अगर तुम ना होते…

सुबह से पता नहीं क्यों मेरी दाई आँख फड़क रही थी | एक अनहोनी  आशंका से मन थोडा व्याकुल लग रहा था | हालाँकि  बैंक से १० दिनों की छुट्टी लेकर जमशेदपुर अपने ससुराल आया था | वाइफ की पहली  तीज थी, इसीलिए यहाँ आना पड़ा |

उधर हमारा स्टेट बैंक के ऑफिसर ग्रेड का परीक्षा का result पिछले सप्ताह ही निकल चूका था और उतीर्ण परीक्षार्थी में मेरा भी नाम था | मैं बहुत खुश था ओर call – letter की प्रतीक्षा थी |

संयोग से आज  ही वो call – letter हमारे वर्तमान बैंक (बैंक ऑफ़  इंडिया) के  address पर आ चूका था जिसके अनुसार सिर्फ तीन दिनों के भीतर इंटरव्यू के लिए दिल्ली में उपस्थित होना था |  मैं तो इन सब बातो से अनभिज्ञ था, क्योंकि उस ज़माने मोबाइल भी नहीं हुआ करते थे और ना ही टेलीफोन की सुविधा सब जगह थी |

परन्तु “अजित” मेरा  प्रिय मित्र को यह  खबर  बैंक के एक स्टाफ के द्वारा पता चला तो वो परेशान हो गया , उसे समझ में नहीं आ रहा था कि यह कॉल लैटर किस तरह हम तक पहुंचा सके,  क्योंकि उसे तो जमशेदपुर का address भी पता नहीं था जहाँ मैं आया हुआ था |

हम दोस्तों का एक ग्रुप था “चंडाल चौकड़ी” ,जिसमे चार सदस्य थे …अजित ,परेश, अजय और मैं | इस चौकरी की बैठक शाम को लगभग रोज़ ही हुआ करती थी | उस दिन भी चौकड़ी की बैठक लगी तो इस गंभीर विषय पर चर्चा होना स्वाभाविक था | 

सब लोगो ने एक छोटी सी पार्क में बैठ कर इस समस्या के समाधान पर विचार करने लगे |  अजित ने कहा कि यह विजय की ज़िदगी का सवाल है ,अगर समय पर सुचना नहीं मिली तो वह इंटरव्यू से वंचित रह जायेगा | और उसका सारा मिहनत बेकार हो जायेगा |

तभी चौकड़ी का  दूसरा सदस्य  “परेश” बोल पड़ा ..मैं जमशेदपुर जाकर इस लैटर को विजय तक पहुँचा दूँगा | इस पर अजय ने कहा कि अब तो सबसे बड़ा सवाल था कि बिना address के तुम उसके पास पहुंचोगे कैसे ?

बहुत दिमाग लगाया गया परन्तु कोई रास्ता सूझ नहीं रहा था  कि अचानक अजित बोल पड़ा ..जहाँ तक हमें याद है उसका ससुराल “मानगो” में कहीं पर है और उसके ससुर executive engineer है, जैसा कि उसने एक दिन बताया था , परन्तु उसके ससुर का नाम हमें याद नहीं है |

उधर मैं इस सब बातों से अनभिज्ञ जमशेदपुर का जुबली पार्क का sight सीन का मज़ा ले रहा था | ससुराल में जो मेह्मनाबाज़ी होती है उसके  क्या कहने | परन्तु मुझे पता नहीं था कि आने वाला समय मेरे लिए क्या फैसला लेने वाला था |

अंत में “अजय” ने सुझाव दिया कि क्यों ना एक चांस लिया जाए और कोशिश की जाए | परेश कुछ सोच कर बोला, मुझे विजय के पास पहुँचना है, बस .. और इसमें भगवान ज़रूर मदद करेगा | सब लोगों ने परेश की हिम्मत और आत्मविश्वास  की सराहना करने लगे | वह तो हमेशा दोस्तों को मदद करने के लिए सबसे आगे रहता था |

हमारे “चंडाल चौकड़ी” का तीन सदस्य आपस में मिलकर थोडा थोडा पैसा मिलाकर  करीब ३०० रुपया ही इकठ्ठा कर पाया | चलो टिकेट के पैसो का तो इन्तेजाम हो गया लेकिन वहाँ विजय से भेट नहीं हुई तो क्या होगा ? लौटने के पैसे कम पड़ जाएंगे ..और खाने पिने के लिए भी पैसे नहीं होंगें |

