# कुछ तो कहो #…7

इस छोटी सी ज़िन्दगी में बड़ा सबक मिला ज़नाब.. रिश्ता सबसे रखो, मगर उम्मीद किसी से नहीं | क्या रखा है आपस के बैर में यारों… छोटी सी ज़िन्दगी है, हर किसी से प्यार करो…

अच्छी सोच, अच्छी विचार और अच्छी भावना मन को हल्का करती है ..हँसते रहिये, हंसाते रहिये और सदा मुस्कुराते रहिये …

मैं सभी दोस्तों का शुक्रगुजार हूँ कि हमारा यह ब्लॉग आप लोगों को पसंद आ रहा है जैसा कि आप की प्रतिक्रिया से पता चलता है | मैं आशा करता हूँ इस lockdown से परेशान ज़िन्दगी में चेहरे पर थोड़ी मुस्कान लाने का एक छोटा प्रयास है.. पिछली बातों का सिलसिला जारी रखते हुए, आगे की  एक और कड़ी..

आज भी बैंक में सुबह से भीड़ थी,| काम के बीच में ही रामू काका चाय मेरी ओर बढ़ाते हुए धीरे से कहा… आज आप उदास लग रहे हो, क्या बात है ? 

मैं पलट कर रामू काका से चाय का कप लेते हुए ज़बाब में कहा ..नहीं काका, ऐसी कोई बात नहीं है, बस ज्यादा काम के कारण परेशान हूँ |

नहीं बेटा…. मैं तो तुन्हें पिछले सात माह से से देख रहा हूँ | ..काम कितना भी आ जाए, तुम फिर भी मस्त रहते हो | लेकिन कल से तुम्हारे चेहरे की  ख़ुशी गायब है |

उनकी बातों को अनसुनी  कर मुस्काते हुए फिर काम में लग गया |

बैंक से निकलते हुए घडी देखी  तो रात के आठ बज चुके थे | बैंक में काफी देर हो चुकी थी लेकिन आज घर में खाने की  समस्या नहीं थी |.

आज हमारे स्टाफ श्री रघुवर सिंह जी का  बर्थडे था, इसीलिए आज दाल – बाटी, चूरमा का ज़िम्मन  था | राजस्थानी भोजन खाकर  मज़ा आ गया और  जल्दी ही घर की ओर रवाना हो गया | परन्तु घर पहुँच कर फिर मन उदास हो गया | 

सुबह – सुबह किसी ने जोर से दरवाज़ा खटखटाया, जबकि मैं गहरी नींद में सो रहा था | आवाज़ सुन कर नींद खुल गई और घडी देखा तो दिन के नौ बजा  रहे थे |

मैं हडबडा  कर उठा और दरवाज़ा खोला ..तो सामने परमार(बैंक का स्टाफ) खड़ा था | मुझे देखते ही बोला ..अरे.. अभी तक सो रहे हो ?

वहाँ चाय की  दुकान पर सब लोग आप का इंतज़ार कर रहे है |

. मैंने कहा –..तुम चलो मैं अभी आता हूँ |

मैं हाथ – मुहँ  धोने के बाद कपडे बदल कर घर से निकल गया |

आज तो काफी देर तक सोता रहा.. .ठीक ही तो किया | देर रात तक पता नहीं क्यों मुझे नींद भी तो नहीं आ रही थी |

बस एक ही प्रश्न मेरे दिमाग में घूम रही थी जिसका उत्तर नहीं मिल पा रही थी |

ऐसी क्या बात हो गई  जो अचानक से बीच का दरवाज़ा कल से खुला ही नहीं है | मैं तो अपने तरफ से इसे खोल कर उसके घर तो जा ही नहीं सकता था, क्योकि कुण्डी उसके तरफ से लगी थी और हमारा वहाँ जाना भी उचित नहीं था |

खैर, चाय की  दूकान पर गप्प – सप्प चलता रहा | बैंक जाने की  कोई ज़ल्दी नहीं थी क्योंकि आज तो रविवार है, |

जब काफी समय हो गया तो हम सब अपने अपने ठिकानों की  ओर चल दिए | घर आकर देखा तो सरकारी नल में पानी आ चुका था और भीड़ भी हो चली थी |

मैं भी बाल्टी लेकर नल के पास खड़ा होकर उसी को ढूंढता रहा, शायद दिख जाए और उससे सही कारण का पता चल सके | लेकिन वो वहाँ नहीं थी |

