
आज की सुबह अनकही अनजानी सी कहानी कह गई |
मेरी किस्मत न जाने अब कौन सी कहानी लिख गई |
आज की सुबह ने मुझे महसूस कराया कि..
मैं कौन हूँ और क्या हूँ..
मेरे वजूद से मुझे मिलाकर ,
न जाने खुद कहाँ खो गई..
नए मकान की चाभी पाकर मैं बहुत खुश था , और मेनेजर साहेब की मोटर साइकिल पर इठलाते हुए बैठा / मुझे पहली बार महसूस हुआ कि सच्ची ख़ुशी कैसी होती है | ख़ुशी ऐसी जैसे कि फाँसी के दिन किसी कैदी को अचानक आज़ादी मिल गयी हो | मैं ब्रांच की ओर रवाना होते हुए रास्ते भर मेनेजर साहेब को धन्यवाद करता रहा |

रास्ते में एक चाय की दूकान दिखी तो मैं साहेब से चाय के लिए request करने लगा | वो गाड़ी चलाते हुए ही बोले ..इतनी छोटी पार्टी से काम नहीं चलने वाला है |
मैंने तुरंत उनको आश्वस्त किया कि अभी ट्रेलर देखते है पिक्चर बाद में देखेंगे | साहेब फिर अचानक घडी पर जब नज़र दौड़ाई .. तो तीन बजने वाले थे | भूख जोरो की महसूस हो रही थी और अचानक क्षेत्रीय प्रबंधक महोदय का ख्याल आ गया, वो भी तो ब्रांच visit में आने वाले थे
| मैंने कहा कि उनको तो उदयपुर से आना है जो १५० किलोमीटर दूर है, इतनी जल्दी थोड़े ही ब्रांच पहुँच जाएंगे | इन्ही सब चर्चा में रास्ते का पता ही नहीं चला और हमलोग ब्रांच में दाखिल हुए |
सामने बड़े साहब का ड्राईवर मिल गया तो मेनेजर साहेब बोल पड़े ..साहेब आ गए क्या ?…तो ड्राईवर ने धीरे से साहेब के कान में बोला .. बड़े साहेब पुरे एक घंटे से आप का रास्ता देख रहे है ..और अभी तक lunch भी नहीं लिए है | जिस बात का डर था वही हो गया.. हमलोग को चाभी लेने के चक्कर में देरी हो गई थी |
मैं मेनेजर साहेब के पीछे पीछे, था, डर से बुरा हाल था और जैसे ही मेनेजर साहेब सामने गए ..देखते ही बड़े साहेब भड़क गए…गुस्से में बोले ..Are you manager or chaprasi..??

क्या आप को पता नहीं था कि मैं इतनी दूर से गर्मी में आप के पास आ रहा हूँ और आप ही गायब है ..आपको थोडा सा भी तमीज़ नहीं है ..इस तरह हमारे मेनेजर साहेब की बेइज्जती होते मैं नहीं देख सकता था | मेरा बिहारी ज़मीर जाग गया और मैं बड़े साहेब के सामने जाकर बोला ..Sorry sir, इस में सारा कसूर मेरा ही है सर |
मैं ही अपने मकान के लिए चाबी लेने साहेब के साथ चला गया था | साहेब, तुरंत बोल गए. .Its.. OK..OK..,….उनका गुस्सा अचानक गायब हो गया ..मैं मन ही मन सोचने लगा कि अचानक गुस्सा साहेब का शांत कैसे हो गए ..उन्होंने मुझसे पूछा भी कि चाभी मिल गई ? ..मैंने हां में सिर हिलाया तो ,वो हँसते हुए बोले ..चाय नाश्ते का प्रबन्ध करो…तो क्या , साहेब को भी शौचालय वाला कांड पता था ?….इतना सोच कर मैं साहेब की तरफ देखा तो वो बोले ..तुम २५०० किलोमीटर दूर से यहाँ नौकरी करने आए हो ,,थोडा तकलीफ तो होता ही है …मुसीबत का मुकाबला करना सीखो |
हमलोग थोड़ी देर के बाद साथ में lunch कर रहे थे और साहेब मुझे काम के बारे में कुछ निर्देश भी दे रहे थे | शायद मुझे और ज्यादा मिहनत करने की ज़रुरत थी | मैंने भी उनसे वादा किया कि अब मेरी कामों में आप सुधार ज़रूर पाएंगे ..बीच में ही साहेब बोल पड़े क्योंकि शौचालय का problem solve हो गया है,,..बोल कर जोर से हँस पड़े |
मैं उनकी बातें सुन कर थोडा झेप गया | आज एक नहीं तीन अच्छे इंसान के मुलाकात हुई थी…एक मेरे साहेब, दुसरे मेरे बड़े साहेब और तीसरे मकान वाला, मांगी लाल जी…लगता है शनिचरा ग्रह से आज बच गए थे |

