
बात उन दिनों कि जब हमारी पोस्टिंग राजस्थान के शिवगंज शाखा में थी / हमारा विशेष कार्य गाँव के किसान को कर्ज बांटना ही था |
एक दिन गाँव “कैलाशनगर” जो सिरोही जिले में पड़ता था, में अपनी शाखा की खटारा जीप लेकर recovery camp में गया / सभी किसानो के बीच एक मीटिंग रखा गया था , ताकि लोगों को शाखा के ऋण और किसानो की समस्याओं की समीक्षा की जा सके /
यह सही था कि पिछले ३ सालों से लगातार अकाल पड़ रहा था लोगों के पास खेती हेतु पानी ही नहीं था | स्थिति इतनी भयावह थी कि लोगों के पास काम नहीं, ना घर में खाने को अनाज, बस सरकारी मजदूरी कर किसी तरह गुजरा कर पा रहे थे /|
उस गाँव के एक होनहार ठाकुर साहेब, रणवीर सिंह जी, वो तो ठाकुर थे इसलिए मजदूरी भी नहीं कर सकते थे | उनके कुएं में बस थोडा पानी था जिससे २०० बीघा ज़मीन होते हुए सिर्फ एक बीघा में मुश्किल से खेती कर पा रहे थे | इधर बैंक का दबाब कि ऋण की वसूली भी करनी है |

मीटिंग ख़त्म हुई और सभी किसानो की समस्याओं को कलमबद्ध कर वापस चलने को उठे | तभी ठाकुर साहेब मेरे पास आए ओर कुछ सोचते हुए निवेदन किया कि हमारे पास खेती पर्याप्त नहीं है इसलिए दुसरे कृषि से सम्बंधित कार्य कर सकते है | जब उन्होंने अपनी योजना विस्तार से बतलाई, तो मुझे वह scheme सही लगी /
तय हुआ कि 1000 मुर्गियाँ से एक POULTRY FARM शुरू किया जायेगा, जिससे कुछ लोगों को रोज़गार मिलेगा और उससे जो आमदनी होगी उससे बैंक का कर्ज चुकाने में मदद होती | उनके पास मुर्गी पालन के सभी infrastructure मौजूद थे |
मैंने फटाफट ५०००० रूपये के लोन स्वीकृत किए और काम शुरू हुआ / मुर्गी हेतु पोल्ट्री हाउस बनाया गया और अजमेर hatchery से 1000 chicks भी आ गया / चुकिं हमारे कार्यकाल का यह पोल्ट्री लोन पहली बार दिया जा रहा था, तो हमें भी इसमें खासी उत्सुकता थी, क्योंकि मैं एक agriculture Graduate था और poultry farming की विशेष पढाई भी की थी |
मैं regular अंतराल पर विजिट करता और आवश्यक निर्देश जाकर देता रहता | मुर्गियों को बड़ी होता देख कर मुझे बहुत ख़ुशी का आभास हो रहा था | लगा इस अकाल की स्थिति में मैं इन लोगों के लिए कुछ सहायता कर पा रहा हूँ |
इसी बीच एक महीने की छुट्टी लेकर मैं बिहार आ गया क्योकि घर में एक विशेष प्रयोजन था | घर में सभी को ठाकुर साहेब वाली मुर्गियों की कहानी सुनाता और बड़े गर्व से कहता कि अकाल की स्थिति के वावजूद वहाँ के किसानो ने मिहनत कर एक मिसाल कायम किया है |
वो traditional खेती को छोड़ मुर्गी पालन से अपने को कठिन परिस्थति से उबार रहे है | लगभग एक माह बाद मैं वापस ड्यूटी ज्वाइन किया |

