
आज हमारे एक मित्र ने फ़ोन करके बताया कि कोरोना में लॉक डाउन के कारण मैं डिप्रेस्ड (Depression ) महसूस कर रहा हूँ , कोई उपाय बताओ ताकि तुम्हारी तरह मैं भी मस्त हो जाऊँ |
मुझे उसकी बात सुनकर हँसी आ गई | मैं बस इतना ही कहा .– .जान है तो जहाँ है | अपने मन को थोडा समझाओ | …
तभी अचानक एक मशहूर कहानी याद आ गई ..मैंने उससे बोला. — कल का मेरा blog पढ़ लेना , तुम्हारे सभी सवालों के जवाब मिल जायेगा | वो कहानी कुछ इस तरह है आप भी सुनें .शायद इस लॉक डाउन में थोड़ी राहत मिल सके |
महान लेखक टालस्टाय की एक कहानी है *- “शर्त “*
इस कहानी में दो मित्रो में आपस मे शर्त लगती है कि, यदि उसने 1 माह एकांत में बिना किसी से मिले, बातचीत किये एक कमरे में बिता देता है, तो उसे 10 लाख नकद वो देगा । इस बीच, यदि वो शर्त पूरी नहीं करता, तो वो हार जाएगा ।
पहला मित्र ये शर्त स्वीकार कर लेता है । उसे दूर एक खाली मकान में बंद कर दिया जाता है । बस दो जून का भोजन और कुछ किताबें उसे दी गई ।
उसने जब वहां अकेले रहना शुरू किया तो एक दो दिन तो किताबो से मन बहल गया , लेकिन फिर वो खीझने लगा । उसे बताया गया था कि थोड़ा भी बर्दाश्त से बाहर हो तो वो घण्टी बजा कर संकेत दे सकता है और उसे वहां से निकाल लिया जाएगा ।
जैसे जैसे दिन बीतने लगे उसे एक एक घंटा एक एक युग से लगने लगा | वो चीखता, चिल्लाता लेकिन शर्त का खयाल कर बाहर से किसी को नही बुलाता ।
वो अपने बाल नोचता, रोता, गालियां देता, तड़पता, मतलब अकेलेपन की पीड़ा उसे भयानक लगने लगी पर वो शर्त की याद कर अपने को रोक लेता ।
कुछ दिन और बीते तो धीरे धीरे उसके भीतर एक अजीब शांति घटित होने लगी । अब उसे किसी की आवश्यकता का अनुभव नही होने लगा। वो बस मौन बैठा रहता। एकदम शांत उसका चीखना चिल्लाना बंद हो गया।

इधर, उसके दोस्त को चिंता होने लगी कि एक माह के बीतने में कुछ ही दिन शेष रह गए है | दिन पर दिन बीत रहे हैं पर उसका दोस्त है कि बाहर ही नही आ रहा है ।
माह के अब अंतिम 2 दिन शेष थे, इधर उस दोस्त का व्यापार चौपट हो गया वो दिवालिया हो गया। उसे अब चिंता होने लगी कि यदि उसके मित्र ने शर्त जीत ली तो इतने पैसे वो उसे कहाँ से देगा ।
वो उसे गोली मारने की योजना बनाता है और उसे मारने के लिये जाता है ।
जब वो वहां पहुँचता है तो उसके आश्चर्य का ठिकाना नही रहता ।
वो दोस्त शर्त के एक माह के ठीक एक दिन पहले वहां से चला जाता है और एक खत अपने दोस्त के नाम छोड़ जाता है ।
खत में लिखा होता है-
प्यारे दोस्त, इन एक महीनों में मैं ने वो चीज पा ली है जिसका कोई मोल नही है | मैंने अकेले मे रहकर असीम शांति का सुख पा लिया है और मैं ये भी जान चुका हूं कि जितनी जरूरतें हमारी कम होती जाती हैं उतना ही हमें असीम आनंद और शांति मिलती है |
मैंने इन दिनों परमात्मा के असीम प्यार को जान लिया है इसीलिए मैं अपनी ओर से यह शर्त तोड़ रहा हूँ, अब मुझे तुम्हारे शर्त के पैसे की कोई जरूरत नही।
इस उद्धरण से समझें कि लॉकडाउन के इस परीक्षा की घड़ी में खुद को झुंझलाहट, चिंता और भय में न डालें, उस परमात्मा की निकटता को महसूस करें और जीवन को नए दृष्टिकोण से देखने का प्रयत्न कीजिये |,
इसमे भी कोई अच्छाई छुपी होगी …यह मानकर सब कुछ भगवान को समर्पण कर दें ।
विश्वास मानिए अच्छा ही होगा । लोग सही कहते है कि “संकट के खेतों में ही सफलता के वृक्ष उगते है,” यह तो संकट विश्वव्यापी है |
इसलिए हम आशा करते है कि इस संकट से उबरने के बाद एक नई दुनिया का उदय होगा ,– जहाँ भाई -चारा होगा, शुद्ध पर्यावरण होगा, मानव अब विध्वंश के लिए नहीं, विश्व निर्माण के लिए कार्य करेगा |

और इतना ही नहीं, भारत का इसमें एक बड़ा योगदान होगा | हम अपनी पुरानी खोयी हुई संस्कृति और संस्कार को पुनः जीवित कर पायेंगे | एक सुंदर भारत का निर्माण होगा | लेकिन अभी थोड़ा संयम बरतने की ज़रुरत है | आशा और विश्वास पर ही यह दुनिया टिकी है |
आज हमें चिंता कि जगह चिंतन करने की ज़रुरत है ..कि आज हम क्या क्या खो रहे है –..जैसे धन, स्वास्थ, सुख-चैन, लेकिन इसके बदले क्या पाने वाले है — ..शुद्ध पर्यावरण, आपसी भाई चारा, परिवार में आपसी प्रेम बढेगा | इसके अलावा और बहुत कुछ |
आइये हम अपने आप से एक वादा करें कि इस विपत्ति की घड़ी में हम स्वयं को सुरक्षित रखते हुए लोगो को सुरक्षित रहने के लिए प्रेरित करें | और अपने available संसाधनों का उपयोग कर खुश रहने का प्रयास करे |
लॉक डाउन का पालन करे । स्वयं सुरक्षित रहें, परिवार,समाज और राष्ट्र को सुरक्षित रखें ।
लॉक डाउन के बाद जी तोड़ मेहनत करना है, स्वयं, परिवार और राष्ट्र के लिए…देश की गिरती अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए…|.

बेवजह घर से निकलने कि ज़रुरत क्या है
मौत से आँख मिलाने की ज़रुरत क्या है
सबको मालूम है बाहर की हवा है कातिल
यूँ ही कातिल से उलझने की ज़रुरत क्या है
ज़िन्दगी एक नियामत है इसे संभाल के रख
शमशान में जाने की ज़रुरत क्या है….
दिल बहलाने के लिए घर में ज़गह है काफी
यूँ ही गलियों में भटकने की ज़रुरत क्या है….
बेवजह घर से निकलने की ज़रूरत क्या है,
BE HAPPY… BE ACTIVE … BE FOCUSED ….. BE ALIVE,,
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Categories: infotainment, story
Vare Nice. Mama. Jii.
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waah, thank you..
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Vare Nice ..Mama jii
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थैंक you dear
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Reblogged this on Retiredकलम and commented:
सिक्षा और संस्कार ज़िन्दगी जीने के मूल मंत्र हैं ,
शिक्षा कभी झुकने नहीं देगी ,और संस्कार कभी गिरने नहीं देंगे |
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