करने लगे | ..
उन्होंने कहा कि नदी “चल” रही है, और पानी पुल के ऊपर से काफी वेग में बह रहा था | हमें लगा कि जीप से क्रॉस कर सकते थे, लेकिन उन लोगों के समझाया कि मौसमी बारिस का पानी है, कुछ देर में इसकी गति कम हो जाएगी, तब तक इंतज़ार करना उचित होगा |
हमलोग पास के एक चाय के दूकान में चाय पीते हुए पानी के घटने का इंतज़ार करते रहे |
उसी समय एक ऐसा हादसा हुआ कि मेरी सांस जैसे रुक गई | एक बड़ा सा ट्रक उलटी दिशा से पार करने की कोशिश कर रहा था |
पुल के बीचोबीच आते ही ,पानी के वेग से ट्रक को बहाता हुआ नदी के बीच ले गया | उसका ड्राईवर और खलासी किसी तरह ट्रक के उपरी हिस्से में आकर बचाओ बचाओ चिल्ला रहा था |
उस हादसे को देख कर महसूस हुआ कि सचमुच इसे पार करना हमारे लिए किसी दुर्घटना का कारण बन सकता था | मैं ने भगवान् को शुक्रिया कहा और आराम से बैठ कर जल-स्तर घटने का इंतज़ार करने लगा |

रात के करीब १२ बज चुके थे, तब वहाँ के स्थानीय लोग जो अनुभवी थे, ने हमलोग को पार करने की सलाह दी |
खैर, भगवान् की कृपा से नदी पार कर ली | मैं घर जल्दी पहुँचना चाहता था, क्योंकि भूख बहुत जोर की लगी थी |
लेकिन आज तो घर पर खाना भी नहीं बना होगा क्योकि घर की चाभी मेरे ही पास थी | मैंने ताला खोल कर घर के अंदर घुसते हुए फिर एक बार भगवान् को याद किया | आज तो सिर्फ पानी पीकर ही सोना पड़ेगा |
तभी किसी ने मेरा दरवाज़ा धीरे से खटखटाया, | तो मुझे आशंका हुई कि आधी रात को भला कौन आ सकता था |
मैं परेशान हो उठा , और , जाकर दरवाज़ा खोला तो मुझे जैसे विश्वास ही नहीं हुआ | एक थाली में खाना लिए पिंकी खड़ी थी | थोड़ी देर तो जैसे मेरे मुँह से आवाज़ ही नहीं निकली |
उसी ने फिर ही धीरे से कहा.. जल्दी से खाना रख लो, मैं ज्यादा देर यहाँ खड़ी नहीं रह सकती | मैं बाद में फिर मिलूंगी |
इतना बोल कर जल्दीबाजी में वापस चली गई | मैं खाना की थाली पकडे महसूस किया कि मेरे मुसीबत के समय आज फिर वो मेरे साथ थी |
..मेरे मन की बात समझ लेना और मुसीबत में साथ देना …यह कौन सा रिश्ता है.. इसे क्या नाम दूँ ,.., मुझे पता नहीं …..(.क्रमशः)
इससे आगे की घटना जानने के लिए नीचे दिए link को click करें…
आप तो ऐसे ना थे….11

उन्हें नफरत थी हमसे
तो इज़हार क्यूँ किया…
देना था ज़हर तो प्यार क्यूँ किया
दे कर ज़हर बोले …पीना होगा,
जब पी गए तो बोले
तुम्हे मेरी कसम … जीना होगा…
BE HAPPY… BE ACTIVE … BE FOCUSED ….. BE ALIVE,,
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Categories: मेरे संस्मरण, story
Bhut khub sir ji
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Good morning and thank you..
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It is not a story , it is a beautiful novel. Continue it. Vermaji thank u for entertainment
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Thank you dear.
It is your words keep me writing something you like..Stay connected dear..
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Reblogged this on Retiredकलम and commented:
Your Greatness is not what you have,
It is what you GIVE..
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