एक दिन तो गजब हो गया, | मैं बहुत दिनों के अन्तराल के बाद,उस कैलाशनगर गाँव में फील्ड विजिट कर late evening वापस लौट रहा था, तो रास्ते में ठाकुर साहेब मिल गए / उन्होंने बहुत आग्रह किया कि .आप अब भोजन कर के इस गाँव से जाएंगे |
मैं ने भी सोचा, लेट तो हो ही गया है -थोड़ी और सही | अपनी जीप को उनके फार्म हाउस की तरफ मोड़ दिया | वही पर कुएं की पानी से स्नान कर फ्रेश हुआ, और खाने के लिए खाट लगा दिए गए | रात के करीब आठ बज चुके थे |
लालटेन की मद्धिम रौशनी थी और हम चारपाई में बैठ कर वहाँ सभी लोग भोजन का इन्तेजार करने लगे | थोड़ी देर में गरम गरमा रोटियां आ गई, भूख भी जोरो की लगी थी | लालटेन की रौशनी थी, सब कुछ धुंधला धुंधला सा था |
मैंने जैसे ही थाली में हाथ दिया तो chicken masala का आभास हुआ | मैं पलट कर पूछ लिया, … कहीं वो फार्म वाली मुर्गी तो नहीं है ?
तो ठाकुर साहेब मुस्कुराते हुए हामी भरी | मुझे बहुत जोर का गुस्सा आ गया और गुस्से में बोल गया, मैंने मुर्गियां व्यापार के लिए दिए थे, खाने के लिए नहीं |

तभी उनके दोस्त भैरों सिंह जी बोल पड़े | अरे साहब कभी घोडा और घास की दोस्ती नहीं हो सकती | मैंने पूछा …क्या मतलब ? तो उन्होंने बताया कि इन दिनों गाँव में तीन चार शादियाँ थी और ठाकुर साहेब के खुद की भतीजी की भी |
तो हमलोगों में तो चिकन या मटन का आइटम शादियों में ज़रूरी होता है | इस तरह ठाकुर साहेब की आधी मुर्गियां साफ़ हो गई | और रोज़ कोई ना कोई मिलने वाले मुर्गी मांग कर ले जाते और ये ठहरे गाँव के ठाकुर ..पैसा भी किसी से नहीं ले सकते और किसी मजदूर को मना भी नहीं कर सकते | अब मुश्किल से १५० मुर्गियां बची होंगी |
मुझे समझ नहीं आ रहा था कि खाना खाऊ या बिना खाए उठ कर चल दूँ | मेरा तो अब मन खाने का बिलकुल नहीं था, लेकिन भूख से बुरा हाल था और घर वापस पहुँचने में एक घंटे और लगेंगे | मेरा ड्राईवर भी ऐसे स्तिथि में भूखा रह जायेगा | इस सब बातो का ख्याल कर, भोजन करना ही उचित समझा |

वापस अपने जीप पर बैठते हुए मन ही मन बुदबुदाया … कैसे मुझसे यह गलती हो गई ?
क्या कभी गाँव के ठाकुर ऐसा कार्य कर सकता है ? लेकिन यह सत्य है कि भूखा होने के बावजूद वो अपने tradition… आन.. बाण.. और शान को नहीं छोड़ सकते , |
तभी तो वो गाँव से ठाकुर साब कहलाते है | अतः मैंने अपने जीवन की “तीसरी कसम” खाई…. जोश में कभी होश नहीं खोना चाहिए, और अब इस तरह का लोन ठाकुरों को नहीं दूँगा, वर्ना ठाकुर लोग अपनी आन , बाण और शान के चक्कर में मुझे भी मुसीबत में डाल सकते है …
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धन्यवाद्
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Really interesting!
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thank you sir , you were at that time our AGM and Branch was under Udaipur Zone..
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Gd morning have a nice day sir ji
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Very Good morning dear ..
stay connected and stay blessed…
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Very nice.
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Thank you dear . I think this story is worth reading..
Stay connected and stay happy..
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Verma ji you are really good in writing and sharing interesting incidents of day to day life. Keep it up!
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Thank you sir, it is all your words that keep me going.
it is really encouraging for me . I am happy to know that you are enjoying
my writings.. stay connected and stay happy..
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