# जागते रहो #

मैं ब्लॉग लिखने बैठा ही था कि आज कुछ मित्रों का मेरे पिछले ब्लॉग पर प्रतिक्रिया पढ़ा | उन्होंने लिखा.. तुम्हारा blog पढ़कर मेरी आँखे नम हो गई | वैसे मरना तो सब को है एक दिन, लेकिन वो दिन पता नहीं होता, इसलिए हम हर दिन को जश्न के रूप में देखना चाहते है जैसे मेरे ज़िन्दगी का आखरी दिन हो |

आज कल lockdown का ऐसा माहौल हो गया है कि हम पालतू जानवरों की  तरह घरो में कैद है | उठने बैठने, घुमने फिरने और  बात करने के लिए भी सीमाएं तय की  हुई है, सब लोग परेशान है और  बहुत दुखी |..  .

और  ऊपर से मेरा दुखी  कर देने वाला ब्लॉग …सचमुच ऐसी हालात मे ऐसी संस्मरण लिखना ठीक नहीं है ..तो क्या ब्लॉग लिखना अभी  छोड़ दूँ | ..

नहीं , हमने तो हमारे जीवन में बहुत से खट्टे मीठे लम्हों को जिया है ..आँसू के पल देखे है तो कुछ ख़ुशी के लम्हों का भी अनुभव किया है | ऐसी ही एक घटना याद आ गई ….

मैं झुमरी तिलैया के जिस घर में रहता था, वह घर छोटा था लेकिन चारो तरफ  खुला- खुला जगह जो boundary से घिरा हुआ था  ..बीच में आँगन और  एक तरफ बड़ा सा कुआँ | इतना बड़ा प्लाट था कि  मैं kitchen gardening किया करता था |

मुझे तो महसूस ही नहीं होता था कि मैं किरायेदार हूँ, ..बिलकुल स्वतंत्र और  माँ जी और  बाबा का  स्नेह भी अपनों जैसा |

लेकिन एक समस्या थी ..वो समस्या इस घर का कुत्ता “शेरू” था | उसका और  हमारा ३६ का आकड़ा, उससे जब भी मेरा सामना होता तो देख कर वो गुर्राने लगता |  था तो जानवर परन्तु वह सभी कुछ समझता था, यहाँ तक कि माँ जी की  बंगला भाषा का भी ज्ञान था .. वो माँ जी का दुलारा था | लेकिन जब भी मौका मिलता उसे  मैं football  बना देता, ख़ास कर, जब माँ जी घर पर नहीं होती थी |

मैं जब कभी पटना से वापस रांची एक्सप्रेस से आता था तो कोडरमा स्टेशन पर ट्रेन दो बजे रात को पहुँचती थी और  उसी कुत्ते के कारण आधी रात को घर नहीं जा पाता था और  स्टेशन पर बैठ कर सुबह होने का इंतज़ार करना पड़ता था इस घर में आने के लिए | क्योंकि शेरू को रात में चैन से खोल दिया जाता था और  घर के बड़े अहाते में शेर जैसा घूमता और  रात में उसे पकड़ कर चैन से बंधना माँ जी के बस की  बात नहीं थी |

इसीलिए सुबह होने पर ही कोडरमा रेलवे स्टेशन से घर आ पाता था | ट्रेन की  timing ही कुछ ऐसी थी.. रांची एक्सप्रेस जो पटना से रात को ९ बजे खुलता और  २.०० बजे रात को कोडरमा स्टेशन पहुचता था |.

अरे हाँ, एक घटना के बारे में बताना तो भूल ही  गया ,,रविवार का दिन था और  पटना से वापस आ रहा था क्योंकि सोमवार को ड्यूटी ज्वाइन करनी थी | दिन भर की  भाग दौड़ में कुछ थका हुआ था,

लेकिन गया स्टेशन से ट्रेन खुलने के बाद मैं सतर्क हो जाया करता था, क्योंकि अगला स्टेशन कोडरमा ही थी जहाँ सिर्फ दो मिनट ही हमारी ट्रेन रूकती थी |

उस दिन भी ट्रेन जब रात के १२ बजे गया स्टेशन  से चली तो मैं सतर्क बैठा था, क्योंकि अगले स्टेशन में उतरना था ..लेकिन गर्मी का मौसम और  खिड़की से ठंडी ठंडी हवा का झोका आ रही थी | ..मैं बड़ी बड़ी आँखे खोले नींद को avoid कर रहा था | ..

