
फ़ोन की घंटी बजी,
हेल्लो वर्मा सर,
आप ने मुझे पहचाना ?
आज एक पुराने मित्र ने फोन किया ..मैं राजेश बोल रहा हूँ .. हम शिवगंज (राजस्थान) में साथ थे | मैं वहाँ बिजली विभाग में कार्यरत था | आज कल मैं अपने निवास स्थान बरही (झारखंड) में रहता हूँ |
फेस बुक के द्वारा आप का मोबाइल नम्बर पता चला और मैं फ़ोन कर दिया |
जैसे ही उसकी आवाज़ को पहचाना तो मैं बिलकुल थ्रिल हो गया | आज उससे २५ सालो की लंबी अन्तराल के बाद बात हो रही थी |
फिर तो बहुत सारी पुरानी यादें, परत दर परत खुलने लगे | बहुत देर तक लम्बी बाते होती रही और पिछले २५ साल का लेखा जोखा लेकर हम दोनों बैठ गए | कुछ अपनी कही और कुछ उसकी सुनी |
अचानक उन दिनों की एक घटना याद आ गई और याद करके हम दोनों खूब हँसे |
बात उन दिनों की जब मेरे बैंक के शिवगंज शाखा में मेरी पोस्टिंग हुई थी | वैसे तो छोटी सी क़स्बा थी लेकिन वहाँ मकान बहुत सुंदर और ढंग के बने थे |
लेकिन बहुत सारे मकान खाली थे. कारण कि वहाँ के “मारवाड़ी समाज” के लोग मकान तो खूब सुंदर बनाते थे क्योंकि पैसो की कोई कमी नहीं थी |
लेकिन खुद वो लोग मुंबई या पूना में रहते थे क्योकि उन्होंने अपना business वही फैला रखा था |
हाँ, वे यहाँ ऐसे किरायदार की तलाश में रहते थे जिसकी छोटी फॅमिली हो और उनकी मकान को ठीक से देख – भाल कर सके |
किराया के नाम पर बहुत मामूली रकम लेते थे | कोई – कोई तो फ्री में ही रहने को अपनी मकान दे देते थे, क्योंकि उनको भाड़े की लालच नहीं थी… बस मकान की रख – रखाव ठीक ढंग से हो |

और हाँ, इसके आलावा एक और शर्त थी और ये, कि वो नॉन वेज़ ( “non-veg”) ना घर में पका सकता है और ना ही “non-veg” खाने वाला हो |
हमलोग बस कसम खा कर उनसे चाभी ले लेते थे और कोशिश करते थे कि अपनी विश्वास खतरे में ना पड़े |
घर बहुत सुंदर मिल गया था और हम लोग आस पास ही रहते थे | हमलोग . ठहरे बिहारी… बिना मांस – मछली के कब तक मन मानता | .
.हमलोग उन दिनों अकेले बिना परिवार के रहते थे इसलिए कभी रविवार (Sunday) को चोरी – छिपे पार्टी कर ही लिया करते थे |
लेकिन कहते है ना कि चोर कितना भी होशियारी करे, कभी ना कभी पकड़ा ही जाता है |
मकान मालिक के जासूस हम लोगों पर नज़र रखते थे | ये मारवारी और जैन समाज के लोग “non – veg” के सख्त खिलाफ होते थे |
ऐसे ही एक दिन की बात है कि हम दोनों के अलावा हमारे बैंक का स्टाफ कैलाश और मदन,.. हम सबों ने मिल कर पार्टी करने का फैसला किया |
चिकेन बनाने का प्रोग्राम (program ) बना | परन्तु सभी कुछ गुप्त रूप से किया जाना था ताकि किसी को इस बात की भनक तक नहीं लगे, वर्ना तुरंत मकान खाली करवा लेते थे और फिर दुसरे लोग भी अपना मकान नहीं देते थे |
हमलोग नॉन वेज़ की पार्टी करने के लिए बहुत बड़ा रिस्क (risk) उठाते थे |
उस दिन भी हम चार लोग मिलकर पार्टी कर रहे थे क्योकि हम चारो अकेले ही रहते थे | अपने अपने काम का पहले से बटवारा कर लिया था | .
राजेश को चिकेन लाना था, वो 5 बजे भोर में मोटरसाइकिल से 5 किलोमीटर दूर जवाई-बांध के पास से लाना होगा ताकि किसी को पता ना चल सके |
बाकी की सामग्री का इन्तेजाम मुझे करना था और दारु का इंतजाम कैलाश के जिम्मे था | मदन को खाना बनाने की जिम्मेवारी थी |

