
उम्मीद भी बड़ी कमाल की चीज़ है…लोग कहते है ना कि उम्मीद पे ही दुनिया कायम है..वर्ना हम कोरोना काल के ” लॉक डाउन ” को सिर्फ इस उम्मीद से झेल रहे है कि आगे सब ठीक हो जायेगा |
यह तो सच ही है कि उम्मीद पर ही हमारी ज़िन्दगी टिकी है, जिस दिन उम्मीद समाप्त,.. समझो ज़िन्दगी समाप्त |
आज मुझे इसी बात पर एक वाक्या याद आ गया | उसे याद कर मैं आज फिर भावुक हो गया , इसलिए मैं आज उन बीते लम्हों को कलमबद्ध कर रहा हूँ |
हालाँकि बात बहुत पुरानी है , या यूँ कहें कि उन दिनों की है जब मेरी बैंक की पहली पोस्टिंग शिवगंज शाखा , राजस्थान में थी | नई – नई नौकरी होने के कारण हमारे अंदर एक जोश और कार्य करने का जज्बा था |
मेरा मुख्य काम गाँव के किसानो को ऋण मुहैया कराना और ऋण की वसूली करना था |
पहली बार मैं ने जाना कि ..”टारगेट” क्या होता है और कैसे हासिल किया जा सकता हैं | इस प्रोफेशनल लाइफ की शुरुवात क्या हुई कि रोज़ कुछ ना कुछ नए अनुभवों से सामना होते रहता था |

एक दिन मैं अपनी शाखा में बैठा किसानो के बकाया क़िस्त (डिफाल्कीटर ) की लिस्ट बना रहा था, और उस लिस्ट को लम्बी होती देख चिंतित हो रहा था | इसका मुख्य कारण था कि पिछले तीन सालों से लगातार अकाल की स्थिति को यहाँ के किसान झेल रहे थे |
ठीक उसी समय एक पूर्व परिचित किसान “राम सिंह” ग्राम सांडेराव का मेरे पास आया और कहा — साहब जी , मुझे अभी १००० रुपयों की ज़रुरत है, मुझे जल्दी से दे दीजिए |
उस समय ऋण के रिकॉर्ड और बैंक का सब कुछ manual था | उस समय बैंक में computerization नहीं हुआ था |
मैं बड़ा सा भारी- भरकम लोन रजिस्टर संख्या – चार को खोला और राम सिंह के ऋण लिमिट को चेक किया तो पाया कि उसका ५००० रूपये का लिमिट है जो पूरा पैसा दिया जा चूका है और उससे और पैसे नहीं दिया जा सकता है |
यह बात जब उसको बताई तो वो बड़े इत्मिनान से कहा ….जी, मुझे पता है कि खाते से और पैसे नहीं मिल सकते है |
आप को तो पता ही है पिछले तीन सालों से लगातार वर्षा नहीं होने से फसल चौपट हो गई है और मेरे कुँए में जो थोड़ी बहुत पानी है उसी से कुछ सब्जी और जानवरों के लिए चारा पैदा कर पाता हूँ |
लेकिन आज मेरे बिजली का बिल भरने की आखरी तारीख है, अगर एक हज़ार रूपये का बिल नहीं भरा तो कनेक्शन कट जायेगा और मेरी खड़ी फसल बर्बाद हो जाएगी |
मैंने उलटे उसी से सवाल कर बैठा — पैसे जब खाते में नहीं है तो कहाँ से दिया जाए ?

वो छूटने ही बोला — ..यह रकम तो आप को अपने पॉकेट से देना पड़ेगा | उसके चेहरे पर कोई सिकन नहीं थी | बल्कि उम्मीद के भाव थे |
मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि इतना बिश्वास के साथ वह बोल गया और इतना विश्वास कैसे है कि मैं उसे अपनी मिहनत की , (सैलरी के पैसे जो उस समय मात्र शायद ४००० रूपये से ५००० रूपये माह के मिलते थे ), उसमे से १००० रुपए दे दूँगा |
उसने अपनी बात ज़ारी रखते हुए कहा … मैं पिछले कुछ दिनों से कोशिश कर रहा हूँ, लेकिन किसी ने मुझे पैसे नहीं दिए | इस अकाल की घडी में सभी के हाँथ तंग है |
तो थक हार कर आप के पास आया हूँ | आप को तो पता है कि बिजली की कनेक्शन कट जाएगी तो हमारी खड़ी फसल और हमारे मवेशियों का क्या होगा | मुझे यह भी पता है कि आप मुझे कहीं से भी पैसे ज़रूर देंगे |

उस किसान की इस उम्मीद ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि लोग सिर्फ भगवान से ही उम्मीद नहीं करते परन्तु जिसे अपना समझते है उससे भी वैसा ही उम्मीद रखते है |
मैं उसकी इस उम्मीद को टूटने नहीं देना चाहता था, और अपने खाते से १००० रूपये निकाल कर उसके हाथ में देते हुए पूछा …. क्या भगवान में विश्वास करते हो ?
तो उसने मेरी ओर देखते हुए कहा — .जी, मैं सिर्फ भगवान में ही विश्वास करता हूँ…और वो चला गया | मेरे मन में एक अजीब ख़ुशी थी |
इससे आगे की कहानी जानने के लिए नीचे दिए link को click करें …
हादसे का शिकार

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Categories: मेरे संस्मरण, story
अच्छा लगा Uncle… सुप्रभात…
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thank you dear ..stay connected and stay safe..
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Very nice
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thank you
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Gd morning have a nice day sir ji
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very good morning dear…thank you..
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Gd afternoon sir ji
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Good afternoon dear…
Stay connected and stay blessed…
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Repeat blog. I remember having read this before. Interesting memories.
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yes sir.
your memory is sharp .This is previous year blog repeated with certain modifications..
Thank you sir, Stay connected and stay blessed..
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Reblogged this on Retiredकलम and commented:
छोड़ दो हाथों की लकीरों पर भरोसा करना ,
जब जान से प्यारे लोग बदल सकते हैं तो
किस्मत क्या चीज़ है |
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