
बात तो ५० साल पुरानी है, लेकिन कुछ यादे ऐसी होती है जो बस दिलो दिमाग में बैठ जाती है हमेशा के लिए | ऐसी ही कुछ बचपन से जुड़ी यादे है जिसे कागज़ पर बिखेर कर मन हल्का करना चाहता हूँ..आज मैं वहाँ आया हूँ , जहाँ मेरा पूरा बचपन बिता था .एक छोटा सा क़स्बा, नाम है खगौल |
आज ५० साल के बाद मैं उस जगह को अकेला मन में एक उत्सुकता लिए जा रहा था या यूँ कहे हमारी बचपन की यादें खिंच कर ले जा रही थी | सच, मेरे मन में तरह तरह के सवाल उठ रहे थे | मैं इसी उधेर बुन में ट्रेन से रेलवे स्टेशन दानापुर पहुँचा और अपनी मंजिल की ओर चल दिया | कुछ दूर चलने के बाद मैं अपने पुराने मोहल्ले में पहुँच गया |
मैं वो संकरी गली ढूंढने लगा जिसमे हमारा घर हुआ करता था | जिस उस गली में हम कबड्डी और बैडमिंटन खेला करते थे | लेकिन अब वो नहीं है वहाँ पक्की सड़क बन गई और जिस घर में रहते थे वो एक विराना खंडहर बन चूका है | अब वहाँ कोई नहीं रहता, किसी ने कहा कि अब वहाँ multi storied building बनने वाली है \
थोडा और आगे बढ़ा तो वो लोकल बाज़ार का इलाका भी नहीं दिखा जिसे हम “पेठिया” कहते थे | सप्ताह में दो दिन वहाँ लोकल मार्किट (पेठिया) लगता था और पेठिया से ही सप्ताह भर का खाने पिने का सामन घर के लिए लाता था |
वो गुड़ वाली लाई का स्वाद आज भी याद है ,जब बचपन में माँ के साथ पेठिया जाता था और माँ से जिद करके खरीद कर खाता था \
आज ऐसा कुछ भी नहीं है | अब यह जगह शहर में तब्दील हो गया है और पेठिया का concept भी लगता है समाप्त हो गया | शायद लोग भी एडवांस हो गए है | जिज्ञासा बढती गई और मैं थोड़ी दूर और आगे बढ़ा और वह जगह पहुँच गया, इसका नाम था “छोटी बदलपुरा” |
चारो तरफ नज़रें उठा कर जिज्ञासा पूर्ण इधर उधर देखने लगा और ढूंढने लगा वो छोटा सा मैदान जिसे हम लोग “कच्ची तालाब” के नाम से जानते थे जहाँ बचपन में दोस्तों के साथ मिलकर “गिल्ली-डंडा” खेलते, कभी क्रिकेट, तो कभी “पतंग” उड़ाया करते थे |
और हां, यहाँ दशहरा में रामलीला भी हुआ करता था, रात भर हम सभी बचपन के यार पूरा दशहरा रामलीला का मज़ा लेते थे | लेकिन आज वो मैदन ही गायब है, यहाँ पर एक मॉल खड़ा है जो शायद मुझे देख कर कह रहा है …तुम कितने बदल गए हो | मेरे आँखों में आँसू थे, बचपन में बिताए वो एक एक लम्हा जिसको मैं ने भरपूर जिया था ..आँखों के सामने चल-चित्र की तरह चल रहे थे | मैं सोच रहा था कि “रोटी की मज़बूरी” ने हमारा बचपन का शहर बेगाना बना डाला |
बिलकुल बदला बदला सा शहर ,कुछ भी पहले जैसा नहीं था और इतना कुछ बदलता भी क्यों नहीं ? पचास साल का समय कम तो नहीं होते है | लेकिन एक बात का मलाल हो रहा था कि वो कोई भी बचपन का वो दोस्त नहीं मिला जिसके साथ कभी “टायर की गाड़ी” चलाते थे, पतंग उड़ाते थे और भाड़े पर ली हुई साइकिल हम सब मिल कर चलाते थे |
शायद रोज़ी रोटी के लिए सब के सब ना जाने कहाँ पलायन कर गए, जैसे मैं कर गया | शायद वो भी कभी इसी तरह हमें भी ढूंढने यहाँ आता होगा | दिल से उस पुराने बचपन के दोस्तों के लिए बस यही दुआ निकली … जहाँ भी हो तुम मेरे बचपन के यार ..तुम सदा खुश रहना .| इस बचपन की शहर की यादों को कुछ इस तरह महसूस किया.,.

बचपन का शहर
बचपन का शहर मेरा .आज अनजाना लगा
कुछ भी तो नहीं था.. जो पहचाना लगा
विराना घर हो या गलियां.. बस घूरती थी मुझे
अपना ही बचपन यहाँ ..आज बेगाना लगा,
बचपन का शहर मेरा .. आज अनजाना लगा
वक़्त के कफ़न में हर रिश्ता आज दफ़न है
हर साजो सामान यहाँ आज बेगाना लगा ,
ढूंढने निकले थे बचपन के निशान
मिलने चले थे पुराने दोस्तों से यहाँ
निशान सारे मिट गए , दोस्त सारे छुट गए /
मेरे ज़िन्दगी का ये हिस्सा ..कोई गुजरा ज़माना लगा
वो बचपन का शहर मेरा … विराना लगा..
वो बचपन का शहर मेरा …अनजाना लगा //
BE HAPPY… BE ACTIVE … BE FOCUSED ….. BE ALIVE,,
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Categories: मेरे संस्मरण
आपने बचपन की याद दिला दी
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बिलकुल सच है ..बचपन के दिन सबसे निराले थे /सोच कर ही चेहरे पर मुस्कराहट दौड़ जाती है /
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मैं भी अपने बचपन के गली में जाना चाहती हूं।
आपकी लिखी हुई एक-एक लफ़्ज़ आंखों के सामने घूम गया।
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जी, सही कहा आपने |
हर कोई बचपन की गली से दुबारा गुज़ारना चाहता है |
सच, बचपन बहुत खुबसूरत होती है |
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शायद इसी लिए मैं बचपन के शहर में नहीं जाता डर जाता हूँ अब बदलाव से , यादों में वो आज भी खूबसूरत बना हुआ है।
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सही कहा आपने |
आज इतनी तेज़ी से सब कुछ बदल रहा है कि पुरानी यादें
हमें कुछ पल के लिए ख़ुशी दे जाती है |
आपकी भावनाओं की क़द्र करता हूँ |
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Reblogged this on Retiredकलम and commented:
The past is already gone, the future is not yet here ,
there is only one moment for you to live…
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बहुत तकलीफ होती है वो सब देखकर
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कभी कभी पुरानी यादें तकलीफ भी देती हैं |
अपनी भावनाओं को शेयर करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद |
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