सब कुछ planning के अनुसार शुरू हो गया | जब चिकेन फ्राई होने लगा तो उसकी खुशबु फैलने लगी | कैलाश जब सामान (दारू) लेकर घर में घुसा तो धीरे से बोला… बाहर तक चिकन की खुशबु जा रही है .| .
और बाहर देखा तो कुछ मोहल्ले के कुत्ते खुशबु को सूंघते हुए हमारे घर के पास जमा होने लगे |
चोरी पकडे जाने के डर से हमलोग घबरा गए, तो मदन को एक आईडिया सूझी | उसने घर में जो पूजा के अगरबत्ती रखे थे, सभी को एक साथ जला दिया ताकि उसकी सुगंध में चिकन की सुगंध गायब हो जाए |
फिर भी कुत्ते साले कुत्ते ही होते है, वो गंध को भली भांति पहचानते है |
खाना तो किसी तरह तैयार हो गया . .तो हमलोग जल्दी से उसे निपटाने का फैसला किया..जैसे चिकेन ना हो वो कोई बम (bomb) हो.घर में | .
हमलोगों को , पकडे जाने का खतरा और डर से हालत ख़राब हो रहा था |
अब तो दारु पिने का और म्यूजिक बजा कर डांस करने का program cancel ही करना पड़ा और जल्द से जल्द इस “non-veg” का नामो – निशान मिटाना ही लक्ष्य था |
हमलोग तुरुन्त ही buffet सिस्टम में आ गए | सामने जब चिकन हो तो खाना कुछ ज्यादा ही पेट के अंदर जाता है |
खाना तो खा लिया ..अब बची हुई हड्डी को ठिकाने लगाना भी था | उन हड्डियों को एक पुराने मिठाई के डब्बे में pack किया गया जिसे मोटरसाइकिल के डिक्की में रख कर फिर पाँच किलोमीटर दूर ले जा कर दफनाना था | ताकि किसी भी तरह का साक्ष घर में ना रह पाए |
लेकिन दोपहर का खाना खाने के बाद, सभी को आलस आना लाज़मी था | इसलिए हमलोग रमेश के मोटर साइकिल की डिक्की में हड्डी वाला पैकेट को डाल दिया ताकि शाम के समय में इसे ठिकाने लगा दिया जायेगा |

हमलोग की जरा सी आँख ही लगी थी कि घर के बाहर हंगामा होने की आवाज़ सुन कर हम लोग चौक गए | बाहर जाकर देखा तो पता चला कि घर के बाहर खड़ी मोटरसाइकिल के पास कुछ बच्चे पतंग उड़ा रहे थे और भाग दौड़ के चक्कर में धक्के के कारण मोटरसाइकिल गिर पड़ी |
और उसमे रखा मिठाई का डब्बा बाहर आ गया | जिसको चिर फाड़ कर कुत्ते पार्टी का मज़ा ले रहे थे | आस पास के लोगों ने देखा कि मिठाई के डिब्बे मे मुर्गे की टांग और हड्डियाँ है और हमारी चोरी पकड़ी गयी |
फिर क्या था …हमारी पार्टी की ऐसी की तैसी हो गई……………हमें मकान खाली करने का अल्टीमेटम मिल गया और दुसरे दिन से दुसरे मकान की तलाश जारी थी….| (क्रमश ).
दर्द …जब आँखों से निकला
तो सब ने कहा …”कायर” है ये
दर्द …जब लफ्ज़ो से निकला ,
तो सब ने कहा …”शायर” है ये
दर्द ….जब मुस्कुरा के निकला ,
तो सब ने कहा …”लायर” है ये ….

आगे की घटना जानने के लिए नीचे दिए link को click करें..
हँसना मना है ..2
BE HAPPY… BE ACTIVE … BE FOCUSED ….. BE ALIVE,,
If you enjoyed this post don’t forget to like, follow, share and comments.
Please follow me on social media.. and visit
Categories: मेरे संस्मरण
Early in the morning,I enjoyed very much.
LikeLike
Thank you dear..Stay connected and stay safe..
LikeLike
Gd morning have a nice day sir ji
LikeLiked by 1 person
Thank you
LikeLike
Story is very interesting and enjoyable.
Same thing was happened with me in Gujarat.
LikeLiked by 1 person
Ha ha ha ..Yes dear ,,
This is a life time experience..
That type om memories keep us going..
LikeLike
Interesting episode which you seem to have repeated.
LikeLiked by 1 person
Good evening sir,
This episode is reputed
LikeLike
Reblogged this on Retiredकलम and commented:
We learn something from everyone who passes through our lives..
some lessons are painful, some are painless, but all are priceless..
LikeLike
😂
LikeLiked by 1 person
Thank you very much
LikeLike