२१ दिन का वनवास

अब Janta Curfew  के बाद total Lockdown in the country.. हम सब अपने घरों में कैद है / और “करोना” को कोस रहे है / हमारे प्रधान मंत्री जी ने कहा है कि यह  lockdown २१ दिनों के लिए है और हमलोगों के दरवाजे पर एक लक्ष्मण रेखा खिची जा चुकी है / जिसके बाहर निकलने पर जान का खतरा है /

लेकिन यह समझ नहीं आ रहा है कि हमारे बच्चे घर से निकल कर रोज बैंक की सेवा करने को मजबूर है / इस ऐसी स्थिति में हम चिंतित ना हो, यह कैसे हो सकता है / हम घर में चैन से कैसे रह सकते है , कैसे सुरक्षित रह सकते है / ऐसे वक़्त में सिर्फ भगवन पर ही भरोसा है वरना भारत जैसा देश दुनिया के लिए कौतुहल बना है कि यहाँ casualty  ना के बराबर कैसे है /

हम ने उन विकसित देश से  अपने संस्कृति और संस्कार का लोहा मनवा ही लिया / अब वो भी हमारी तरह हाथ जोड़ कर अभिवादन करने को मजबूर है / खैर, हम अपनी बात करें तो .. 

लेकिन कुछ भी हो जाए बैंक बंद नहीं होंगे क्योंकि यह आवश्यक सेवा है और  हमारे बच्चे banking सेवा हेतु  रोज अपनी जान जोखिम में डाल कर घर से बाहर निकलने को मजबूर है / ऐसा लगता है बैंक की सेवाए आज के दिन अत्यावश्यक हो गयी है / public को banking सेवा उपलब्ध कराना ही है /  बस मुस्तैदी से काम करना है /

मैं भी तो एक banker हूँ, रिटायर हुआ तो क्या हुआ, फाइनेंसियल सोच अभी भी कूट कूट कर भरी है |

सोचता हूँ इस २१ दिन के वनवास को कैसे पूरा किया जाए / डर के माहौल में कुछ भी अच्छा नहीं लगता है, लेकिन मुझे एक मित्र ने सुझाया कि कोई ऐसा पुराना शौक जो दबी या दबाई गई है उसे फिर से जीवित किया जाए, उसे वक़्त देने में शायद यह बुरा वक़्त भी टल जायेगा /

मुझे भी अब धीरे धीरे यह एहसास हो रहा है कि मैं भी देश के लिए कुछ कर सकता हूँ /  ऐसा ही सोच कर मैं अपने banking track को छोड़ अपना नया शौक अपनाया है / और उसी का परिणाम है कि stay at home के दौरान mental स्टेटस को दुरुस्त रखने के लिए  कुछ कविता लिखने की कोशिश कर रहा हूँ /

शायद कविता की परिभाषा में कोई छेड़ छाड़ नहीं हुआ है / इस आफत की घडी में धेर्य बनाने की ज़रुरत है .अपने तो uplift रखने की ज़रुरत है और इस कविता को पढने की भी /  शायद इस चिंता और घबडाहट भरे माहौल में आपके चेहरे पर कुछ मुस्कान बिखर जाए / अगर ऐसा होता है तो मैं समझूंगा कि मैं  २१ दिन के सरकारी लॉक डाउन को हँसते हँसते झेल लेंगे /

आइये प्रयास करते है.. 

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जाने ये कैसी ज़िन्दगी है,

रोज़मर्रा की मशक्क़त और

दिन भर की कश्मकश है…

कभी घबरा जाता हूँ ..अपने ही मन से

कभी डर जाता हूँ, छोटी छोटी उलझनों से,

तुम्हे आभास हो ना हो,पर सच है

तेरी सलामती की दुआ करता हूँ

लड़ता हूँ, झगड़ता हूँ, पर प्यार भी करता हूँ..

पता नही दूर का है या नज़दीक का रिश्ता

पर सदा आस पास ही महसूस करता हूँ,

तुझे खुश देख कर , खुशी का आभास

तेरा दुःख देख कर , दुःखी महसूस करता हूँ…

वक़्त के हाथों.. फिसलती ये रिश्ते…

यादों के लम्हों में, गिरती और संभलती है..

……………..ये इक्कीस दिन की  ज़िन्दगी भी 
……………जाने कैसी ये ज़िन्दगी है…”

…………………… …विजय वर्मा

BE HAPPY… BE ACTIVE … BE FOCUSED ….. BE ALIVE,,

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Categories: infotainment, kavita

4 replies

  1. मेरी कविता कि किताब ,कैसी लगी ?

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