बड़े साहेब के रवाना होते ही चाभी को संभाले मैं दौड़ पड़ा नई घर की ओर जहाँ शौचालय in –built था | वैसे मेरे पास थोड़ी से ही सामान थे , उसे एक ठेले पर डाली और करीब आधा किलोमीटर दूर नए मकान में आ गए |
ताला खोला तो शानदार मकान के दर्शन हुए जिसमे kitchen भी था, एक बड़ा सा रूम था और वो भी था ….. मन बहुत प्रसन्न हो गया | रूम में देखा तो एक खाट भी पड़ी थी ..अरे वाह, मेरे पास तो बिस्तर थी लेकिन खाट नहीं थी ..वाह रे, ऊपर वाले..तेरी माया अपरम्पार है |
मन ही मन यह सब बोल ही रहा था कि ..मकान के दुसरे भाग से बीच का दरवाज़ा खुला तो मैं चौक कर उस ओर देखा | मांगी लाल जी के इस मकान में दो भाग थे और दोनों के बीच में अंदर ही अंदर एक दरवाज़ा था, जिसे खोल कर एक सुंदरी हाथो में चाय और बिस्कुट लेकर प्रकट हो गई |
अचानक इस तरह उसको देख कर मैं घबरा गया तो वो मैडम बोल पड़ी ..मैं मांगी लाल की बेटी हूँ | पापा अभी अभी वापस गए है ..उन्होंने ही बताया कि आप आज आने वाले है …बोल कर पास पड़ी छोटी सी स्टूल पर चाय रख दी..उसके बाद देखा तो एक एक करके सात परियां एक लाइन से खड़ी थी जिनकी उम्र करीब 5 साल से 15 साल से बीच रही होगी |

मुझे अब समझ में आया कि मांगी लाल जी मकान की चाभी देने से क्यों मना कर रहे थे | मैं उत्सुकता वश पूछ लिया… क्या आप सभी मांगी लाल जी के ही संतान हो..तो चार एक तरफ और तीन दूसरी तरफ खड़ी हो गई ..तब पता चला कि उनकी joint family है और दोनों भाइयों के वे संतान है …मैं चाय पी कर कप रखा तो वो उठा कर ले जाने लगी और जाते हुए बोल गई कि आप थके होगे इसलिए रात का खाना मैं भेज दूंगी |
मैं भगवान को धन्यवाद दिया कि आज का तो भोजन का भी इंतजाम हो गया,, .वाह रे ऊपर वाले,………. तू देता है तो छप्पर फाड़ कर देता है …आज का दिन यादगार दिन बन गया | अब आगे क्या होगा ..???.

कितना खुदगर्ज हो गया है
वो मेरी बात भी नहीं करता
वादे भूल गया अब सारे
वो मुलाकात भी नहीं करता
नाराज़ हो गया था मुझसे
कोई शिकायत भी नहीं की
ज़बाब क्या दूँ उसे
वो कोई सवालात भी नहीं करता…
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2 thoughts on “देखना मना है….4”