 चिंता की कोई बात नहीं ..,हम होगे कामयाब, परेश बोल पड़ा  |

दुसरे दिन सुबह सुबह बस स्टैंड में तीनो का मिलना हुआ और परेश को बस में बैठने पर ..all the best बोला कर रवाना कर दिया …

दोपहर का समय मैं सोफे पर बैठे चाय का आनंद ले रहा था कि बाहर किसी के गेट खटखटाने की आवाज़ आई | मैं चाय हाथ में लिए ही आगंतुक को देखने के लिए बाहर निकला तो अचानक “परेश” को सामने पाकर हडबडा   गया और आश्चर्य होते हुए जोर से चिल्लाया …परेश ?

और मैं इतना उतेजित हो गया कि मेरे हाथ से चाय का कप छुट गया | मैं इसकी परवाह किए बिना गेट की तरफ दौड़ा और उसे गले लगा लिया |

गर्मी का दिन था और दोपहर का समय..पसीने से लथपथ था वो, और चेहरे पर थकावट के भाव साफ़ नज़र आ रहे थे | मैं तुरंत उसे घर के अंदर ले जा कर सोफे पर बैठाया, तब तक पत्नी एक गिलास ठंडा जल लेकर आ गई |

मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसी कौन सी आफत आ पड़ी थी कि उसे बिना address के यहाँ तक आना पड़ा | किसी आशंका से मेरा दिल जोर जोर से धड़क रहा था |

जैसे ही उसने गिलास का पानी समाप्त किया मैं पूछ बैठा …..सब कुशल खैरियत तो है न ?..वो मेरी तरफ  हँसते हुए देखा और कहा कि बहुत जोर की भूख लगी है |

उसका कहना वाजिब था सुबह  5 बजे घर से रवाना हुआ होगा शायद.. फटाफट स्नान वगैरह  से निवृत हो कर भोजन पर बैठा | अब वह अपने को सामान्य स्थिति में महसूस कर रहा था, क्योकि दो घंटे से घूम घूम कर घर ढूंढने  में उसकी हालत ख़राब हो गयी थी |

वो तो भला हो उस फल वाले का, जो बताया कि एक engineer साहेब इसी गली में रहते है .. शायद घर के लिए फल वही से आता होगा |

थोड़ी देर शांत रहने के बाद वह बोल पड़ा,  जल्दी से तुम तैयार हो जाओ वापस चलने के लिए | मैं प्रश्न भरी आँखों से उसकी तरफ देखा तो फिर उसने बताया कि हमारा बैंक ऑफिसर का interview है और परसों ही दिल्ली पहुँचना होगा ..

मैं उसे गले लगा लिया और उसको बहुत धन्यवाद् दिया और कहा कि अगर तुम ना होते तो शायद यह interview छुट जाता और शायद मैं उस नौकरी से वंचित रह जाता | लेकिन उसने एक ऐसी बात कह दी कि  मेरे आँखों में आँसू आ गए …..तुम मुझे धन्यवाद नहीं दो …..उस “चंडाल चौकड़ी” को धन्यवाद् करो,  ..

और हाँ हमलोगों को पता है कि तुम्हारी नई नौकरी मिलते ही हमलोगों से बिछुड़ जाओगे …लेकिन जहाँ भी रहो, हमेशा खुश रहना..हमलोग बहुत देर तक गले मिलकर रोते रहे ….

इससे आगे की घटना जानने के लिए नीचे दिए link पर click करें…

https://wp.me/pbyD2R-vt

ज़ख्म उसे कहते है , जिसे छुपा लिया जाए …

अगर बता दिया , उसे तो तमाशा कहते है,

जिसके लिए सबको छोड़ दिया मैंने ….

पता चला अब उसका ही नहीं हूँ मैं ….

BE HAPPY… BE ACTIVE … BE FOCUSED ….. BE ALIVE,,

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Categories: मेरे संस्मरण, story

8 replies

  1. Hats off to true friends

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  2. सच है ,अगर सच्चा दोस्त है तो ज़िन्दगी है /

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  3. Gd morning have a nice day sir ji

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