इस बीच बहुत देर से मुझे खड़ा देख, घूँघट के बीच एक औरत ने धीरे से आवाज़ लगाई, पानी ले लो साहेब | मैं चुपचाप  पानी लेकर अपने कमरे में आ गया और सोचने लगा कि कब तक होटल का खाना खा कर अपने सेहत को ख़राब करता रहूँगा |

अचानक से ख्याल आया कि अपने घर के पिछवाड़े जो झोपड़- पट्टी है वही से एक औरत हमारे पास काम मांगने आयी थी |

मैं तुरंत स्नान ध्यान से निवृत होकर, घर के पिछवाड़े  स्थित झोपडी की  ओर चल पड़ा और संयोग से वो औरत अपने झोपडी के बाहर ही मिल गई |

मुझे देख कर जल्दी से मेरे पास आयी और बोली तुम्हारे लिए खाना बनाने वास्ते मेरी छोरी हैं, उसे आप काम समझा दो.. वो खाना बहुत अच्छी बनावे है | मैं उसको घर पर आने को बोल वापस अपने रूम पे चला आया |

थोड़ी देर में वो औरत अपनी बेटी को लेकर आ गयी | मैं ने पूछा — तुम्हारी बेटी खाना बनाने के कितने पैसे लेगी | इतना सुनना था कि उसकी बेटी बोल पड़ी … ..पुरे ४० रूपये चाहिए खाना बनाने के ….

हालाँकि तीस साल पहले यह रकम ठीक ही कही जा सकती थी | मैं ने उसकी बात को स्वीकारते हुए कहा कि आज से ही खाना बनाना होगा |

वो दोनों माँ – बेटी खुश हो गई | शायद पहली बार उनलोगों को काम करने के salary  मिलेंगे, वो भी ४० रूपये माह के | वो लोग शाम में पांच बजे आने का बोल उस समय चली गई |

मुझे भी भूख का आभास हो रहा था, इसलिए मैं भी उसी समय होटल की ओर रवाना हो गया | लौटते में, घर के लिए रसोई से सम्बंधित ज़रूरी सामान लेते हुए कमरे पर आ गया |

आज छुट्टी का दिन था इसलिए खाना खाने के बाद आलस लगना  स्वाभाविक था | बिस्तर पर जाते ही आँख लग गई |

आँख तब खुली जब छत पर बच्चों के खेलने कूदने की  आवाज़ सुनी | मैं भी हाथ मुँह धोकर खाना बनाने वाली का इंतज़ार कर रहा था |

जब वो पांच बजे तक नहीं आयी तो मैं भी छत पर आकर पिछवारे में स्थित उसकी झोपडी का मुआयना किया, लेकिन  छत से वो माँ – बेटी नहीं दिख रही थी |

मैंने उसी समय महसूस किया कि छत पर घर की सभी छोरियां थी सिर्फ पिंकी को छोड़ कर | मुझे उसके  बारे में जिज्ञासा हुई तो रेखा से पूछ लिया …तुम्हारी दीदी कहाँ गई ?

उसने बताया कि उसकी तबियत ख़राब है, इसलिए सो रही है …मैं और कुछ बोल पाता कि उसी समय वो खाना बनाने वाली छोरी घर का दरवाज़ा खटखटा रही थी और मैं वापस नीचे  आकर उसके साथ रात का भोजन के इंतज़ाम में लग गया ….  

इससे आगे की कहानी जानने हेतु नीचे दिए link को click करें,,

बड़े अच्छे लोग….8

कितना खुदगर्ज हो गया है

वो मेरी बात भी नहीं करता

वादे  भूल गया अब सारे

वो मुलाकात भी नहीं करता

नाराज़ हो गया था मुझसे शायद

कोई शिकायत भी नहीं की

ज़बाब क्या दूँ उसे,

वो कोई सवालात भी नहीं करता….   

BE HAPPY… BE ACTIVE … BE FOCUSED ….. BE ALIVE,,

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Categories: मेरे संस्मरण, story

7 replies

  1. Interesting story. Waiting eagerly.

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  2. Reblogged this on Retiredकलम and commented:

    we learn something from everyone
    who passes through our lives,,,
    some lessons are painful, some are
    painless, but all are priceless…

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  1. बड़े अच्छे लोग – Infotainment by Vijay
  2. एक अकेला इस शहर में….6 – Retiredकलम

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