लेकिन होनी को कुछ और  ही मंज़ूर थी | ट्रेन कोडरमा आने ही वाली थी और  ठंडी हवा का झोका में  थोड़ी झपकी लग गई, लेकिन अगले ही पल आँखों को मलता कोडरमा स्टेशन आने का इंतज़ार कर रहा था परन्तु दो  के बजाए ढाई बज गए थे और  बाहर धुप अँधेरा ,समझ में नहीं आ रहा था कि मेरा स्टेशन क्यों नहीं आ रहा था ?

मुझे परेशान देख बगल वाले सीट पर लेटे भाई साहेब ने पूछ लिया कि मुझे कहाँ उतरना है, जैसे ही कोडरमा का नाम लिया  कि वो तुरंत बोले पड़े, वो स्टेशन तो निकल गया |

बस मैं परेशान हो गया क्योंकि टिकेट तो कोडरमा तक ही थी | खैर, मैं किसी तरह अगला स्टेशन “पारसनाथ” पर उतरा | रात के ढाई बज रहे थे | अगर मैं Exit gate की तरफ जाऊंगा तो T T E पकड़ लेगा और  पता नहीं कितना fine के पैसे की मांग करेगा |

इसलिए मैं प्लार्फोर्म no..३ पर ही रुकना बेहतर समझा ताकि उलटी तरफ से आती ट्रेन में बैठ कर वापस कोडरमा पहुँचा जा सके | लेकिन पता चला कि अगला ट्रेन तो ६ बजे सुबह तक आएगी | इस रूट पर ज्यादा ट्रेन रात्रि में नहीं चलती थी |

यह छोटा स्टेशन था | सभी यात्री जा चुके थे और  मैं अकेला आधी रात को उस प्लेटफार्म पर बच गया | .बिलकुल सन्नाटा था और मैं अकेला एक बेंच पर बैठ कर अगला ट्रेन आने का इंतज़ार करने लगा |

तभी देखा कि टी टी साहब  मेरी तरफ आ रहे  है .. आप यहाँ क्यों बैठे है,? उसने मुझे चोर उचक्का समझ बैठा था शायद | ..उसकी भावना को समझ कर मैं ने अपनी हकीकत बताई कि मुझे पिछले स्टेशन पर ही उतरना था लेकिन थोड़ी  नींद की  झपकी क्या लगी कि मैं यहाँ पहुँच गया |

तब उसने टिकट की  मांग की और फिर टिकेट देखते ही वो बोला यह टिकेट तो कोडरमा तक का ही है |..

मैं ने “हाँ ” में सर् हिलाया | तो वो बोला … फाइन भरना होगा |

वो मुझे अपने ticket collector ऑफिस में ले गया और  धीरे से बोला ..दस रूपये  निकालो | मैं ख़ुशी ख़ुशी  उसे पैसे दे दिया,  क्योकि फाइन लगाया तो  दो सौ देने पड़ते | उसने मुझे ऑफिस में ही आराम से बैठने को कहा और  एक पुराना कलेक्ट किया हुआ टिकेट मुझे थमाया |

मैं आराम से टिकेट pocket में रख कर कुर्सी पर ही सो गया और  सुबह होने पर ट्रेन से वापस घर  पहुँचा |  वो घटना जब भी याद आती है तो बरबस हँसी आ जाती है …और  मैं बोल पड़ता हूँ …

जागते रहो..जागते रहो

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आज मैं अपने ज़िन्दगी  की  किताब खोले बैठा हूँ

पलट कर गौर से देखता हूँ उन भरे हुए पन्ने को..

जो बीते दिनों की खट्टे- मीठे अनुभव कराती है

जैसे वक़्त के पटल  पर.. ज़िन्दगी  कहानी सुनाती  है

कुछ  पन्नो में  ढेर सारी   खुशिओं  का जिक्र,

तो, कुछ  लम्हे .. आँखों को गीली  कराती है ..

BE HAPPY… BE ACTIVE … BE FOCUSED ….. BE ALIVE,,

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Categories: मेरे संस्मरण

11 replies

  1. बहुत खूब चित्र सामने खींच देते हैं शब्द।🙏

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  2. Reblogged this on Retiredकलम and commented:

    वैसे ये जिंदगानी भी किसी नदी की तरह होती है
    इसके एक किनारे पर सपने तो दूजे पे हकीकत होती है |

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